तुझसे जुड़ी हर बात लेखक: सोनू गुप्ता
तुझसे जुड़ी हर बात लेखक: सोनू गुप्ता
तुझसे जुड़ी हर बात
लेखक: सोनू गुप्ता
वो शाम कुछ अलग थी। कॉलेज का कैंपस थोड़ा सुना था उस दिन। बारिश रुक चुकी थी लेकिन हवाओं में अब भी भीगापन था… और मेरे दिल में एक बेचैनी। क्लास के बाद मैं लाइब्रेरी के बाहर बैठा था, हाथ में किताब थी लेकिन नज़रें बार-बार गेट की तरफ जा रही थीं। पता नहीं क्यों… पर दिल कह रहा था कि वो आएगी। और आई भी।
कुछ देर बाद वो दिखी — अनन्या। नीली चुन्नी बारिश से हल्की गीली थी, बाल बिखरे हुए और चेहरे पर वही थकी-सी मासूमियत, जो मुझे हर रोज़ थोड़ा और दीवाना बना रही थी।
बिना कुछ बोले आकर मेरे सामने बैठ गई। उसकी आँखों में कुछ ऐसा था उस दिन… जो मुझे किताब से ज़्यादा पढ़ने का मन कर रहा था।
मैंने पूछा, “सब ठीक है?”
उसने कहा, “पता नहीं क्यों आज अजीब सा लग रहा है।”
मैं बोला, “क्या अजीब?”
वो बोली, “बस... जैसे कोई कमी हो। जैसे कोई पास होते हुए भी दूर है।”
उसकी ये बात सुनकर मैं कुछ पल चुप रहा… क्योंकि ये बात रोज़ खुद से कहता था मैं।
वो मेरे सामने बैठती थी, हँसती थी, मुझसे बातें करती थी, लेकिन फिर भी… लगता था जैसे कुछ कह नहीं पा रहा मैं।
जैसे कोई जंग हो रही हो अंदर — कह दूँ, या फिर वैसे ही रहने दूँ… डर भी था, उम्मीद भी।
हम दोनों कुछ देर तक वैसे ही बैठे रहे… फिर उसने अचानक पूछा,
“अगर मैं एक दिन चली जाऊं तो?”
मैं हँसा, “पागल है क्या? ये सवाल है पूछने लायक?”
उसने आँखों में आँखें डालकर कहा, “सच बता आरव... क्या तू मुझे मिस करेगा?”
मैंने उसकी आंखें पकड़ लीं और कहा,
“तेरे बिना तो मैं आधा भी नहीं लगूंगा... अधूरा सा घूमता रहूंगा इस कैंपस में। किसी भी कोने में सुकून नहीं मिलेगा... और हर चेहरा तुझ जैसा लगेगा... लेकिन कोई तू जैसा नहीं होगा।”
वो कुछ देर तक मुझे देखती रही, फिर हल्के से मुस्कराई,
“और अगर मैं रहूं... लेकिन किसी और के साथ?”
उस एक पल में जैसे सब थम गया। हवा रुक गई, पत्ते भी चुप हो गए, और दिल… वो जैसे नीचे गिरकर टूटने ही वाला था।
मैंने धीरे से कहा,
“अगर तू मेरे साथ नहीं हुई ना अनन्या… तो पूरी दुनिया भी साथ हो, फिर भी अकेलापन नहीं जाएगा।”
वो उठी, अपना बैग उठाया, पास आई और कान के पास धीरे से कहा,
“तू भी किसी से कम नहीं है आरव… तुझसे अच्छा कोई सोच भी नहीं सकती मैं।”
इतना कहकर वो चली गई, लेकिन उसकी खुशबू और उसकी आवाज़ मेरे पास ही रह गई।
उस दिन पहली बार ऐसा लगा कि शायद… शायद मेरी मोहब्बत में उसका नाम भी लिखा है।
रात को मैं छत पे लेटा था, चाँद देख रहा था और याद कर रहा था उसका चेहरा।
मेरे फोन में उसकी तस्वीर नहीं थी, लेकिन आंखें बंद करते ही वो नज़र आ जाती थी।
उसकी बातें, उसकी हँसी, उसकी नाराज़गी — सब कुछ मेरे हिस्से का सुकून बन गया था।
कभी-कभी सोचता था… क्या उसे भी मेरे बिना वैसी ही बेचैनी होती होगी?
