उदय भाग २५

उदय भाग २५

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असीमानंद और जरायु जब तक गुफा तक पहुंचे असीमानंद को अपनी सांस रोक देनी पड़ी। कारण था भयंकर दुर्गन्ध और रास्ते में मिलनेवाली हर व्यक्ति विकृत और बदबूदार थी उनके मुकाबले अद्वैत साफ सुथरा लगा। एक पल के लिए असीमानंद के दिमाग में ख्याल आया की उसने यहाँ आकर ग़लती तो नहीं कर दी। वो हमेशा साफ सुथरा रहना पसंद करता था जब यहाँ पर वातावरण उससे विरुद्ध था। पर यह तो सिर्फ शुरुआत थी, गुफा में भी दुर्गन्ध ने उसका पीछा नहीं छोड़ा या यूं कहिये की उसका प्रमाण गुफा में ज्यादा बढ़ गया। गुफा में दूर तक जाने के बाद जरायु एक अग्निकुंड के सामने रुका। अग्निकुंड में कुछ सामग्री डाली जिससे आग तेजी से भभकने लगी फिर जरायु ने छुरी से अपनी हथेली पर घाव बनाया और उसमें निकले हुए खून की बूँदें अग्नि में डाली और उसने असीमानंद को भी ऐसा करने कहा। असीमानंद ने अपने खून की कुछ बूँदें अग्नि में डालने के बाद अग्नि में एक विकृत आकृति उभर आयी। जरायु उसके सामने ज़मीन पर लेट गया और कहा शक्ति देवता की जय हो और असीमानंद को भी ऐसा करने कहा। असीमानंद ने ज़मीन पर लेटकर प्रणाम करने की बजाय दो हाथ जोड़कर नमस्कार किया तो उसे महसूस हुआ की कोई उसे कमर से पकड़कर झुका रहा है जबकि उसकी आसपास कोई नहीं था। इच्छा न होते हुए भी असीमानंद को ज़मीन पर लेटकर प्रणाम करना पड़ा। जरायु ने खड़े होकर उस आकृति से अजीब भाषा में बात की। थोड़ी देर बाद उस आकृति ने असीमानंद की तरफ देखकर कहा की "मैं तुमसे काफी प्रसन्न हूँ इसी वजह से तुम्हे यहाँ प्रवेश दिया गया है, मगर तुम्हारे चेहरे के भाव यह बता रहे है के यह जगह तुम्हें पसंद नहीं आयी। तुम्हें यहाँ रहने की अनुमति तभी मिलेगी जब तुम यहाँ के लोगो से यहाँ की दुर्गंध से प्रेम करोगे। वैसे तुम चाहो तो यहाँ से जा सकते हो लेकिन ऐसा करने के बाद तुम मेरा सुरक्षाचक्र गवां दोगे। और अगर तुम्हें तीसरे और चौथे परिमाण पे राज करना है तो मेरे सामने झुकना पड़ेगा।"

असीमानंद थोड़ी देर असमंजस में रहा फिर उसने वापस ज़मीन पर लेटकर उस आकृति को प्रणाम किया और कहा की "मुझे आपकी हर शर्त मंजूर है।"

अब वह कालीशक्ति का गुलाम था। उस विकृत आकृति ने कहा की "ठीक है असीमानंद अब बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ।" असीमानंद ने कहा की "मैं रावण का औजार लाने में सफल हुआ हूँ अब कृपया यह बताइए की इसका उपयोग कैसे किया जाये", ऐसा कहकर अपने वस्त्र के भीतर से औजार निकालकर दिखाया। आकृति ख़ुशी से चिल्ला उठी और जोर जोर से हँसने लगी और कहा की "जो कोई कर नहीं पाया वह तुमने कर दिखाया है , मैं प्रसन्न हुआ। लेकिन यह औजार दूषित हो चुका है इसका शुद्धिकरण करना पड़ेगा इसमें १ महीने का समय लगेगा। इसका शुद्धिकरण कैसे करना है वह मैं तुम्हें बताऊंगा।" फिर जरायु के सामने मुड़कर कहा की "अब तुम्हारे सारे सपने पूरे हो जायेंगे तुम लोग पांचवे परिमाण में प्रवेश कर पाओगे और उसपे कब्ज़ा कर पाओगे क्योंकि उसकी रक्षा करने के लिए वहाँ कोई दिव्यपुरुष भी नहीं है। फिर हम महाशक्ति को भी हरा देंगे।"

फिर जैसे वो आकृति स्वत ही कहने लगी के "रावण ने अगर मेरी बात मानी होती तो हम महाशक्ति को उस वक़्त की हरा देते लेकिन वो नीरा बेवकूफ़ अपनी बहन के प्रेम में अँधा महाशक्ति से वक़्त से पहले टकरा बैठा।" आकृति के चेहरे पर क्रोध के भाव आ गए। जरायु डर गया मानो रावण की ग़लती की सजा मानो उसे ही मिलनेवाली है।

असीमानंद ने कहा की "इसका शुद्धिकरण कब करेंगे ?" आकृति ने कहा "कल सुबह से करेंगे।" फिर जरायु से कहा की "अपने मेहमान की मेहमान नवाजी करो इसे माँस और मदिरा का पान कराओ।"

असीमानंद के चेहरे पर घृणा के भाव आये जिसे उसने तुरंत छिपा लिए और सोचने लगा की उदयनाथ को तो अब तक उस जलचर ने खा लिया होगा जिसे उसने पहले से सम्मोहित कर लिया था । फिर जरायु उसे एक कुटिया की तरफ ले गया।


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