Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

4.0  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

त्याग और तपस्या

त्याग और तपस्या

6 mins
12.2K


"मैडम, मेरी माँ कहती हैं कि उनके माता-पिता उनकी बजाय उनके भाइयों पर ज्यादा ध्यान देते थे। मेरी माँ को कभी स्कूल नहीं भेजा गया । उन्होंने तो अपने भाइयों और उनकी किताबों की मदद से पढ़ना सीखा क्योंकि पढ़ने में उनकी बड़ी रुचि थी।"-आकांक्षा अपनी कक्षा की अध्यापिका नीतू मैडम के वक्तव्य से प्रेरित होकर "त्याग और तपस्या" विषय पर कक्षा में अपने विचार रख रही थी।


नीतू मैडम ने अपनी कक्षा की मॉनीटर आकांक्षा की मम्मी की शिक्षा के प्रति जागरूकता की सराहना करते हुए पूरी कक्षा से पूछा-"तुम में से कोई भी बच्चा पूरी तरह ईमानदारी के साथ यह बताएगा कि अभी तक हर महीने होने वाली अभिभावक शिक्षक संगोष्ठी अर्थात मासिक पी.टी.एम.में आकांक्षा की माँं आती रही हैं तो उनके व्यवहार और उनके बातचीत करने के ढंग से तुम लोग उनकी अपने विद्यालय समय में कक्षा में एक विद्यार्थी के रूप उनकी स्थिति के बारे में क्या अनुमान लगाते हो?"

कई बच्चों ने अपने विचार रखने के लिए अपने हाथ उठाए थे लेकिन नीतू मैडम का संकेत मिलने पर विशाल बोला-"हम सभी बच्चे काफी समय  तक यही समझते रहे हैं कि आकांक्षा की मम्मी भी आकांक्षा की तरह अपने स्कूल में अपनी कक्षा की मॉनीटर रहती होंगी। मैं,रहमान, राबर्ट और मनमीत लम्बे समय से रोज शाम आकांक्षा की मम्मी के साथ बैठ कर स्कूल का काम करते हैं और इनकी मम्मी हमेशा एक बहुत ही अच्छे टीचर की तरह हमारी पढ़ाई करवाती रही हैं। वे तो हमारे घर के आसपास की बहुत सी औरतों को पढ़ना-लिखना भी सिखाती रहती हैं। कभी कोई सपने में भी नहीं सोच सकता कि वे बचपन से स्कूल नहीं गई होंगी। आज  कोई भी अजनबी व्यक्ति उनके आचरण -व्यवहार के आधार शत-प्रतिशत यही अनुमान लगाएगा कि उन्होंने अपना विद्यार्थी जीवन एक अच्छे विद्यार्थी के रूप में विधिवत अध्ययन  करते हुए गुजारा होगा। 

"क्या तुम सब बच्चों को ऐसा ही लगता है?"-नीतू मैडम ने सभी बच्चों के चेहरों पर हर्ष मिश्रित भावों को पढ़ते हुए पूछा।

"हॉऺ,जी मैडम!"- सब बच्चे एक स्वर में बोले।

विशाल को बैठने का इशारा करते हुए मैडम ने कहा-"जीवन में सीखने और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति हमें सदैव प्रेरित करती रहती है। हमें जब भी अवसर मिले उसका सदुपयोग करते हुए समय के अनुसार लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहना चाहिए। किन्ही परिस्थितियों के कारण हमारे मार्ग में यदि कोई बाधा आ भी गई हो तो भी हमें उचित अवसर और तरीके की प्रतीक्षा करनी चाहिए। समय कभी भी एक सा नहीं रहता है क्योंकि इस संसार में  परिस्थितियों में परिवर्तन लगातार होता रहता है। यह परिवर्तन चाहे हमारी आर्थिक, सामाजिक , भौगोलिक या किन्हीं दूसरी परिस्थितियों के कारण ही क्यों न हो।हमारा दृढ़ संकल्प, धैर्य,संयम, अनुशासन, उचित अवसर को पहचानने की क्षमता आदि वे गुण हैं जो हमें हमारी मंज़िल की ओर उत्तरोत्तर बढ़ाते हैं। हमें अंततः देर -सवेर मंज़िल अवश्य मिलती है। कहा गया है न, जहां चाह-वहां राह। धैर्यपूर्वक डटे रहें कभी संयम न खोएं। जब अवसर मिले तो उसे गंवाएं नहीं। जब जागो -तभी सवेरा।"