क्या वो भी मेरे नाम पे मुस्कुराती होगी?
अगले दिन कॉलेज में वो आई… लेकिन इस बार कुछ अलग था।
उसकी चाल में ठहराव था, आंखों में सोच, और होंठों पर चुप्पी।
जैसे कुछ कहने वाली हो… या शायद, सुनने आई हो कि मैं क्या कहता हूँ।
लेकिन उस दिन मैंने कुछ नहीं कहा…
कभी-कभी ना कहना भी बहुत कुछ कह जाता है।
और तब से, हर दिन उसकी एक नई परत खुलती रही मेरे सामने —
वो जब झगड़ती थी, वो जब चुप रहती थी, वो जब आंखें चुराकर देखती थी —
हर चीज़ मेरे लिए ख़ास होती चली गई।
मैं उसे समझने लगा था…
और धीरे-धीरे, खुद को भी।
क्योंकि जब कोई किसी की आदत बन जाए ना…
तो हर दिन उसके बिना अधूरा लगता है।
और मेरे हर दिन का मतलब अब सिर्फ एक था — अनन्या।कॉलेज का मौसम कुछ बदल गया था, जैसे हवाओं में भी अब उसका नाम गूंजने लगा हो। पहले हम बस मिलते थे, अब रोज़ का मिलना ज़रूरत बन गया था। अनन्या अब सिर्फ़ कोई क्लासमेट नहीं रही थी, वो मेरी दुनिया की सबसे प्यारी आदत बन चुकी थी।
उस दिन कैंटीन में बैठे थे हम। उसने अचानक कहा,
“मुझे ना डर लगता है इन सब चीज़ों से।”
मैंने पूछा, “किस चीज़ से?”
वो बोली, “किसी से इतना जुड़ जाना… कि फिर अलग हुआ ना गया तो खुद ही टूट जाएं।”
मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा,
“अगर जुड़ाव सच्चा हो ना… तो दूरियां सिर्फ़ वक्ती होती हैं, जुदाई कभी मुकम्मल नहीं होती।”
वो चुप हो गई। शायद सोच रही थी… या शायद महसूस।
मैंने उससे कभी ‘आई लव यू’ नहीं कहा था, लेकिन हर बार जब वो मेरे पास होती, मेरी आंखें कह देती थीं। और वो समझती भी थी शायद… क्योंकि जब भी मैं कुछ कहने लगता, वो मुस्कुरा देती थी — जैसे सब जानती हो पहले से।
एक दिन उसके कॉल नहीं आए। मैसेज भी नहीं। पूरे दिन उसका चेहरा सामने नहीं दिखा।
बिना किसी वजह के, बेचैनी गले में अटक गई थी।
शाम को हॉस्टल के पास खड़ा था मैं, जैसे ही उसकी बिल्डिंग से बाहर आई — चेहरा उतरा हुआ, आंखें लाल।
मैं दौड़ कर गया उसके पास, “क्या हुआ अनन्या?”
