तू मेरे लिए अनमोल

तू मेरे लिए अनमोल

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शैफाली ने दिया को हिदायत देते हुए कहा कि "मैं तुम्हारे पापा और नीरा (दिया की जेठानी) शादी में जा रहे हैं, इसलिए घर के सभी दरवाज़े ठीक से बंद कर ले।" किसी अनजान के लिए दरवाज़ा ना खोलना। रात को दो बजे के करीब तुम्हारे भैया ( दिया का जेठ सूरज ) आयेंगे, उसे मैंने चाभी दे दी है। एक चाभी हमने रख ली, किसी को भी आना होगा तो बार-बार तुम्हें उठना नहीं पड़ेगा। तुम ठीक से आराम करना। अभी तुम्हें तीसरा महीना लगा है इसलिए ज़्यादा ध्यान रखना ज़रूरी है।" तभी दिया के ससुर बोले "बेटा हम तो लड़की को विदा करवा कर ही आयेंगे। तुम अपना ध्यान रखना।" तभी नीरा भी बोली "दिया पापा के सबसे अच्छे दोस्त की बेटी की शादी है इसलिए मेरा भी जाना ज़रूरी है नहीं तो मैं तुम्हारे पास रुक जाती क्यूंकि मुझे पता है तुम्हें अकेले डर लगता है। तुम्हारे भैया ने इसलिए ही अंकल को ऑफ़िस से छुट्टी ना मिल पाने का बहाना बना दिया ताकि तुम्हें पूरी रात अकेले ना रहना पड़े। आज उनकी नाईट शिफ्ट है फिर भी वो और जल्दी आने की कोशिश करेंगे।" दिया ने अनमने मन से सबसे कहा की "आप सब आराम से जाओ, मैं सब संभाल लूँगी।"

सबके जाने के बाद दिया ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और पूरे घर के दरवाज़े खिड़कियाँ दोबारा से चैक किए की सब ठीक से बंद है ना और जल्दी से अपने कमरे में जाकर कम्बल पूरा मुँह तक ढक कर लेट गयी। दिया को बचपन से ही कभी अकेले रहने की आदत नहीं थी और अभी उसकी शादी को सिर्फ सात महीने ही हुए थे। उसका पति ध्रुव ऑफ़िस के काम से शहर से बाहर गया हुआ था। दिया को डर तो बहुत लग रहा था पर पूरे दिन की थकान की वजह से उसे जल्दी ही नींद आ गयी। रात को ढ़ाई बजे के करीब दिया को ड्राइंग रूम की तरफ से रौशनी आती हुई दिखी, तो उसने सोचा "शायद भैया आ गए होंगे। एक बार उनसे खाने के लिए पूछ लेती हूँ। यह सोच कर दिया ड्राइंग रूम में गयी। उसने देखा सूरज सोफे पर बैठा हुआ शराब पी रहा था। दिया ने उसकी तरफ ज़्यादा ध्यान ना देते हुए पूछा..."भैया आप कुछ खायेंगे, खाना गर्म कर दूँ?" सूरज ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उसे गन्दी निगहाओं से देखते हुए बोला "तुम तो मुझे पहले दिन से ही बहुत पसंद हो । आज मौका मिला है...तुम्हें पाने का तो उसे मैं बिल्कुल हाथ से नहीं जाने दूँगा।" अचानक से सूरज एकदम दिया के करीब आ गया और उसे अपनी आगोश में लेते हुए बोला "जब तू मेरे पास है तो और किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।" दिया उसे धक्का देते हुए, उससे गिड़गिड़ाते हुए बोली "कुछ तो शर्म करो, मैं तुम्हारे छोटे भाई की पत्नी हूँ" सूरज की निगाहों में दरिंदगी भरी हुई थी। नशे में तो धुत्त वो पहले से ही था। दिया का हाथ मरोड़ते हुए बोला "मुझे बचपन से आदत है..…मुझे जो चीज़ पसंद आ जाती है, मैं उसे पा कर ही रहता हूँ।" दिया तेज़ी से पीछे घूमी और उसे उसके गले से पकड़ लिया और बोली "मैं कोई चीज़ नहीं हूँ, मैं तुम्हारा बड़े होने का लिहाज़ कर रही हूँ....अपनी हद मत पार करो।" तभी उन दोनों ने अपने सामने नीरा को खड़े पाया उसकी गोद में उसका दो साल का बेटा था जो बुरी तरह रो रहा था । वहां का दृश्य देख कर नीरा का होश उड़ गया उसने दिया को कहा "दिया तू वैभव को संभाल मैं देखती हूँ आज इस आदमी को....अब मुझे समझ आया इसका शादी में ना जाने का कारण।" दिया ने वैभव को गोदी में लिया और नीरा के गले लगते हुए बोली "भाभी प्लीज़ मुझे बचा लो।" नीरा ने कहा "तू रसोई में जा कर वैभव के लिए दूध बना। तू प्रेग्नेंट वैसे है, अगर तुझे कहीं चोट लग गयी....तो तुझे और होने वाले बच्चे को कुछ भी नुक्सान हो सकता है।" दिया बोली "भाभी मैं आपको ऐसे-कैसे अकेला छोड़ कर...नीरा ने उसकी बात बीच में काटते हुए चिल्ला कर कहा "तू जा यहां से, तभी सूरज ने नीरा के बाल कस कर पकड़ लिए वह ज़मीन पर गिर गई सूरज उसे घसीटते हुए बालकनी में ले आया और ज़ोर ज़े चिल्ला कर बोला "तू मुझे सिखाएगी।" वह नीरा को बालकनी से नीचे गिराने की कोशिश करने लगा। नीरा ने बहुत ज़ोर से सूरज को धक्का दिया और ड्राइंग रूम में घुस कर जल्दी से दरवाज़ा बंद कर दिया। सूरज बालकनी में खड़ा-खड़ा दरवाज़ा खोलने के लिए चिल्ला रहा था।

