तेरी सांसों में बसी मेरी मोहब्बत
तेरी सांसों में बसी मेरी मोहब्बत
कहानी का टाइटल:
"तेरी सांसों में बसी मेरी मोहब्बत"
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नमस्कार, मैं हूं सोनू गुप्ता।
पहला भाग शुरू होता है…
बारिश की हल्की फुहारों के बीच जब पहली बार मैंने उसे देखा था, वो पल जैसे वक्त की किताब में सुनहरे अक्षरों से लिख गया था। वो सफेद छतरी लिए स्टेशन के कोने में खड़ी थी — उसकी आँखों में किसी अनकहे दर्द का समंदर था, लेकिन होंठों पर फिर भी एक मुस्कान थी। जैसे हर उदासी को उसने अपने अंदाज़ में चुपचाप गले लगा लिया हो।
मैं उस दिन कुछ ज़्यादा ही भीग गया था, लेकिन उसे देखकर ऐसा लगा मानो रूह तक भीग गई हो। नज़रों का मिलना महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं था... जैसे वक्त ने तय किया था कि अब हमारी कहानी शुरू होनी चाहिए।
उसका नाम सिया था। सिया... नाम जैसे खुद एक मोहब्बत का पैगाम। उसकी आवाज़ पहली बार सुनी तो लगा जैसे कोई बहुत पुरानी दुआ अब जाकर कबूल हुई हो। मैं पास गया, भीगते हुए ही। "छतरी में थोड़ी सी जगह है?" मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।
वो मुस्कुराई नहीं, बस हल्के से सिर हिलाया। लेकिन उस एक इशारे ने मुझे उसके दिल के बहुत करीब खींच लिया।
हम दोनों उस बारिश में भीगे, पर उस दिन एहसासों की जो गर्मी थी, उसने सब कुछ भिगो दिया — कपड़े, बाल... और दिल भी।
यही था हमारी कहानी का पहला मौसम — भीगा हुआ, भीगा देने वाला, और यादगार। उस दिन के बाद, मैं रोज़ उसी वक्त उसी स्टेशन पर जाने लगा, जैसे वो एक आदत बन गई हो... या शायद इबादत। वो कई बार नहीं आई, लेकिन जब भी आती, मेरी धड़कनों की रफ्तार बदल जाती। कुछ कहता नहीं था, बस दूर से उसे देख लेता और वापस लौट आता।
फिर एक दिन, शायद किस्मत को मुझ पर तरस आ गया। वो खुद मेरी बगल में आकर खड़ी हो गई। बाल खुले थे, चेहरे पर हल्की सी उदासी। मैं कुछ कहने ही वाला था कि उसने पूछा — "आप हर रोज़ यहाँ आते हैं?"
मैं थोड़ा सकपकाया, लेकिन फिर मुस्कुराते हुए बोला, "हाँ, शायद तुम्हें देखने की आदत हो गई है।"
उसने पहली बार खुलकर हँस दिया। उस हँसी में जो सुकून था, वो शायद कई जन्मों की बेचैन रूहों को भी चैन दे सकता था।
"तो फिर कॉफी पर चलें?" उसने पूछा, जैसे मेरे दिल की बात उसने पहले ही सुन ली हो।
हम स्टेशन के सामने वाले छोटे से कैफ़े में बैठे। बारिश अब भी हो रही थी, लेकिन अब वो सिर्फ मौसम की थी, हमारे बीच अब एक और सर्दी नहीं थी। हमने कॉफी के साथ बहुत कुछ बाँटा — बचपन, पसंद-नापसंद, सपने, और कुछ अधूरी कहानियाँ।
मैंने गौर किया, सिया की आँखों में अब वो समंदर नहीं था। शायद कुछ बूंदें मेरे हिस्से भी आई थीं, और उसने कुछ दर्द मुझमें बाँट दिए थे।
उस शाम जब वो कैफ़े से बाहर निकली, उसने मेरी ओर देखा और कहा, "अगर मैं कल फिर यहीं मिलूं, तो समझना... कुछ बदल गया है।"
और मैं पूरी रात जागता रहा, बस उस 'कल' के इंतज़ार में।
अगली सुबह कुछ अलग थी। दिल में अजीब सी हलचल थी, जैसे कोई अनजाना डर और मीठी उम्मीद एक साथ सांस ले रहे हों। मैं तय समय से पहले स्टेशन पर पहुँच गया। मौसम आज भी वैसा ही था — नमी भरी हवाएं, धुंधली धूप, और आसमान में छाए बादल... लेकिन आज मेरे अंदर का मौसम और भी बेचैन था।
हर मिनट, घड़ी की सुइयों की तरह भारी लग रहा था। लोग आ-जा रहे थे, आवाज़ें गूंज रही थीं, लेकिन मेरी नज़र बस उस एक चेहरे को ढूंढ रही थी।
और फिर — वो आई।
हल्के नीले रंग की साड़ी में, बालों को पीछे बाँधे हुए, और हाथ में वही पुरानी किताब, जो पहली बार मैंने उसके हाथ में देखी थी। उसने दूर से ही मुझे देखा और मुस्कुरा दी। उस मुस्कान में कुछ बदला हुआ था — जैसे कोई फैसला, कोई इकरार।
मैं उसकी तरफ बढ़ा। हम आमने-सामने खड़े थे, कुछ पल बिल्कुल चुपचाप बीते। फिर उसने कहा, "मैं कल आई थी, पर तुम नहीं थे।"
मैं चौंक गया। "मैं तो यहीं था, तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था।"
उसने गहरी सांस ली। "शायद हम दोनों एक ही जगह थे... मगर वक्त अलग था।"
उसके शब्द जैसे सीधे दिल में उतरते गए।