वो बोली, “पापा आए थे… शादी की बात चल रही है।”
दिल वहीं रुक गया मेरा। उसने आगे कुछ नहीं कहा, और मुझे भी कुछ सूझा नहीं।
वो कुछ कदम पीछे हटी और बोली, “अगर मैं एक दिन तेरी ज़िंदगी से चली जाऊं ना आरव… तो माफ़ कर देना।”
मैंने उसकी कसम खाते हुए कहा,
“तू अगर गई ना… तो मेरी हर चीज़ अधूरी हो जाएगी। किताबें, रास्ते, शामें, सुबहें… सब तेरे बिना बेमतलब लगेंगी।”
उसने बस एक नजर देखा मुझे… जैसे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द नहीं मिल रहे थे।
मैंने उसका हाथ पकड़ा, “अगर तुझे मुझसे अलग किया गया ना अनन्या, तो मैं रब से भी लड़ जाऊंगा… क्योंकि मेरी मोहब्बत में तेरा नाम लिखा नहीं, खुदा ने गढ़ा है।”
वो थम गई। आंखों से आंसू टपकने लगे। और पहली बार उसने खुद मेरा हाथ पकड़ लिया।
“आरव… मैं नहीं जानती आगे क्या होगा, लेकिन इतना जानती हूं — मैं तेरे बिना कुछ भी नहीं।”
उस शाम हम चुपचाप एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे रहे। कोई वादा नहीं किया, कोई कसमें नहीं खाईं… लेकिन उस खामोशी में हमारी मोहब्बत की सबसे सच्ची बात छुपी थी।
अब हर दिन और भी अनमोल लगने लगा था।
वो जब बाल खोल कर आती, तो मुझे लगता जैसे आसमान मेरी हथेलियों में उतर आया हो। जब हँसती, तो लगता ज़िन्दगी ने एक पल के लिए सब दर्द भुला दिए।
लेकिन मेरे मन के कोने में अब भी डर था — अगर सच में वो चली गई तो?
और तब मैंने एक फैसला लिया… जो सब कुछ बदल सकता था।
कॉलेज के अगले कुछ दिन जैसे किसी तूफान से पहले की खामोशी जैसे बीते। हम दोनों रोज़ मिलते रहे, बातें करते रहे, हँसते भी, लेकिन दिल के किसी कोने में एक डर हमेशा साथ चलता रहा।
अनन्या अब पहले से ज़्यादा गुमसुम सी रहने लगी थी। उसकी आंखों में एक बेचैन चमक होती, जो वो छुपाने की कोशिश करती… लेकिन मुझसे कुछ छुपता नहीं था।
एक दिन वो मेरे पास आई, मेरे बिना कहे ही मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली,
“कुछ दिन के लिए घर जा रही हूं… पापा ने बुलाया है।”
मैंने पूछा, “कब तक के लिए?”
वो चुप रही।
मैंने थोड़ा ज़ोर देकर पूछा, “अनन्या, कितने दिन की बात है?”
उसने मेरी आंखों में देखा, जैसे कुछ कहना चाह रही हो… लेकिन फिर खुद को रोक लिया।
“बस… पता नहीं। शायद कुछ दिन। शायद…”
वो ‘शायद’ मेरे अंदर किसी हथौड़े की तरह गिरा।
मैंने कहा, “मैं तुझसे दूर रहने की सोच भी नहीं सकता अनन्या… तू जानती है ना?”
वो जबरदस्ती मुस्कराई, “तू लड़ ले ना रब से, जैसे कहा था तूने…”
और फिर वो चली गई।
उसके जाने के बाद कॉलेज का हर कोना सुनसान लगने लगा। वही कैंटीन अब बस दीवारें बन कर रह गई थी। लाइब्रेरी की खामोशी अब सुकून नहीं देती थी, बल्कि हर किताब के पन्नों से जैसे उसकी यादें झाँकती थीं।
दिन बीते… फिर हफ्ते… लेकिन उसका कोई फ़ोन नहीं आया। कोई मैसेज भी नहीं।
एक दिन उसकी फ्रेंड से पता चला कि उसकी शादी तय हो गई है।
वो पल… मैं नहीं बता सकता कैसे गुजरा। जैसे कोई अंदर से सब कुछ तोड़ गया हो।
मैंने खुद को कमरे में बंद कर लिया, फोन स्विच ऑफ कर दिया, किसी से बात नहीं की।
सिर्फ एक ही सवाल था — क्या इतना आसान था मेरे लिए उसकी ज़िंदगी से चले जाना?
