तुम हो तो सब कुछ है ,तुम नहीं तो कुछ नहीं!
तुम हो तो सब कुछ है ,तुम नहीं तो कुछ नहीं!
"मम्मी आज शाम को मेरे कुछ दोस्त आ रहे हैं तो आप आलू टिक्की ,कॉर्न चाट ,पाव भाजी और स्ट्राबेरी शेक तैयार कर देना। ",13 वर्षीय तन्वी ने नाश्ता करते हुए मम्मी सुजाता से कहा।
"अरे बेटा ,कम से कम एक दिन पहले तो बता देती। अब कैसे होगा सब ?",सुजाता ने कहा।
"हाँ तनु ,मम्मी सही कह रही हैं। ",सुजाता के 20 वर्षीय बेटे तनुज ने कहा।
"क्या मम्मी ?आप सारा दिन घर में ही तो रहती हो। आपको काम ही क्या है ?मेरी तो सारी फ्रेंड्स की मम्मी वर्किंग हैं। ",तन्वी ने कहा।
"और नहीं तो क्या सुजाता। क्यों मेरी लाडली को दुःखी कर रही हो ?एक खाना ही तो अच्छा बनाना जानती हो। जब इस हुनर को प्रदर्शित करने का मौका मिल रहा है तो मना कर रही हो ?",सुजाता के पति श्रीधर ने हँसते हुए कहा।
"आप तो निकल जाओगे। तनुज की ऑनलाइन क्लासेज चल रही हैं। तन्वी भी स्कूल चली जायेगी। अगर जाती भी नहीं तो कौनसा घर में एक तिनका भी उठाएगी। बाज़ार से जरूरी सामान भी लाना होगा। ",सुजाता ने कहा।
"मम्मी ,मुझे आपके जैसे हाउसवाइफ नहीं बनना। मैं क्यों करूँ घर का काम ?",तन्वी ने तुनकते हुए कहा।
"मेरी राजकुमारी कुछ नहीं करेगी। ",श्रीधर ने भी कहा।
"मम्मी ,मैं सारा सामान ले आऊँगा। एक घंटे का गैप आता है न ,तब ले आऊँगा। ",तनुज ने कहा।
तन्वी और श्रीधर दोनों ही जब देखो ,तब सुजाता को जाने-अनजाने में अपमानित करते रहते थे। तनुज को अच्छा नहीं लगता था ;लेकिन जब भी वह तन्वी या श्रीधर को कुछ समझाने की कोशिश करता तो दोनों ही उसकी बात हँसकर टाल देते या उसे मम्माज ब्वॉय कहकर चिढ़ाते। तन्वी और श्रीधर को ज़रा एहसास नहीं था कि उनका छोटा सा मज़ाक सुजाता के कलेजे को छलनी कर देता है।
मौद्रिक मूल्याङ्कन न होने के कारण वैसे भी घर के कार्यों को महत्व नहीं दिया जाता और फिर जब घरवाले भी आपके कामों को अपेक्षित महत्व न दें तथा आपके प्रयासों को अनदेखा कर दें तो दुःखी होना स्वाभाविक है। प्रशंसा से प्रसन्न होना मानव का स्वाभाव है। प्रशंसा मानव को और भी अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है। खैर बहुत कम घेरलू महिलाएं होती हैं ;जिन्हें श्रेय और प्रशंसा मिलती है। घेरलू महिलाओं की उपस्थिति की हमेशा ही उपेक्षा होती है ;लेकिन अगर वे एक दिन के लिए भी अनुपस्थित हो जाएँ तो पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाता है। महिला वह धुरी है ;जिस पर घर टिका रहता है।
तन्वी तो अपने दोस्तों से भी सुजाता को मिलवाने में झेंपती थी। वह बड़े हकलाते हुए ,अपनी मम्मी का परिचय देती थी। अभी तक सुजाता ,'बच्ची है ';ऐसा सोचकर तन्वी को ज़्यादा कुछ नहीं कहती थी। लेकिन अब तन्वी जैसे -जैसे बड़ी हो रही थी ,उसके द्वारा अपनी मम्मी को अपमानित करना सुजाता को खलने लगा था।
आज तो तनुज ने भी कहा ,"मम्मी ,आप पूरा दिन एक टांग पर घर भर की जरूरतें पूरी करती हो। फिर भी पापा और तनु यह कहने में एक सेकंड नहीं लगाते कि आप पूरा दिन घर में क्या करती हो ?एक दिन आप अदृश्य हो जाओ तो इन्हें पता चले। कम से कम १५ दिन के लिए आप अदृश्य हो जाओ ताकि आपको फ़ोन भी न कर सकें। "
तनुज की बात पूरा दिन सुजाता के कानों में गूंजती रही। उसके हाथ घर के काम निपटाते जा रहे थे ,लेकिन दिमाग में तनुज की बातें ही चल रही थी। आलू टिक्की बनाते हुए भी वह सोच रही थी कि ,"मुझे नृत्य करने का कितना शौक था। कत्थक सीखा भी था ;लेकिन शादी के बाद सब छूट गया। अदृश्य हो जाऊं तो कुछ दिन तो चैन से रहूँगी। "
भाजी तैयार करने के लिए तेल गर्म कर रही थी ,गर्म तेल में जब मसाले तड़कने लगे तो उसका दिल भी तो तड़क गया था;दिल कह उठा था कि ,"हाउस वाइफ हूँ ,तब ही तो बच्चों की इतनी अच्छी परवरिश कर सकी। पूरा घर सम्हाल लेती हूँ ;तब ही तो घर से बेफिक्र होकर श्रीधर अपना काम इतने अच्छे से करके ;पदोन्नति पर पदोन्नति हासिल कर रहे हैं। "
शाम को तन्वी की फ्रेंड्स आ गयी थी। सुजाता ने आलू टिक्की ,कॉर्न चाट और पाँव भाजी सब बच्चों को सर्व किया। तन्वी फ्रेंड्स के साथ बैठी हुई थी। तनुज ने सर्व करने में सुजाता की मदद की। सभी बच्चों ने सुजाता के हाथ के बने हुए स्नैक्स की तारीफ की। स्ट्राबेरी शेक सर्व करने के बाद सुजाता भी कुछ देर के लिए बच्चों के पास आकर बैठ गयी थी। तन्वी ने अपने सभी दोस्तों का अपनी मम्मी से परिचय करवाया। फिर सुजाता का परिचय करवाया और बताया कि मेरी मम्मी तो कुछ नहीं करती ;घर पर ही रहती हैं।
सुजाता का चेहरा फक पड़ गया था। इतने में ही श्रीधर आ गए थे ,तन्वी ने बड़े उत्साहित होकर अपने सभी दोस्तों को श्रीधर से मिलवाया और श्रीधर की उपलब्धियों के बारे में बताया और अंत में कहा कि ,"मुझे अपने पापा पर गर्व है। "
सुजाता अपनी रुलाई को रोकते हुए ,खाने -पीने के सारे बर्तन समेटकर किचेन में चली गयी थी। 10 मिनट तक रोने के बाद ,वह अपना चेहरा साफ़ करके वापस आ गयी थी। कुछ ही देर में तन्वी के सारे दोस्त चले गए थे।
सबको खिला-पिलाकर किचेन समेटकर सुजाता सोने के लिए आ गयी थी। सुजाता के आने से पहले ही श्रीधर सो चुके थे। सुजाता आज श्रीधर से बात करना चाहती थी,लेकिन श्रीधर को सोया हुआ जानकर वह चुपचाप लेट गयी।
लेटे -लेटे वह सोचने लगी कि ,"तनुज सही कहता है। मुझे कुछ दिन के लिए अदृश्य हो जाना चाहिये। मम्मी कुछ नहीं करती ,सुजाता कुछ नहीं करती ;यह सुन -सुन कर मेरे कान पाक गए हैं। भगवान् एक दिन के लिए ही अदृश्य कर दे। "
सोचते -सोचते कब वह नींद के आगोश में समां गयी ,सुजाता को पता ही नहीं चला। सुबह खटर -पटर की आवाज़ से उसकी नींद खुली। उसने सामने घडी में देखा तो 9 बज गए थे। श्रीधर अलमारी में कुछ ढूंढ रहे थे। उनके हाथ में एक मौजा था ;उन्हें देखते ही सुजाता समझ गयी कि जोड़ी का दूसरा मौजा ढूंढ।
