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V. Aaradhyaa

Tragedy

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V. Aaradhyaa

Tragedy

उसने नहीं किया प्यार

उसने नहीं किया प्यार

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"लगता है सुशांत ने कभी मुझे प्यार नहीं किया?"अर्धा अक्सर सोचा करती अगर वो मुझसे प्यार करता तो इति से शादी क्यूँ करता।


सुशांत अब पुरे तीन साल बाद इंडिया आया था।"हेलो, अर्धा! कैसी हो? मिलना चाहता हूँ, मिलोगी?


अर्धा ने हेलो के साथ ही पहचान ली थी सुशांत की आवाज़। अब भी उसकी आदत वही थी, खुद को सर्वोपरि रखने की।


"ठीक है, इस रविवार को मिलते हैँ!"


अर्धा ने बेलौस और सपाट सा जवाब दिया।अर्धा ने कहाँ सोचा था कि उसके रिश्ते सुशांत के साथ इतने आज़नबी और बेलौस से होकर रह जायेंगे। आज सुशांत उसके पसंदीदा कॉफी हॉउस में सामने बैठा था पर अर्धा को कुछ महसूस ही नहीं हो रहा था। पिछले कई सालों से वो नहीं मिली थी सुशांत से। जिससे मिले बिना वो पंद्रह दिन भी नहीं रह पाती थी।उसे हमेशा से लगता था सुशांत उसे बहुत प्यार करता है और उसे यकीन था अपने निस्वार्थ प्यार पर। पर उसे एक बात हमेशा ख़टकती कि वो उसकी इज़्ज़त नहीं करता था।वो हमेशा इसी कोशिश में रहती कि अपने प्यार और अच्छे व्यवहार से वो सुशांत के दिल में खुद के लिए प्यार और इज़्ज़त ज़रूर ले आएगी।


पर प्रेम और इज़्ज़त कभी ज़बरदस्ती कराया जाता है भला। कितनी भोली थी अर्धा और उससे कहीं ज़्यादा ज़िद्दी भी। तभी सुशांत का प्यार पाने के लिए इति से भी टकरा गई थी, ये जानते हुए क़ि इति का हक है सुशांत पर। आखिर लीगल वाइफ है वो सुशांत की।जब उसने सुशांत की शादी इति से हो गई है ये जाना तो विक्षिप्त सी हो गई थी। उसने सोचा, इति ने मज़बूर किया होगा सुशांत को शादी के लिए। और सुशांत को बार बार फोन करने पर जब इति ही फ़ोन उठा रही थी तो उसने उसे भी खरीखोटी सुना डाला, यह भी कहा कि,


"चाहे सुशांत ने शादी कर ली हो इति से पर प्यार तो वो अर्धा से ही करता है!"ये बात और है कि बाद में अर्धा को बहुत अफ़सोस हुआ था।


कॉलेज के समय से सुशांत उसे बहुत पसंद था और सुशांत उसमें अपने भविष्य की बेहतर संभावनाओं को देखा करता था तभी उसके करीब आया था,जिसे अर्धा प्यार समझ बैठी थी।फिर एक साल में किस्मत ने पलटा खाया, सुशांत के आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर शहर के रईसों में गिने जानेवाले अमरेंद्र प्रताप सिँह की नकचढ़ी और ज़िद्दी बेटी इति का दिल आ गया सुशांत के चॉकलेटी व्यक्तित्व पर और इधर अर्धा के पिता के आकस्मिक निधन की वजह से कॉलेज के आखिरी साल ख़त्म होते ही जॉब करनी पड़ी. सुशांत आगे बिजनेस की पढ़ाई का हवाला देकर विदेश चला गया था।




अब पुरे तीन साल बाद दोनों आमने सामने थे और अर्धा को यकीन नहीं हो रहा था कि उसे बताए बगैर सुशांत इति से शादी कैसे कर सकता है?देर तक मन को समझाती रही थी अर्धा, सुशांत ने इति से ज़बरदस्ती शादी की होगी, प्यार तो वो मुझसे ही करता है.फिर कुछ महीनों वो काम में व्यस्त रही, लगातार दो प्रमोशन और ज़िन्दगी को करीब से जानने परखने के बाद अब अर्धा को समझ आ रहा था प्यार और प्यार का स्वांग दोनों कैसे पहचाने जाते हैँ।

आज अपनी बेरुखी और अर्धा से किये हुए दुर्वयवहार को लेकर ज़ब सुशांत शर्मिंदा होकर माफ़ी मांग रहा था तब अर्धा को ख़ुशी होने के बजाए उबन सी हो रही थी।अर्धा को समझ नहीं आ रहा था कि, उसका सुशांत के प्रति आकर्षण भला विकर्षण में कैसे बदल गया?क्या खुद को अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व के साथ प्यार करने पर और किसी के नकली सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती। शायद प्यार और आकर्षण में यही फर्क है।


इस पल का इस दिन कितना तो इंतज़ार था अर्धा को. सच कुछ चीज़ें जो वक़्त पर ना मिली तो अपना महत्व खो देती हैँ.फिर प्यार तो निस्वार्थ होता है.

इन तीन सालों में अर्धा ने जो ग्रो किया है और अपनी परसनेल्टी को एक सुंदर कॉन्फिडेंडट स्त्री के रूप में देखकर जो गर्व महसूस होता है वो उसने सुशांत के साथ कभी नहीं महसूस किया. सुशांत हमेशा उसकी कमतरी का एहसास कराता रहा है और वो खुद को कभी लाइम लाइट में लाने से डरती रही है कि लोग क्या कहेँगे.


पर अब वो एक मशहूर लेखिका बन चुकी है. उसकी लिखी कहानियाँ लोगों को अपनी कहानी लगती है, उसके लिखे पात्र आसपास ज़िन्दगी से लिए हुए लगते हैँ.

खुद को लेखनी में इतना डूबा दिया तभी तो पढ़ पाई है खुद को और सुशांत को समझना भी आसान हो गया। सुशांत उसे प्यार नहीं करता बस समय का सदुपयोग करता है मेरे पास। कभी प्यार किया भी नहीं सुशांत ने, क्यूंकि वो कभी अर्धा के गुणों से मुख़ातिब हुआ ही नहीं।वैसे भी अर्धा ज़ब सबको उसके अपने बुरे वक़्त में साथ देते देखती है तो लगता है क़ि जो अपना होता है वो कभी भी किसी भी हाल में छोड़कर नहीं जाता, कभी नहीं। प्यार साथ देने और निभाने का नाम है!


ये तो अच्छा हुआ कि सुशांत ने उसे मना करके उसे नए सिरे से अपने बारे में सोचने का और अपने शख्सियत को एक पुख्ता आयाम देने का अवसर दिया।सुशांत की बेरुखी और खुदगर्ज़ी ने अर्धा की ज़िन्दगी को एक बेहतर रूप दिया है।ये मौका है उसके अपने जीवन को पहले से बेहतर बनाने का और अपने अस्तित्व को पुनः स्थापित करने का।


कई बार ज़िन्दगी हमें कुछ कम देकर, हैरान परेशान करती तो है पर उसमें छुपा होता है बेहतर भविष्य और एक सुनहरा मौका जो सिरे से हमारी ज़िन्दगी को कई सकारात्मक बदलाव दे जाता है !आकर्षण क्षणिक हो सकता है पर सच्चा प्रेम तो चिरस्थाई होता है।तभी सुशांत के प्रति अपना आकर्षण उसकी असलियत जानकर विकर्षण में बदल गया।आज खुद में आये सकारात्मक बदलाव को देखकर अर्धा यही तो सोच रही थी।



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