मेरी प्रेरणा मेरी माँ
मेरी प्रेरणा मेरी माँ
“माँ"... शब्दकोष का एक छोटा सा शब्द, लेकिन ब्रह्मांड का सबसे वजनदार किरदार।
इस छोटे से शब्द के आगे पूरी कायनात नतमस्तक है और अगर उसी माँ के लिए कुछ लिखना हो तो किताबों से लाइब्रेरी भर जाए।
माँ सबकी बहुत प्यारी होती है, परंतु मैं एक वाक्या साझा कर रही हूँ, जो मेरी माँ को सबसे अलहदा व खास बनाता है।
माँ ने हमेशा सिखाया कि अपने अंदर हिम्मत व हौंसला रखो अगर तुम कमजोर पड़ी तो यह दुनिया तुम्हें घोलकर पी जाएगी।
12वीं, गर्ल्स इंटर कॉलेज से करने के बाद BSc करने के लिए कॉलेज में एडमिशन लिया। सहेलियों के साथ कॉलेज जाती थी। परंतु 2nd ईयर में मेरी सहेली कोचिंग करने चली गई और दूसरी कुछ दिनों की छुट्टी पर अपने रिश्तेदार के घर।मैं कॉलेज नहीं गई।अगले दिन माँ ने पूछा- “कॉलेज क्यों नहीं जा रही हो"?
मैंने कहा क्योंकि मेरी दोस्त नहीं आ रही हैं।माँ ने एक और प्रश्न दाग दिया-“तो फिर, वे नहीं जा रहीं, तो क्या तुम नहीं जाओगी”? साइकिल उठाओ और फ़ौरन जाओ।
मैंने सकुचाते हुए बोला-“माँ हमारे डिग्री कॉलेज से पहले लड़कों का इंटर कॉलेज पड़ता है। और वे सड़क ब्लॉक कर देते हैं, निकलने नहीं देते साइकिल। और पता नहीं क्या-क्या गंदा बोलते हैं। अब माँ ने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोला-”तो बेटा, डरकर कब तक घर में बैठी रहोगी, और ऐसे कब तक दूसरों के सहारे, इन सबका सामना तुम्हें स्वयं करना होगा, तुम किसी से नहीं डरती, आँखों में दृढ़ता रखो, दिल में डर भी हो तो भी उसे चेहरे पर आने मत दो।
मेरे बच्चे, ऐसे काम नहीं चलेगा जाओ तुम अभी। मैंने दयायाचना से माँ की तरफ देखा, लेकिन उनका तमतमाता चेहरा देख चुप हो गई।उस वक़्त गुस्सा तो बहुत आया था माँ पर, लेकिन मैंने साइकिल उठाई और चल दी।
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ड़कों के इंटर कॉलेज के बाहर रोज की तरह भीड़, मैंने ठीक वैसा ही किया जैसे माँ ने बोला था, अंदर से डरी हुई थी लेकिन चेहरे व आँखों में दृढ़ता लिए हुए मैं बढ़ती ही गई, दिल जोरों से धड़क रहा था, साइकिल का पैडल मारते हुए पैर भी लड़खड़ा रहे थे।
अगर कोई कुछ बोलता है या साइकिल से रास्ता काटता तो घूरकर देखती उसे।और रास्ता साफ होता चला गया, फाइनली मैं अपने कॉलेज पहुँची। उस वक़्त दिल में जो खुशी थी कि मैं कितनी बहादुर हूंँ, वह फीलिंग एक लड़की ही समझ सकती है।
वह दिन मेरे डर का आखिरी दिन था।उसके बाद हजारों ऐसे मौके आएँ, लेकिन अब डरने की बारी सामने वाले की होती। बहुत सालों बाद मुझे पता चला कि माँ ने गुस्सा करके मुझे अकेले कॉलेज भेज तो दिया था, परंतु हमारे यहाँ काम करने वाले अंकल को मुझसे दूरी बना, मेरे पीछे जाने को बोला।जिन्होंने मेरे कॉलेज पहुँचने तक मुझे फॉलो किया।
आज जब मैं खुद माँ हूँ, तो समझ आती हैं ये सारी बातें कि माँ को अपने बच्चों को स्वाबलंबी, हिम्मती और हर चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करना पड़ता है।इसके लिए माँ अंदर से चाहे कितनी भी मोमदिल हो, बाहर से उसे नारियल की तरह कड़क बनना ही पड़ता है
उस दिन अगर माँ वो कदम न उठाती और मेरी बात मान जाती तो शायद मैं आज भी किसी का सहारा ही ढूँढ़ती। माँ से प्रेरणा पा बचपन से ही मैंने अपनी बेटियों को कुछ इसी अंदाज में पाला है।
माँ आपकी हर वो बात, हर वो सीख, जो आपने प्यार या डॉट से सिखाई, उसकी अहमियत मैं माँ बनने के बाद ही समझ पाई।
कोशिश करती हूँ, आपकी ही तरह अच्छी माँ बन पाऊँ, और एक दिन मेरी बेटियाँ भी मेरी तरह ही सोचेंगी, जैसे मैं सोचती हूँ आपके बारे में। बहुत-बहुत सारा प्यार व धन्यवाद माँ, मुझे मुझसे मिलवाने के लिए।