नीतू मैडम के संकेत पर आकांक्षा ने पुनः अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा-"मेरी माँ के दो भाई हैं एक माँ से दो साल बड़े और दूसरे माँ से एक साल छोटे।मेरे बड़े मामाजी को अच्छी तरह से पढ़ाने-लिखाने की नानाजी-नानीजी ने बहुत कोशिश की। उनकी पढ़ाई-लिखाई में कोई कमी न रह जाए इसके लिए नानाजी अपनी ड्यूटी के बाद भी ओवर टाइम में काम करते थे। नानीजी घर के काम निपटाकर कुछ छोटे-मोटे काम भी कर लेती थीं कि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाये। आर्थिक अभाव के कारण नानाजी -नानीजी ने मेरी माताजी को विद्यालय नहीं भेजा था।एक साथ तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्च पूरा करना संभव नहीं था और माताजी के द्वारा घरेलू काम करने पर ही नानीजी पारिवारिक आमदनी बढ़ाने के लिए कुछ अन्य काम कर सकती थीं। उनका लक्ष्य था कि घर के बेटे भलीभांति पढ़ लिख जाएं। पर बड़े मामाजी का मन खेलने-कूदने और घूमने में ज्यादा लगता था। मेरे छोटे मामाजी पढ़ने-लिखने और खेलने-कूदने में तो रुचि रखते ही थे साथ ही वे घर के कामों में नानाजी और नानीजी का हाथ भी बंटाते थे।मेरी माँ की  पढ़ने लिखने में बहुत रूचि थी पर पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वे स्कूल न जा सकीं। वे घर के सारे कामों में काफी छोटी उम्र में ही दक्ष हो गई थीं उनकी पढ़ाई के प्रति ललक बाल्यकाल से ही रही थी। हम सब माँ की पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी का अनुमान इस प्रकार लगा सकते हैं कि बिना विद्यालय जाए ही वे  मामाजी साथ -साथ बैठकर नियमित रूप से पढ़ाई किया करती थीं। छोटे मामाजी माँ के साथ पढ़ाई बड़े मनोयोग से करते और करवाते थे।सवेरे नानीजी स्कूल जाने के लिए सबको उठाती थीं तो छोटे मामाजी आसानी से उठ जाते थे पर बड़े मामाजी को उठाना नानीजी के लिए टेढ़ी खीर थी। जब वे झुंझलाती तो नानाजी अपने तीनों बच्चों को समझाते थे कि आज तपस्या कर लोगे तो कल सुकून मिलेगा। मेरी मां की प्रशंसा करते हुए वे कहते कि बिना स्कूल गये पढ़ाई में कितनी होशियार हैं? जब नानाजी डॉऺट लगाते तब बड़े मामाजी बड़े अनमने ढंग से अपना बिस्तर छोड़ते थे। नानाजी को बड़े मामाजी की पढ़ाई को लेकर सदा ही ज्यादा चिंता रही पर वे अच्छे से पढ़ाई नहीं कर पाए। छोटे मामाजी को पढ़ाने-लिखाने के मामले कभी टोकना नहीं पड़ा। वे समय से अपने आप उठते और पढ़ाई-लिखाई के साथ घरेलू कामों को भी निपटाते। मेरी माताजी ने विधिवत औपचारिक पढ़ाई नहीं की।यह तो उनका अपना व्यक्तिगत प्रयास रहा है जिसके कारण कोई यह अनुमान कदापि लगा ही नहीं सकता है कि औपचारिक रूप से  उनकी पढ़ाई नहीं हुई होगी। "

विशाल से नहीं रहा गया। उठ खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर बोला-" मैडम! मैं भी घर पर पापाजी के काम में तो मदद करता ही हूं। शाम को मम्मी की रसोईघर में भी मदद करता हूं।" यह कहते हुए वह अपनी सीट पर तुरन्त बैठ गया।

