तुम हो तो मैं हूँ ..
तुम हो तो मैं हूँ ..


मोहित की पत्नी, मुग्धा ने पांच महीने पहले ही अपनी नौकरी छोड़ी थी। अब वो पूरी तरह से गृहिणी बन गयी थी। और इस बात का उसे कोई मलाल नहीं था क्योंकि घर में बूढ़े सास ससुर और उसके चार साल के बेटे मिहिर को उसकी ज्यादा जरूरत थी।
उन दोनों का ही मानना ये था की ऐसे पैसे किस काम के जो जिनके लिये कमाए जा रहे हो उनके लिये खर्चा करने का वक़्त ही ना मिले। इसीलिए सोच समझ कर उसने अपनी नौकरी छोड़ दी थी। और वो घर पर खुश भी थी। सबके हर समय उपस्थित रहना उसे अच्छा लग रहा था। बेटे को भी भरपूर समय दे पा रही थी। नतीजा भी सामने था उसका वजन बढ़ने लगा था वो खुश रहने लगा था।
वही सास ससुर भी खुद को ज्यादा समय दे पा रहे थे। वरना वो आधे समय मिहिर में ही व्यस्त रहते थे। अब बाहर जाना, अपने दोस्तों के साथ घूमना फिरना कर पा रहे थे, सब खुश थे।
सबसे ज्यादा खुश मोहित था वो अपने परिवार को हँसता खेलता देख कर मुग्धा को मन ही मन बहुत धन्यवाद देता और भगवान को भी, जिन्होंने उसे इतनी अच्छी पत्नी दी।
अगले हफ्ते चाचा जी की बेटे की शादी में जाना था। मुग्धा ने सारी तैयारी कर ली थी। मोहित ने भी छुट्टी ले ली थी। पहली बार घर के किसी कार्यक्रम में मुग्धा अच्छे से मज़ा करने वाली थी क्योंकि हमेशा तो ऑफ़िस और छुट्टी की परेशानी रहती थी। पर इस बार उसे कोई टेंशन नहीं था।
अगले हफ्ते सब चाचा जी के यहाँ पहुंच गए थे। मुग्धा इस बार पूरे मजे के मूड में थी। जाते ही उसने सारा काम भी संभाल लिया था। घर की बड़ी बहु थी और देवर की शादी। वैसे भी भाभी को देवर से ज्यादा ही स्नेह रहता है।
मुग्धा ने सुबह का खाना बनाया और सबके लिये हलवा भी बनाया। खाने में सबको मजा आ गया। छोटी चाची बोल पड़ी...वाह मोहित तुम्हारी पत्नी तो सर्वगुण संपन्न है। सुना था की मैनेजर थी ऑफ़िस में और नौकरी छुड़वा दी तुमने...मुझे तुमसे ये आशा नहीं थी।
चलो कोई बात नहीं इतना अच्छा खाना बनाती है कोई रेस्टोरेंट ही खुलवा दो... क्या मुग्धा तुमने भी घर पर बैठने को हाँ कर दी। अपना टेलेंट खराब कर रही हो, बच्चों का क्या है वो तो संभल जाते है। मुझे ही देख लो अभी तक नौकरी कर रही हूँ। बस दो साल बचे है रिटायर होने को.. अरे हमारा भी तो करियर होता है भाई, क्या घर के पीछे सब छोड़ दे। आखिर हमारी भी पहचान होती है, अब क्या सिर्फ पति के पीछे पीछे घूमते रहो, वो ही सबकुछ हो जाता है...मुझे तो लगता है मुग्धा तुम्हारा ये निर्णय गलत है।
मुग्धा कुछ बोलती उससे पहले ही मोहित बोल पड़ा, माफ करना चाची पर आप गलत बोल रही है। मैं सबकुछ नहीं हूँ बल्कि मुग्धा सबकुछ है... वो है इसीलिए मैं हूँ। अगर वो बड़े मन से अपनी नौकरी छोड़ने का निर्णय नहीं लेती तो मैं कभी इतना मन लगा कर काम नहीं कर पाता। वो सिर्फ मेरे बेटे का ही नहीं बल्कि माँ पापा और मेरा हम सबका ख्याल रखती है।
घर में वो है इसीलिए मैं निश्चिन्त होकर कहीं भी जा पाता हूँ। सिर्फ नौकरी करना और बाहर पहचान बनाने से ही आपकी पहचान नहीं होती उसकी पहचान ये है की मैं मुग्धा का पति हूँ। मिहिर मुग्धा का बेटा है...माँ पापा मुग्धा के सास ससुर है। मेरा पूरा घर उससे ही चलता है, उसके बिना हममे से कोई भी कुछ नहीं है।
मुग्धा बहुत दिनों से सोच रहा था पर आज सही मौका है...मैं आज सबके सामने तुम्हें धन्यवाद देना चाहता हूँ। अगर तुम नहीं होती तो पता नहीं मेरा और मेरे घर का क्या होता, मैं भगवान का शुक्रिया अदा करता हूँ जो उन्होंने मुझे इतनी समझदार पत्नी दी है जो ये समझती है की उसकी पहचान सिर्फ बाहर काम करने से नहीं बल्कि उसके परिवार से है। जिसने अपनी कामयाबी के बारे में ना सोच कर परिवार को प्राथमिकता दी, तुम्हारा ये हम सब एहसान है.. मैं एक बार फिर हम सबकी तरफ से तुम्हे धन्यवाद कहना चाहता हूँ। ।
तुम हो... इसीलिए मैं हूँ।
मुग्धा आँखों में आँसू लिये मुस्कुरा रही थी पूरा परिवार तालियाँ बजा रहा था और छोटी चाची चुप चाप गर्दन झुकाये खड़ी थी।