विश्वासघात--भाग(२२)
विश्वासघात--भाग(२२)
दूसरे दिन साधना और मधु दोपहर के खाने पर लीला के घर पहुँचे और उसने सारा वृत्तांत साधना को कह सुनाया,ये सुनकर साधना को एक झटका सा लगा कि उसका पति एक नामीगिरामी स्मगलर है और व्यापार की आड़ में वो ऐसे धन्धे करता है,देश के साथ इतनी बड़ी धोखेबाजी कर रहा है और इस की गवाही देने के लिए संदीप ने मंजरी और अरूण को भी बुला लिया था।
तब मंजरी ने भी कहा___
"जी,मिसेज सिंघानिया! मैं जूली बनकर उनके साथ काम करती हूँ लेकिन मैं एक सरकारी जासूस हूँ और मेरा असली नाम मंजरी है।" अरूण ने भी अपनी सच्चाई बताते हुए कहा कि___
"छोटी माँ! आप मुझें गलत ना समझें,मैनें अपनी मरती हुई माँ को वचन दिया था कि मैं बाबूजी को सही रास्ते पर लाकर रहूँगा।"अब साधना मुश्किल में थी कि क्या करूँ? क्या ना करूँ,एक तरफ पति है तो दूसरी ओर पति के गुनाह और गुनाह ऐसे हैं कि जो माँफ करने लायक ही नहीं हैं,वो कुछ भी सोच नहीं पा रही थीं,तभी साधना की मुश्किलों को हल करते हुए लीला बोली___
"अगर आप हम लोंगों का साथ नहीं देना चाहतीं साधना बहन! तो कोई बात नहीं लेकिन जो राज आपको पता हो गए हैं कृपया आप उन्हें अपने तक ही सीमित रखिए,किसी निर्दोष की जिन्दगी का सवाल है,सालों से वो इस कलंक को ढ़ोते ढ़ोते थक गया है,अब समय आ गया है कि उसे बेगुनाह साबित कर दिया जाए।"
"जी,मैं कुछ सोच नहीं पा रही हूँ,बहुत ही दुविधा में हूँ,क्या मुझे आप सब थोड़ा सा वक्त दे सकते हैं सोचने के लिए कि मुझे क्या निर्णय लेना चाहिए,"
साधना बोली।
"जी,साधना बहन! बिल्कुल ,आपको जितना भी वक्त चाहिए आप ले लीजिए,लेकिन ये जरूर याद रखिएगा कि ना जाने कितने बेगुनाहों को आपके पति ने मौत के घाट उतरवा दिया है और देश के साथ गद्दारी करके भला वो और कितने दिन बच पाएंगे,एक ना एक दिन वो जुरूर कानून के शिकंजे में फँसेगें,तब उन्हें कोई नहीं बचा सकेगा",शक्तिसिंह जी बोले।
"जी आण्टी! आप अरूण जी को ही देखिए,ये भी तो उनके बेटे हैं लेकिन ये भी चाहते हैं कि इनके पिता जल्द से जल्द गलत रास्ता छोड़ दें",संदीप बोला।
"लेकिन वो मेरे पति हैं,मैं उन्हें धोखा नहीं दे सकती",साधना परेशान होकर बोली।
"वो मेरे भी तो पिता है लेकिन मैं उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए ऐसा कर रहा हूँ और कहा जाए तो मैं भी तो उन्हें धोखा ही दे रहा हूँ",इन्स्पेक्टर अरूण बोला।
"लेकिन अरूण बेटा! मैं अभी कुछ जवाब नहीं दे सकती,आप सब लोग मेरी भावनाओं को समझने का प्रयास करें",साधना बोली।
"लेकिन माँ!डैडी दोषी हैं और यही सबसे बड़ी सच्चाई है,आप इस सच्चाई को झुठला नहीं सकतीं,हमें इन सबका साथ देना ही होगा,मधु ने साधना से कहा।
"लेकिन मधु! वो तेरे पिता है,तेरे पालनहार हैं",साधना बोली।
"जी ,ठीक है साधना बहन! जो आपका मन कहे,आप वो ही करें,ऐस कोई जबर्दस्ती वाली बात नहीं है,चलिए अब खाना खा लेतें हैं,खाना ठण्डा हो रहा है",लीला बोली।और सब खाना खाने बैठे,सबके बीच ऐसे ही औपचारिक सी बातें चलतीं रहीं।
"साधना और मधु अपने घर लौट आईं,एक दो दिन तक साधना ने इस मसले पर काफी़ विचार किया और उसने मन बना लिया कि वो सबका साथ देगी,उसे लगा कि जब उसके पति दोषी हैं तो उनके कुकर्मों को छुपाकर कोई फायदा नहीं क्योंकि ऐसा करके वो अपनी अन्तर्रात्मा को क्या जवाब देगी? और फिर सिंघानिया साहब ने सारी जिन्दगी गलत काम किए हैं,कम से कम बुढ़ापे मे तो वो अपने पापों का प्रायश्चित कर लें और इसमे ही उनकी और हम सबकी भलाई है,वैसे भी पुलिस उनकी जासूसी कर ही रही है और ये पक्का है कि एक ना एक दिन वो जरूर पकड़े जाएगें,इसलिए अगर ये काम समय रहते हो जाए तो ज्यादा अच्छा है"
