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Neerja Pandey

Romance Tragedy

3  

Neerja Pandey

Romance Tragedy

तुमको ना भूल पाएंगे....

तुमको ना भूल पाएंगे....

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राहें हुईं जुदा हैं पर,

हम तुम तो नहीं।

फासले तेरे मेरे बीच है,

पर दिलों में तो नहीं है।

               

स्कूटी स्टार्ट करते हुए प्राची गुनगुना रही थी। उधर प्रवीण भी अपनी बाइक स्टार्ट करने खड़ा था। प्रवीण ओर प्राची पिछले सात वर्षों से रिलेशनशिप में थे।

पर आज जी कड़ा कर प्रवीण ने उससे वादा लिया था कि अब वो एक दूसरे से नहीं मिलेंगे। प्रवीण क्लास टेंथ में था जब उसने पहली बार प्राची को देखा था।

देखा और देखता ही रह गया। प्राची में ऐसा पता नहीं क्या था जो उसे बांधे ले रहा था। लाख कोशिश के बाद भी वो उसकी तरफ देखे बिना नहीं रह पा रहा था। उस समय प्रवीण मात्र चौदह वर्ष का था । बेहद संस्कारी प्रवीण एक उच्च कुल के ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखता था। जहां सबसे पहले उठ कर ठाकुर जी को प्रणाम किया जाता था। फिर माता पिता के चरणों में शीश नवाया जाता था ।


जितने जरूरी दिन के और कार्य होते थे इतना ही जरूरी ये सब भी था। बिना ठाकुर जी को भोग लगाए रसोई जूठी नहीं की जाती थी। इसलिए लहसुन प्याज भी घर में नहीं आता था। पढ़ाई में अव्वल प्रवीण अपने माता पिता की इकलौती संतान था। घर में दादा दादी के आलावा कोई न था। दादाजी भी अपने इकलौते पोते को संस्कार युक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे।


इधर प्राची भी अपने माता पिता की बड़ी बेटी थी। प्राची के पिताजी पुराने जमींदार घराने से ताल्लुक रखते थे। उनके लिए अपनी आन बान शान से बढ़ कर कुछ भी नहीं था। जो अपनी कुल की प्रतिष्ठा और मर्यादा के लिए जान भी न्योछवर करने में पीछे नहीं हटने वाले थे। ठाकुर ओम सिंह राठौर की दो बेटियां थीं। बड़ी प्राची और छोटी पूर्वी। दोनों ही ठाकुर साहब की प्रतिष्ठा थीं। वो भी सरकारी अफसर थे और तबादले पर फैजाबाद आए थे।


यहीं स्कूल में दोनों ने एक दूसरे को देखा। और बस बिना कुछ कहे ही एक कमिटमेंट सा हो गया। बस एक दूसरे को देखना और निगाहें मिलने पर सर झुका लेना। बात करने में प्रवीन के संस्कार बीच में आते तो प्राची के कंधे पर ठाकुर घराने की प्रतिष्ठा थी ।


इस तरह समय बीतता गया। दोनों अब ट्वेल्थ में थे। कुछ दिन ही बाकी रह गए ,एग्जाम होने में। लगभग सभी बच्चे जी जन से पढ़ाई में जुटे थे।

आज फेयरवेल पार्टी थी । ड्रेस कोड में सारी गर्ल्स को येलो साड़ी पहननी थी। प्राची का गेंहुआ रंग येलो सारी में दमक रहा था। उसने अपने लंबे बालों को खुला छोड़ रक्खा था। लहराते बालों के बीच उसका चमकता मुखड़ा बेहद खूबसूरत लग रहा था। प्रवीण और प्राची असमंजस में थे कि बात कैसे करें ।आज के बाद से एक दूसरे को देखना भी नसीब नहीं होगा, रिज़ल्ट आने पर कौन क्या करेगा, कहां एडमिशन लेगा कुछ पता नहीं था।


ये ख्याल ,प्रवीण और प्राची दोनों को बेचैन कर रहा था। इसी उलझन में कि बात करूं... ना करूं...! करूं…तो.. कैसे करूं...? 

समय बीतता जा रहा था । अब और इंतजार प्रवीण से नहीं हो पाया। वो उठा और प्राची के पास जाकर खड़ा हो गया। और बोला,

"हैलो प्राची कैसी हो?"

