वो आखरी पल
वो आखरी पल
जमाना कितना बदल चुका है , कुछ ही समय पहले एक लड़का-लड़की का साथ चलना भी लोगों के मन में सवाल पैदा कर देता था।
उन्हीं दिनों की बात है , जब 12वी के बाद बी.एस.टी.सी. कर रही थी। एक सामान्य लड़की होने के कारण पढ़ाई पर खास ध्यान था , कॉलेज मैं बाकी के लड़के लड़कियां एक दूसरे के साथ दोस्ती करते और साथ घूमने , फिरने का आनन्द उठाते थे । और एक मैं थी जो बस अपनी साधारण सुरत और लोक लाज की वज़ह से सोचती थी , जैसे ये सब मेरे लिए नहीं है ।
लोक लाज को छोड़ भी दे तो भला इतने खूबसूरत चेहरों को छोड़ कोई मुझे क्यूँ पसंद करेगा । मगर ये तो दिल की बात है , कोई ऐसा जरूर होता है जिसे देख आँखों और मन सुकून मिलता है । ऐसा ही एक चेहरा था पंडित के नाम से जाना जाने वाले लड़के अर्जुन का , सांवले रंग आकर्षक आँखों वाला चेहरा था । जिसे रोज देखती मगर कभी बात करने की हिम्मत नहीं हुई । उसको देख लेना ही काफ़ी था कहीं बात करने जाऊँ और वो मेरा मजाक न बना दे जैसे अक्सर लोग बनाते हैं। उस वक़्त खूबसूरत न होने का दुःख अंदर ही अंदर खाये जा रहा था और मुझे अकेले रहना ही अच्छा लगता था। खैर 2 साल तो बिना बात किये या ये जाने बिना निकाल दिए की उसका कभी मुझसे टकरा जाना या रास्ते में मिल जाना और एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ पल भर में विदा ले लेना ये सब आम सामाजिक मूल्यों के कारण था या कोई खास वज़ह थी,
क्लास में कभी कभार वो भी मेरी तरफ देख लेता था और तभी अचानक से मेरा उसकी ओर देखना उसकी नजरो की दिशा बदल देता था , परंतु मैं इस आँख मीचोली के खेल को कभी समझ न पायी कॉलेज के आखिरी दिन जब सब एक दूसरे को विदाई दे रहे थे तब उसकी नजरे मेरी तरफ थी लेकिन जो डर मेरे मन में था शायद वही डर उसे भी था । इस डर को लेकर ही हम कॉलेज से निकले मेरी सहेली मुझे 2 मिनट रुकने का बोल अपनी किताब लेने वापस गयी सब निकल गए मैं गेट पर ही खड़ी थी , कि अचानक से आवाज सुनाई दी, वो अर्जुन ही था और उसने जाने के लिए रास्ता मांगा जिसे मैं रोके खड़ी थी उसने कहा दो साल में रास्ता नहीं रोका और अब रास्ता रोक रहीं हो जब घर जाने का वक़्त आया बस इतना कहा और वो चल दिया और मैं उसकी बात का मतलब समझने में लगी थी, कुछ दूर जा कर वो थोड़ी देर रुका था, मुझे मतलब समझने में देर लगी इतने में मेरी सहेली आ गयी । चले क्या ? हाँ चलो, ये कहकर जब वापस मुड़ी तो अर्जुन नहीं था वहां । काफ़ी देर नजरे उसे ढूँढती रहीं मगर वो घर के लिए निकल चुका था उसकी बस आ गयी थी । कॉलेज का वो आखरी दिन और वो आखरी पल एक खूबसूरत सपना बन कर रह गया, आज भी जब वो दिन याद आता है तो सोचती हूँ, काश ! बिना डरे उसे एक बार रोका होता।