उदय भाग २४
उदय भाग २४
असीमानंद आश्रम पहूँंचे और अपना दंड उठा लिया और अपने सेवको को बुलाकर कहा कि मुझे मेरे गुरु का आदेश मिला है मैंे हिमालय की तरफ जा रहा हूँ और मेरे आने तक आश्रम का कार्यभार स्वामी सत्यानंद संभालेंगे। सत्यानंद आगे आये और कहा गुरूजी लेकिन सत्संग पूरा होने में अभी ३ दिन बाकि है अगर आप ३ दिन और रहेंगे तो भक्तो को काफी आनंद आएगा। असीमानंद ने कहा की सत्संग का कार्यक्रम आप पूर्ण कीजिये और आगे कोई सवाल नहीं और हां हिमालय की तरफ मैं अकेला जा रहा हूँ साथ में किसीने आने की जरुरत नहीं है। असीमानंद के सत्तावाही आदेश के आगे कोई कुछ बोल नहीं पाया।
असीमानंद एक अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे सवा छे फुट की ऊंचाई, मजबूत कंधे, नीली आँखे, सर पे मुंडन, गहरी आवाज जो किसीको भी सम्मोहित करने के लिए काफी थी।
असीमानंद अपना दंड लेकर समंदर किनारे की तरफ चल दिए एक जगह जाकर रुके फिर उन्होंने हवा में एक आकृति बनायीं जिससे पानी में एक रास्ता बन गया जिसमे वो समां गए। दूसरी तरफ वो निकले तो उन्हें पता था की वो चतुर्थ परिमाण में पहूँंच चुके थे। पूरी तरह निर्जन था यह प्रदेश फिर वो एक दिशा में आगे बढे।
कुल १०-१५ किलोमीटर चलने के बाद वो एक बस्ती के सामने आकर रुके वह उन्होंने देखा की एक व्यक्ति पेड़ से उलटी लटक रही है जैसे ही वो आगे बढे वह व्यक्ति उनके सामने कूद गया और उनसे कहा अजनबी तुम्हारा यहाँ स्वागत नहीं है तुम चले जाओ।उस व्यक्ति की शरीर से उठ रही दुर्गन्ध से असीमनाथ ने नाक सिकोड़ी और कहा की तुम मुझे रोक नहीं सकते। उस व्यक्ति ने कहा की मैं अद्वैत हूँ और तुम्हारे जैसे १०० लोगो को मार चुका हूँ।
असीमानंद उसके स्वामी जरायु का नाम लेकर लड़ाई टाल सकते थे लेकिन पहले अद्वैत का घमंड उतरना जरुरी समझा। उन्होंने कहा थी है योद्धा अगर तुमने मुझे हरा दिया तो मैं यहाँ से चुपचाप चला जाऊंगा और अगर मैंंने तुम्हे हरा दिया तो तुम मुझे गुरु मानकर मेरी सेवा करोगे।
अद्वैत ने क्षण का विलम्ब किये बिना तलवार का वार असीमानंद पे किया। असीमानंद ने अपने उस वार को अपने दंड से रोक लिया और उतनी ही तेजी दिखाते हूँए दंड का पीछे के हिस्से से उसकी पीठ पर वार किया। अद्वैत लड़खड़ा गया, उसने कहा तुम तो योद्धा मालूम होते हो मैंंने तो साधु समझकर हल्का वार किया था अब बचो ऐसा कहकर तलवार घूमना शुरू कर दिया। असीमानंद ने अपने दंड को जमीन पर तीन बार पछाड़ा जिससे वो त्रिशूल बन गया फिर त्रिशूल को इस तरह घुमाया की अद्वैत की तलवार उसके हाथ से छूटकर दूर गिर गई फिर उसकी छाती पर एक प्रहार किया जिससे अद्वै जमीन पर गिर गया।
असीमानंद ने उसके गले पर त्रिशूल रखकर कहा क्यों बालक और लड़ने की इच्छा है। अद्वैत ने अपने दोनों हाथ जोड़े और कहा की आप तो महागुरु है अब मैं आपका गुलाम हो गया।
उतने में दूर से जरायु अत हूँआ दिखाई दिया। सात फुट लम्बा जरायु असीमानंद के पास पहूँंच कर उनके चरणों में गिर गया और बोलै स्वामीजी आपका स्वागत है इस बस्ती में मुझे आपके आने की खबर मिल गई थी। देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ। अद्वैत की तरफ इशारा करके कहा इस मूढ़मति ने आपके साथ कोई बदतमीजी तो नहीं की।
असीमानंद हौले से मुस्कुराए और कहा नहीं ये तो मेरा मनोरंजन कर रहा था। जरायु ने कहा की काली शक्ति से आज ही मुझे समाचार मिला की स्वामी असीमनाथ यहाँ आने वाले है। असीमानंद ने अपना हाथ उठाया और कहा की अब मुझे असीमनाथ नहीं असीमानंद कहकर पुकारो अब असीमनाथ नाम से मुझे चिढ होती है। मुझे अब कालीशक्ति की गुफा में ले चलो मैं उनसे मिलना चाहता हूँ। जरायु ने कहा की पहले हमें आपकी सेवा तो कर लेने दीजिये फिर हम गुफा की तरफ चलेंगे। असीमानंद ने कहा की मेरे पास इस सब के लिए वक़्त नहीं है तुरंत गुफा की तरफ चलो। जरायु ने अपना सर हिलाया और कहा ठीक है चलो।
अद्वैत अब तक असीमानंद की पावो में ही पड़ा था उसने कहा गुरूजी मेरे लिए कोई आदेश ?
असीमानंद ने कहा के पहले तो तुम नहा लो, बहुत दुर्गन्ध आ रही है तुम्हारे शरीर से। अद्वैत ने अनमने ढंग से सिर हिलाया, उसका सबसे अप्रिय काम था ये।
फिर जरायु और असीमानंद गुफा की तरफ बढ़ गए।