तुम हो क्या
तुम हो क्या
आखिर तुम हो क्या तुम्हारी औकात क्या है ? "भिखारी बाप की भिखारी बेटी" ! देखो मुझसे बहस न किया करो मुझे नहीं भाते तुम्हारे मायके वाले नाम भी मत लिया करो उनका मेरे सामने और इतनी ही बैचेनी मची है दिल में तुम्हारे तो जाओ जाकर मायके में ही रहो वापस न आना ! मैं कोई और ढूंढ लूंगा ! मेरी नौकरी और रूतबा देख तुम्हारे जैसी लाखों मिल जाएंगी ! हेमन्त की ये कड़वी बातें हमेशा ही सुनने मिलती जब भी मालती मायके जाने की बात करती ! पर आज तो उसने हर सीमा ही लांघ दी थी न केवल उसने उसे उसकी औकात दिखायी थी बल्कि उसके पिता को भी अपमानित किया था !
बोल कर हेमन्त तो चला गया अपने काम से दो दिन का बोलकर शहर से बाहर पीछे अपने शब्दों के घाव मालती के दिल पर छोड़ गया ! हेमन्त के जाते ही कुर्सी पर बैठ आंसू पोछ सोचने लगी भिखारी वो थी उसके पिता थे या फिर हेमन्त और उसका पूरा खानदान जिसने दहेज में पचास लाख की मांग की थी ! मालती के पिता एक जाने_माने बिजनेस मैन थे और वो उनकी एकलौती बेटी ! पचास लाख के साथ और भी बहुत कुछ दिया था उन्होंने ! जिस घर में वो रह रही थी वो भी उसके पिता का तोहफा था ! इतना सब मिलने पर हेमन्त और उसके परिवार का लालच बढ़ गया था ! कुछ दिन तो अच्छे से गुजरे पर फिर मालती को मानसिक उत्पीड़न देकर पिता से और पैसे मांगने की साजिश शुरू कर दी उन लोगों ने ! नाजों से पली मालती सब सहती रही पर आज शब्दों का तीर कुछ ऐसा था कि वो मानो होश में आ गयी और कुछ ही देर में वो कुर्सी से उठी और घर में ताला लगाकर बाहर निकल गयी ! घर के अन्दर उसकी सास और ननद ये देखकर हैरान हो गये तुरंत हेमन्त को फोन लगाया और मालती की हरकत बतायी तो हेमन्त गुस्से से आगबबूला हो उठा !
जिस फ्लाइट से वो जाने वाला था उसकी टिकट कैंसल कर घर पहुंचा तो देखा मालती घर के बाहर टहल रही है और घर में ताला लगा है ! हेमन्त ने गुस्से से उसकी तरफ देखा तो मालती की आंखों में विद्रोह देख चौंक गया क्योंकि उसने मालती का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था ! कुछ देर की खामोशी के बाद सोमेश लगभग चीखता बोला "ये क्या बदतमिजी है माँ और दिदी को तुमने घर के अन्दर क्यों बंद कर रखा है" ? तो मालती बोली क्योंकि आज तक जिन लोगों को मैं अपना मान रही थी वो तो मेरे कोई थे ही नहीं ! जो हमारी भावनाओं को न समझे वो हमारे कैसे हो सकते है और जिसे मैंने अपना नहीं सबका समझा वो तो सिर्फ मेरा था जिसे मेरे पिता ने तुम भिखारियों को दिया था वो है ये घर जिसमें रहने की तुम सबकी औकात नहीं है बेहतर होगा तुम सब ये घर छोड़ कर चले जाओ तलाक का नोटिस जल्द ही मिल जायेगा तुम्हें और हाँ किसी झोपड़ी में अपना इंतजाम भी कर लेना क्योंकि जिस नौकरी का तुम दम भरते थे न वो भी तुम जैसे भिखारी को मेरे पिता ने दिलवायी थी इसलिए बिना घर का एक भी सामान लिए दफा हो जाओ ! बोलो अगर मंजूर है शर्त तो दरवाजा खोलती हूँ वरना सड़ने दो अन्दर सबको !
मालती का ऐसा रूप देख आज सच में सिहर गया हेमन्त और मन ही मन उसके पिता को गाली देने को लेकर पछताने लगा ! शर्त की स्वीकृति में गरदन नीचे कर दी उसने क्योंकि अब उसे समझ आ गया था कि भिखारी कौन था ! इधर मालती ने दरवाजा खोल सबको बाहर निकाल अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया तभी उसकी दोस्त चंचल का फोन आया ! सारी बात बतायी उसने उसे ! बात करते-करते पीछे से दोस्त के बेटे की आवाज आयी मम्मा एक और एक कितने होते है तो चंचल बोली बेटा एक और एक ग्यारह होते है ! तब बच्चे ने कहा मम्मा आप गलत बोल रही हो एक और एक दो होते है टीचर ने बताया था तो मालती की दोस्त फोन पर फुसफुसाती बोली नहीं एक और एक ग्यारह होते है जैसे "आज मालती एक तुम और एक तुम्हारा आत्मविश्वास मिलकर बने है" ! चंचल का इतना कहना था कि दोनों सखियाँ जोर से हंस पड़ी और चंचल का बेटा हैरत से अपनी मम्मा को देखने लगा जिसे एक और एक कितने होते है वो भी नहीं पता था शायद !