वैलेंटाइन डे ,भाग 1
वैलेंटाइन डे ,भाग 1
"प्रति, कुछ खा ले बेटा, सुबह से लगी है, ये रीति खुद तो ऑफिस चली गई, अब सात दिन रह गए शादी क़ो, अब तो छुट्टी ले लेती। "
बोलते हुए माँ सुबह से व्यस्त प्रतिमा क़ो खाने के लिए बुलाने आई तो देखा,प्रतिमा सभी नज़दीकी रिश्तेदार और दोस्तों क़ो डिजिटल कार्ड से इनविटेशन देने में व्यस्त थी. उसकी प्यारी और ज़िद्दी दिदु का हुकुम था, "आज सबको इनविटेशन मिल जाने चाहिए, चाहे कुछ भी हो, शादी वो 14 फरवरी यानि वैलेंटाइन डे के दिन ही करेगी," उसने आभास से वादा जो किया था.
प्रतिमा क़ो इतने मनोयोग से काम में लगा देख उन्हें अपनी छोटी लाडली बिटिया पर अनायास ही बहुत प्यार आया, सोचने लगीं इनके पिता के आकस्मिक निधन के बाद दोनों बेटियों का प्यार ही तो उनकी ज़ीने की वजह बनी और संबल भी. और दोनों में बहुत प्यार भी था. बड़ी बेटी रितिका बहुत समझदार, ज़िम्मेदार और थोड़ी नकचढ़ी, ज़िद्दी थी तो छोटी प्रतिमा बहुत भोली और चंचल. अपनी दीदी पर जान छिड़कने वाली.
एम. बी. ए. के फाइनल ईयर में थी प्रतिमा और अपनी दीदी रितिका की तरह मार्केटिंग मेनेज़र बनके खूब पैसे कमाना चाहती थी ताकि अपनी माँ क़ो बहुत आराम से रख सके, पूरी उम्र खटने के बाद वो उन्हें आराम देना चाहती थी .उनका छोटा परिवार नेह के मज़बूत बंधन में कसा हुआ है, सोचकर आशाजी प्रतिमा के लिए कॉफी लाने चली गई, जानती थीं अभी जब तक काम खत्म नहीं हो जाता ये प्रतिमा कुछ खायेगी तो नहीं.
"मम्मा, देखो मैंने कार्ड का जो फॉर्मेट तैयार किया है उसमें वरमाला की रस्म का डिजिटल फोटो काल्पनिक समायोजन से कुर्सी पर बैठकर करवाते दिखाया है. अगर हमारे रिश्तेदार कुछ सवाल करें तो जवाब पहले से हाजिर है."
. प्रतिमा ने रितिका और अभिषेक की होनेवाले वरमाला के रस्म और स्टेज की सजावट का स्केच दिखाया तो जहाँ एक तरफ आशाजी ख़ुश थीं कि उनकी बेटी की शादी अपने पसंद के लड़के से होने जा रही थी वहीँ थोड़ी उदास भी कि...
"काश, वो एक्सीडेंट ना हुआ होता तो?"आज वो अपनी बेटी की शादी पर दुगनी खुश हो रही होती.
चाहे कुछ भी हो, मैं अभिषेक का साथ नहीं छोडूंगी और जैसा मैंने और अभि ने तय किया था कि शादी वैलेंटाइन डे के दिन करेंगे तो बस करेंगे. ज़रा सोचो माँ, अगर ये दुर्घटना शादी के बाद हुई होती तो? तब क्या आप मुझे अपने पति क़ो छोड़ने कहतीं?"
उसके तर्क के आगे वो निरुत्तर थीं.अपनी प्यारी बेटी के निर्णय का उन्होंने सम्मान किया था.रितिका और अभिषेक एक ही ऑफिस में काम करते थे और एक जैसी रूचि और सोच ने कब दोनों क़ो करीब ला दिया दोनों क़ो पता ही नहीं चला.
उनकी कॉफी डेट की मुलाकातें अब डिनर डेट पर तब्दील होने लगी और रितिका अक्सर जब ऑफिस से लेट आने लगी तो आशाजी ने उसे डायरेक्ट कहा कि एक दिन अभि क़ो घर पर खाने पर बुलाए वो उससे मिलना चाहती हैँ तो रितिका थोड़ी शरमाकर माँ के गले लग गई.
अगले दिन अभि उनसे मिलने आया तो उसके घर परिवार की बात हुई तो पता चला उसके माता पिता नहीं हैँ और वो अपने भैया भाभी के साथ रहता है, उसके भैया ज़्यादा पढ़ नहीं पाए थे पर अभि क़ो खूब पढ़ाया था, भाभी एक शिक्षिका थी. कुल मिलाकर संस्कारी परिवार था. उन्हें एक बात थोड़ी खटक रही थी कि अभि के घर में कमरे कम थे फिर वो अपनी लाडली रीति क़ो जानती थी स्पेस चाहिए के चक्कर में कभी घर में कोई किराएदार नहीं रखने दिया और ऊपर छत वाले कमरे में वर्षो से अपना डेरा ज़माए हुए थी. यहाँ तक कि वो अपनी छोटी बहन प्रतिमा के साथ भी रूम शेयर नहीं करती थी.
