Prabodh Govil

Romance

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Prabodh Govil

Romance

वो दोपहर

वो दोपहर

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मैंने नींद से जाग कर फ़ोन हाथ में उठाया ही था कि उस व्हाट्सएप मैसेज पर नज़र पड़ी। लिखा था- जब फ़्री हों बात करें।

मैसेज के साथ डीपी पर भी दृष्टि गई और मन ही मन तय कर लिया कि बात तो करनी ही है। सुबह का समय कुछ हड़बड़ी का होता है। कुछ बातों की मन को जल्दी होती है और कुछ बातों की तन को जल्दी।

जल्दी से मैसेज का जवाब दिया कि लगभग ग्यारह बजे दिन में बात करता हूं, और अपने दैनिक कार्यों में उलझ गया।

ग्यारह तो बजने ही थे। मैंने फ़ोन मिलाया। दुआ सलाम हुई। उधर से आने वाली टोन शायद ये परखना चाहती थी कि परिचय की वही गर्मजोशी अभी तक बरकरार है या नहीं। इधर मैंने भी अपनी आवाज़ से भरसक ये आभास देने की कोशिश की- कि आपको कैसे भूला जा सकता है!

अब पहले आपको बता दूं कि लगभग तीन साल पहले की बात है, मैं नज़दीक के एक देश में घूमने गया था। छुट्टियां बिताने। कुछ और लोग भी थे जो सभी पर्यटक ही थे और सबका एक सा उद्देश्य होने के कारण आपस में अस्थाई मित्र जैसे भी बन गए थे। वैसे, मित्रता ऐसी चीज़ है जिसके बारे में आप तय नहीं कर सकते कि ये कब स्थाई हो जाएगी या कब तक अस्थाई होकर ही रहेगी।

ख़ैर, हम सब एक पांच सितारा होटल में ठहरे हुए थे। सबके कमरे भी आसपास ही थे। कभी भी हम सब अपने- अपने कमरे में घुस कर अकेले- अकेले हो जाते थे और कभी भी बाहर निकल कर पुराने आत्मीय दोस्तों की तरह साथ घूमने, खाने- पीने के प्रोग्राम बना लेते थे।

ऐसा ही एक दिन था।

सब लोगों का कार्यक्रम एक किले को देख कर आने का बना जो वहां से दो तीन घंटे की यात्रा जितनी दूरी पर स्थित था। यात्रा में पर्याप्त चढ़ाई और जोखिम थे क्योंकि ये किला एक बेहद ऊंचे बर्फीले पहाड़ पर ही स्थित था। टैक्सी से जाना था। न जाने क्यों, मैं डर गया। मेरी हिम्मत यात्रा शुरू होने से पहले ही जवाब देने लगी।मैं मित्रों के साथ नहीं गया और होटल में ही रुक गया।

सब चले गए।

अब सुबह भरपेट नाश्ता कर लेने के बाद मैं पूरे दिन भर के लिए अकेला और ख़ाली था। होटल की चहल पहल भी अपेक्षा कृत काफ़ी कम हो गई थी क्योंकि अधिकांश सैलानी इधर उधर घूमने अथवा बाजारों में शॉपिंग करने निकल गए थे।

मैं कुछ देर रिसेप्शन के पास सोफे पर बैठा हुआ अख़बार और पत्रिकाएं पलटता रहा। लेकिन मैं इस काम में जल्दी ही ऊब गया क्योंकि अधिकांश पत्रिकाएं उस देश की स्थानीय भाषा में ही थीं जो मुझे नहीं आती थी। अंग्रेजी की पत्रिकाएं ज़रूर मेरा कुछ समय ले गईं। तो बाकी पत्रिकाओं के केवल चित्र उलट पलट कर मैं उठ कर खड़ा हो गया और लॉबी में चहल कदमी करने लगा।

दरवाज़े के निकट आते ही मुझे पीछे गार्डन के बीच बना स्विमिंग पूल दिखाई दिया। इससे थोड़ी ही दूरी पर एक रंगीन बड़ी सी केनॉपी के नीचे एक अकेली कोई महिला बैठी हुई थी। महिला की पीठ इस तरफ़ थी इसलिए मैं उसे देख तो नहीं पा रहा था, मगर उसकी वेश भूषा से लग रहा था कि वो भारतीय ही होगी क्योंकि उसने बेहद सलीकेदार ढंग से भारतीय परिधान साड़ी ही पहनी हुई थी। वह आंखों पर काला चश्मा लगाए कुछ पढ़ने में ही व्यस्त दिखती थी।

ओह, हो सकता था कि वह भी मेरी ही तरह समय काटने के उद्देश्य से कोई पत्र- पत्रिका लेकर बैठी हो। मैं उस तरफ़ बढ़ चला।



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