तीन दिन बाद मैं दिल्ली निकल पड़ा। बिना किसी को बताए, बिना किसी प्लान के… बस उसका पता लेकर पहुंच गया उसके घर।
दरवाज़े पर खड़ा था मैं, हाथ कांप रहे थे, दिल धड़क नहीं रहा था — भाग रहा था।
दस मिनट बाद दरवाज़ा खुला… और सामने वो थी। वही अनन्या… लेकिन अब सजी हुई दुल्हन जैसी। माथे पर हल्का टीका, आंखों में वही मासूमियत… लेकिन उस मासूमियत के पीछे बहुत कुछ छुपा हुआ था।
मुझे देखते ही वो थम गई। जैसे सांस रुक गई हो।
मैंने कुछ नहीं कहा। बस आंखों में आंखें डालकर देखा और धीरे से बोला,
“क्या इतना ही था हमारा रिश्ता? एक डर आया और तूने छोड़ दिया?”
उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
“तू सोचता है मैंने छोड़ा?” उसने टूटती आवाज़ में कहा। “मैं तो अब तक बस यही सोच रही थी कि तू क्यों नहीं आया…”
मैंने उसके पास कदम बढ़ाया, “क्यों नहीं बताया कुछ भी?”
“क्योंकि मैं डर गई थी… डर गई थी कि अगर तुझसे कुछ कहा और फिर भी कुछ नहीं बदल पाया, तो मैं तुझे कभी भूल नहीं पाऊंगी।”
मैंने उसका हाथ थामा, “और तू क्या समझी? कि मैं तुझे आसानी से जाने दूंगा? अनन्या, तू मेरी आदत नहीं, मेरी इबादत है।”
तभी पीछे से किसी की आवाज़ आई — शायद उसके पापा थे।
उसने मुझे अंदर ले जाकर सब कुछ साफ-साफ बताया। वो शादी से खुश नहीं थी। उसकी मम्मी-पापा का दबाव था, और वो चुप हो गई थी।
मैंने वहां बैठकर सीधे उसके पापा से बात की।
“सर, मैं जानता हूं आप अपनी बेटी के लिए बेस्ट चाहते हैं। लेकिन एक बार उससे पूछिए, क्या वो खुश है? क्योंकि अगर वो नहीं है, तो वो रिश्ता सिर्फ बोझ होगा।”
बहुत देर चुप्पी छाई रही। फिर अनन्या की मां आईं और बोलीं,
“अगर यही लड़का तेरी खुशी है… तो तुझसे ज़्यादा हम उसे नहीं रोक सकते।”
उस दिन… जैसे दुनिया ने रुक कर मेरी मोहब्बत को सलाम किया।
मैं और अनन्या छत पर खड़े थे… वही चाँद, वही हवा… पर इस बार वो मेरे पास थी।
उसने मेरे कंधे पर सिर रखा और बोली,
“देखा ना आरव… तू सच में रब से लड़ गया।”
मैंने उसकी उंगलियां थामते हुए कहा,
“तेरे लिए जान भी दे देता… ये तो बस प्यार था।”वो रात कुछ अलग थी। बारिश की हल्की फुहारें खिड़की पर पड़ रही थीं, जैसे आसमान भी हमारे प्यार की कहानी दोहरा रहा हो। कमरे की लाइट बंद थी, बस एक धीमी पीली रौशनी टेबल लैंप से फैल रही थी, और उस रौशनी में अनन्या की परछाई मेरे सीने से लगकर धड़क रही थी।
हम एक-दूसरे की बांहों में थे — कुछ कहे बिना, कुछ सुने बिना। उसकी उंगलियां मेरी शर्ट के बटन से खेल रही थीं और मेरा हाथ उसकी पीठ पर धीरे-धीरे फिसल रहा था। सांसें धीमी हो चुकी थीं, लेकिन दिल की धड़कनें तेज़ थीं — जैसे हर लम्हा एक नया वादा कर रहा हो।
उसने धीरे से फुसफुसाया, “तू जानता है, जब तू मेरे पास होता है, तो मेरी सांसें खुद-ब-खुद शांत हो जाती हैं… जैसे अब कुछ भी खोने का डर नहीं बचा।”
