गुनाह - वक्त से पहले जाना

गुनाह - वक्त से पहले जाना

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आज बहुत ही अटपटा सा वाकया हुआ। आज समझ में आया वक्त से पहले पहुंचना गुनाह होता है। वो भी उस संस्थान में जहां सिखाया जाता है कि वक्त क्या होता है। वक्त की कद्र कैसे की जाती है और वक्त पर या उससे पहले पहुंचने में क्या फायदे या नुकसान है।

पोदार एक बड़ा नाम है महाराष्ट्र में। आज अपने ५ साल के बच्चे को मोनिका स्कूल छोड़ने गयी सुबह जल्दी त्यार हो गए थे। नीचे पार्किंग से अपनी साईकल उठायी दोनों ने एक चक्कर लगाया पूरी सोसाइटी का। सोसाइटी भी तो बहुत बड़ी थी एक चक्कर मतलब एक मील ।

८:१५ सुबह का स्कूल में बच्चे को छोड़ने का वक्त तय कर रखा था। मोनिका आज ८:१४ पर ही स्कूल पहुंच गई थी। क्लास में पहुंची रजिस्टर पे हस्ताक्षर किए।

इस स्कूल का एक नियम था बच्चे को लेने और छोड़ने जाओ तो एक रजिस्टर में आने जाने के हस्ताक्षर ज़रूरी थे।

मोनिका ने हस्ताक्षर कर तो दिए मगर कोई बच्चा न होने की वजह से वो वहीं खड़ी इतंज़ार कर रही थी।

एक ही पल एक अध्यापिका आई, वो उसके लिए नई थी आगे कभी उसे नहीं देखा था मोनिका ने।

"आप इतनी जल्दी कैसे आ सकते हो आपको वक्त का इल्म नहीं है।" मोनिका ने अपनी घड़ी की तरफ इशारा किया और उस घड़ी में ८:२० थे और उसने अध्यापिका को दिखाया।

झल्लाते हुए टीचर बोली "अभी भी देखिए २ मिनट बाकी हैं। आप नहीं आ सकते इतनी जल्दी समझ नहीं आती आपको।"

मोनिका ने बात को नज़र अंदाज़ कर दिया। सुबह सुबह का वक्त था क्या बोलेंगे ऐसी बातों का जवाब क्या देना।

वो चली गयी।

एक और अध्यापिका आयी जैसे तय कर रखा हो पहले तुम बोल कर आयी फिर वो आएगी, नाम था अपरना। आते ही ऐसे बोली जैसे मोनिका उसकी नौकरानी हो।

"आपको एक बात समझ नहीं आती आप ऐसे अपने बच्चे को छोड़ने इतनी जल्दी नहीं आ सकते।" वो हड़बडाई हुई थी। मोनिका के बच्चे वहां खड़े ये सब देख सुन रहे थे।

वो भी सोच रहे होंगे के वक्त से पहले आना कितना बड़ा गुनाह है। माँ को स्कूल वक्त से पहले जाने पर कितना कुछ सुनना पड़ा।

२ बार पहले भी यही टीचर अपरना मोनिका को सुना चुकी थी। मोनिका एक संवेदनशील महिला थी। किसी भी झगड़े में पड़ना उसे पसंद नहीं था। वो तब कुछ नहीं बोली थी। बस घर आकरो रो दी।

पति बोले "तुम क्यों रोती हो अब जब भी ऐसा कोई वाकया आगे होता है। तब सुन कर नही आओगी जवाब दे के आओगी। हम बच्चों को भेजते हैं... फ्री में नहीं। जो स्कूल माँ बाप से ऐसे बात करता है वो बच्चों को क्या सीखाता होगा।"

मोनिका को अपने पति की कही बात याद थी। उस वक्त बच्चों के सामने उसने कुछ नहीं बोला बस केवल इतना के वक्त हो चुका है मैं कोई ज़्यादा जल्दी नहीं आयी के आप इतना सुना रहे हो।"

वो भी बोल कर चली गयी पर बच्चों के सामने हुई बेइज़्जती मोनिका को खल रही थी। आगे दो बार जो भी वाकया हुआ बच्चों के समक्ष नहीं हुआ था।

बच्चे को छोड़ कर और दूसरे बच्चे को भेज कर मोनिका ने अपरना मैडम को बुलाया। वो किसी से बात कर रही थी। उसने इंतज़ार किया। आज मोनिका ने ठान लिया था आज सुनकर नहीं जाना।

"आप इतने रूड बात कैसे कर सकते हो। तरीके से बात करो। क्या हो गया आपको। क्या गुनाह कर दिया मैंने। तमीज़ से बात करना सीखिए आप।"

मोनिका को गुस्सा आ गया था।

अपरना - "आप मुझसे आरग्यु कर रहे हो। मेरा आज इम्पोर्टेन्ट दिन है मेरा मूड खराब कर दिया।"

