उदय भाग २३
उदय भाग २३
सुबह उदय नहाधोकर हरिकाका के घर चला गया । हरिकाका से बातो बातों में कहा की परसो रोनकबाबू खेत में आये थे तो उन्होंने कहा की वो स्वामीजी के भक्त है , उनका नाम तो मैंने भी सुना है लेकिन कभी दर्शन नहीं किये तो क्या मै रोनकबाबू के साथ में चला जाऊ उनके साथ दर्शन के लिए । हरिकाका ने कहा चला जा उसमे कौनसी बड़ी बात है । रोनक को बुलाकर हरिकाका ने कहा इसे भी साथ लेकर जाना , रोनक इंकार न कर पाया और कहा की ठीक है बाबूजी ।
दूसरे दिन रोनक , रेखा , सुनैना , देवांशी और उदय आश्रम जाने के लिए निकले । रास्ते में उसे पता चला की वो लोग राजस्थान नहीं द्वारका के आश्रम में जा रहे है । दोपहर में रोनक ने खाना खाने के लिए गाड़ी एक ढाबे पे रोकी । उदय ने कहा मेरा पेट थोड़ा ख़राब चल रहा है मै खाना नहीं खाऊंगा । जब दूर से उसने देखा की सब खाना खा रहे है तो उसने धीरे से रोनक की बैग खोली और औजार ढूंढने लगा , सबसे निचे की तरफ उसे एक लम्बा सरिया पड़ा था उसे उठाकर देखा । इसकी बनावट कुछ अलग थी इसलिए उसने अपने कपड़ो में छिपा लिया और बैग वैसे ही बंद कर दिया । उदय गाड़ी से निकलकर यहाँ वह घूमने लगा । उतने में दूर उसे एक साधु दिखाई दिया , उसके पास जाकर उसे प्रणाम किया और कहा बाबा कहाँ के है ?
साधू ने जवाब दिया लंका से आ रहे है । सही जवाब पाकर उदय ने वो औजार कपड़ो से निकलकर उस साधु के हवाले किया और कहा इसे कटंकनाथ जी के हवाले कर देना । अब उदय निश्चिन्त हो चूका था की अब चाहे वो वापस आये न आये औजार भूतनाथ जी के पास पहुंच जायेगा ।
दूसरे दिन वो लोग द्वारका पहुंच चुके थे । दोपहर तक आराम किया फिर दोपहर में द्वारकधीश के दर्शन करके शाम को स्वामीजी के आश्रम पहुंचे । उदय ने देखा की रोनक का चेहरा चिंताग्रस्त है । उदय इसका कारण जानता था । रोनक अपनी बैग दोपहर के बाद काफी बार चेक कर चूका था । उसे शक हुआ की यह काम जरूर पल्लव का है , लेकिन उसे पता कैसे चला की यह कैसा औजार है ।अब स्वामीजी से सामना होना था यह सोचकर रोनक का दिल दहल चूका था उसे अपनी मौत सामने दिखाई दे रही थी । अगर सब साथ न होते तो वो शायद भाग चूका होता लेकिन अब मज़बूरी थी इसलिए वो सत्संग चल रहा था वह बैठा ।
सत्संग ख़त्म होने के बाद सब ने स्वामीजी के आशीर्वाद लिए । उठने से पहले स्वामीजी ने रोनक को पास बुलाया और कुशलमंगल पूछे और फिर कहा की रात को खास अभिषेक करना है इसलिए तुम और तुम्हारा यह नौकर दोनों आना । रोनक ने कहा ठीक है स्वामीजी ।
रोनक पुरे परिवार के साथ होटल गया वहाँ रात को खाना खाने के बाद रोनक ने कहा मै और नटु स्वामीजी के आश्रम में जार रहे है अभिषेक के लिए आप लोग सो जाना हो सकता है हम लोग देर रात या सुबह आये ।
आश्रम पहुंचने के बाद स्वामीजी ने कहा की अभिषेक से पहले समंदर किनारे चलते है । समंदर के पास पहुंचते ही स्वामीजी ने पूछा मेरा औजार कहा है रोनक ? रोनक उनके पाँव में पद गया और कहा की मै तो ले आया था लेकिन अब वह मेरी बैग से गायब है ,पता नहीं चल रहा की वो गायब कहा हुआ । स्वामीजी ने ठंडी और धारदार आवाज में कहा इतनी ग़ाफ़िलियत और इस बलंबुते पर तुम करोड़पति बनाना चाहते हो तुम किसी काम के नहीं हो । रोनक ने कहा की मै कही से भी उसे ढूंढ निकलूंगा हो सकता है घर पे रह गया हो ।
