विश्वास या अंधविश्वास!
विश्वास या अंधविश्वास!


रमन को घर पहुंचे लगभग आधा घंटा हो गया था। नहा धो कर रमन विश्राम करने के मूड में था कि उसके फोन की घंटी बज उठी। डिस्प्ले पर रमन ने देखा अंकित का फोन था। रमन ने फोन उठाया।
"हैलो!"
"रमन! कहां हो?"
"घर पर। कोई आधा घंटा पहले ही आया हूं।"
"तो झटपट तैयार हो कर मेरे घर आ जाओ।"
"कोई खास बात है।"
"है भी और नहीं भी।"
"क्या मतलब?"
"मतलब ये कि कहीं घूमने चलने का इरादा है। कुछ पार्टी-शार्टी करेंगे। दारू-शारू पियेंगे। मौज-मस्ती करेंगे। अशोक नरेन्द्र और विशाल भी आ रहे हैं।"
"कितनी देर तक पार्टी करने का इरादा है।"
"मेरा ख्याल है कि बारह एक तो अवश्य बज जायेंगे।"
"ओके! मैं आ रहा हूं!"
"मैं इंतजार कर रहा हूं।"
फोन कट गया।
लगभग आधे-पौन घंटे बाद जब रमन अंकित के घर पहुंचा तो बाकी तीनों मित्र भी वहां पहुंच चुके थे।
रमन, अंकित, विशाल, नरेन्द्र और अशोक। ये पांचों बचपन के मित्र थे। साथ पढ़ें। साथ खेले। साथ-साथ शरारतें करते युवा हुए। ये कोई असमाजिक तत्व नहीं थे, मौज-मस्ती से इनका तात्पर्य कुछ घूमना-फिरना। कुछ हंसी-मजाक करना होता था। ये पांचों मध्यम वर्गीय परिवार के सदस्य थे, इन पांचों में कुछ बारोजगार थे तो कुछ बेरोजगार। रमन एक फोटोग्राफर था और उसकी अपनी दुकान थी। विशाल एक उभरता हुआ पत्रकार था। नरेन्द्र और अशोक रोजगार के लिए संघर्षरत थे। अंकित इन पांचों में सबसे अधिक धनाढ्य परिवार से होने के कारण रोजगार की चिंता से मुक्त था। उसके पिता की बीच बाजार में अच्छी चलती हुई कपड़ों की दुकान थी। अंकित अक्सर अपने पिता की दुकान पर बैठकर दुकान का काम देखता था। अपने पिता के बाद उसे ही दुकान संभालना था। इन पांचों के परिजनों को इनके बारे में जानकारी थी। परिजनों को इनकी मौज-मस्ती से कोई आपत्ति नहीं थी। इसलिए ये देर रात तक घर से बाहर रहकर मौज-मस्ती कर लिया करते थे। विवाह के बंधन से अभी मुक्त थे। विवाह हुआ होता तो शायद एक थानेदार इनके ऊपर डंडा चलाने वाला होता और ये इस तरह की देर रात तक चलने वाली मौज-मस्ती से उलट गृहस्थी की चक्की में जुते अपनी जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहे होते। पत्नी-बच्चे न सही पर परिवार तो सभी का था। माता-पिता, भाई-बहन सभी के थे। केवल अशोक के पिता दिवंगत हो चुके थे। अशोक के पिता रेल विभाग में बी ग्रेड अधिकारी थे। जब अशोक के पिता का निधन हुआ तब अशोक छोटा था इसलिए उनका स्थान अशोक की माता को मिल गया। घर में अशोक और उसकी मां के अतिरिक्त एक मात्र उसकी छोटी बहन ही थी। इस तरह तीन व्यक्तियों के परिवार के के लिए घर में काफी धन था।
पांचों घर से निकल कर बाजार में घूमने पहुंच गए। कुछ देर घूमने के बाद इन्होंने शराब की एक बोतल और कुछ नमकीन खरीदने के बाद विचार करना शुरू किया कि शराब कहां पी जाए। वैसे इन लोगों का पसंदीदा स्थान नदी किनारे का सुनसान क्षेत्र था। लेकिन आज ये लोग किसी नये स्थान पर शराब पीना चाहते थे। विशाल ने सुझाव दिया-
"क्यों न श्मशान में चलकर शराब पी जाए। मस्ती की मस्ती और एक्साइटमेंट का एक्साइ
टमेंट।"
"ग्रेट आइडिया!"
