हाँ मैं नारी हूँ....
हाँ मैं नारी हूँ....
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मैं ....मैं हूँ, नारी हूँँ बेटी हूँ,बहन हूँ जननी हूँ..यूँ कहिए मैं पूरी सृष्टि हूँ।
यह मेरा वजूद है...किसने दिया तुमको यह हक, कि तुम खुद को मेरा भगवान समझ बैठे।रिश्ते में बंधी थी जीवनसंगिनी थी, बराबर का योगदान था दोनों का,परिवार चलाने का।तुम कमा कर लाते,तो मैं भी घर चलाती ।वह घर जो मेरा कभी हुआ ही नहीं,या यूँ कहूँ कि जिसको तुमने मेरा कभी माना ही नहीं।
जबकि वह घर तुमसे ज्यादा मेरा अपना था।अपना पूरा वक्त मैंने दिया था उस चारदीवारी को घर बनाने में।मुझे नहीं चाहिए था भगवान।
काश !तुम एक अच्छे इंसान ही बन जाते।
बात-बात पर तुम्हारा यह उलाहना देना कि इतनी परेशानी है तो चली जाओ अपने घर, मुझे भीतर तक झकझोर जाता।कहने को दो-दो घर,लेकिन कौन सा घर था मेरा अपना? वह जहाँ जन्म लिया,पली-बढ़ी,सपने देखे?याद है मुझे...विदा करते वक्त बाबू जी ने कहा था..
बेटा अब ससुराल ही तेरा घर है,अब तुम इस घर की मेहमान हो।उस दिन जो विदा हुई,पीछे छूट गया मेरा वह अपना घर।
ससुराल ...जहाँ सपने लेकर आई हजार,फिर भी ना कह पाई इसे अपना संसार।क्यों नहीं बेटियों के होते अपने घर?काश बाबू जी इतनी जल्दी मुझे विदा न करते...भाई की तरह आगे बढ़ने का मुझे भी अवसर देते ।काश मैं भी अपने पैरों पर खड़ी हो पाती... काश मैं भी अपना खुद का ही घर बना पाती। घर जिसको मैं अपना कह सकती, जिसने स्वाभिमान के साथ जी सकती।
आज मैं एक बेटी की माँ हूँ..जैसे-तैसे मैंने अपने जीवन के साथ समझौता कर लिया,लेकिन मैं अपनी बेटी को समझौता नहीं करने दूँगी ।मैं उसे पढ़ाऊँगी, लिखाऊँगी...उसे इस काबिल बनाऊँगी कि वह इस पुरुष प्रधान समाज में सर उठा के अपनी शर्तों पर अपनी जिंदगी जी सके।अपना खुद का एक घर बना सके ।
”दिल तड़पता है इसे सुकून चाहिए ,दो गज जमीन से पहले अपना एक घर चाहिए" ।