नीरा ने हाँफते हुए दिया को सब बताया....उसने दिया से कहा "वो आदमी कब से मुझे धोखा देता हुआ आ रहा है। कभी उसने दिल से मुझे अपनी पत्नी माना ही नहीं। वो तो शादी में वैभव के एक दम तेज़ बुखार लग रहा था, इसलिए मैं इसे लेकर घर आ गई।" दिया ने रोते हुए कहा "मम्मी-पापा को क्या बोलेंगे।" नीरा ने कहा "जो सच है वो बता देना।" दिया ने कहा "भाभी आप इतने साल इतने अत्याचार क्यूँ सहन करती रहीं"? नीरा भी आज अपना दिल दिया के आगे खोल कर रख देना चाहती थी...."वह रोते हुए बोली सूरज को शादी से पहले से ही पीने की लत थी पर मेरे मम्मी-पापा को इस बारे में कुछ पता नहीं चला था। उन्होंने सोचा अच्छा घर है पढ़ा-लिखा लड़का है, इसलिए यहाँ पर मेरी शादी करवा दी। शादी के बाद कुछ महीनों तक तो सूरज का व्यवहार मेरे साथ ठीक था पर धीरे-धीरे उसमें बदलाव आते चले गये और वैभव के पैदा होने के बाद तो इस आदमी ने मुझसे ज़्यादा बात भी करनी बंद कर दी। रात को देर से ऑफ़िस से आता था और सुबह ऑफ़िस चल देता था। मम्मी-पापा को भी सब पता है, अपने कपूत के बारे में पर वो हमेशा मुझे ही यह कह कर चुप कर देते हैं की "मर्द है...धीरे-धीरे ठीक हो जायेगा।" मुझे लगा तुम तो इसके भाई की पत्नी हो इसलिए यह तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं करेगा इसलिए मैं इसे तुम्हारे साथ छोड़ कर जाने को तैयार हो गयी। मुझे नहीं पता था कि यह तुम्हें भी नहीं छोड़ेगा। बालकनी में खड़ा सूरज बहुत देर तक चिल्लाता रहा...फिर आस-पास वाले ना सुन लें यह सोच कर वहीं कुर्सी पर बैठा-बैठा सो गया। दिया ने नीरा को गले लगाते हुए कहा "भाभी अगर आपको बुरा न लगे तो मैं भैया के खिलाफ पुलिस में कम्प्लेन लिखवा दूँ।" नीरा ने कहा...."हाँ बहुत साल मैं घर की इज़्ज़त की वजह से चुप रही। कभी सोचती रही की वैभव और मेरा क्या होगा पर अब और बर्दाश्त नहीं होता।" ऐसे ही बातें करते-करते ना जाने कब सुबह हो गयी। अचानक से दरवाज़े की घंटी की आवाज़ से वो दोनों चौंक गयी । नीरा ने भाग कर दरवाज़ा खोला सामने सास-ससुर को देख...वो थोड़ा घबरा गयी पर फिर दिया की तरफ देख कर वापिस उसमें हिम्मत आ गयी ।


शैफाली घर में घुसते ही वैभव की तबियत के बारे में नीरा से पूछने लगी जब उसने वैभव को वहीं सोफे पर सोते हुए देखा तो नीरा से गुस्से में कहा "बीमार बच्चे को यहाँ सोफे पर क्यों सुला रखा है?" नीरा कुछ बोलती उससे पहले दिया ने ही रात को जो भी सूरज ने किया था, अपनी सास को सब कुछ बता दिया । शैफाली उन दोनों पर चिल्लाने लगी की इतनी ठण्ड में उसे बाहर बालकनी में बंद कर दिया। तभी सूरज के पापा बोले "उसने इतनी नीच हरकत की है फिर भी उसका पक्ष क्यूँ ले रही हो तुम?" शैफाली जल्दी से सूरज को जगा कर अंदर कमरे में लाई और उसे उसके कमरे में जाकर सोने के लिए बोल ही रही थी...तभी फिर से घंटी बजी दरवाज़े पर पुलिस खड़ी थी। दिया उन्हें अंदर लाई और सब कुछ बताने लगी शैफाली ने उसे चुप करने की बहुत कोशिश की पर उसने शैफाली की हर बात को अनसुना कर दिया पुलिस ने नीरा का बयान लिया...तो नीरा ने अपनी सास के अत्याचार के बारे में भी शिकायत की। शैफाली पुलिस वालों की भी बिना परवाह किये उन दोनों से बोली "तुम्हें इस घर से निकाल दूंगी मैं।" पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे डांटते हुए कहा "अभी फिलहाल तो आप और आपका बेटा सूरज हमारे साथ पुलिस स्टेशन की हवा खाने चलो।" नीरा और दिया के ससुर ने उन दोनों से अपने बेटे और पत्नी के अत्याचारों के लिए माफ़ी मांगी। नीरा बहुत रो रही थी। दिया ने उसे समझाते हुए कहा "आप चुप हो जाओ...मैं भैया को सजा दिलवा कर रहूँगी। जेल से निकल कर अगर वो सुधर गए, तो आप उनके साथ रह लेना नहीं तो हम सब मिल कर आपकी दूसरी जगह शादी करवा देंगे । आज से हमारा रिश्ता बहनों का रिश्ता होग। नीरा ने भी दिया का माथा चूमते हुए कहा "तू मेरे लिए अनमोल है।" 


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