एक दो दिन विचार करने के बाद साधना ने लीला से टेलीफोन पर बात करके सबका साथ देने की सहमति जताई,ये सुनकर लीला बहुत खुश हुई और उसने ये खबर सबको खुश होकर बताई,अब बारी थी साधना कि उसे कौन सा काम दिया जाए और इस बात के लिए साधना को लीला ने फिर एक बार अपने घर बुलाया।
सभी ने आपस में बैठकर फिर से योजना बनाई___
"छोटी माँ! आपको बाबूजी के हर काम पर नज़र रखनी होगी और ये भी ध्यान रखना होगा कि उनसे कौन कौन मिलने आता है,आपको ये भी ध्यान रखना है कि उन्हें बिल्कुल भी भनक नहीं लगनी चाहिए कि आप उन पर नज़र रख रही हैं और वो टेलीफोन पर किससे और क्या बातें करते हैं वो भी सब आपकी जिम्मेदारी है",इन्सपेक्टर अरूण ने कहा।
"लेकिन बेटा! ये सब मैं कैसे कर पाऊँगी?", साधना बोली।
"आप खुद पर भरोसा रखें आपसे सब होगा",अरूण बोला।
"मुझे खुद पर भरोसा ही तो नहीं है,कहीं ऐसा ना हो कि मैं भावनाओं में बह जाऊँ,क्योंकि कहीं ना कहीं ऐसा करने की लिए मेरा ज़मीर मुझे रोक है,आखिर मैं उनकी अर्धांगिनी हूँ! उनका अनहित करना भला ये मैं कैसे सोच सकती हूँ",साधना बोली।
"ये अनहित नहीं है छोटी माँ! ये तो आप हम सबका हित कर रहीं हैं,अगर आप उन्हें अपनी अर्धांगिनी कहतीं हैं तो तो आपको उन्हें ये सब गलत काम करने से रोकना होगा और वो एक अच्छे इंसान बन पाएं तो भला इससे बड़ा पुण्य और क्या होगा आपके लिए",अरूण बोला।
"हाँ,अरूण बेटा! तुम शायद ठीक कह रहे हो,मैं कोशिश करूँगी कि जो काम आप लोगों ने मुझे सौंपा है,वो मैं पूरी ईमानदारी के साथ कर पाऊँ",साधना बोली।
"ये हुई ना बात! और इतना मायूस होने की जुरूरत नहीं है साधना बहन! मैं आपके मन को भलीभाँति बाँच सकती हूँ,लीला बोली।
इसलिए तो मुझे बहुत ज्यादा हौसले की जुरूरत है",साधना बोली।
"और वो हौसला आप में है,साधना बहन! आप ये काम बखूबी कर सकतीं हैं",शक्तिसिंह जी बोले।
आप सब लोगों को मुझ पर इतना भरोसा है तो मैं भी आप लोगों के इस भरोसे को कायम रखूँगी,साधना बोली।
और इस दिन के बाद साधना ने नटराज पर कड़ी नजर रखनी शुरू कर दी,वो नटराज के टेलीफोन्स को ध्यान से सुनती कि वो क्या और किससे बातें कर रहा है,घर पर पर नटराज से कौन मिलने आता है,किन किन से नटराज के गहरे ताल्लुकात हैं।
अब इधर जब से नाहर सिंह को जूली की सच्चाई पता हो गई थी तो अब नाहर को क्लब जाने में भी कोई झिझक ना होती,क्लब में जूली को जो भी बात पता होती वो नाहर को बता देती और नाहर जाकर अरूण से सब कह देता,इस तरह से नटराज के धन्धों पर धीरे धीरे कानून का शिकंजा कसता जा रहा था।एक रात आधी रात के समय नटराज के घर का टेलीफोन बजा___
"हेलो...."नटराज ने टेलीफोन पर कहा।टेलीफोन के उस तरफ से आवाज़ आई,
"बास! मैं राँगा!हमारा सारा माल पकड़ लिया गया है और साथ में जो आदमी थे पुलिस ने उन्हें भी धर दबोचा है,मैं बड़ी मुश्किल से भाग पाया हूँ और आपको ख़बर कर रहा हूँ,अगर उन सब में से किसी ने भी मुँह खोल दिया तो आपकी सच्चाई दुनिया के सामने आ जाएगी,अभी मैं टेलीफोन रखता हूँ,पुलिस मेरा अभी तक पीछा कर रही है" और इतना कहकर राँगा ने टेलीफोन रख दिया।
"नटराज हड़बड़ी में नाइट ड्रेस में ही बाहर गया और बिना ड्राइवर को उठाए,खुद ही मोटर निकाली और स्टार्ट करके ना जाने कहाँ चला गया।और ये ख़बर साधना ने फौरन अरूण को दे दी।