नीतू मैडम ने जब आकांक्षा से उसके दोनों मामाजी के वर्तमान समय में व्यवसाय के बारे में जानना चाहा तो आकांक्षा ने बताया-"बड़े मामाजी नानाजी -नानीजी की इच्छा के अनुरूप ठीक ढंग से पढ़ लिख नहीं पाए इस समय वे इसी शहर में एक वकील के सहायक का काम करते हैं और छोटे मामाजी बंगलोर में एक प्रतिष्ठित कम्पनी में कंम्प्यूटर साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। वे अभी भी नई चीजों को सीखने में बहुत मेहनत करते हैं ।"

अब नीतू मैडम ने पूरी कक्षा को संबोधित करते हुए कहा-" आकांक्षा के नानाजी और नानीजी ने इनके दोनों मामाजी को उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए अपने सुखों का त्याग किया। उनका त्याग इनके छोटे मामाजी की तुलना में बड़े मामाजी के लिए अधिक था। इनके छोटे मामाजी की कार्यशैली अर्थात तपस्या बड़े मामाजी की तुलना में उत्कृष्ट कोटि की थी। जिसका प्रतिफल उनके उनके बेहतर करियर के रूप में मिला है और उनकी तपस्या जारी है। आकांक्षा की मम्मी उन परिस्थितियों में औपचारिक रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाई पर उनकी अनवरत सीखने की ज्ञान-पिपासा और तपस्या के परिणाम के साक्षी आकांक्षा और तुम सब हो। वे अपनी तपस्या से आसपास की महिलाओं के बीच ज्ञान गंगा प्रवाहित कर माँ सरस्वती की पुजारिन का काम कर रही हैं। आकांक्षा के नानाजी-नानीजी यदि थोड़ा और कष्ट उठाकर इनकी की मम्मी के लिए थोड़ा और त्याग कर देते। इनके बड़े मामाजी थोड़ा कष्ट उठाकर थोड़ी कठिन तपस्या कर लेते।तो सम्भवतः इनकी मम्मी और मामाजी की स्थिति बेहतर होती। हमें सदा यह सोच अधिकाधिक लोगों तक पहुंचानी चाहिए कि उत्कृष्ट परिणाम के लिए त्याग और तपस्या का उचित समन्यव परमावश्यक है।आप लोगों में बहुत से बच्चों के पापा-मम्मी जी -तोड़ मेहनत करते हुए अपनी बहुत सी इच्छाओं को मन में ही दबाकर आपको यथासंभव सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं उपलब्ध कराने का भरसक प्रयास करते हैं ताकि आपका बेहतरीन ढंग से विकास हो सके।वे अपने इस त्याग के साथ सवेरे सबसे पहले स्वयं उठकर तुम्हें समय से उठाकर , नाश्ता करवाकर-टिफिन देकर,समय-समय पर कई निर्देश याद दिलाकर तपस्या भी लगातार करते हैं क्योंकि वे अब तक यह भली-भांति जान चुके हैं कि बाल्यकाल जीवन का प्रभात और सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। माता-पिता का त्याग और उनकी तपस्या तभी फलीभूत होंगी जब तुम्हारी तपस्या और त्याग की समान रूप से भागीदारी हो। कुछ माता-पिताभी शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं हैं। शिक्षा पर जो धन लगाया जाता है वह व्यय नहीं बल्कि एक निवेश है जो भविष्य में उच्च प्रतिफल देगा। ऐसे माता-पिता जो शिक्षा के महत्त्व को लेकर जागरूक नहीं हैं उन सभी को भी अपने त्याग और तपस्या का और अधिक योगदान करने की आवश्यकता है।तभी तो देश का हर बच्चा जो आज विद्यालय में शिक्षा के माध्यम से अपने भविष्य के निर्माण  में संलग्न है।आज के यह बच्च कल के भारत के भावी कर्णधार हैं।हर बच्चा एक सशक्त और सुयोग्य नागरिक बनकर देश को विकास की ऊंचाइयों पर ले जाएगा।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational