वह पगली
वह पगली
फटी पुरानी मैली साडी मे लिपटी उस पगली को देखना कोई रहस्य बात नही है।रहस्यमय तो तब लगता है जब वह रास्ते के कूडा करकट मे से सिर्फ बिस्कुट के कागज को चुनती और बाकी कूड़ा कडकट को छिन्न भिन्न कर देती है।मुझे तब आश्चर्य होता है
जब वह लोगों से रोटी के बदले बिस्कुट ही माँगती है।मैं सोचती यह पगली इतने सारे बिस्कुट और बिस्कुट के कागज को करेगी क्या? मैं सोचती कि उससे पूछूं कि वह इतने सारे बिस्कुट और बिस्कुट के कागज को करती क्या है।लेकिन दूसरे क्षण सोचती कि इस पगली से क्या मूँह लगाऊ इसलिये चुपचाप बिस्कुट लाकर दे देतीं।
एक दिन जब वह पगली मेरे घर आई तो
दरवाजे के पास से ही रोजाना की भाँति उस दिन भी चिल्लाई..ऐ बबुनी एगो बिस्कुट द।उस दिन मेरे घर मे बिस्कुट नहीं था।सो मै दो रोटी लेकर उसको देने के लिए बाहर आई।वह मेरे हाथ से रोटी झपटकर ले लीऔर रोटी के टुकड़े टुकड़े करके बाहर लाँन मे फेक दी। मैं अचँभित होकर उसकी तरफ देखने लगी।वह मुझे खा जाने वाली नजरों से देखी।मै उससे कुछ पूछती कि वह दौड़ कर भाग गई।मैं उस दिन भर उसी के बारे मे सोचती रही कि मैंने क्या अपराध किया जो वह मेरी तरफ खा जाने वाली निगाहों से घुरी।अब मेरा जिज्ञासु मन यह जान लेने के लिए उत्सुक था कि क्यों वह बिस्कुट प्रीत करती हैं और रोटी से दुश्मनी?
परँतु यह क्या? वह तो अब मेरे दरवाजे पर आना तो क्या? वह ताकती भी नही थी।लेकिन मै उसके बारे मे जानने के लिए हद से ज्यादा उत्सुक थी।इसलिए मैं बाजार से एक बिस्कुट का डिब्बा लाई।अपने घर के बरामदे मे बैठकर उसी का इँतजार करने लगी।
रोजाना की भाँति वह पडोसिन चाची के यहाँ बिस्कुट के लिए आवाज देते हुये बोली...ऐ बहुरिया एगो बिस्कुट द। मै बरामदे से उतरकर लॉन मे आकर उस पगली से बोली..ऐ पगली अम्मा आइये आपको बिस्कुट का डिब्बा दुँ।लेकिन वह पगली मेरी तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखी।उल्टे मूँह घुमाकर पडोसिन चाची से बिस्कुट लेकर चली गई।मुझे उस पगली पर बहुत खीझ हुआ।किँतु मै कर भी क्या सकती थी? सो मैने सोच लिया कि मैं उस घटना को भूलाने की कोशिश करूंगी।लेकिन जब भीउस पगली को
देखती तो घटना की याद ताजा हो जाती।
एक दिन मैं बाजार से बच्चों के
लिये बिस्कुट का डिब्बा खरीदकर ला रही थी।मैंने रास्ते मे देखा कि वह पगली
कूडा कडकट मे से बिस्कुट का कागज चुनने मे मग्न थी। मैं उसके करीब से गुजरी तो वह मेरी तरफ अनमने भाव से देखी।फिर मूँह घुमा ली।यधपि उपर्युक्त घटना के बाद से हमेशा ही मुझे देखकर
वह पगली मूँह घुमा लेती थी।उस समय मेरे हाथ मे बिस्कुट के अलावा बच्चों के लिये काँपी पेन टाँफी इत्यादि थे।मैं उस पगली को देखकर भी अनदेखा करते हुये दो तीन कदम आगे बढी ही थी कि
तभी मेरे हाथ से समान का थैला गिर गया।उसमे से सभी समान गिर कर बिखर गया।मैं अपने सभी समान को उठाकर थैला मे रखती कि उसके पहले
वह पगली मेरा बिस्कुट का डिब्बा झपट कर अपने हाथों मे लेकर डिब्बा खोलकर
खाने लगी।मैं अवाक सी उसकी ओर देखने लगी लेकिन उसे क्या?वह तो
बिस्कुट खाने मे मग्न थी।मैं चुपचाप अपने थैले मे बाकी बचे समान को रखी और घर आ गई।
दूसरे दिन वह पगली मेरे दरवाजे से चिल्लाई...ऐ बबुनी एगो बिस्कुट द। फिर आज भी मेरे पास बिस्कुट नही था क्योंकि कल जो मैं ने बिस्कुट का डिब्बा खरीदी थी सो यही पगली खा गई थी।अतः मैं करती क्या?