कुछ ही देर में नटराज अपने अड्डे पहुँचा,उधर उसके कई गुण्डे मौजूद थे,नटराज ने उन्हें फौऱन सूचित करते हुए कहा___
"मेरा करोड़ों का माल पकड़ लिया गया है,माल तो गया ही साथ में आदमियों को पकड़ लिया गया है,तुम लोग उन लोगों के पीछे जाओ और ध्यान रखना एक भी आदमी जिन्दा ना बचे,क्योंकि अगर उनमे से एक भी पकड़ा गया और किसी ने भी मुँह खोल दिया तो हम से कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा,साथ में राँगा की भी खोज करो उसी ने टेलीफोन करके मुझे ये ख़बर दी थी,उसे भी मौत के घाट उतार दो क्योंकि पुलिस उसे भी पहचान चुकी है,अब मैं ये पता करने की कोशिश करता हूँ कि आखिर वो कौन है जिसने मुझसे पंगा लिया है,कोई ना कोई तो ऐसा ख़बरी जरूर है जो मेरे नज़दीक रह कर ही मुझको धोखा दे रहा है और मैं अब उसका पता लगाकर रहूँगा।"
नटराज बहुत ही परेशान था ,उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर एक दो महीने से ऐसा क्यों हो रहा कि माल आने की खबर पुलिस को पता चल जाती है,अगर ऐसा चलता रहा तो उसके दो नम्बर के सभी धन्धे जल्द ही चौपट हो जाएंगे,कुछ ना कुछ चक्कर तो जरूर है,ऐसा कोई तो है तो पुलिस का जासूस बन कर मेरे साथ काम कर रहा है लेकिन वो कौन हो सकता है,यही चिंता नटराज को खाएं जा रही थी।
नटराज ने इस बात का पता लगाने के लिए कई खबरियों को लगा दिया और खुद भी लोगों पर कड़ी नज़र रखने लगा और जो उससे नए लोंग जुड़े थे उनके बारें में तो उसने अपने आदमियों से खासतौर पर ख्याल रखने को कहा।
अब नटराज को ये भी लगने लगा था कि साधना को मैने आजकल देखा है कि वो ज्यादातर बाहर जाने लगी है,पहले तो इतना कभी भी बाहर नहीं जाती थी,कुछ ना कुछ बात जुरूर है।
एक रोज मंजरी अरूण को नटराज की कुछ जुरूरी ख़बर देने रेस्तरां पहुँची,काफ़ी देर दोनों के बीच बातेँ होतीं रहीं,जब मंज़री ने अपनी बात कहकर चलने को हुई तो अरूण ने उससे कहा___
"मंजरी! थोड़ी देर और ठहरो ना!
"लेकिन क्यों? अरूण! मेरे पास जो ख़बर थी वो तो मैने तुम्हें दे दी",मंजरी बोली।
"लेकिन मेरे पास भी तुम्हें कुछ बताने के लिए है",अरूण बोला।
"हाँ,बोलो! लेकिन जल्दी कहो,ऐसा ना हो कि कोई हमें साथ में देख ले",मंजरी बोली।
"वो ये है मंजरी! कि मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ,क्या तुम भी मुझे पसंद करती हो? "अरूण बोला।
"नहीं,अरूण! बुरा मत मानना,लेकिन मैने कभी भी तुम्हें इस नज़र से देखा ही नहीं और फिर मेरे मन में तो कोई और बस गया है,मंज़री बोली।
इसका मतल़ब है कि मैं तुम्हारे क़ाबिल नहीं,"अरूण बोला।
" ऐसी बात नहीं है अरूण! तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त हो लेकिन प्यार.....,"मंजरी बोली।
"अच्छा तो मैं ये जान सकता हूँ कि वो शख्स कौन है",अरूण बोला।
"हाँ,वो संदीप है",मंजरी बोली।
"तुम्हें पता है कि वो कुसुम से प्यार करता है और कुसुम उसकी मंगेतर है",अरूण बोला।
"हाँ...मुझे सब पता है",मंजरी बोली।
'लेकिन फिर भी तुमने उसे चुना",अरूण बोला।
"लेकिन अरूण ! दिल पर किसका जोर है और फिर मैं ये थोड़े ही चाहती हूँ कि संदीप भी मुझे प्यार करें,मै उसे पाना थोड़े ही चाहती हूँ,बस मुझे उससे मौहब्बत है,वो भी मुझसे मौहब्बत करें,ये जरूरी तो नहीं",मंजरी बोली।
"अब तुम्हारी यही मरजी है तो फिर मैं अब क्या कह सकता हूँ,अच्छा चलो अब यहाँ से चलते हैं",काफ़ी देर हो चुकी है और अरूण मायूस होकर वापस चला गया।
क्रमशः____
