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Sonias Diary

Inspirational Romance

5.0  

Sonias Diary

Inspirational Romance

पहला प्यार

पहला प्यार

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हुस्न तो वापिस आ गया। बदसूरती चली गयी। जिसने उंगली थामी थी गमी में। दुनिया में दोबारा उठ खड़ा किया चलना सीखाया था। आज वो बस यादों में रह गया। मुस्कान आज एक खुशहाल ज़िन्दगी जी रही है। उसकी इस हंसती खेलती ज़िन्दगी की बुन्याद उसका पहला प्यार है।

उसका पहला प्यार....

ज़िन्दगी में लोगों का काफिला, कुछ हिम्मत बढ़ाते हैं कुछ तोड़ जाते तो कुछ जोड़ जाते। मगर कुछ ना कुछ सीखा जाते हैं।मुस्कान के एम.बी.ए. के दिन। चेहरा झुलस चुका था। किसी के बहकावे में आ ब्लीच करवा ली थी। पार्लर वाली ने भी उसे आधा घंटा ऊपर रख दिया। अपने दोस्त प्रेमी जो भी बोलो उसमें मशगूल हो गयी थी वो।

चेहरे पे खुजलाहट होनी शुरू हो गयी। मगर उसे पूछा तो बोली सामान्य है। कभी कभी ये सारी जानकारी ज़रूरी हो जाती शुरुआत में ही दे देनी। मगर....

जैसे ही ब्लीच को चेहरे से निकाला गर्दन काली होना शुरू हो गयी। उसको पूछा तो बोली

कुछ नही है चमड़ी पतली है नाड़िया दिख रही है ।

घर आते आते चेहरा लाल पड़ गया और फिर काला।

बहुत इलाज करवाया बिगड़ता ही गया। ज़िन्दगी के वो दिन आज भी मुस्कान को झंझोर जाते, आँखों को गीला कर जाते हैं।

माँ-बाप को रात रात भर नींद नहीं आती थी। शादी लायक बेटी सुंदर प्यारी एक दम से जब बदसूरत हो जाये ओर रिश्ते आने बन्द हो जाएं तो क्या हाल होता।

मुस्कान कमरे की कैदी बन गयी थी। घर से निकलती तो जो लोग १० दिन पहले आपके योवन की तारीफ करते न थक्कते हों। वो पहचान भी न पाएं आपको। ओर मुँह फेर चल दे तो बहुत बुरा लगता।

हाय ! कितनी बदसूरत है।

सब तरफ से आवाज़ सुनाई पड़ती थी

घर मे कोई आता रिश्तेदार पहले यही बोलता ये क्या लगाया, मुँह धोके आओ ...कितना काला मुँह कर रखा।

कोई बोलता काले कपड़े ना पहना कर शक्ल ही नहीं दिखती।

अब इसकी शादी कहाँ होगी कैसे होगी । आप तो बेटे ब्याहो।

रंग भी तो एक सार न था कहीं से लाल कहीं से हरा कहीं से काला। बहुत ही बदसूरत।

बहुत रोती थी । ईश्वर के समक्ष जाती तो पंडित जी पूछते- बिटिया चेहरे को क्या कर लिया।

टूट गयी थी।

हर जगह से कड़वाहट हर जगह से बुराई। तोड़ दिया था पूरे परिवार को।

५ दोस्त बने । फैसला किया पढ़ाई करने का आगे की। घर से बिल्कुल मना था उनको बस एक ही ख्याल था शादी का। कैसे होगी बहुत हाथ पांव मार रहे थे।

५ दोस्तों में एक था सौरभ भ्रमिन था, चेहरे पे तेज ओर सबकी परवाह करने वाला। परी और सौरभ की बहुत भिड़ती थी। वो उसको मज़ाक में ट्यूब लाइट बोला करता था।।

मुस्कान बहुत चुलबुली लड़की थी मगर हालातों से उसे खामोश कर दिया था। कभी ज़्यादा बात नहीं करती थी। बस लड़कियों में रहना और पढ़ाई करके निकल जाना।खुद के पास कोई वाहन नही थी तो ऑटो से ही आती-जाती थी। और उसमें से भी कुछ पैसे बचा लेती थी। ऑटो थोड़ा कॉलेज से दूरी पर मिलता था। उतना रास्ता पैदल तय करना पड़ता था।

