नाता प्रथा
नाता प्रथा
राजस्थान के एक गांव में रहने वाली गीता की शादी बचपन में ही हो गयी थी, लेकिन गौने से पहले ही एक हादसे में उसका पति मारा गया, तब उसकी उम्र 13 वर्ष की थी।
समय बीतने लगा और गीता की परेशनीयां भी बढ़ने लगी आखिर वो एक समाज में जो रहती थी जहां पर लड़की के विधवा होने का दोष भी उसी को दिया जाता है। गीता पर भी किसी शुभ कार्य में जाने की पाबन्दी थी, माता-पिता किसी तरह उसका भविष्य सुधारने में लगे थे कई रिश्ते देखे मगर कोई लड़का अधेड़ तो किसी के बच्चे थे, अब विधवा के लिए कुँवारा तो मिलने से रहा फिर चाहे वो पति के साथ रहीं हो या नहीं, गीता ने तो अपने पति की शक्ल तक न देखी पर लोग कहाँ समझने वाले
कुछ समय बाद एक पढ़ा लिखा जवान लड़का मिल ही गया उसकी भी बचपन में शादी हुई थी गौना करवाने के महीने बाद ही पत्नि छोड़ स्वर्गलोक चली गयी थी।
चार दिन में ही सब कुछ तय हो गया, शनिवार का दिन चुना गया न
ाते के लिए , वैसे तो पहले भी नाते हुए लेकिन हमने कभी देखे नहीं, इस बार पड़ोस में हो रहा था रस्में देखने की जिद्द तो गाँव की हर लड़की ने की मगर इजाज़त न मिली किसी को,
चुपके से सबने देखा वो कोई शादी नहीं सौदा था, जूतों का हार पहनाया गया गीता को उस समय उसके मन में कितने ही सवाल थे पर पूछे किसे अपने आप को इतना बेइज्जत होते तो कभी न देखा, थोड़ी देर रात के अंधेरे में काला कंबल ओढ़ा कर चुपचाप निकाल दिया घर से उस लड़के के साथ न जाने कौन सी ग़लती की सजा मिली थी उसे।
हमारी समझ से बाहर था मगर किसे पूछे सब तो रूढ़िवादी हैं यहां पढ़ें लिखे लोग भी तो मुँह बंद कर बैठे हैं, गीता के शादी के सारे सपने टूट गए पहली वाली तो समझ से पहले हो गयी, दूसरी ने कुछ ज्यादा ही समझा दिया और उसके मन पर इतनी गहरी चोट लगी कि अपने सुख - दुःख माँ तक को नहीं बताती, बस खुद को कोसती रहती हैं कि क्यूँ एक बेटी बन पैदा हुई।