मैंने उसके माथे पर होंठ रखे, “क्योंकि अब मैं तुझे कभी खोने नहीं दूंगा… तेरा हर डर अब मेरा है, और तेरा हर ख्वाब, मेरी जिम्मेदारी।”
वो थोड़ा और करीब आई, मेरे सीने पर सिर टिकाया, और कहा, “अगर ज़िंदगी किसी एक लम्हे में कैद हो सकती, तो मैं यही पल चुनती… जहाँ सिर्फ तू है, मैं हूं, और हमारी खामोशियां — जो बोलती ज़्यादा हैं, समझती और भी ज़्यादा।”
मैंने उसकी ठुड्डी उठाई और उसकी आंखों में देखा। उन आंखों में कोई सवाल नहीं था, कोई संकोच नहीं… बस एक अथाह भरोसा था, जो सिर्फ दो आत्माओं के बीच होता है। मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए — न तेज़, न धीमे… बस वैसे जैसे दो सदी पुरानी मोहब्बत मिल रही हो।
हम उसी सन्नाटे में एक-दूसरे की सांसें पीते रहे, जैसे वक्त रुक गया हो… जैसे कमरे की दीवारें गवाह बन रही हों हमारी मोहब्बत की हर धड़कन की।
वो मेरे कान के पास आई और कहा, “आरव… मुझे कभी यूं छोड़ मत देना, जैसे कोई अधूरी कहानी किताब के बीच पड़ी रह जाए।”
मैंने उसकी उंगलियां अपने होठों से छूते हुए कहा, “मैं तुझे छोड़ दूं, तो खुद से भी रिश्ता टूट जाएगा… तू अब मोहब्बत नहीं, मेरी पहचान बन गई है।”
वो हौले से हँसी, और बोली, “क्या तू जानता है… जब मैं तुझे देखती हूं, तो लगता है रब ने मुझे खुद से पहले तुझे बनाया था, और फिर मेरी किस्मत में तुझे डालकर कहा — 'अब जी ले।’”
मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपने करीब खींच लिया, “अगर रब ने तुझे मेरे लिए बनाया, तो मैं हर दुआ में अब बस तेरा नाम लूंगा — ताकि जन्मों तक ये साथ कायम रहे।”
हम रातभर यूँ ही लिपटे रहे, कहानियाँ सुनते रहे, किस्से बुनते रहे — उन अधूरी बातों को जीते रहे जो अब तक वक्त की रफ्तार में कहीं दब गई थीं।
कभी उसकी मुस्कान देखता रहा, कभी उसके हाथों की लकीरों में अपने भाग्य की खोज करता रहा। उसने मेरी गर्दन में अपनी बांहें डालते हुए कहा, “तेरे साथ सब आसान लगता है… मौत भी अगर आए, तो तुझसे लिपटे-लिपटे आए।”
मैंने उसकी आंखों में देखा और कहा, “तो फिर जीते हैं ऐसे कि मौत भी इंतज़ार करे — जब तक हम अपने इश्क़ की हर गहराई को जी न लें।”
वो मुस्कुराई, फिर मेरे कंधे पर सिर रखकर आँखें मूंद लीं — और मैं उसे देखता रहा, जैसे ये पल मेरी ज़िन्दगी की सबसे मुकम्मल तस्वीर हो।
उसकी साँसों की गर्मी, उसके शरीर की नरमी, उसकी हथेलियों की पकड़… सब मेरे वजूद का हिस्सा बन चुके थे। अब मैं आरव नहीं था — मैं अनन्या का अधूरा हिस्सा था, जो उसे पूरा कर रहा था।
रात कब सुबह में बदली, हमें पता नहीं चला।
लेकिन जब सूरज की पहली किरण खिड़की से आकर उसके चेहरे पर पड़ी, और वो नींद से हल्की मुस्कान के साथ जागी, तब मैंने खुद से कहा — अब मेरी सुबह भी मुकम्मल है, और मेरी रातें भी… क्योंकि अब मेरे पास अनन्या है।