सौरभ कक्षा जब भी बंक करता था, तब वो मुस्कान से ही नोट्स मांग लेता था और फिर उसके बारे में बात करने के लिए फोन भी करा करता था। मुस्कान के लिए ये सब आम बातें थी। होशियार थी शुरू से ही पढ़ाई में ओर फोन आते ही रहते थे सबके कुछ न कुछ समझने पूछने के लिए।

सब अच्छे दोस्त बन चुके थे।

एक दिन शाम में शुक्रवार का दिन उसके बाद सोमवार को ही क्लास लगनी थी। सौरभ ने मुस्कान को फोन किया।

वो नोट्स लिए थे न मैं सोमवार को वापिस कर दूंगा।

"ठीक है।", मुस्कान ने जवाब दिया।

ओर फोन रखने लगी तो एकाएक सौरभ बोल पड़ा-

मुस्कान एक बात पूछूँ ?

हाँ बोलो !

तुम गुमसुम क्यों रहती हो ?

नहीं ऐसी कोई बात नहीं...

मुस्कान ने बात को विराम दे दिया।

मुझे तुमसे कुछ पूछना है।

सौरभ हिम्मत करके बोल रहा था।

बोलो ! मुस्कान थोड़ी जल्दी में थी।

मेरे में इतनी हिम्मत नहीं इसीलिए वापी आया हूँ। बस में हूँ। तुमसे कुछ बात कहनी है।मुस्कान को ये सब पागलपंथी लग रही थी। बात करने के लिए बस पकड़ने का क्या मतलब।

बोलो वैसे सोमवार को मिलना ही था ना। इतना क्या ज़रूरी काम।

वो ना मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो।

मुस्कान को लगा फिरकी ले रहा सौरभ..।

बहुत बढ़िया आगे बोलो और वो इतना बोल हँस पड़ी।मैं मज़ाक नहीं कर रहा मुस्कान। पता नहीं कब से कैसे मैं तुम्हारे बा

रे में ही सोचता रहता हूँ।मुस्कान सौरभ की बातों को मज़ाक में लेते हुए बोली-

मेरे जैसी काली कलूटी ओर वो फिर हँस पड़ी।

उसकी हँसी सुन माँ की आवाज़ आयी बाहर से

क्या हुआ !

कुछ नही माँ ...

मुस्कान ने खिलखिलाते हुए पूछा-

बहुत महीनों बाद इतना खिलखिलाई थी वो शायद सौरभ पर या फिर खुद पर।

क्या अच्छा लगता मुझमे मेरा चेहरा !

वो कुछ देर चुप कर गया था। उसने फिर मुस्कान को रोका

प्लीज कुछ मत बोलो !

मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ। मैंने जबसे तुम्हें देखा तबसे। लगता था कुछ बुरा हुआ इसके साथ। लेकिन हिम्मत नहीं हुई। मगर जब तुमने हम सबको अपने बारे में बताया तब से सो नहीं पाया।

बिल्कुल भी हिम्मत नहीं हो रही थी। तुम्हारे सामने आने की। तभी २ दिन से कॉलेज नहीं आ रहा था। आज बहुत हिम्मत कर के ये बात बोली है।

तुम बहुत खूबसूरत हो मुस्कान।

मुस्कान समझ नहीं पा रही थी कि क्या बोले । वो डिप्रेशन में चली गयी थी। सौरभ नामक दीपक कहाँ से आया उसकी बेजान सी हो चुकी ज़िन्दगी में।

उस वक्त ना हाँ की ना ही मुस्कान ना बोल पायी। बस हम दोस्त हैं दोस्त रहेंगे मैं ऐसी लड़की नहीं। और न ही मेरे घर वाले ऐसे। मुझे किसी की दया नहीं चाहिए। मुझ पर दया करके कुछ मत करना।

