उसका जाना
उसका जाना
बेटी का पार्थिव शरीर पोस्टमार्टम के बाद घर आ गया है पिता के पास तो जैसे कोई शब्द ही नहीं है वह तो दिव्या की मौत के बाद ही बिल्कुल चुप हो गए हैं।
माँ उससे लिपट कर जोर-जोर से रो रही है, और कह रही है, "दिव्या यह क्या हो गया तेरे साथ? तू उन लोगों के साथ कैसे इतनी मुश्किल में फंस गई? हमें कभी कुछ क्यों नहीं बताया ?"
श्रीमती भारती का दिल जैसे फटा जा रहा है उनकी फूल सी बच्ची जिसकी उम्र अभी सिर्फ उन्नीस साल ही थी, बहुत ही सुंदर, पढ़ने में भी बहुत अच्छी पता नहीं कहाँ से उसको फिल्मों में जाने का भूत लग गया? माता-पिता ने बहुत समझाया; डराया भी, डाँटा भी, सब कुछ किया पर वो नहीं मानी।
माता पिता चाहते थे कि वो पढ़ लिखकर कुछ बने अपना जीवन सवारे लेकिन नहीं, उसने तो अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं की, बीच में ही छोड़ दी। दिव्या के पापा ने तो यह भी कहा था कि तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो उसके बाद फिल्मों में जाना चाहो तो चली जाना।
यह तो उनके जीवन का अनुभव ही बोल रहा था, इसीलिए वह चाहते थे कि एक बार दिव्या पढ़ाई पूरी कर ले ताकि उसको अच्छे बुरे की और हर चीज की समझ आ जाए। फिर अगर फिल्मों में गई और नहीं भी चली तो भी जीवन संवारने के लिए उसके पास बहुत कुछ बच जाएगा।
एक दिन रात के अंधेरे में दिव्या चुपचाप घर से निकल गई एक चिट्ठी छोड़कर खैर ये तो उसकी वहाँ एक सहेली थी जिसने कुछ मदद की और सब कुछ ठीक होने लगा; बहुत फिल्में मिली और उसने कुछ ही समय में कितना नाम कमा लिया था।
उसके माता-पिता को आज बहुत अफसोस है कि जब वह सफलता के पायदान चढ़ रही थी तब उन दोनों को उसके पास होना चाहिए था, उसका सपोर्ट बनना चाहिए था, सहारा बनना चाहिए था ताकि वह गलत हाथों में ना फसती और आज शायद जो हुआ, यह नहीं होता।
उनकी फूल सी बच्ची ना जाने कब प्यार ढूंढते-ढूंढते कैसे लोगों के चंगुल में फंस गई जिन लोगो ने उसका उसका इस्तेमाल तो किया ही और इतनी ऊंचाई से फेंकते हुए भी उनको दया नहीं आई।
माता-पिता को पुलिस के ऊपर एक आस है, कि गुनहगारों को सजा मिलेगी; लेकिन मन में एक बहुत बड़ा अफसोस है कि हमें अपने बच्चे का सहारा बनना चाहिए था। और आज वह चाहते हैं कि हर मां-बाप, अच्छा हो या बुरा अपने बच्चे को समझाएं फिर भी अगर वह मनमानी करे तो उसका साथ कभी ना छोड़े और अपना फर्ज निभाएं ताकि किसी के बच्चे को उनकी बेटी दिव्या भारती के सामान अपने जीवन से हाथ मत होना पड़े।