जब उन्होंने अपनी शंका खुलकर उन दोनों के सामने रखी तो रितिका ने उन्हें आस्वाशन दिया कि शादी के बाद वो अलग घर ले लेंगे.
सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था, दोनों बच्चों ने अपने प्यार क़ो और खूबसूरत बनाने के लिए वैलेंटाइन डे पर शादी का निश्चय किया और लगभग सारे फ्रेंड्स और रिश्तेदारों क़ो वर्बल अनाउंसमेंट हो गया था कि ये लव बर्ड्स 14 फरवरी क़ो एकसूत्र में बँधनेवाले हैँ.
आशाजी प्रति क़ो कॉफी देकर खुद भी एक प्याला लेकर थोड़ा सुस्ताने बैठ गई तो फिर से उन्हें ना चाहते हुए भी नए साल का वो पहला मनहूस दिन याद आ गया जब गई रात तक अभि और रीति पार्टी करके लौट रहे थे और रास्ते में एक जगह सुनसान सड़क पर जब रीति क़ो उलटी सी आने क़ो हुई जो शायद कुछ बदहज़मी और कुछ वाइन की वजह से हो रही थी तो अभि ने बीच रास्ते में गाड़ी रोक दी कि तभी ना जाने किसी चोरी लूटमार की वजह से घात लगाए गुंडों ने इनपर धावा बोल दिया, पहले तो अभि के पैसे मोबाइल वगैरह छीन लिए फिर जैसे ही उलटी करके पलटकर आती हुई रीति पर नज़र पड़ी वो उसे छेड़ने आगे बढ़ने लगे. वो तो एक गनीमत रही कि तभी रीति प्रतिमा से फ़ोन पर बात कर रही थी, देर हो जाने की वजह से माँ बेटी क़ो बहुत चिंता हो रही थी इसलिए लगातार वो अपनी दीदी का अपडेट ले रही थी इसलिए जैसे ही कुछ असफुट शब्द सुनने मिले और रीति ने दबी जुबां से बताया उसने तुरंत पुलिस क़ो फ़ोन कर दिया पर तब तक रितिका का मोबाइल भी उन गुंडों ने छीन लिया
और विरोध करने पर गुंडों ने अभिषेक क़ो मारमार कर उसकी एक टाँग तोड़ डाली. बाद का दृश्य तो बहुत ही करुणादायक था. पुलिस प्रति के फोन पर वहाँ पहुँचकर गुंडों क़ो तो पकड़ ले गई पर अभिषेक की हालत बहुत ख़राब हो गई. डॉक्टर बहुत कोशिश करते रहे पर बांया पैर पार्शियल पैरलिटीक हो गया था वो भी अनिश्चित काल के लिए.
हॉस्पिटल में रितिका ने उसकी बहुत सेवा की फिर उसके बाद जब डिस्चार्ज होकर वो घर आया तो वहाँ रितिका ने पहले ही सारा इंतज़ाम करवा रखा था. रितिका तो चाहती थी कि अभि क़ो अपने घर लेकर जाए पर अभि नहीं माना और वो रितिका से बार बार मिन्नतें करने लगा कि वो अभि को उसके हाल पर छोड़ दे और किसी और से शादी कर ले.
इधर अभि के घरवाले उसे प्यार तो बहुत करते थे पर इस आकस्मिक अनहोनी से बहुत परेशान थे. उन्हें भी रितिका पर बहुत विश्वास था और उसकी बात से सहमत थे कि शादी नियत दिन में ही होगी
इससे अभि का खोया मनोबल लौटेगा और उसके मानसिक संबल से हो सकता है जल्दी ठीक हो जाए.
रितिका सबके सामने तो सामान्य दिखने की कोशिश करती पर अकेले में उसका दिल चित्कार कर उठता था कि काश, उस दिन ये दुर्घटना ना हुई होती. पर वो हिम्मती लड़की थी अगले ही पल दुगने साहस से भरकर उठती कि वो शादी ज़रूर करेगी और अभि को अपने प्यार और सेवा से बिल्कुल पहले जैसा कर देगी, फिर शादी की तैयारियों में लग जाती. वो चाहती थी कि अभि को ज़रा भी ऐसा महसूस नहीं होना चाहिए कि उसके साथ ये हादसा हो गया है तो शादी के तामझाम में कोई कमी नहीं आने देगी, अभि के सारे सपने पुरे होंगे, वो जीवनसाथी होने का सारा फर्ज़ निभाएगी.
कमशः....