वचन (चौथा भाग )....
वचन (चौथा भाग )....
सुचित्रा देवी आशीष को परेशान देख बहुत चिंतित हों रहे थे। उनको समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें? अशोक को तो उन्होंने बिना कोई दोष किए दोषी मानकर घर से बेघर कर दिए वो खुद कियूँ की आशीष के मरे हुए पिता माता और अपनी पति स्वर्गीय अरुण को दिए हुए वचन के खातिर। सूबे सूबे चाय पीते हुए सुचित्रा देवी आशीष को पास बुलाए और कुछ दुकान के बारे में बात करते हुए पूछे, "क्या बात है बेटा? तुम कुछ परेशान दिख रहे हों। कोई बात अगर है तो मुझे बोल सकते हों। मैं तुम्हारी माँ हूँ, मुझे तुम्हारी परेशानी देखी नहीं जा रही है। अगर व्यापार के सारे हिसाब, लेन देन मैं देख रही हूँ, इस बात पे परेशान हों तो बोलो, मैं कुछ नहीं देखूंगी और सब तुम पे छोड़ दूंगी। आखिर ये सब तो तुम्हारा है, बस में थोड़ा तुम्हारी मदद करना चाहती थी, इसीलिए मुझे ऐसा करने पड़ा। " जैसे सुचित्रा देवी की बात ख़तम हुई, तुरन्त बिना कोई परेशानी आशीष ने बोला, "अरे माँ, आप ऐसे कैसे सोच सकती हों। कभी आप ऐसी बात आगे नहीं करना। आपकी वजह से मेरे परेशानियाँ बहुत कम हो गया है। मैं अभी ज्यादातर अपना ध्यान कपड़े खरीदना और बेचने में लगा सकता हूँ। और मैं परेशान इसीलिए हूँ की अशोक का न होना हमारे साथ बहुत दुःख देता है। मैं आपको बता नहीं सकता की मैं कितना अकेला महसूस कर रहा हूँ । आप हमारी माँ हों और आपकी बात मानना हमारा धर्म और फर्ज है। "ये बोलकर आशीष दुकान के लिए तैयार होना है बोलकर वहाँ से उठकर चला गया। आशीष नहा धोकर तैयार हो के दुकान के लिए निकल गया। सुचित्रा देवी सोच में पड़े की अब क्या करें? अशोक को कैसे वो मनाएंगे?
आशीष दुकान में पहुँचने के बाद बिकाश जी भी आ गये और सारे और कर्मचारी आ गये। तब अशोक का फोन आया। आशीष दुकान के बाहर जाकर बात किया। अशोक ने बताया की वो पहुँच चूका है और कहाँ है। आशीष बहुत ख़ुश हो गया और बोला की, "माँ दुकान आने के बाद में तुमसे मिलने आऊँगा। आने से पहले फोन कर दूंगा। " अशोक समझ गया सारे वात और हाँ बोलकर फोन रख दिया। करीब एक घंटे के वाद सुचित्रा देवी दुकान आये। वो आने के वाद आशीष ने उन्हें बाहर कम के लिए जा रहा है बोलकर निकल गया। जाते जाते आशीष ने अशोक को फोन करके बोला की वो आ रहा है।
थोड़ी देर बाद आशीष ने अशोक के होटल पहुँच गया। जब दोनों भाई मिले तो एक दूसरे को गले लगाए और दोनों के आँखों में आंसू आ गया। थोड़ी देर बाद दोनों बैठ के बात किए। अशोक ने सुचित्रा देवी और आरती के बारे में पूछा। आशीष सब ठीक ठाक है बोल के थोड़ा उदास हो गया। उसका उदासी को देख अशोक ने पूछा, "भाई अब बोलो, क्या परेशानी है? आपकी उदासी मुझे बर्दाश्त नहीं होता। अब मैं आया हूँ ना, सब ठीक करके जाऊँगा। इसीलिए तो मैं आया हूँ । "तब आशीष ने सरोज के बारे में सारे बात बताने लगा। उसने ये भी बोला की कैसे आरती को दिए हुए वचन के खातिर उसने व्यापार से पैसे निकलकर सरोज और अमिता के मदद की? उसने सारे सच्चाई अशोक को बता दिया और रोने लगा। अशोक उसको शान्त किया और सोचने लगा कैसे इस परेशानी से आशीष को निकलेगा।
थोड़ी देर बाद अशोक बोला, "पहले हम उस दुकानदार के पास जाएंगे। उसके पैसे उसे दे देंगे और बोलेंगे की वो सरोज को बताये उस हार के लिए पुलिस ने उसको पूछताछ करने आया था और उसको चोरी के समान बोल के बोल रहा है। और वो सरोज को बोलेगा की वो हार अभी पुलिस के पास है, सरोज को वहाँ जाकर सच बोल के उसे लेना है। इसमें सरोज डर जायेगा, कियूँ की उसके पास उस हार का रसीद नहीं है की वो साबित करेगा वो हार उसका है। और आप वो हार वहाँ से लेकर अपने पास रखोगे। उसके बाद फिर सोचेंगे कैसे सरोज को सही रास्ते में लाएंगे?" अशोक की ये बात सुनकर आशीष ने हाँ भरा और दोनों दुकानदार के पास गये।
वहाँ पहुँच कर दोनों भाई जैसे सोचे थे वैसे दुकानदार को बोले। दुकानदार पहले थोड़ा डर गया, फिर अशोक के समझाने के बाद राजी हो गया। अशोक ने दुकानदार से बोला की कोई डरने की बात नहीं , जरूरत पड़ने पर वो पुलिस को सच में भेज देगा। दुकानदार अशोक को जानता था। क्यूंकि शहर में उसके बड़ा नाम है। वो अशोक के बात पे भरोसा किया । फिर अशोक ने दुकानदार को उसके द्वारा सरोज को दिए हुए पैसा भी दे दिया । दुकानदार बोला की सरोज आज शाम को आएगा, तब उससे वो बात करेगा और आशीष को बताएगा। अशोक ने उसे धन्यवाद दिया और दोनों भाई वहाँ से निकल गए। आशीष दुकान के लिए निकल गया और अशोक अपनी होटल के लिए।
अशोक खाना खाने के बाद आशा को फोन किया। आशा बिकाश जी के लड़की है और अब डाक्टरी पढ़ रही है। उसकी आख़री साल है। अशोक और आशा दोनों बहुत अच्छा दोस्त है और एक दूसरे को बहुत पसन्द करते है। आशा बहुत ख़ुश हुई अशोक से बात करके और बोली की शाम पाँच बजे उसकी कालेज की कैंटीन में मिलने को। इधर आशीष दुकान आकर काम पे लग गया। वो थोड़ा ख़ुश था अशोक से मिलने के बाद। सुचित्रा देवी देखे आशीष और परेशान नहीं लग रहा है। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था की अचानक कैसे आशीष ख़ुश नजर आ रहा है। पर उनको खुशी मिल रही थी।
शाम को पाँच बजे अशोक आशा को मिलने पहुँच गया। आशा भी उसका इंतज़ार कर रही थी। अशोक को देख वो खुशी हुई और थोड़ी नाराज होकर बोली, " तुम तो आजकल बहुत मशहूर हों गये और मेरे लिए समय नहीं तुम्हारे पास। अब ये शहर क्या छोड़ दिए हमें भूल गये। कभी कभी मन करने से बात करते हों। "अशोक थोड़ा मुस्कुराया और बोला, "अरे पगली, मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ ? अब मुझे अपने खुद के पैरों पे खड़ा होना है और उसके लिए बहुत मेहनत करना पड़ता है। और अभी तुम्हारी डाक्टरी पढ़ाई का आखिरी साल है, तुम्हें फोन करके परेशान करना भी ठीक नहीं होगा। देखो आज यहाँ आया और तुमसे मिलने आ गया। "अशोक के ये बात सुन के आशा ख़ुश हुई और अशोक की यही सच बोलने का आदत उसे बहुत अच्छा लगता है। आशा को याद है की अशोक उसे वचन दिया है की हमेशा उसकी साथ देगा। फिर आशा ने थोड़ी मज़ाक करके बोली, "हाँ मैं समझ गयी, ये सब बहाना है। असल में वहाँ कोई खूबसूरत लड़की मिल गयी होंगी, इसीलिए मेरे लिए समय नहीं मिलता। "अशोक थोड़ा मुस्कुराते बोला, "वहाँ बहुत खूबसूरत लड़कियां है पर तुम जैसे कोई नहीं ।" ये बात सुनकर आशा थोड़ी शर्मा गयी। तब अशोक के फोन पे आशीष का फोन आया। अशोक थोड़ा किनारे में जाकर बात किया । आशीष ने बताया की दुकानदार ने फोन करके बोला की उनकी बताया हुए बात वो सरोज को बोल दिया और सरोज बिना कुछ बोले डर डर के वहाँ से निकल गया। ये बात सुन के अशोक ख़ुश हुआ और बोला वो होटल पहुँच कर बाकी बातें करेगा। तब समय शाम के छे बह रहा था। आशा घर जाने के लिए उठी और अशोक भी अपने होटल के लिए निकला। जाते जाते आशा ने पूछी, "ऐसे अचानक तुम्हारा यहाँ आना कैसे हुआ?" अशोक उसकी और देखा और बोला, "क्या करूँ? अपनी दिए हुए वचन को निभाने मुझे आना पड़ा। मैं जाने से पहले तुमसे मिलकर जाऊंगा। अब मैं चलता हूँ । तब आशा ने उसके करीब आकर उसके गाल पर एक हल्का से चूमा देकर हँसते हुए अपने घर के लिए निकल गयी। अशोक को कुछ समझ नहीं आया, वो ख़ुश था की अपने भाई आशीष की पहली परेशानी दूर हुआ जानकर।
