उम्मीदें

उम्मीदें

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आज दुल्हन बन कर ससुराल आई सोहा। चुपचाप सिर झुकाए बैठी थी। अनगिनत सवाल क्यूँ किसी के घर आना पडता है एक लडकी को ? क्या रिवाज बनाया? पर ध्यान अचानक से पास की आवाज पर गया। सब ससुराल के रिश्तदार बुआ, चाची, मामी, भाभी सभी सब काना फूसी सुन रही थी। मायके से काफी आया है। सब मेंहमानों को भी अच्छा दिया।तभी किसी ने कहा, अरे देगें क्युंं नहीं ?हमारा तेजस भी तो इन्जीनियर है बडी कम्पनी मेंं। देवर के साथ कि रस्म में भी सोने की भारी चैन, घड़ी मिली।

अकेली लडकी है तेजस के पापा ने पहले ही तय कर लिया था।क्या देना है ?

देखो क्या क्या देगी बक्सा खोलने में ? हमारी शादी में तो जो नंद, जिठानी, बक्सा खुलाई मै मेंरी सबसे महँगी साडी पर हाथ रखा था आज भी मन में है वो साडियां,बडे मन से खरीदी थी।। सोहा को पता था जो सामान है उसमें से दिया जाएगा ननद, जिठानी, सास और देवरानी को।माँ ने सोहा को सब रस्मों का बताया था और ये भी फेरो की साड़ी नन्द को दे देना।रस्म में देवर, नन्द, जिठानी की होगीं जो मांगे देती रहना। बक्सा खुलाई तेरी सूटकेस में जो तेरी साड़ी, सूट है वो कोई भी नन्द लेगी। जो चुन ले दे देना। और वही हुआ सब आकर खड़े हो गये क्या लेगी ननद ?

 नन्द रानी ने सबसे मँहगी साड़ी जो सोहा की पसंद कि थी हाथ रख दिया। दिल में बहुत दुख हुआ क्यु़ंंकि ये उसने बहुत मन से खरिदी थी। अगले दिन सासू माँ ने बताया नहा कर जो आओगी तब जो पहनोगी वो साड़ी जिठानी की। बस एक खाना बनायी का नेग सोहा को दिया गया।  

 बताया भी गया कि सोहा जब भी ससुराल आओ मायके से तो सास,ससुर के कपडे़ आयेगें। और हर त्यौहार पर थाल, लोटा, पूजा का सामान सास, ससुर के कपडे़ होगें। जो भारी पीतल का सामान परात माँग कर ली गयी थी।वो सब नन्द की शादी के लिये रख दिया। उसका कोई प्रयोग होगा भी नहीं। सब रीति रिवाज मायके के ही थे। सब सुन रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मायके वालो पर हो ना हो रूपये सब करने के लिये ससुराल वालो ने सारी जिंदगी की रस्में लेने की, मायके के नाम लिख दी।

ससुराल की तरफ से कुछ नहीं। ये कैसे बेमतलब के रिवाज। बाबा ने पता नहीं कैसे कैसे सब करा होगा ? सोहा आँखो में आँसु लिए,दिल में ना जाने कितनी बातें दबा कर बैठी थी।मन कर रहा था पूछू सबसे कौन कैसे देता है पाई पाई जोडकर अपनी जमा पूँजी की ससुराल में बच्ची उसकी खुश रहे?बेटी होते ही जमा करने में लग जाता है पिता,खुशी से ज्यादा देना चाहता है। चाहे कम हो उसके पास।उधार लेना पडे या जमीन बेचनी पडे।

बस लेना ही सब कुछ है। कितनी खुशकिस्मत होती है वो लडकी जिनके ससुराल वाले,मायके से लेने की उम्मीद नहीं करते। बहू को बेटी बनाते हैं।

कुछ रीति रिवाज होते जो होने भी चाहिये पर लेने के चक्कर में ये अनगिनत बढ़ते गये कुछ जान कर बना दिये गये। चाहे लड़की के परिवार वाले सर्मथ ही ना हो। आप सबके क्या विचार है।


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