वैवाहिक जीवन-सफलता और असफलता
वैवाहिक जीवन-सफलता और असफलता
कक्षा के बच्चे ऑनलाइन आभासी बैठक ( वर्चुअल मीटिंग ) में संदेशों के माध्यम से विचार विमर्श के लिए रखे जाने वाले विषय का चुनाव कर लेते हैं। आज का जो विषय चुना गया वह था "वैवाहिक जीवन-उसकी सफलता असफलता"। आज के विषय पर किया जाने वाला विचार विमर्श केवल बच्चों को उपलब्ध जानकारियों के अनुसार ही था क्योंकि वैवाहिक जीवन का उनमें से किसी को कोई भी अनुभव नहीं था। आकांक्षा ने आज जी न्यूज के डी एन ए( डेली न्यूज़ एनालिसिस) में प्रसारित कार्यक्रम को देखने के बाद अपनी जानकारी सबके बीच साझा करते हुए बताया। भारतीय संस्कृति की परंपरा के अनुसार पानी ग्रहण संस्कार अर्थात विवाह जीवन के सोलह संस्कारों में से एक बड़ा ही प्रमुख संस्कार है। इसे एक नहीं बल्कि सात जन्मों का बंधन माना जाता है किंतु आज बदलते परिवेश और हमारी संस्कृति पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से यह पवित्र संबंध भी कठिनाई और संघर्ष के दौर से गुजर रहा है। हमारे देश में प्रचलित परंपराओं के अनुसार लगभग पचहत्तर प्रतिशत शादियां दोनों परिवारों की सहमति से होती हैं जिन्हें "अरेंज्ड मैरिज" कहा जाता है और यह शादियां नब्बे प्रतिशत तक अंत तक चलती हैं अर्थात पति पत्नी के बीच अलगाव नहीं होता । यह निन्यानबे प्रतिशत शादियां जो दंपत्तियों के जीवन के अंत तक चलती हैं उसमें बहुत सारी पारिवारिक और सामाजिक तथ्य भी शामिल होते हैं। परिवार में नए सदस्य के रूप में जुड़ चुके बच्चों के पालन पोषण उनके भविष्य की जिम्मेदारियां, परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारियां, समाज में परिवार की और अपनी प्रतिष्ठा का दांव पर लगे होना आदि उन कारणों में से हैं जिन के चलते समस्याओं और संघर्षों से पति- पत्नी दोनों जूझते रहते हैं लेकिन अलग होने का विचार भी चाह कर भी नहीं कर पाते। इतने सारे सामाजिक बदलावों के बाद भी भारतीय समाज में परित्यक्त पुरुष हो या महिला दोनों को ही समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। इसलिए व्यक्ति आजीवन दाम्पत्य जीवन को समायोजित करने का प्रयास करता रहता है। संघर्षों के दौर से गुजरता रहता है, विविध प्रकार की कठिनाइयों को सहता है लेकिन जहां तक संभव होता है अपने बच्चों, परिवार और समाज की खातिर एक साथ ही रहने का प्रयास करता है। इस संघर्ष में उसे विभिन्न प्रकार की मानसिक और शारीरिक यातनाएं भी झेलनी पड़ती है किंतु जिम्मेदारियों का बोध होने के कारण वह इन सभी समस्याओं से उपजे विष का पान करता रहता है। इस संबंध में किए गए सर्वे के बारे में बताया गया कि वैवाहिक जीवन में तनाव होने के कारण पुरुषों मौत का खतरा लगभग उन्नीस प्रतिशत बढ़ जाता है। इजरायल की " तेल अवीव यूनिवर्सिटी " में 32 वर्षों तक 40 वर्ष या उससे अधिक आयु के 9000 लोगों पर किए गए इस सर्वेक्षण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया। भारत के संदर्भ में किए गए विश्लेषण के आधार पर यह बताया गया कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ शादियां होती हैं और जिनमें से अस्सी प्रतिशत शादियां हिंदू रीति रिवाज के अनुसार होती है जिनमें लोग नव दंपति को जन्म- जन्मांतर तक एक दूसरे का साथ निभाने का आशीर्वाद और शुभकामनाएं देते हैं और उनका वर्तमान दांपत्य जीवन का सुखमय और समृद्धली हो ऐसा आशीर्वाद देते है। भारत में शादी के पश्चात इस एक सौ पैंतीस करोड़ की आबादी वाले विशाल देश में विवाह संबंध- विच्छेद की दर केवल एक प्रतिशत है। शेष जो 99% शादियां बहुत सी जिम्मेदारियों के निर्वहन के कारण ही चलती हैं उनमें सभी सुखमय न होकर कुछ मजबूरियों में भी चलाई जाती हैं। यह सिलसिला जीवन पर्यंत चलता रहता है। अध्ययन में लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने माना उनका दंपति जीवन सुख में नहीं है उनमें हृदय और मस्तिष्क आघात के खतरे देखे गए। असंतुष्ट तनावपूर्ण दाम्पत्य जीवन धूम्रपान करने के बराबर खतरनाक है। यदि दूसरे देशों की बात की जाए तो कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में 38%, ब्रिटेन में 42%, अमेरिका में 46% ,फ्रांस में 55% और रूस में 51% शादियां टूट जाती हैं। यदि भारत में यह दर 1% है तो इसका श्रेय कहीं ना कहीं हमारी भारतीय संस्कृति को जाता है जो विदेशी संस्कृति के प्रभाव को सहते हुए इस सुखद स्थिति देखने को मिल रही है । यहां यह कहने मैं मुझे कोई संकोच न होगा कि भारतीय समाज में पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और लोगों की आकांक्षाएं अपेक्षाएं कृष्णाय परिवारिक कलह का कारण बन रही है नशे की आदत और सामाजिक समस्याएं भी इसके लिए उत्तरदाई हैं।
ओमप्रकाश ने एक पुस्तक में पढ़ी गई घटना का संदर्भ देते हुए बताया कि स्वामी विवेकानंद जी शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होने के लिए जब अमेरिका गए तब उन्होंने एक पश्चिमी देश में ही वहां एक महिला को अपनी पति की कब्र पर पंखे से हवा करते हुए देखा ।स्वामी जी को लगा कि इस महिला को अपने पति से इतना अधिक प्यार है कि वह सोच रही है कि धूप में उसके पति को गर्मी लग रही होगी इसलिए वह उसकी कब्र पर पंखे से हवा रही है कि उसके पति को गर्मी न सताए। स्वामी जी उस महिला के पास गए और उसके पति के प्रति स्नेह की प्रशंसा करने लगे। वह महिला स्वामी जी से बोली कि स्वामी जी पता नहीं आप किस संदर्भ को लेकर मेरे और पति के बीच में स्नेह के संबंध की चर्चा कर रहे हैं। हमारे समाज में एक परंपरा है कि पति की कब्र बनने के बाद जब तक वह ठीक से सूख नहीं जाती तब तक हम दूसरा विवाह नहीं कर सकते। मेरे पति की कब्र अभी बनी है और ऐसे सूखने में उसको अधिक समय लग सकता है ।मैं तो इसलिए पंखा इसलिए चला रही हूं कि कब्र शीघ्र ही सूख जाये ताकि मैं अपनी नई शादी धार्मिक परंपरा के अनुसार कब्र सूखने के बाद कर सकूं ।तो यह पश्चिमी संस्कृति है और दूसरी ओर हमारी भारतीय संस्कृति है जिसमें पति पत्नी को सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाने की बात कही गई है।
रितु ने समाज में पारिवारिक कलह के कारणों की चर्चा करते हुए बताया कि लोगों की दूसरे लोगों के साथ अपनी तुलना करना पारिवारिक कलह के कारणों में से एक हैं अधिकांश लोग अपने से अधिक समृद्ध व्यक्ति के आचरण का अनुकरण करना चाहता है उसकी अपनी क्षमता कम होती है और वह क्षमता से अधिक अपने जीवन स्तर को ऊंचा प्रदर्शित करने के चक्कर में मन ही मन कुंठित होता रहता है और इसके लिए वह अपनी क्षमता से कहीं अधिक श्रम करता है। परिवार के सदस्य झूठे दिखावे के चक्कर में एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं।एक दूसरे पर दोषारोपण पारिवारिक कलह का कारण बनता है। कुछ परिवार आपसी सूझ-बूझ से इस समस्या को सुलझा लेते हैं जबकि कुछ परिवार समस्या को नपुंसक आने के कारण टूट भी जाते हैं।
प्रीति ने अपने विचार रखते हुए कहा कि घर परिवार को अपने बच्चों में वे संस्कार बचपन से ही डालने चाहिए कि बे आगामी जीवन में अपने संसाधनों और आवश्यकताओं में समायोजन सीखें ताकि उनका आगामी जीवन सुखमय हो।