विविधता day-29
विविधता day-29
"काव्या को कल से नवरात्रों के साथ प्रारम्भ हो रहे नववर्ष की पूजा के लिए कैसे कहूँ। पता नहीं उनके दक्षिण होता होगा या नहीं। आजकल के बच्चे तो 1 जनवरी से ही नए वर्ष का प्रारंभ मानते हैं ।" सुमित्राजी अपने बेटे पीयूष से बात कर रही थी।
सुमित्रा जी ने अपन बेटे की ख़ुशी के लिए उसकी पसंद मलयाली लड़की काव्या पर अपनी पसंद की मुहर तो लगा दी थी लेकिन वह अच्छे से जानती थी कि ,"उनके राजस्थानी रीति-रिवाज़और काव्या के दक्षिण भारतीय रीति-रिवाज़ो में फर्क होगा। वैसे शादी में तो यहाँ के जैसे ही सिन्दूर दान ,फेरे आदि हुए थे। ताली अर्थात मंगल सूत्र भी पीयूष ने काव्या को पहनाया था लेकिन फिर भी हम उनसे बहुत अलग हैं ।"
सुमित्राजी एक सुलझे हुए व्यक्तित्व की मालकिन थी वह काव्या को बलपूर्वक अपन रीति रिवाज़ों का अनुसरण भी नहीं करवाना चाहती थी। इसीलिए बड़ी दुविधा में थी ।
तब ही काव्या जिसने कि अंदर आते हुए दोनों की बातचीत सुन ली थी , कमरे में प्रवेश करते हुए कहा कि,"अम्मा,यहाँ ही नहीं पूरे भारत के लगभग सभी राज्यों में ये नववर्ष अलग-अलग नाम स मनाया जाता है। "
तब ही पीयूष ने कहा ," हाँ, मम्मा इस समय तक रबी की फसल पूरी तरीके से तैयार हो जाती है । अपनी उत्पादन की ख़ुशी और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए ही तो यह त्यौहार मनाये जाते हैं।"
पीयूष की हाँ में हाँ मिलाते हुए काव्या ने कहा ,"हाँ अम्मा , इस नव वर्ष को अलग -अलग राज्यों में अलग - अलग नाम से मनाया जाता है जैसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा,आसाम में बिहू,कर्नाटक में उगादि और केरल में विशु नाम से। यही तो हमारे भारत की विविधता में एकता है। यह समान सोच ही तो हमें एक दूसरे बाँधी हुई है । सोच समान, लेकिन जलवायु और भौगोलिक भिन्नता के कारण त्यौहार मनाने के तरीकों में जरूर विविधता हो सकती है। यह विविधता ही तो हमारी शक्ति और खूबसूरती है। आप फ़िक्र मत करो,मैं जल्दी उठ जाऊँगी और आपके साथ पूजा भी करूँगी। "
" अरे बेटा, पंजाब में वैशाखी के नाम से मनाते हैं । "सुमित्राजी ने मुस्कुराते हुए कहा।