स्वामीजी ने कहा उस औजार के इंतजार में १० साल निकल लिए मैंने और तुम कह रहे हो फिर ढूंढोगे , कहा ढूंढोगे ? उदय मन ही मन हँस रहा था की अब १० साल क्या १०० साल भी इंतजार करेगा फिर भी कुछ हाथ नहीं लगेगा । स्वामीजी ने कहा की कोई बात नहीं रोनक तुमसे गलती होना लाजमी है क्यों की तुम इस शतरंज के सिर्फ एक प्यादे हो और वजीर के हाथो से तो तुम्हे हारना ही है , क्यों उदयनाथ सही कह रहा हूँ न मै ? अपना सही नाम स्वामीजी के मुँह से सुनकर उदय का चेहरा पीला पड़ गया । रोनक का चेहरा अजीब सा हो गया था उसे समझ में नहीं आ रहा था किस बारे में बात हो रही है और ये पल्लव को उदयनाथ क्यों कह रहे है ।
स्वामीजी का इशारा मिलते ही दो तीन लोगो ने उदय को पकड़ लिया । स्वामीजी ने रोनक की तरफ मुड़कर कहा की तुम्हारा काम हो गया तुम जाओ यहाँ से । रोनक के जाने के बाद स्वामीजी उदय की तरफ मुड़े और कहा की मै इस खेल का पुराना और माहिर खिलाडी हूँ और दो बार तुम्हे मात भी दे चूका हूँ लेकिन तुम कभी बाज नहीं आते ।
उदय ने कहा तुम लड़े ही कब हो हर बार तो पीठ में खंजर भोकतें हो । लेकिन इस बार जीत हमारी हुई है वह औजार तुम्हे कभी भी नहीं मिलेगा ।
स्वामी असीमानंद जोर जो से हसने लगा और कहा की इस औजार की बात कर रहे हो इतना कहकर स्वामीजी ने वह सरिया निकला जो उदय पहले ही चुरा चूका था । उदय के चेहरे पर हैरानी के भाव आये और कहा ये कैसे ? मैंने तो कटंकनाथ के हवाले किया था ।
स्वामी ने कहा तुम्हें क्या लगता है जिस चीज का इंतजार मै १० साल से कर रहा हूँ उसके यहाँ आते ही उसपे नजर नहीं रखूँगा । रोनक जब एयर पोर्ट पर उतरा तब से मेरी नजर में था । तुम्हे क्या लगता है मुझे ऐसे बचकाने तरीके से हरा दोगे । मै एक दिव्यपुरुष हूँ ऐसा कहकर उसने आसमान की तरफ हाथ उठाये तो बिजली कड़की और उसके दोनों हाथो तक आई । ऐसा लग रहा था असीमानंद ने बिजली की तलवार पकड़ी हो । उसके शरीर से जैसे ही बिजली दौड़ रही थी और उसका शरीर प्रकाशित हो गया था । फिर उसने बिजली को भाले की तरह उदय की तरफ फेक लेकिन उदय अपनी जगह से हट चूका था । असीमानंद ने देखा की उसके चेले वहाँ से भाग चुके है । उदय ने पैतरा बदला और असीमानंद के नजदीक जाने की कोशिश की लेकिन जब भी पास जाने की कोशिश करता था उसे बिजली का झटका लगता था । दोनों लड़ते लड़ते समंदर में घुटनेभर पानी में पहुंच चुके थे अब असीमानंद उसे बिजली का झटका नहीं दे सकता था । अब हाथो हाथ की लड़ाई शुरू हो चुकी थी उदय ने जो का मुक्का असीमानंद के पेट में जड़ दिया लेकिन यह देखकर उसे आश्चर्य हुआ की जिस मुक्के से पूरा पेड़ गिर गया था उसके लगने के बाद असीमानंद पर कुछ असर नहीं हुआ । जब असीमानंद का मुक्का उसकी छाती पर पड़ा तो वह उछलकर समंदर के बहार गिर गया फिर वहाँ आकर असीमानंद ने उदय पर लातो घुसो की बौछार कर दी । असीमानंद को देखकर लगता था की जैसे वो मरनेवाली मशीन हो और उदय रेती से भरी थैली ।उदय ने उठने की कोशिश की लेकिन उठ नहीं पाया । असीमानंद ने पास आकर कहा की तुम्हारी तालीम अभी पूरी नहीं हुई बरखुरदार तुम्हे सदिया लग जाएँगी मेरे समकक्ष होने में। वैसे अब तुम्हारा मेरा सामना कभी नहीं होगा क्योकि मै तुम्हे जलसमाधि देनेवाला हु । चौथे परिमाण का दरवाजा मेरा इंतजार कर रहा है । कालीशक्तिओ ने प्रसन्न होकर मेरे लिए वो खोल दिया है । एक बार मै वहाँ पहुंच गया फिर इस औजार से पाचवे और छठे परिमाण में पहुंच जाऊंगा फिर मै महाशक्ति के समकक्ष हो जाऊंगा फिर मुझे कोई हरा नहीं पायेगा फिर इस दुनिया पर मै राज करूँगा और आसमान की तरफ देखकर हसने लगा । उदय उसकी हसी सुनकर काँप गया । असीमानंद ने उदय के पाँव पकड़े और समंदर में दूर उसे उछाल दिया , फिर असीमानंद निश्चिन्त अपने आश्रम की तरफ बढ़ा ।