शेष चारों ने भी सहमति व्यक्त की।
पांचों मित्र श्मशान पहुंच गए। इस समय रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। रमन ने अभी हाल ही में एक नया वीडियो कैमरा खरीदा था। उसे वो अपने साथ ले आया था। श्मशान में घनघोर सन्नाटा छाया हुआ था। केवल श्मशान के एक कोने में बने भैरव जी के मंदिर में एक साधक साधनारत था। श्मशान में प्रर्याप्त रोशनी थी। इन पांचों ने अपना काम करना शुरू कर दिया। अर्थात शराब पीना शुरू कर दिया। दो पैग अंदर जाते ही पांचों रंग में आ गए। रमन ने अपना कैमरा चालू कर दिया और शेष चारों की मस्ती को अपने कैमरे में रिकॉर्ड करने लगा। कोई घंटे भर की मौज-मस्ती के बाद पांचों अपने-अपने घरों को वापस लौट गए।
अगले दिन।
अंकित अभी अपनी दुकान से वापस आकर भोजन कर रहा था कि उसके फोन की घंटी बज उठी। रमन का फोन था। अंकित ने फोन उठाया।
"हैलो!"
"अंकित जल्दी से मेरे घर आ जाओ।"
"क्या बात है? तुम कुछ घबराए हुए से लग रहे हो।"
"बात ही ऐसी है। अपने साथ अशोक, विशाल और नरेन्द्र को भी ले आना। तुम लोगों को कुछ दिखाना चाहता हूं।"
"अच्छी बात है। आता हूं।"
पौन-एक घंटे के बाद पांचों मित्र रमन के घर पर एकत्र थे। इस समय रमन घर पर अकेला था। मम्मी ड्यूटी पर गईं थीं तो बहन कॉलेज। रमन ने बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए अपना कम्प्यूटर आन कर दिया। सारा सिस्टम पहले ही से सेट था। वीडियो कैमरा कम्प्यूटर से अटैच था। कम्प्यूटर के स्क्रीन पर बीती रात के दृश्य चलने लगे। पांचों गौर से देखने लगे। जैसे-जैसे दृश्य आगे बढ़ता जाता वैसे-वैसे पांचों के चेहरे का रंग उड़ता जा रहा था। रमन चूंकि पहले ही थोड़ा-बहुत वीडियो देख चुका था इसलिए उसकी हैरानी दूसरों की तुलना में कम थी। मगर थी। वीडियो में इन पांचों के अतिरिक्त एक बीस-बाईस वर्ष की एक युवती भी दिखाई दे रही थी। जिसके घुटनों के नीचे के पैर नहीं थे। रंग धूमल, चेहरे पर मुर्दनी छायी हुई थी। नेत्र ज्योति हीन, बाल बिखरे हुए थे। यह युवती हवा में तैर रही थी। इन पांचों के इर्द गिर्द घूम रही थी। ये कभी लंबी हो जाती तो कभी सिकुड़ कर छोटी हो जाती। वीडियो समाप्त होते-होते पांचों के माथे पर पसीना आ गया। पांचों सदमे की स्थिति में थे। उनके मुंह से आवाज़ तक नहीं निकल रही थी। इन पांचों में विशाल भूत-प्रेतों का सबसे अधिक विरोधी था। वहीं सबसे अधिक सदमे में था। वीडियो समाप्त होने के बाद केवल रमन ने कहा-
"क्या अब भी कोई यह कहने का साहस करेगा कि भूत-प्रेत नहीं होते?"
किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
इस घटना के बाद विशाल, नरेन्द्र और अशोक बुरी तरह बीमार पड़ गये। इन्हे क्या बीमारी हुई है डॉक्टर लोग हजार प्रयास करके भी नहीं समझ सके। बीमारी की अवस्था में ही विशाल और नरेन्द्र काल के गाल चले गए। अशोक, रमन और अंकित कैसे बचे ये आज भी रहस्य है। शायद उनके ग्रहों ने उन्हें बचाया हो। या शायद उनके माता-पिता के अच्छे कर्मों और उनके आशीर्वाद के कवच ने। या शायद ईश्वर की कृपा ने। पता नहीं।