प्राची ने ये ये उम्मीद नहीं की थी कि अचानक से प्रवीण उसके पास आ जाएगा। बिना कुछ कहे, बस मुस्कुराकर ठीक हूं कि मुद्रा में सर हिला दिया ।

आगे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या बोले, कुछ देर रुक कर बोला, "एग्जाम की तैयारी कैसी चल रही है।"

प्राची अब कुछ सहज महसूस कर रही थी, बोली, "तैयारी तो अच्छी है पर मेरे बायो के नोट्स किसी ने लिए थे वो वापस नहीं किए। मैं समझ नहीं पा रही हूं किसने लिए सबसे पूछ चुकी हूं पर सभी ने मना कर दिया मेरे पास नहीं है। अब इतना समय नहीं है कि दुबारा से नोट्स बनाऊं। "


सब को पता था कि प्राची जैसे नोट्स बायो में कोई नहीं बनाता। सर भी सभी को कहते ," देखो कितने अच्छे से प्राची ने नोट्स बनाए है ,ऐसे ही नोट्स होने चाहिए।" इस कारण सभी प्राची से नोट्स मांगते। अब किसी ने लेकर वापस नहीं किया था। प्रवीण ने हँस कर कहा , "बस इतनी सी बात, मेरे भी नोट्स नहीं मिल रहे थे तो मैंने दूसरे बना लिए और वे फिर मिल गए। तुम चाहो तो मैं अपने नोट्स दे सकता हूं। हां पर वो तुम्हारे नोट्स जैसे अच्छे नहीं है ।"


प्राची बोली,"नहीं तुम्हारे नोट्स भी अच्छे होंगे। तुम्हें कोई परेशानी ना हो तो दे दो ,पर तुम दोगे कैसे? अब तो स्कूल आना होगा नहीं।"

प्रवीण ने कहा, "मुझे क्या परेशानी हो सकती है? ऐसा करते है मैं हर मंगलवार हनुमान जी के दर्शन करने हनुमानगढ़ी जाता हूं, तुम भी आ जाओ या फिर मैं तुम्हारे घर आकर दे दूंगा।"

प्राची जल्दी से बोली ,"नहीं नहीं तुम घर मत आना मैं मंगलवार को मन्दिर आकर ही ले लूंगी।"

उसे डर था कहीं पापा ने देख लिया तो मुश्किल हो जाएगी।

उसके बाद जब तक पार्टी चली प्राची और प्रवीण साथ - साथ ही थे। पार्टी खत्म होने पर ,प्रवीण बोला, "ओके फिर मंगलवार को नोट्स लेकर मिलता हूं।"

उसके बाद सब एक दूसरे से भारी मन से विदा लेकर अपने अपने घर चले गए। सभी को एक दूसरे से बिछड़ने का और

स्कूल छूटने का बहुत दुख था।


प्रवीण ने कह तो दिया था नोट्स के लिए पर उसने झूठ बोला था कि उसके नोट्स खो गए थे और उसने दूसरे नोट्स बनाए है । जबकि उसका नोट्स खोया ही नहीं था ,वो तो उसने प्राची को परेशान देख कर दिया था।

आज संडे था दो दिन बाद ही उसने नोट्स देने के लिए प्राची को बुलाया था। 

अब क्या करे?

घर आते ही चेंज कर वो अपनी पढ़ाई छोड़ कर, अपने बायो के नोट्स की कॉपी करने बैठ गया।

दिन रात एक करके प्रवीण ने अपने पूरे नोट्स कॉपी किए। इस कारण उसकी अपनी पढ़ाई दो दिनों तक बन्द रही।

आखिर कार मंगलवार दोपहर तीन बजे तक जल्दी - जल्दी पूरा कर वो हनुमानगढ़ी मन्दिर पहुंच गया।

वहां पहुंच कर देखा प्राची पहले से खड़ी थी, और उसी का इंतज़ार कर रही थी ।साथ में उसकी बहन पूर्वी भी थी।

पहले सब सीधा अंदर मंदिर में चले गए। दर्शन किया ,फिर बाहर आकर थोड़ी देर सीढ़ियों पर किनारे बैठ गए । 

प्रवीण ने नोट्स प्राची को दे दिए। 


वो पूर्वी को जानता था, क्यों की वो भी उसी स्कूल में दो क्लास जूनियर थी। कुछ देर रुक कर प्राची बोली,

"अच्छा ...।अब मैं चलती हूं ! देर हो रही है। तुमने नोट्स देकर मेरी बहुत मदद कर दी। थैंक यू प्रवीण।"


प्रवीण ने भी कहा ,"हां मैं भी चलता हूं मुझे भी पढ़ाई करनी है।" इतना कह कर प्राची ,पूर्वी को साथ लेकर वापस चल दी। अपने अपने घर आकर दोनों पढ़ाई में लग गए। कुछ समय बाद परीक्षा हो गई। अब समय ही समय था, जब तक रिज़ल्ट ना जाए।

प्राची को पता था कि हर मंगलवार प्रवीण हनुमानगढ़ी आएगा।

उसने पूर्वी से कहा चल,

 " पूर्वी मंदिर चलते है।" दोनों तैयार हुई और हनुमान गढ़ी आ गई।"

 अभी वो मंदिर की सीढ़ियां चढ़ ही रही थी कि पीछे से आवाज आई , "अरे!...।प्राची, पूर्वी तुम यहां ?"


प्राची ने बढ़ते कदम रोक दिए, और पलट कर पीछे देखा तो प्रवीण था। जैसी की उसे उम्मीद थी प्रवीण आया था उसका आना सफल हो गया था।

अब तक प्रवीण पास आ गया था , बोला "तुम भी मन्दिर आने लगी क्या ????"

जवाब में मुस्कुराते हुए प्राची बोली , "क्या सिर्फ तुम आ सकते हो भगवान के दर्शन करने ??? मैं नहीं ।"


"मेरा ये मतलब नहीं था ।" प्रवीण ने कहा। इसके बाद तीनों मन्दिर के अन्दर गए और दर्शन किया फिर अपने अपने घर चले गए ।

अब ये नियम हो गया हर मंगलवार वो आते कुछ देर बाते करते और चले जाते।

कुछ दिन बाद पूर्वी ने कहा ," दीदी ये मन्दिर में हमेशा प्रवीण भैया मिल जाते है ? क्या ये सिर्फ संयोग है ???"

जवाब में प्राची खिखिलाई ," तुझे क्या लगता है???"

पूर्वी ने कहा ,"मुझे तो कुछ और लगता है "

घूरते हुए प्राची ने पूर्वी को देखा और हाई - फाई देते हुए ,बोली, "जो तुझे लगता है वही सही है।" और दोनों बहनें खिलखिला उठी।

"पर दीदी पापा को पता चला तो " पूर्वी ने कहा.. अब प्राची उदास हो गई, जवाब में केवल पूर्वी का हाथ पकड़ लिया ।


समय के साथ प्राची और प्रवीण की पढ़ाई पूरी हो गई। उनका मिलना भी इस बीच जारी रहा। कभी गुप्तार घाट पर बैठ कर सरयू की धारा को देखते तो कभी राम की पैड़ी की सीढ़ियों पर बैठ कर बाते करते। प्रवीण को फैजाबाद कोर्ट में पेशकार की नौकरी मिल गई।

प्राची के पिता उसके लिए योग्य वर की तलाश तब से कर  रहे थे; जब वो ग्रेजुएट भी नहीं थी । पर हर बार वो कोई ना कोई बहाना बना कर मना देती थी।


प्रवीण के बारे में पहले, पूर्वी से मां को , फिर मां से उसके पापा को पता चल चुका था।

उसके पापा ने साफ साफ शब्दों में उसे बुलाकर समझाया,

" बेटा मैंने तुम्हें बेटी नहीं बेटा बना कर पाला है , तुम मेरी आन, बान ,शान हो। जिस भी दिन तुम्हें ऐसा लगे कि मैं तुम्हारी खुशियों के रास्ते में आ रहा हूं मुझे बता देना मैं तुम्हारे रास्ते से हट जाऊंगा। ये तुम जान लो की अपनी ठाकुर वंश की परम्परा से इतर का के मैं प्रवीण को तुम्हारे लिए नहीं चुन सकता।"

प्राची अपने पापा के पैरो के पास बैठ कर उनके घुटने पर अपना सर टिका दिया और रूंधे गले से बोली ,

"पापा एक बार मिल तो लो वो बहुत अच्छा है आप उसे पसंद करेंगे" पापा ने प्राची के सर पर हाथ फेरा और बोले,

"वो कितना भी अच्छा क्यों ना हो पर मैं इजाजत नहीं दे सकता , हां ! तुम अपनी मर्जी से को चाहे कर सकती हो ...।।"

प्राची अपने पिता के खिलाफ जाने की सोच भी नहीं सकती थी। प्रवीण और अपने पिता के बीच प्राची दो राहे पर खड़ी थी !


