उफ, इतनी घिनौनी ये पुरुष नग्नता
उफ, इतनी घिनौनी ये पुरुष नग्नता
मैं दिन भर के काम से संतुष्ट भी थी और थकान अनुभव कर घर लौटने की जल्दी में भी थी। स्कूटी के पास पहुँची तो अगले पहिये में हवा न थी। दुखी इधर उधर देख ही रही थी, तभी दो युवक मेरी तरफ आये थे। मैं तय नहीं कर पा रही थी कि इनसे सहायता लूँ या नहीं। तब इन दोनों ने जबरन सहायता का उपक्रम दिखाते हुए मेरी स्कूटी एक तरफ ले जाना शुरू कर दी थी।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में डरी हुई तो थी पर मूर्खता में, इस समय स्वयं से ज्यादा स्कूटी की परवाह करते हुए उनके पीछे चल रही थी। थोड़ा गेप बना, मैंने मोबाइल पर बहन को भी घटना की सूचना दी थी।
आगे थोड़ा निर्जन स्थान था, जहाँ एक ट्रक खड़ा था। स्कूटी के पीछे चलते हुए मैं जैसे ही वहाँ पहुँची थी, तभी ट्रक से दो और लोग कूदे थे और मैं सम्हलती इसके पहले ही मेरे मुहँ पर ताकत से हाथ रख उन्होंने मुझे बलात उठा कर ट्रक में सवार कर दिया था। पहले ही साथ आ रहे दोनों युवक भी स्कूटी को झाड़ियों में धकेल ट्रक में आ बैठे थे।
मैं उनके चँगुल में छटपटा रही थी। खुद को छोड़ देने और घर लौटने देने के लिए गिड़गिड़ा रही थी। विलाप कर रही थी। उन चारों की आँखों में मुझे जो दिखा था उसमे मुझे बचपन में पढ़ी कहानियों वाले दुष्ट राक्षस का साक्षात्कार मिला था।
ट्रक चल पड़ा था। मुझे अब अंदेशा हो चुका था कि इनके चँगुल में, मैं शायद ही जीवित बचूँगी या बच भी गई तो जो बचेगा वह जीवन रहने योग्य न बचेगा।
ट्रक चलने के साथ उनकी जबरदस्ती बढ़ गई थी। जो मेरे आत्मसम्मान को बुरी कदर आहत कर रही थी। अब मेरे हाथ-पैर, मेरी ही ओढ़नी से बाँध दिए गए थे। चारों दुष्ट यूँ तो कद-काठी और ऊपरी तौर पर मेरे आस पास रहने वाले सामान्य से युवकों जैसे ही थे, मगर मेरे वस्त्रों के भीतर मेरे अंदरूनी अंगों तक पहुँचते उनके हाथों का स्पर्श यूँ चुभता और जलाता हुआ अनुभव हो रहा था जैसे कि मुझ पर एसिड सा कोई पदार्थ उड़ेला जा रहा हो। विरोध की कोशिशों में मैं निढाल सी पड़ रही थी। तब उन्होने बोतलें खोल ली थी।
मेरी आँखों में आँसू झर रहे थे। मेरी रूह तक रो रही थी, मगर इन वहशियों की आँखों में घिनौनी वासना के डोरे और मुख पर डरावने अट्टहास विजयी होने का भाव दर्शित थे। खुद शराब पीते हुए वे मेरे मुॅंह को जबरदस्ती खोल मेरी नाक बंद कर बोतल से शराब उड़ेल रहे थे। जिसके घूँट कुछ, मेरे न चाहते हुए गले में उतर रहे थे सप्रयास उन्हें मैं बुलक देने की कोशिश कर रही थी।
इन सबमें मुझे लग रहा था, मेरा मुखड़ा, रुलाई आँखों से निकलते अश्रु, नाक से निकल आई गंदगी, मुॅंह से निकलती लार आदि से भयानक हो गया होगा। साथ ही भय से पेशाब और शायद मल भी मेरे वस्त्रों में निकल आये थे। इतनी सब गंदगी में अगर कोई और होते तो उनके वासना का खुमार उतर जाता। ये इंसान होते तो शायद इस करुणाजनक मेरी हालत से इन्हें अपनी ही माँ-बहन, पत्नी-बेटी किसी का ख्याल आ जाता, लेकिन नहीं, ये इंसान नहीं थे।
ना जाने कैसे इन्हे किसी नारी की कोख में स्थान मिल गया था। शायद दैत्य भी कोई इतना निर्दयी नहीं होता। अब एक जगह ट्रक रुक गया था। अँधेरे में कहीं ला, इन्होंने मुझे पटका था। फिर चीरफाड़ के, मेरे तन से सारे वस्त्र अलग कर दिए गए थे, और फिर शुरू किया था इन्होंने मेरे ऊपर चढ़ने-उतरने का सिलसिला।
कठोर भूमि पर पड़ा मेरा शरीर इनकी यातनाओं और जबरदस्त नोंच-खसोट से लहूलुहान हो रहा था। मुझे इनकी हरकतों से यह विचार आया, ‘उफ़, कितनी घिनौनी होती है ये पुरुष नग्नता।’