"व्हाट? क्या मैंने मूड खराब कर दिया।" मोनिक उसकी बातें सुनकर हैरान थी।

उस दिन भी आपका बेटा भाग गया। सड़क पे चला गया, कौन जिम्मेवार है। और भी पता नहीं क्या क्या बिन कुछ सोचे समझे बस बोल रही थी।

बेटे का रोज़मर्रा का था वो मोनिका से स्कूटर की चाबी लेके स्कूटर पे खड़े हो जाता था और उस दिन मोनिका बेटे की कक्षा की अध्यापिका साथ २ मिनट ज़्यादा लग गया जब गेट तक जाने लगी तो यही अपरना मैडम आ के बहुत सुनाई थी। लहज़ा टैब भी वैसे ही था जैसे आज। ना तमीज़ ना इज़्ज़त लफ्ज़ ऐसे जैसे कोई नागिन डंक मार रही हो। परंतु उस वक्त मोनिका को उसकी गलती का एहसास था वो उस वक्त कुछ नहीं बोली। मैं देखती हूँ बोलती हूँ कह कर निकल आयी थी स्कूल से।

मोनिका भौचक्की रह गयी थी।

कितनी बातें पुरानी संम्भाले थी ये अध्यापिका। ये अध्यापिका थी याँ कोई घर काम करने वाली औरत या एक चौल में रहने वाली।

उसका लहज़ा बात करने का तरीका कहीं से भी उसके ओहदे को नही दिखा रहा था।

मोनिका आज सुनकर नहीं आई थी। अपनी बात रख कर आई थी। मगर बात खाये जा रही थी। बच्चों के समक्ष कोई भी अध्यापक ऐसे कैसे बोल सकता है, वो भी एक माँ को।

पति को फोन करके सुबह की सारी बात बताई ओर बोली के आप प्रिंसिपल को लिख दीजिए। आगे पति बोले आपने अपनी बात रख दी। अभी अगर दोबारा कभी ऐसे बोलेंगे तो देखेंगे।

१५ मिनट के बाद ही स्कूल से फोन आ गया। प्राध्यापिका आपसे मिलना चाहती है। कृपया आईये।

मोनिका खुश थी।

स्कूल में २० मिनट इंतज़ार करने के बाद मिलने का मौका मिला।

मोनिका अंदर घुसी। प्राध्यापक एक स्त्री थी। सफेद रंग की कुर्ती पहने थी जिस पर नीले रंग के फूलों की कढ़ाई हुई थी।

काम मे व्यस्त थी। मोनिका जाकर उनके समक्ष बैठ गयी।

उन्होंने पूछा "सुबह क्या वाकया हुआ?"

मोनिका ने सारी बात बताई और बोली

"अगर ८:१४ पे आना एक गुनाह है तो आप दरवाज़ा खुला क्यों रखतें हैं। पेरेंट्स की एंट्री क्यों करवाते हैं। अगर दरवाज़ा बंद होगा। आपका सिक्योरिटी मैन अगर बाहर ही रोक दे पेरेंट्स को। कोई कैसे आएगा? आप लोगों से बिल्कुल सहमत हूँ। बात भी आपकी मान गए हम मगर एक बात बताएं के बच्चों के समक्ष ऐसे बोलना सही है?"

प्राध्यापिका का जवाब सुन कर हैरान सी हो गयी थी मोनिका।

प्राध्यापिका बोलीं "ताली दो हाथ से बजती है ये आप भी समझते हो।"

मोनिका वहां बोली तो कुछ नहीं सिर्फ हां में सिर हिला दिया।

मोनिका सोच रही थी। ना वो अध्यापिका उसके बच्चों को पढ़ाती ना उसको कोई उससे काम पड़ता।

एक माँ को सबसे ज़्यादा बच्चों को पढ़ाने वाले अध्यापकों से मतलब होता है। बाकी कोई क्या करता है कोन है? क्या है? उसको उससे कुछ लेना देना नहीं।

प्राध्यापिका भी अच्छी है के बुरी कोई मतलब नहीं। बच्चा अगर खुश है अच्छे से पढ़ रहा है तो माँ के लिए वो ही बस है।

प्राध्यापिका बोली आपका 1 ऑन 1 चल रहा है। मैं अपनी टीचर को इंस्ट्रक्ट करूंगी और आपको रिकवेस्ट के सिंक करो।

४ महीने हुए नहीं इस शहर में आये। ना जानता कोई ना पहचानता। वो अध्यापक का उससे क्या लेना देना। उसे क्या ज़रूरत उसकी या उससे क्या परेशानी।

बच्चे पहली बार तो स्कूल गए नही थे। पुराने स्कूल में कभी इस तरह की कोई परेशानी नहीं थी। स्कूल बंद रहता था।जब स्कूल खुल गया तो बच्चे आ सकते हैं।

ऐसे ही होता था अध्यापक वर्ग का टाइम आधा घंटा पहले रहता था। हम जब कक्षा में पहुंचते थे अध्यापक आ चुके होते थे।क्या सच में?

बहुत बड़ा गुनाह हो गया था आज उससे, वक्त की कद्र करके!

पोदार एक बहुत बड़ा नाम।

मोनिका सोच रही थी।


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