फोन बंद कर दिया उसने।

उस रात नींद नहीं आई।

मुझे कैसे कोई प्रेम कर सकता। चेहरा ही एक लड़की का गहना होता। मेरा वो गहना ही टूट गया था। हर जगह से कड़वाहट मिलती हो जिसको।

उसको प्यार समझ आना मुश्किल था। इसी सोच में रात चली गयी थी। सूर्य की किरणें उसके चेहरे पर आ मानो कुछ कहना चाह रही हों।

सोमवार हुआ।

आज वक्त से पहले ही कक्षा में आ चुका था सौरभ। उस दिन पूरा वक्त वो मुस्कान को निहारता रहा।

जब आपको भी पता कोई आपके बारे में क्या सोच लिए है। तो आपको भी अजीब लगेगा ही।

उसका देखना मुस्कान को अच्छा लग रहा था के बुरा समझ नहीं पा रही थी। पता नही क्यों मुस्कान से उसको टोका नहीं गया।

सौरभ ने एक पर्ची परी को दी और परी ने मुस्कान को।

"प्लीज मुझे ऑटो में बैठने से पहले मिलना।"

मुस्कान ने पर्ची फाड़ दिया।

सौरभ ने सब कुछ देख रखा था मुस्कान के रास्ते,उसकी गालियां ओर उसका घर।

मुस्कान ने कुछ जवाब नहीं दिया।

कॉलेज खत्म हुआ तब सौरभ पहले ही निकल गया था। मुस्कान ने थोड़ी आराम की साँस ली। सबको बाय बोल कर मुस्कान कॉलेज से निकल गयी।

काली कुर्ती ओर काली लेग्गिंग पहने थी। पसंदीदा ड्रेस थी। जब चेहरा सुंदर था तब सबसे ज़्यादा यही रंग उस पे जँचता था। उसके हाथ में छाता था।

ऑटो तक जाने के रास्ते की एक गली सुनसान रहती थी । दुपहर के समय। जैसे ही उस सड़क में आगे आयी तो वहां एक मोटरसाइकिल खड़ी थी। मुस्कान ने नज़र घूमा ली। सड़क में तो १०० चीज़ें दिखाई पड़ती है ज़रूरी तो नहीं सबको पहचानना जानना। जैसे ही मोटरसाइकिल के पास से गुज़र रही थी। के पेड़ के पीछे से सौरभ ने आ उसका रास्ते में।

दया नहीं कर रहा मुस्कान। मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ। तुम बहुत सुंदर हो । तुम्हारा चेहरा भी। रंग खराब हुआ तो क्या तुम्हारी आत्मा पवित्र है। मुझे तुम्हारे चेहरे से नहीं तुमसे प्यार है।

मुस्कान की आँखें झलक पड़ी थी। चुप थी बिल्कुल मगर रो रही थी। बहुत वक्त बाद किसी ने बोला था उसे के वो खूबसूरत है। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

वो भूल चुकी थी सब। मुस्कान को बाहों में भरने की कोशिश करी सौरभ ने। मगर वो पीछे हो गयी।

उस रात बस रोती रही ।मुंह बन्द था आंखें बरसी जा रही थी।

अगले दिन कक्षा पहुंची। सौरभ अकेला वहां पहले से बैठा हुआ था।

उसने कक्षा का दरवाजा मुस्कान के लिए खोला। मुस्कान की आंखें उसकी रात की कहानी बयां कर रही थी। सौरभ से रहा नही गया मुस्कान को पकड़ गले लगा लिया था उसने।

मुस्कान आज के बाद तुम मुस्कान बिखेरोगी

आंखों से आँसू बहुत निकाल लिए अब बस और नही।

मुस्कान ने उसके प्यार को कुबूल कर लिया था। उसकी आत्मा से जुड़ सी गयी थी। ज़िन्दगी जीने की वजह दे दी थीउस ने।

सौरभ वो परिंदा था जिसने मुस्कान को नए सपने नए होंसले नए जज़्बात दिए थे। जीने की एक वजह दी थी।

मुस्कान के माँ-बाप को नई मुस्कान दे, मुस्कान को उसका घर-संसार दे उड़ गया था।


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