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Ruchi Mittal

Tragedy Thriller

4.2  

Ruchi Mittal

Tragedy Thriller

वो खौफनाक मंजर

वो खौफनाक मंजर

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आज भी याद करके सिहर उठती हूँ वो खौफनाक मंजर।

दो दिन से लगातार बारिश हो रही थी..।। बादलों की गड़गड़ाहट...चमकती बिजली और मूसलाधार बारिश।

वैसे तो हमारा घर शहर की पाश कालोनी में था...परंतु यह नया बसा एरिया, पुराने शहर से थोड़ा निचला था।

ऊपर की मंजिल पर एक कमरा और एक रसोईघर बना हुआ था ।मैं,मेरे पति,दो बच्चे और सास-ससुर सब साथ में घर के निचले हिस्से में ही रहते थे।

लगातार बारिश होते रहने से सड़कों पर पानी भरने लगा।

देखते-देखते बारिश का प्रचंड वेग घर के बरामदे तक आ पहुँचा।

हमने अपना सामान ऊपर वाली मंजिल पर शिफ्ट करना शुरू कर दिया...परन्तु कितना कर पाते।

मेरा डबलबेड पानी में खिलौने की तरह तैर रहा था...

चावल का गोलटा,जो कि सिलेंडर के ऊपर रख दिया था...पानी की एक लहर के साथ नीचे।जो की दो दिन तक फूलकर ड़बल साईज के हो गए थे।

वाशिंग मशीन, फ्रिज इन सब के साथ,कुछ बिन बुलाए मेहमान कीड़े, साँप भी पानी में तैर रहे थे।

ऐसे में स्वभाविक था बिजली का गुल होना...अब ना लाईट, ना ही पीने का पानी।

जितना पानी था...एक ही दिन में खत्म।

पीने के लिए बारिश का पानी इकट्ठा करना शुरू किया।

दिन और र

ात में मानो अंतर ही खत्म हो गया था।

बिजली न होने से मोबाइल भी बंद...तो किसी से सम्पर्क भी नहीं हो पा रहा था।

ऊपर से मूसलाधार बारिश और नीचे बाढ़ का प्रचंडता।

वेग इतना तीव्र था कि उसमें पशु भी बहे जा रहे थे।

भगवान को याद कर किसी तरह दो दिन निकाले।

तीसरे दिन बारिश की तीव्रता थोड़ी कम हुई...

तो कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने नाव चलवाई।जो बाढ़ में फँसे लोगों को रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें मुहैया करा रहे थे।

धीरे धीरे बाढ़ का पानी उतरने लगा...दिल को सुकून मिला... परन्तु अब एक और परेशानी मुँह उठाए खड़ी थी।

बाढ़ का पानी जाते जाते छोड़ गया.... कीचड़, सीलन,बदबू, कीड़े-मकौड़े और बीमारियाँ।

घर की सारी अलमारियों में दीमक लग गई।

लकडी का सारा फर्नीचर गल कर फूल गया।

जिंदगी को वापस पटरी पर आने में बहुत दिन लग गए।

परंतु वो तीन दिन जैसे जिंदगी ठहर ही गई थी।

यूँ लगने लगा था...कि जैसे ये बादल फट गये हैं...अब सब खत्म करके ही शांत होंगे।

अब कभी हम अपनों से मिल भी पाएंगे कि नहीं... यही सब सोचकर रोना आ रहा था।

भुलाएँ नहीं भूलते वो खौफनाक तीन दिन।

याद कर आज भी सिहर उठती हूँ।


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