" श्रीधर ,इस अलमारी में नहीं है। आपकी अलमारी के ऊपर से दूसरे रैक में है।",सुजाता ने कहा।
लेकिन श्रीधर तो न तो उसकी तरफ देख रहे थे और न ही सुन रहे थे। इतने में ही तन्वी आ गयी ,"पापा ,मम्मी पता नहीं सुबह -सुबह कहाँ चली गयी ?मेरी प्रोजेक्ट फाइल भी नहीं मिल रही। आज ही सबमिट करनी है। आप चलकर ढूंढो न। "
"उई माँ ,मतलब मैं सही में अदृश्य हो गयी। ",सुजाता ने मन ही मन कहा और मुस्कुराकर सभी की बातें सुनने लगी।
"चलो मदद करता हूँ। सुबह से एक ढंग की चाय भी नसीब नहीं हुई। आज दूध कॉर्नफ्लेक्स ही ब्रेकफास्ट में खाना पड़ेगा। ",सारे कपड़े तितर -बितर करने के बाद आखिरकार मौजे को अपने हाथ में लेते हुए श्रीधर ने कहा। कपड़ों का ढेर बिस्तर पर छोड़कर श्रीधर तन्वी के कमरे में चले गए थे।
दोनों बाप -बेटी ने बड़ी मुश्किल से प्रोजेक्ट फाइल ढूंढी। तन्वी के कमरे की भी वही दुर्दशा हो गयी थी जो कि श्रीधर और सुजाता के कमरे की थी। तीनो ने जैसे -तैसे नाश्ता ख़त्म किया। कचरा उठाने आने वाला आवाज़ लगाकर जा चुका था। घर के सारे डस्टबिन कचरे से भरे हुए थे। रसोई वाले डस्टबिन में तो गीले कचरे के कारण बदबू भी आने लग जाती है।
झाड़ू -पोंछा करने आने वाली सरोज भी अपनी मर्ज़ी से काम चलाऊ सफाई करके चली गयी थी। लंच का कुछ अता -पता नहीं था। स्कूल से आने के बाद तन्वी ने मैगी बनाकर खाई। तनुज पहले ही खा चुका था। डिनर में दाल -चावल बनाये गए। दाल ,दाल नहीं पानी थी। चावल ज्यादा उबल -उबल कर हलवा हो गए थे। तीनों ने जैसे -तैसे खाया।
डिनर करते हुए तनुज ने कहा ,"पापा ,आपको पता है मम्मी घर में रहकर इतना काम करती है ;जितना हम तीनो मिलकर भी नहीं कर पा रहे। हम तो कचरा उठाने वाले को कचरा तक नहीं दे पाए। इसलिए किचेन में बदबू आ रही है। "
"हां ,बेटा तेरी बात में दम है। कहीं तुने ही तो हमें सबक सिखाने के लिए अपनी मम्मी को कहीं भेज तो नहीं दिया। ",श्रीधर ने कहा।
"नहीं पापा ,काश बहुत पहले ही मैं ऐसा कर देता तो आप दोनों को मम्मी की अहमियत तो समझ आ जाती। ",तनुज ने कहा।
"हाँ भैया ,मम्मी कितना काम करती हैं। मम्मी है तो घर ,घर लगता है। मुझे मम्मी पर गर्व है। मम्मी जल्दी से आ जाओ और अपनी इस बुद्धू बेटी को माफ़ कर दो। ",ऐसा कहते हुए तन्वी की आँखें भीग गयी थी। आँसुओं की दो बूँदें इस बात की गवाह थी कि उसे सही में अपनी ग़लती का एहसास हो गया था।
दूर खड़ी उनकी बातें सुन रही ,अदृश्य सुजाता की आँखें भी मुस्कुरा उठी। आज उसे उसका सही स्थान जो मिल गया था। अगले दिन श्रीधर ने जल्दी से चाय बनाकर सुजाता के सिरहाने रखते हुए सुजाता से हौले से कहा ,"मेरी होम मेकर ,मेरी दुनिया उठो । तुम हो तो सब कुछ है और तुम नहीं तो कुछ नहीं। "