एक सांस था तो दूसरा शरीर वो किसी भी एक के बिना नहीं रह सकती थी।समय बीतता जा रहा था प्रवीण को भी कोई उम्मीद नहीं थी कि उसका परिवार प्राची को अपनाएगा । प्रवीण ने सोचा कोर्ट मैरेज कर लेते है ,बाद में सब में जायेगे। पर प्राची को पता था उसके पापा इस अपमान को सह नहीं पाएंगे।

कोई विकल्प ना बचा देख ,प्रवीण सारी रात सोचता रहा क्या करे, फिर उसने निर्णय लिया ।प्राची घुट घुट कर जी रही है उसे आजाद करना ही होगा। जब तक वो प्राची के साथ है प्राची जिन्दगी में आगे नहीं बढ़ पाएगी। काफी देर रात तक सोचता रहा, फिर एक निर्णय कर सो गया।

आज शाम को उसने राम की पैड़ी पर प्राची को बुलाया था , जो सरयू की लहरे साक्षी थी उसके और प्रवीण के प्यार की आज उन्हीं को साक्षी मान कर प्राची को दोराहे से मुक्त करना चाहता था ।


तय समय पर प्राची आ गई । कुछ देर पश्चात् उसका हाथ अपने हाथों में प्रवीण ने कहा ,

"प्राची मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं ये मुझे तुमसे कहने की जरूरत नहीं ,पर तुम इस दो रहे पर कब तक खड़ी रहोगी '।

प्राची ने प्रवीण की ओर देखते हुए कहा " तुम कहना क्या चाहते हो ?" प्रवीण ने अपने जज्बातों पर काबू करते हुए कहा,"प्राची मैं और तुम अब नहीं मिलेंगे,...। ना ही बात करेंगे...। तुम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो ...। जब तक मैं साथ रहूंगा, तुम आगे नहीं बढ़ पाओगी......मैं ये गुनाह अब और नहीं

कर सकता...।।"

आगे प्रवीण ने कहा ," मैं तुम्हारे पापा का भी गुनहगार बन जा रहा हूं वो भी अपने बेटी का घर बसा देखना चाहते है, जो मेरी वजह से संभव नहीं हो पा रहा है।"

तड़प कर प्राची ने कहा, "नहीं प्रवीण , मेरी कमजोरी की इतनी बड़ी सजा मत दो, मैं जी नहीं पाऊंगी ......"


"नहीं प्राची तुम खुल कर जियो इसलिए मेरा ये कदम उठाना जरूरी है, और तुम इसे जिन्दगी ...। कहती हो...।

ये भी कोई जिन्दगी है ;तुम घुट घुट कर जी रही हो...। ना तुम मुझे छोड़ पा रही हो...... और ना ही पापा को ......।

नहीं प्राची ...... अब और तकलीफ मैं तुम्हें नहीं दे सकता...अब हम नहीं मिलेंगे।"

प्राची ने कहा ,"अगले हफ्ते तुम्हारा बर्थ डे है मैं कैसे रह पाऊंगी????"

प्रवीण ने कहा,"तुम मेरे बर्थडे पर विश कर सकती हो मैसेज के द्वारा और मैं भी तुम्हे बर्थडे पर शुभकामना संदेश भेज दूंगा।" इतना कह कर प्रवीण उठा और बोला,"अगर तुम इजाजत दो तो आखिरी बार मैं तुम्हें गले लगाना चाहता हूं, उसकी खुशबू मैं सारी जिंदगी अपने अंदर महसूस करूंगा......"

प्राची उठी और प्रवीण के गले लग गई। दोनों की आंखें अनवरत बह रही थी। काफी देर तक ऐसे ही प्रवीण और प्राची रहे। वो इस लम्हे को अपने अंदर समाहित कर लेना चाहते थे।

प्राची अलग हुई और ,

राहें हुईं जुदा हैं पर,

हम तुम तो नहीं।

फासले तेरे मेरे बीच है,

 पर दिलों में तो नहीं है। 

 

प्रवीण को ये सुनाती हुई चली गई। अब पूरे वर्ष की खामोशी के बाद दोनों ओर से हर साल बर्थडे पर एक एक मैसेज आया है...।

उन्हें नहीं पता एक दूसरे की जिन्दगी में क्या हो रहा है...।


    



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