सबके प्यारे पिताजी
सबके प्यारे पिताजी


पिताजी...यही कहकर बुलाते हैं बच्चे उन्हें।
खादी का कुर्ता और उस पर जैकेट।
ऐसा ही रौबीला व्यक्तित्व है पिताजी का।
बाहर से कड़क लेकिन भीतर से एकदम मुलायम।
पिताजी एक स्कूल/कॉलेज की कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं..जो केवल लड़कियों का ही स्कूल है।
पिताजी का सादा जीवन..उच्च विचार हमेशा से ही दूसरों को प्रेरणा देता है। पिताजी हमेशा सबकी मदद के लिए खड़े रहते हैं।
पिताजी ने कॉलेज के प्रांगण में छात्रावास बनवा रखा है.. जहाँ बहुत सी छात्राएँ पढ़ती व रहती हैं।
ये बच्चियाँ देश के अलग-अलग प्रांतों से आती हैं..
गरीबी के चलते जिनके माता-पिता,परिवार का
लालन-पालन करने में सक्षम नहीं होते थे,
या वो बच्चियाँ जिनका पूरा परिवार प्राकृतिक आपदा के चलते काल के ग्रास में समा गया... और रह गई वो अकेली, बेबस, बेसहारा।
ऐसे में उन बच्चियों के लिए मसीहा बनकर आते हैं पिताजी।
पिताजी ऐसे इलाकों में जाते और उन बच्चियों को अपने साथ लेकर आते...अपने स्कूल में दाखिला करवाते और छात्रावास में रहने का इंतजाम।
पिताजी...पिता की ही तरह बच्चों के सुख-दुख का पूरा ध्यान रखते।
अलग-अलग प्रांतों से आयीं बच्चियाँ अपने स्थानीय उत्सव भी ऐसे ही मनाती जैसे अपने घर में हो।
होली हो या दिवाली खूब धूम-धड़ाका होता...होली पर पिताजी चाट पकौड़ी और गुंझिया के स्टाल लगव
ाते तो दिवाली पर मिठाईयाँ बनवाते।
यूँ मानों.. जैसे अपने घर की बच्चियों का ध्यान रखा जाता है... वैसे ही पिता जी उन सब बच्चियों का ध्यान रखते।
बच्चियाँ भी उन्हें अपने पिता जैसा ही मानती है।
रक्षाबंधन पर पिताजी की दोनों कलाइयाँ...हाथ से बनाई प्यार भरी राखियों से भर जाया करती।
तो पिता जी का जन्मदिन किसी उत्सव से कम ना होता।
दिवाली की तरह जन्मदिन को रोशनी पर्व बना दिया जाता।
बच्चों के कपड़े, किताबें,कॉपियों से लेकर जरूरत की सभी वस्तुएँ पिताजी ही देखते।
स्कूल की पढ़ाई के बाद कॉलेज...प्रतियोगी परीक्षा और उसके बाद नौकरी..।
पिताजी हरसंभव प्रयासरत रहते कि बच्चियाँ अपने पैरों पर खड़ी हो स्वावलंबी बने और अतीत की उन कड़वी परछाइयों से बाहर निकले जो उन्हें पीड़ा देती हैं।
अपने बच्चों के लिए तो सभी करते हैं परंतु ऐसी अनगिनत बेसहारा बच्चियों का पिता बनना हरेक के बस की बात नहीं।
नमन है मेरा पिताजी को...क्योंकि यह सिर्फ एक कहानी नहीं वरन् वास्तविकता सांझा की है मैंने आपसे।
वर्तमान परिवेश में क्रूर होते इस समाज में पिताजी उन सभी बच्चियों के लिए ठंडी छाँव समान है।
आज हमारे समाज को कुछ और ऐसे ही पिताजी चाहिए... जिससे कोई भी बच्ची बेसहारा न रहे।
पिताजी को समर्पित ये लेख पढने के लिए धन्यवाद... आप अपने अनमोल सुझाव देना ना भूलिएगा।