विमोचन
विमोचन
आज सर की किताब का विमोचन था, किसी मामूली हैसियत के हाथों नही, मंत्री जी पुस्तक का विमोचन व समर्पण करने वाले थे। नामी सभागृह में काफी चहल- पहल थी। गणमान्य अतिथियों का आवागमन जारी था। सर के तीन शिष्यरोहित ,राहुल और प्रशांत का उत्साह भी देखते बनता था।वे दौड़-दौड़ कर, अतिथियों को उनकी सीट पर पहुंचाते हुए, उनको आज के कार्यक्रम की रूप रेखा पकड़ाते हुए, अकथनीय गर्व को महसूस कर रहे थे।मंच पर गणमान्य अतिथियों के अतिरिक्त उनके सर भी विराजमान थे।
सही समय पर एक लघु भाषण के उपरांत, पुस्तक का विमोचन मंत्री जी के हाथों हुआ, और तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा।फिर बधाइयों का दौरे, उनमें से कुछ बधाइयां, राहुल, रोहित, और प्रशांत के हिस्से में भी आ रही थीं, क्योंकि सर ने अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में उन तीनों के सहयोग का जिक्र करते हुए, आभार प्रकट किया था।
तीनो मित्र एक साथ, एक ही कमरा किराए पर लेकर रहते थे। खाना निपटने के बाद, तीनों ही काफी थक चुके थे, अतः कपड़े बदल तीनो ही अपने अपने बिस्तर पर लेट गए।स्विच ऑफ होते ही तीनों के दिलों से निकल आये निःश्वास व आंखों की कोरों तक आये उस पानी का वोअंधकार ही साक्षी था, जो सूरज की रोशनी के साथ ही एक कृत्रिम हंसी में बदल जाने वाला था।
काश! कोई समझ पाता,उन तीनों की दो, तीन वर्षों कीअथक मेहनत द्वारा, लिखी गई उस पुस्तक का सच,जिसकी तालियों की गड़गड़ाहट, सर के हिस्से में आ गई थी।