अर्धचेतन होने के पूर्व तो शायद सभी 10 बार मुझ पर से चढ़े-उतरे थे। फिर मेरी चेतना लुप्त हो गई थी। न जाने कितनी और बार इन्होने मेरे साथ अमानवीय, घिनौने कृत्य किये थे। स्मरण नहीं कितनी देर बाद मेरी चेतना लौटी थी।
तब मैंने इन्हे आपस में कहते सुना था, 'इसे जीवित छोड़ना अब ठीक नहीं।’ फिर, एक को निगरानी के लिए छोड़ बाकि कहीं गए थे। मेरे शरीर की हालत तीव्र वेदनादाई थी। मुझे अहसास हो गया था मेरा कुछ वक्त ही और बचा है! अब मैं अपने माँ - पापा और बहन के बारे में सोच रही थी। मेरा जिनसे प्यार भरा साथ अब, हमेशा के लिए छूट जाने वाला था।
मुझे शिकायत हो रही थी कि क्या, यूँ मेरे अपमानित हो, मर जाने के लिए ये सारी उम्र त्याग कर मुझे पाल रहे थे। अपने लिए नहीं जी कर, बेचारे ये मेरे जीवन ख़ुशी के लिए चिंताओं में डूबे रहते थे। मुझे थोड़ा थोड़ा बड़ा करते करते ये नित दिन बूढ़े होते गये थे। इसके बाद भी अगर मेरी खुशहाली देखते, निश्चित ही ये अपने त्याग भूल, अपनी बिना ज्यादा हासिल के बिता दी ज़िंदगी से शिकायत नहीं रखते उसमें ही खुश है।
अब, आज मैं न बचूँगी
मेरे साथ हुए के विचार से
बाकि पूरा जीवन
ये सिहरते रहेंगे
मेरे जीवन में न, जिया जीवन अपने लिए
मेरे मरने के बाद बाकि बचा कैसे ये जियेंगे
हे ईश्वर, तू होता है हमारा रखवाला कैसा?
ऐसे मरने के लिए हमे क्यों देता है जीवन
ओ मेरी माँ, ओ मेरे पापा, ओ मेरी बहना
न कह सकूँगी अंत में जो है मुझे कहना
माफ़ कर देना इन्हे ये बेटे है किसी माई के
इन्हे पैदा करने में नहीं दोष उस माई के
मर के मैं देखूँगी
कैसे दिखाते कालिख पुते चेहरे अपने
जिन्हे कहते ये दुष्ट
माँ, बहन, बेटी, पत्नी, भाई औ पिता अपने
लो, अब बाकि तीन लौट आये है। अब सबने मुझ पर कोई तरल पदार्थ उड़ेला है। गंध से जो पेट्रोल मालूम पड़ता है। एकबारगी में जिंदा जलाये जाने की कल्पना से काँप उठती हूँ। लेकिन सारी रात मेरा शरीर और मेरी रूह इनके कृत्यों से जिस प्रकार जलाई गई है। उसने मुझे यूँ जलाये जाने पर होने वाली वेदना को सहन करने की ताकत दे दी है। इन्होंने रात भर जो किया वह जरूर जघन्य अपराध था। लेकिन अब ये जो करने वाले है मुझ पर एहसान है। भला कौन! भारतीय नारी होगी जो इस घिनौनी हरकत को झेल जीना चाहेगी?
मेरा जो होना था हो चुका है। मैं इन्हे कोई अभिशाप नहीं दूँगी। मैं चाहूँगी कि जिन माँ-बहनों के हाथों तिलक, रक्षा सूत्र ये बँधाते है, उनकी रक्षा के लिए ये जीवित रहें।
क्यूँकि, अगर किसी के माँ जाये होने पर, ऐसा ये किसी की बेटी के साथ कर सकते है तो और भी ऐसे कई माँ जाये होंगे, "जो इनकी भी माँ-बहन और बेटी के साथ ऐसे घिनौने कृत्यों को उत्सुक होंगे।” इनके ना होने पर उन्हें ऐसा मौका सरलता से मिल सकता है। मैं अंत में यह चाहती हूँ, "जो मेरे साथ इन्होने किया - इनकी माँ, बहन, पत्नी बेटी के साथ कोई न करे।”
लो अब माचिस की 1 जलती तीली इन्होने मुझ पर फेंकी है। आह कितनी तीव्र जलन मुझे होने लगी है। गला रुँधा हुआ है मेरा, चीख तुम तक ना पहुँचेगी, इससे कोई ये न समझना कि अस्मिता यूँ नोचे जाने और जिंदा जलाये जाने से मुझे पीड़ा नहीं हुई थी!
मेरी अंतिम इक्छा, "ओ, प्रिय मेरे देशवासियों - मेरी अधजली लाश पूरी न जलाना, इसे नुमाइश के लिए रखना, ताकि देख सकें लोग - कोई सुंदर बेटी, अपनी लाज लुट जाने और जिन्दा जला दिये जाने के बाद कैसी वीभत्स रूप को प्राप्त है और कैसे जिसमें संस्कारहीन पुरुषों की करतूतों की तस्वीर प्रतिबिंबित होती है। मेरी इस हालत को देख ज़माना ऐसा न करने की सीख अगर ले लेगा। मैं संतोष कर ना लूँगी की मेरा मरना व्यर्थ नहीं गया। ओह्ह जिंदा जलने की वेदना कल्पना से बहुत अधिक दर्दनाक असहनीय है। अब मेरा हृदय खाक हुआ है - अलविदा...!”