वह भयावह रात.....
वह भयावह रात.....
रात के कोई ढाई बज रहे थे। काली नीम अँधेरी रात्रि में प्रिया को अचानक खौफ से भरी एक दर्दनाक आवाज़ सुनाई दे रही थी। यह आवाज़ सुनते ही उसके भीतर भी एक भय पसर गया। वह गहरी नींद में थी, फिर भी सोते - सोते वह अचानक ठिठक गई थी। भय से सहसा उसकी आँखें खुल गईं तो उसने पाया कि अर्जुन नींद में बड़ी ही तीव्र गति से अपना सिर दाएँ से बाएँ और बाएँ से दाएँ झटक रहा था। "छोड़ो, छोड़ो मुझे छोड़ो...! " वह चीख रहा था,पर ठीक से चीख नहीं पा रहा था। वह चीख मानो उसके हलक में अटक गई थी। न जाने अर्जुन को क्या हो रहा था।
बहुत डरते हुए, हौले से जब प्रिया ने उसे झकझोरा तो अर्जुन झटके से अपनी तन्द्रा से बाहर आया। ठंड के मौसम में भी वह पसीने से तर - बतर था। पास ही पड़े हुए चादर से प्रिया उसका पसीना पोंछने लगी कि वह प्रिया से लिपट कर ज़ोर- ज़ोर से रोने लगा - "प्रिया कोई जोर से मेरा गला दबा रहा था। मैं छुड़ाने की कोशिश कर रहा था पर छुड़ा नहीं पा रहा था और नाकाम हो रहा था। "
"गला दबा रहा था! कौन? पर..पर यहाँ तो कोई भी नहीं है।" प्रिया के माथे पर बल पड़ गए। चकित होकर उसने अर्जुन से सवाल किया और बिस्तर के पास ही बने स्विच बोर्ड पर हाथ फेरकर उसने तुरंत बत्ती जला दी। अर्जुन के चेहरे से घबराहट अब भी झलक रही थी।
प्रिया ने खिड़की की ओर देखा। खिड़की भी तो बंद थी फिर अचानक से अर्जुन को क्या हो गया। न जाने, कौन- सा डर, कौन-सा भय उसे भीतर से सता रहा था। प्रिया ने उसे सम्भालने की कोशिश की। "ऐसा कुछ नहीं है अर्जुन ! देखो...देखो तुम शांत हो जाओ! यहाँ कोई नहीं था तुमने ज़रूर कोई भयानक सपना देखा है। " प्रिया तसल्ली देने लगी !
"नहीं प्रिया..कोई था, तुमने कैसे नहीं देखा उसे , वो..वो मेरे ऊपर चढ़ा हुआ था और मेरी गर्दन उसके हाथ में थी..वो मुझे जान से मारने की कोशिश कर रहा था, और तुम कह रही हो कि यहाँ कोई नहीं था। "
अर्जुन का चेहरा डर के मारे पीला पड़ चुका था। पसीना चूए जा रहा था, मन ही मन वह न जाने क्या सोच रहा था। उसे इस हालत में देख कर प्रिया को भी कुछ घबराहट सी होने लगी थी। उसे लग रहा था कि कहीं अर्जुन की तबियत न खराब हो जाए। वैसे भी कामकाज के तनाव में आजकल अर्जुन कितना परेशान रहते है। प्रिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर भी जैसे - तैसे उसने स्वयं को सम्भाला। परंतु अर्जुन!!
अर्जुन तो अभी भी सहमा हुआ बिस्तर के एक कोने में अपने आप को पूरी तरह समेट कर बैठा हुआ था। प्रिया ने फिर से एक बार उसे ज़ोर से झकझोरा कि वह उस भयावह स्वप्न से बाहर निकले। कुछ इधर- उधर की बातें करके और उन्हें समझा बुझाकर किसी तरह उसने अर्जुन को सुला दिया।
सुबह होते ही प्रिया चाय लेकर जब कमरे में पहुंची तो अर्जुन भी जाग चुका था। रात की बात निकली - "थैंक्स प्रिया!!"
"थैंक्स! थैंक्स किस लिए अर्जुन। "
"थैंक्स इसलिए प्रिया, कि रात में अगर तुम सही समय पर मुझे नहीं जगाती तो डर के मारे सपने में ही शायद मेरी जान निकल जाती।"
"अरे, ये कैसी बातें कर रहे हैं, प्लीज ऐसी बातें मत कीजिए अर्जुन!" रात की घटना उसकी आँखों से सामने एकबार फिर घूम गई ।" आपको इस हालत में देखकर एक पल के लिए मैं भी बहुत घबरा गई थी। चारों ओर सन्नाटा- पसरा था और मेरे और तुम्हारे भीतर एक डर। ये मन भी न, न जाने क्या - क्या सोचने लगता है। "
" ख़ैर छोड़िए इन बातों को और वैसे भी, "मेरे होते हुए आपको कुछ नहीं हो सकता। " अर्जुन के करीब जाकर प्रिया ने अर्जुन का हाथ थामकर कहा।
प्रिया को छेड़ते हुए अर्जुन मजाकिया अंदाज़ में बोला- "अच्छा जी, तो क्या तुम सावित्री हो, जो यमराज से मेरे प्राण छीन लाओगी।"
" जी मेरे हुजूर, " जैसे ही प्रिया ने शरारती लहजे में ये शब्द कहे, दोनों की हँसी से पूरा घर गूँज उठा। घर के माहौल में अब सजीवता आ गई थी। प्रिया को अर्जुन ने अपने आलिंगन में ले लिया। अब वे रात की काली छाया से कोसों दूर जा चुके थे।