उम्मीदें

उम्मीदें

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सुषमा की शादी को 1 महीना ही हुआ था। सुषमा ने ऐसे ही पूछ लिया - "भाभी नेग के कपड़े पसंद आ गये थे सबको?"

लडक़ी के परिवार को एक साल तक तो चिंता ही लगी रहती है। बिटिया को किसी भी वजह से परेशानी ना आये।

आगे से जो जवाब मिला अपनी जेठानी का। उस जवाब ने सो सवाल खड़े कर दिए।

भाभी बोली - "हम तो ऐसे कपड़े नहीं पहनते, न ही हम अपने बच्चों को ऐसे कपड़े डलवाते हैं। कामवाली को दे दिये तुम्हारे घर से सारे कपड़े।"

माँ-बाप सालों साल मेहनत करते हैं अपनी बेटी के ब्याह के लिए। बहुत खर्च हो जाता है शादी पर। कपड़े, गहने, दहेज़, शादी का खाना, साज-सज्जा, रीती रिवाज़ ही बहुत होते हैं।

उसके बाद जब सब दिल से प्यार से दे के विदा किया जाता है बेटी को यही सोच के उसको वहां इज़्ज़त मिलेगी। मगर मिलता क्या है सिर्फ ताने, बातें।

एक बेटी की शादी पर किया खर्च और उसके परिवार पर जो बीतती है वो केवल एक बेटी के माँ बाप ही समझ सकते हैं और कोई नहीं।

समाज का तो बस मुँह हिलाता है...

ये अच्छा नहीं था, ये कम था, ये बेकार दिया, हमे तो कुछ और उम्मीद थी... आज का समाज, कल का समाज और आने वाले कल का समाज... समाज वाले देखते हैं आगे चल के कौन सा नया समाज बनाते हैं। समानता का भाव लाते हैं या फिर वो ही घिसा-पीटा अपना डंका बजाते हैं।


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