कमरा शांत था, पर उस खामोशी में एक गहराई थी… जैसे हर दीवार कुछ कहना चाहती हो, जैसे हर परछाईं कोई भूली-बिसरी कहानी दोहरा रही हो। बारिश की बूँदें धीमे-धीमे खिड़की के कांच से टकरा रही थीं, और अनन्या खामोशी से वहां खड़ी थी — अपनी खुली जुल्फों के साथ, नीली रेशमी चादर से ढकी हुई, जैसे वो खुद किसी कविता का अधूरा मिसरा हो जिसे सिर्फ एक चाहने वाली नजर ही पूरा कर सकती है। उसकी आंखों में बारिश की चमक थी, होंठों पर एक अनकहा इंतज़ार, और चेहरे पर वो नमी जो शायद किसी पुराने वादे की छुअन से आई हो।
मैं धीमे-धीमे उसके पीछे गया, जैसे कोई रूह अपनी सूरत से मिलने चली हो। उसकी पीठ पर हाथ रखा तो उसने बिना मुड़े मेरी उंगलियों को थाम लिया। वो थामना ऐसा था जैसे किसी ने वक्त को पकड़ लिया हो… एक पल के लिए सब रुक गया — साँसें, धड़कनें, सोच… सब कुछ।
“तेरी खामोशी अब मेरे लिए सबसे गूंजती हुई बात बन चुकी है, अनन्या,” मैंने धीमे से कहा।
उसने मेरी तरफ मुड़कर देखा, और वो एक नज़रिया ऐसा था जिसमें मोहब्बत की गहराई नहीं, उसकी असीमता दिखती थी। उसने बिना कुछ कहे अपने दोनों हाथ मेरे गले में डाल दिए, और मैं उसके इतने करीब आ गया कि हमारे बीच अब कोई फ़ासला नहीं बचा था — बस साँसों की गर्मी और दिलों की धड़कनें।
मैंने खुद को उसके सीने से लगा लिया — एक मर्द की तरह नहीं, एक प्रेमी की तरह नहीं… एक थके हुए रूह की तरह जो अब अपनी आरामगाह में लौट आया हो। वो पलंग पर टेक लगाकर बैठी रही, और मैं उसकी गोद में सिर रखकर लेट गया। उसकी गोद — जैसे कोई मंदिर हो जहां मैं हर रोज़ लौटना चाहता हूं, हर तकलीफ़ भूल जाना चाहता हूं।
उसने मेरी जुल्फों में उंगलियां फेरते हुए कहा, “तू जानता है, आरव… जब तू यूँ मेरी गोद में होता है न, तो लगता है जैसे रब ने मुझे ज़िंदगी की सबसे बड़ी दौलत दे दी हो — एक ऐसा एहसास जो और किसी को नहीं मिला होगा।”
मैंने अपनी पलकों को बंद करते हुए कहा, “क्योंकि अब मैं तेरा हो चुका हूं… तेरे सिवा कोई और जगह मेरी पनाह नहीं बन सकती।”
उसने मेरी नाक पर हल्का सा चुंबन रखा, और मैं उसके सीने पर कान रखकर उसकी धड़कनों को सुनने लगा — हर धड़कन मेरे नाम की लग रही थी, जैसे उसके दिल की लय मेरे वजूद से बंध चुकी थी।
बहुत देर तक हम वैसे ही बैठे रहे। मेरा हाथ उसके पेट पर रखा था, और उसका हाथ मेरी पीठ पर — एक ऐसी मुद्रा में, जैसे दो आत्माएं एक-दूसरे के भीतर समा रही हों।
बाहर बारिश तेज़ हो रही थी। बिजली की एक चमक ने पूरे कमरे को रोशन कर दिया और उसी रोशनी में मैंने अनन्या को देखा — उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन उसकी मुस्कान में एक ऐसी रौशनी थी, जो किसी दुआ की तरह मेरी ज़िन्दगी को रोशन कर रही थी।
अचानक उसने मुझे खींचकर अपने और पास कर लिया। अब मैं पूरी तरह उसकी बाहों में था — जैसे कोई बच्चा अपनी माँ की गोद में लौट आया हो। उस नज़दीकी में कोई अश्लीलता नहीं थी, कोई हवस नहीं… बस एक पवित्र सुकून था, जिसमें दो रूहें एक-दूसरे को थामे हुए थीं।
