वो कौन थी ? भाग : २
वो कौन थी ? भाग : २


खून की प्यासी
"सच बताओ तुम कौन हो? तुमने सुबह से हंगामा मचा रखा है; कभी किसी पर गोली चलती हो, कभी कार का एक्सीडेंट करा देती हो……"
"शांत हो जा नहीं तो ब्लड प्रेसर बढ़ जायेगा। देख पिछले हफ्ते मैंने इन लोगो के साथ मिलकर एक लंबा हाथ मारा था और अंत में मैं सारा माल ले कर फरार हो गयी। अब ये लोग मेरे पीछे है; इन्हें माल या मेरी जान दोनों में से एक चाहिए।" उसने हँसते हुए जवाब दिया।
"तुम खतरनाक हो मुझे तुम्हारे साथ कही नहीं जाना है, मुझे यही उतार दो।"
"उतर जा, लेकिन उन लोगो ने तुझे मेरे साथ देख लिया है। बचेगा तू वैसे भी नहीं।"
उसने जो कहा वो सही था या नहीं मगर एक बात तय थी की उसका पीछा करने वाले मुझे देख चुके थे, और कुछ भी हो सकता था।
"उदित के मिल जाने के बाद क्या होगा?" मैंने बिना उसकी तरफ देखे पूछा।
"कुछ नहीं, अभी ये मेरे पीछे है; उसके बाद मैं इनके पीछे होउंगी, तब ये मुझसे जान बचाते फिरेंगे। फिर ये तेरी नहीं अपनी फ़िक्र करेंगे…. घबरा मत; उदित को ढूंढने पे धयान दे।"
थोड़ी देर बाद हम नेशनल हाईवे पर थे। अगले तीन घंटो में कई शहर गुजर गए। एक उजाड़ से ढाबे पर खाना खाया गया लेकिन मिथ्या पूरे समय अपने लैपटॉप पर लगी रही और सॅटॅलाइट फ़ोन पर किसी से बाते करती रही।
रात होते-होते हम देवदुर्ग पंहुच गए लेकिन विल सिटी अभी भी ३०० कि. मी. दूर था। थकावट के मारे बुरा हाल था। ड्राइवर ने आगे ड्राइव करने को मना कर दिया, उसने कहा की उसे खाना खाकर कुछ देर सोना है।
मिथ्या जो बिलकुल फ्रेश लग रही थी, ने अपने कंधे उचकाये और एक मोटेल के सामने कार रोकने को कहा।
मोटेल छोटा पर साफ सुथरा था। मिथ्या तत्काल अपने रूम में जाकर बंद हो गयी। ड्राइवर भी खाना खाकर टेरेस पर जाकर सो गया। मैं भी अपने बिस्तर में जाकर गिर पड़ा और सोचने लगा कि मै ये क्या कर रहा हूँ? कुछ रुपयो के लिए अपने दोस्त के पास एक खतरनाक औरत को ले जा रहा हूँ। कौन जाने ये उसके साथ क्या करेगी? यही सब सोचते हुए कब आँख लग गयी पता भी नहीं चला।
दरवाजा जोर-जोर से पीटने की आवाज से मेरी आँख खुली। मैंने दरवाजा खोला तो सामने एक पुलिस वाला खड़ा मिला, जिसने मुझे खींच कर रूम से बाहर निकाला और घसीटते हुए बाहर ले चला।
मोटेल की लॉबी में एक पुलिस सब इंस्पेक्टर मिथ्या के साथ जोर जोर से बात कर रहे थे।
"हाईवे की रानी हो जिसे चाहे उड़ा दोगी; तू रास्ते में जो कर के आयी है सबकी खबर है हमें, ये भी तेरे साथ था?" सब इंस्पेक्टर मेरी तरफ इशारा करते हुए बोला।
"नहीं……" मिथ्या ने जवाब दिया।
"झूठ बोलती है सा...., चल थाने में तू सब गायेगी। अबे ड्राइवर मिला?" पास खड़े कांस्टेबल से पूछा।
"भाग गया साब।"
"कहाँ जायेगा भाग के; चल इन्हें ले चल।"
दोनों कांस्टेबल मिथ्या और मुझे घसीटते हुए बहार खड़ी पुलिस जीप तक ले चले। थोड़ी देर बाद पुलिस जीप हमें अनजान मंजिल की तरफ ले चली। आबादी काफी पीछे छूट गयी थी अब तो इक्का दुक्का मकान ही दिख रहे थे।
"पहले क्वार्टर पे चल, गला सूख रहा है।" सब इंस्पेक्टर ने मिथ्या की और देखते हुए कहा।
जीप मुख्य सड़क से उतर कर टेढ़ी मेढ़ी पगडण्डी से गुजरती हुई एक खंडहर जैसे मकान के सामने जाकर रुक गयी।
सब इंस्पेक्टर के इशारे पर एक कांस्टेबल ने मिथ्या को घसीटते हुए जीप से बाहर निकाला। बाहर निकलते हे सब इंस्पेक्टर ने मिथ्या के बंधे हुए हाथो को पकड़ लिया और बोला, “तुझे भी तो पानी पीना होगा, आ तुझे भी पानी पिला दूँ, आ मेरे साथ।"
मिथ्या ने घूर कर उसकी तरफ देखा।
"बहुत अकड़ है तेरे में, चल अभी तेरी सारी अकड़ निकलता हूँ।" कहते हुए सब इंस्पेक्टर उसे मकान के अंदर घसीटते हुए ले गया।
"अबे तुम काहे थाने के लफड़े में फंस रहे हो; मामला यही निपटा लो, अगर लड़की से खुश हो गए साहब तो; थोड़ा-बहुत पैसा देके मामला निपटा लेना, नहीं तो बहुत लंबे जाओगे।" एक कांस्टेबल मुझे समझाते हुए बोला।
मैं खामोश रहा और मिथ्या की हो रही दुर्गति के बारे में सोचता रहा।
मुश्किल से तीन या चार मिनट ही गुजरे होंगे मिथ्या मकान से दौड़ते हुए बाहर निकली, उसके हाथ में एक खिलोने जैसे गन थी। आते-आते उसने उस गन से दोनों कांस्टेबल पर फायर किये। पिट- पिट की हलकी आवाज़ हुई और दोनों कांस्टेबल ख़ामोशी से नीचे गिर गए।
"मर गए सब; वो इंस्पेक्टर भी ?" मैंने मिथ्या से पूछा।
"हाँ; इस डार्ट गन के डार्ट्स का जहर बहुत तेज होता है; जरा सी खरोच से आदमी मर जाता है।" मिथ्या मेरे हाथ खोलते हुए बोली।
"ये गन तुम्हारे पास हमेशा रहती है ?" मैंने पूछा।
"हाँ, हमेशा।" वो तेजी से बाहर की और दौड़ते हुए बोली।
(क्रमशः)