माँ की खुशी
माँ की खुशी
आज बहुत खुश थी माँ, जीती जो थी। आँखों में आंसू थे और अलग ही किस्म की रोशनी से हसके गाल चमक रहे थे। बहुत फक्र महसूस कर रही थी।
माँ बोली - " सुनो, अब देखना बुरे दिनों का अंत होने वाला है। आज एक आवाज़ आ रही है हम जीतेंगे। ये तकलीफें हमे तोड़ नही सकती। हम साथ हैं ना! अब फिक्र सब छोड़ दो।"
सुहानी फोन पर थी सब सुन रही थी। माँ के मुख से पहली बार ऐसे शब्द सुनने को मिले थे अथवा जब भी फोन करती थी माँ बिखरी सी टूटी सी सहमी डरी सी दिखाई प्रतीत होती थी।
घर में अकेलापन पति बीमार दवा-दारू के लिए बच्चों के समक्ष हाथ जब फैलाने पड़ते हैं तब एक टीस सी उठती है। आज भी तो पापा चलते-चलते गिर गए। कौन देगा हिम्मत, कौन करेगा कमज़ोरी दूर?
इंसान कितना सेल्फिश होता है। अपने लिए कमाता
बाहर के लोगों की बेझिझक मदद करता है। जब बारी माँ-बाप की आती है तब सुनने समझने की शक्ति सुन्न पड़ जाती है।
इंसान ब्याज के बोझ तले दबा हुआ है।
कहीं १ करोड़ के देने को भी कुछ नहीं समझते और किसी के लिए ५०,००० भी बहुत बड़ी रकम है।
वो भी तब जब बच्चे कमाने खाने वाले हों। बच्चे बोले अगर अब इन्हें कर दिया फिर हमारे बच्चों का कौन करेगा।
इन्होंने तो अपने बाप की बीमारी के चलते खुद को बर्बाद कर दिया। हम नहीं कर सकते।
कलयुग समाज में बच्चों से उम्मीद करना सबसे बड़ी गलती है और दूसरी बड़ी गलती अपने हाथ काट के बच्चों को पीरोस खुद उन पर आश्रित हो जाना।
ज़िन्दगी में पहली बार किसी कांटेस्ट में हिस्सा लिया था उसने और उसी में इनाम जीत लिया था। उसकी खुशी का ठिकाना ना था।