Shalini Dikshit

Inspirational

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Shalini Dikshit

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उसका साबू

उसका साबू

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विरार स्टेशन को देखकर अनीता बहुत घबरा रही है, खुद को ही कोस रही है कि आखिर उसने क्यो चुना इस ट्रेन को? वह हमेशा तो नहीं आती है इस ट्रैन से। ट्रैन के आने का टाइम रात ०९:०० बजे का है लेकिन आज बहुत लेट है। रात के १२: ०० बज चुके है, रात का सन्नाटे में लिपटा रेलवे स्टेशन एकदम वीरान है, अनीता के मन में बहुत घबरा रहा है। 

इस साल ठंड में कुछ ज्यादा पड़ रही है, रात के १० बजते-बजते लोग अपने घरों में घुस जाते हैं, इसलिए हर तरफ सन्नाटा है। मुसीबत तो यह है कहीं कोई टैक्सी नहीं दिखाई दे रही है, वैसे टैक्सी में इस टाइम अकेले जाना भी उचित नहीं है, न जाने ड्राइवर कोई गुंडा या बदमाश ही निकल आये। 

उसको अपनी बेवकूफी पर बहुत गुस्सा भी आ रहा है कि उसने पिता जी को क्यों नहीं कहा कि वह ट्रेन से आ रही है, ताकि वह उसे लेने आ जाए, मन ही मन वो बड़बड़ा रही है कि- "आज क्यों किया उसने यह सब पागलपन?"

ट्रैन आने की उम्मीद नहीं है स्टेशन घर से बहुत दूर है लेकिन इस उजाड़ स्टेशन पर वो सारी रात तो नहीं बैठ सकती है इसलिए उसने घर तक पैदल ही चलना उचित समझा, रास्ते में कोई टैक्सी मिल गई तो वो उससे ही घर तक जाने का रिस्क मोल ले लेगी।

उसने एक बार फिर घर फोन लगाने की कोशिश की मगर फोन का नेटवर्क गायब था, यह भी सच है जब बहुत जरूरत होती है तब कभी फोन नहीं लगते जैसे कि आज उसका नहीं लग रहा है, घर से बात भी नहीं हो पा रही है। 

लंबे-लंबे डग भरते हुए घर की तरफ चल दी करीब एक किलोमीटर चलने के बाद उसको कुछ खतरे का आभास हुआ, शायद कोई पीछा कर रहा है। उसने पीछे देखने की कोशिश की, उसे लगा एक नहीं कई लोग हैं, तीन है या चार है अंधेरे में समझ में नहीं आ रहा था। 

आज फिर वह बचपन की तरह सोच रही है कि कोई साबू होता जो उसकी मदद कर देता, कंधे पर बिठा उसको घर पहुंचा देता, जैसे बचपन में वह हमेशा सोचा करती थी कि पिंकी की तरह उसके पास भी कोई साबू होता जो हमेशा उसकी परेशानियों में उसका साथ देता। तब उसको यह सोच बहुत रोमांचित करती थी, कई बार वह आंखें बंद करके सोचती थी कि उसके पास भी एक साबू है आज घबराहट में उसको फिर वह साबू याद आ रहा था। 

अनीता ने अपने कदम तेज कर दी हैं लेकिन दूर चलने की थकान भी है, आखिर वह कितनी तेज दौड़ सकती है? तभी उन सभी लोगों ने आकर उसको दबोच लिया, उसका दुपट्टा भी छीन कर दूर फेंक दिया। 

अनीता मदद के लिए चिल्लाई पर कौन आएगा मदद के लिए इतनी अंधेरी रात में? अब तो उसको कुछ समझ नहीं रहा है था, ना साबू याद आ रहा था, ना वो अपने आप को कोस रही थी कि वह क्यों इतनी रात में निकली?

अचानक पता नहीं कहां से उसके अंदर एक दुर्गा से शक्ति आ गई और उसने जोरदार अपने हाथों से उनकी आँखें नोच डाली और लाते ऐसी जगह मारी कि वह कुछ देर देखने और चलने लायक नहीं बचे। इतना समय बहुत था उसके लिए और वो भाग निकली, बस घर पहुंचने वाली थी कि उसकी आंख खुल गई। 

वह पसीने से पूरी लथपथ हो चुकी थी और भगवान का बहुत शुक्रिया अदा कर रही थी कि यह एक सपना था और सपने ने उसको एक बहुत बड़ी सीख दे दी कि महिलाओं के जीवन में कोई साबु नहीं आता है उन्हें चाचा चौधरी की तरह अपना दिमाग चौतरफा दौड़ा कर अपना साबू खुद ही बनना पड़ता है, अपनी रक्षा खुद ही करनी पड़ती है। 


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