खाली हाथ ही बाहर आई और उससे बोली.. पगली अम्मा।घर मे आज बिस्कुट नहीं हैं।दूसरे दिन आकर ले लेना।मै यह कहकर घर के अंदर जाने लगी।तभी वह पगली बहुत ही मार्मिकता से बोली..ऐ बबुनी तनी सुन नु।हम त पगली हयी।अरे कलवे त तहार बिस्कुट खा गयनी ।औरी आज तहरा से फिरू बिस्कुट माँगे आइल बानी।बबुनी हमरा से गलती हो गईल बा हमरा के माफ कर द।मैं उसकी तरफ देखकर बोली..अरे पगली अम्मा।इसमे कौन माफी माँगने वाली बात ह?इसके आगे मैं कुछ बोलती कि वह पगली बोली...ना हो ना बबुनी हम तहरा के देख के मूँह घुमा लेत रहनी हयी। औरी त औरी तु हमरा के बुलयीबो करत रहलु ह त हम आँख उठा के ना देखत रहनी हयी।ऐ बबुनी हम तहरा से हाथ जोड के माफी माँगत बानी। हमरा के बबुनी माफ कर द।मैं उसकी बातों से प्रभावित हो गई।एकाएक मेरी जिगयासा
उसके सामने प्रश्न बनकर मेरे मूँह से निकल गयी कि...ऐ पगली अम्मा आप क्या रोटी नहीं खाती हैं?आप क्यों घर घर से बिस्कुट माँगती है?
मैं उसके चेहरे पर के उतार चढाव को गौर से देख रही थी।अभी वह कुछ देर पहले एकदम रूआँसी थी। किन्तु मेरे प्रश्न पर वह कुछ कठोर सी हो गई।मेरी तरफ देखकर बोली..ऐ बबुनी हमरा रोटी से नफरत बा नफरत।जान तारु काहे। काहे कि हमार बबुआ के इहे रोटी से जान गईल बा।मैं उसकी इस बात को सुनकर आश्चर्य मे पड गई।मैं उसके बात के बीच मे ही बोल पडी...भला रोटी से किसी की जान जाती है और यह बबुआ कौन है?
वह पगली एकाएक इन प्रश्नों से विचलित हुई।फिर सँयत होकर बोली. ..
ऐ बबुनी तनी सबुर से सुन ना हमार बतिया।
हमरा एतना बडका दुनिया मे त एके गो त आपन बबुआ रहलन।हमार मरद त बहुत पहिलही हमरा के और हमार बबुआ के छोड़ के भगवान जी के पास चली गयनी।आपन बबुआ मे हम सबसुख दुख भूलाइल रहनी हयी।एक दिनवा बबुआ दुगो रोटी खाके पोखरा मे नहाये गई रलन।हम घर के काम करत रहनी हयी। घरवा के सब काम निपट
गई ल त सोचनी बबुआ अभी तक ले नहा के ना अईलन।केतना देरी तक ले नहात बाडन।बेडा बीतत जाव।तबो बबुआ नहा के ना अइलन त हमार मनवा
शंका मे डूब गईल।हम सोचनी कि पोखरा जाके देखे के चाही की अभी तक
ले काहे ना अईलन।इहे अभी सोचते रहनी हयी कि एगो दुगो लोग हमार बबुआ के लाद के घरे लियावत बा।
हम आपन बबुआ के ई हालत देख के घबरा गईनी। तब लोग कहलस कि डाक्टर के पास जल्दी से ले जा।डाक्टर के पास बबुआ के जल्दी से ले गईनी।डाक्टर बबुआ के देख के कहत बा कि.. राउर बबुआ पोखरा मे ढेर देरी तक ले उल्टे रह गईल बाडन और अभीये ई रोटी खाके नहाये गईल रहलवन।उहे रोटियां इनकरा छाती मे जाके अटक गई ल बा।ऐही से राउर बबुआ ना बचिहन।अगर ई हल्का फुल्का समान जैसे..बिस्कुट फल खयीले रहतन त बच जयीतन।लेकिन इ त अब खत्म बाडन।
डाक्टर अभी कहते रहलन कि हमार बबुआ हमरा के छोड़ के दुनिया से दूर चल गई लन। हमार संसार ओहि बेरा से लूट गईल।हमरा इ सब देख सुनके ठकुआ मार देलस औरी तब से हम रोटी के तरफ ना देखिला। हमरा रोटी से नफरत ह बबुनी नफरत।इहे रोटी हमार बबुआ के जान ले ले बा।इहे रोटी हमार बबुआ के जान ले ले बा......
वह पगली बड़बड़ाती हुई रोने लगी। मैं उसे साँत्वना देती कि इससे पहले ही वह रोती हुई मेरे आँखों के सामने से ओझल हो गई।