उसने कहा, “आज तू किसी मासूम बच्चे की तरह लग रहा है, आरव… न कोई डर, न कोई सवाल… बस सुकून।”
मैंने उसकी गर्दन के नीचे चेहरा छुपा लिया, “क्योंकि तू अब मेरी दुनिया है… तेरे बिना कुछ भी नहीं।”
उसके होंठ मेरे माथे से लगे। वो चुंबन ऐसा था जैसे उसने मेरे सारे दर्द चूम लिए हों। उसके होंठों में शफ़कत थी, ममता थी, और एक ऐसा वादा जिसे निभाने के लिए शायद जनम भी कम पड़ जाए।
मैंने उसकी आंखों में देखा, “अगर तू मेरी ज़िन्दगी में ना आई होती तो मैं शायद अब भी खुद से लड़ता रहता… और तू अब भी उन पुराने खतों को तकिए के नीचे दबाकर रोती रहती।”
उसने मेरा चेहरा दोनों हथेलियों से पकड़कर कहा, “अब तू है, तो मैं हूं… अब ये कहानी किसी अधूरे खत की तरह नहीं, एक मुकम्मल किताब की तरह जीनी है।”
मैंने उसके गाल पर होंठ रख दिए, “अब ये लम्हा सिर्फ तेरा है… और मैं भी।”
उसने मुझे फिर अपनी बाहों में भर लिया। मैं उसके सीने से लगा रहा — एक लंबा वक्त… इतना लंबा कि लगा जैसे वक्त थम गया हो। मैं उस औरत की गोद में था जिसे दुनिया नाज़ुक कहती है, मगर जिसने मुझे हर उस जगह सुकून दिया जहां दुनिया ने तकलीफ़ दी।
उसकी हथेलियां मेरी पीठ पर कुछ कहती रहीं — कोई lullaby सी लोरी, कोई नर्म ख्वाब जैसा सुकून। उसकी सांसें मेरी गर्दन पर पड़ती रहीं — गर्म, नर्म, और बेहद सजीव।
रात बढ़ती गई… कमरे की हल्की रौशनी भी अब उनींदी हो चली थी, जैसे दीवारें खुद भी हमारी मोहब्बत को देख-देखकर थक गई हों। पर हमारा आलिंगन टूटने का नाम नहीं ले रहा था। वो मुझे कभी अपने सीने से लगाती, कभी मेरी उंगलियों को चूमती, तो कभी बस मेरे माथे पर हथेली रखकर मुझे निहारती रहती।
कई बार मैंने उसकी आंखों में देखा — वहां अब न कोई डर था, न कोई अकेलापन… बस एक ठहराव था, जैसे उसने अपना ठिकाना पा लिया हो।
और मुझे भी अब कोई रास्ता नहीं दिखता था… क्योंकि मंज़िल मिल चुकी थी। उसकी गोद अब मेरा आसमान थी, उसकी सांसें मेरी हवा, और उसका प्यार मेरी ज़िन्दगी का मक़सद।
उसने फिर धीरे से कहा, “आरव… यूं ही मेरी बाहों में रहना… जैसे तू मेरी कहानी का आखिरी पन्ना हो, जिसे कोई पलटना न चाहे।”
मैंने उसकी हथेली को चूमा और कहा, “मैं अब तुझमें ही हूँ… तुझसे जुदा हुआ तो मैं कुछ भी नहीं।”
वो मुस्कुराई, फिर मेरी पीठ पर उंगलियां घुमाते हुए बोली, “अगर मौत भी आए, तो तुझसे लिपटे-लिपटे आए… ताकि वो भी मेरी मोहब्बत की गहराई देख सके।”
मैंने उसकी आंखों में देखा और कहा, “तो फिर जीते हैं ऐसे कि मौत भी इंतज़ार करे — जब तक हम अपने इश्क़ की हर परत को न जी लें।”
वो मुस्कुराई, मेरी गर्दन में बाहें डालीं और मुझे फिर से अपनी गोद में ले लिया।
उस रात — मैं, एक मर्द — पूरी तरह उसकी बाहों में समा गया।
तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह कहानी?
मैं हूं सोनू गुप्ता, फिर मिलूंगा ऐसे ही कहानी के साथ।