"पर आज हम एक ही पल में हैं," मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा।
सिया ने मेरी ओर हाथ बढ़ाया। मैंने झिझकते हुए उसका हाथ थाम लिया। उसका हाथ गर्म था, जैसे वो मेरी सारी ठंडक सोख लेना चाहता हो।
उसने कहा, "मैं डरती हूँ... फिर से किसी से जुड़ने से, फिर से टूटने से।"
मैंने धीरे से उसका हाथ थामे रखा, "अगर हम साथ चलें, तो शायद कुछ भी टूटे नहीं। या अगर कभी टूटा भी, तो हम मिलकर जोड़ लेंगे।"
वो चुप रही, लेकिन उसकी आँखों में आंसू थे। उसने सिर हिलाया, और उस क्षण में, शायद सिया ने अपने भीतर की एक दीवार गिरा दी थी।
हमने साथ चलते हुए स्टेशन छोड़ा। पहली बार उसके कंधे मेरे कंधे से टकराए, और पहली बार मुझे लगा — मैं किसी अधूरी कहानी का पूरा हिस्सा बन रहा हूँ।
उस शाम हम दोनों शहर के पुराने हिस्से में एक तंग सी गली में पहुँचे, जहाँ लालटेन की मद्धम रोशनी और दीवारों से टकराकर आती हवा में कुछ बहुत पुराना और बहुत अपना सा महसूस हो रहा था। सिया ने मेरा हाथ अब भी थामा हुआ था, जैसे वो खुद को मेरे भरोसे छोड़ चुकी हो।
गली के आख़िरी मोड़ पर एक पुराना मकान था, जिसकी छत पर छोटी सी बगिया थी। वहीं हम दोनों बैठ गए — एक दूसरे के बिल्कुल पास। आसमान धीरे-धीरे और गहरा होता जा रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर गिरती चाँदनी उसे और भी खूबसूरत बना रही थी।
मैंने उसके चेहरे की ओर देखा — उसके बाल हवा से हल्के-हल्के उड़ रहे थे, और उसकी पलकों की झुकी हुई नमी मुझे खामोशी से सब कुछ कह रही थी। मैंने धीरे से अपना हाथ उसके गाल तक ले जाकर उसकी उलझी लटें पीछे कीं। वो एक क्षण को काँपी, लेकिन आँखें बंद कर लीं।
उसकी साँसें तेज़ थीं, और मेरी धड़कनें अनियंत्रित। मैं उसके और पास गया। हमारे चेहरे अब कुछ ही इंच की दूरी पर थे।
"सिया..." मैंने बहुत धीमे स्वर में कहा।
उसने आँखें खोलीं, और मेरे दिल में जैसे कुछ पिघलता चला गया। उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस अपनी नज़रों से इज़ाजत दे दी।
मैंने उसके होंठों को बहुत धीरे से छुआ — जैसे कोई सपना हो जो टूट न जाए। और वो पल... उस पल में पूरी दुनिया रुक गई। हमारे बीच अब न कोई डर था, न कोई सवाल। बस एक नर्म एहसास था, जिसमें हम दोनों खुद को पूरी तरह खो चुके थे।
उसने अपना सिर मेरे सीने पर रख दिया, और मैं उसके बालों में अपनी उंगलियाँ फिराते हुए बस इतना सोच रहा था — यही तो था वो प्यार, जिसे मैं तलाश रहा था। न शोर, न दावे... बस एक सुकून, जो उसकी साँसों से मेरी साँसों तक बहता चला जा रहा था।
रात की हवा अब कुछ ठंडी हो चुकी थी, लेकिन हमारे बीच का हर एहसास गर्म था। उसकी उंगलियाँ मेरी उंगलियों में उलझी रहीं, और मैं चाहता था — वक़्त बस यहीं ठहर जाए।
हमारी उस पहली छत की रात के बाद जैसे सब कुछ बदल गया। सिया अब मेरी ज़िंदगी का वो हिस्सा बन चुकी थी, जिसके बिना कोई सुबह, कोई शाम पूरी नहीं लगती थी। हम अक्सर उसी छत पर मिला करते, कभी चुपचाप एक-दूसरे की आंखों में कहानियाँ पढ़ते, तो कभी धीमी आवाज़ में पुराने गाने गुनगुनाते। उसकी हँसी अब मेरी आदत बन चुकी थी, और उसकी खामोशी मेरी जिम्मेदारी।
एक दिन मैंने उसे वही जगह दिखाई जहाँ मैं बचपन में पतंग उड़ाया करता था। वो हँसी, और बोली, "अगर मैं तुम्हारी पतंग होती, तो क्या तुम मुझे आसमान तक उड़ाते या अपने पास बाँधकर रखते?"
मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया, "मैं तुम्हें इतनी ऊँचाई तक उड़ाता, जहाँ सिर्फ मेरा प्यार और तुम्हारी आज़ादी हो।"
उस दिन उसने पहली बार कहा, "मुझे अब तुमसे डर नहीं लगता।"
मैंने उसका हाथ थामकर कहा, "अब तुम्हें कभी डरने की ज़रूरत नहीं।"
फिर एक शाम, जब आसमान हल्का गुलाबी था और चारों ओर एक सुकून भरी ठंडक फैली थी, मैंने उस छत को फिर से सजाया। फूलों से, रोशनी से, और उन सभी लम्हों की खुशबू से जो हमने साथ जिए थे। सिया जैसे ही ऊपर आई, उसे देखता ही रह गया — वो हल्के गुलाबी लहंगे में किसी सपने की तरह लग रही थी।
मैं घुटनों पर बैठा, और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "तुम मेरी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत कहानी हो, और मैं चाहता हूँ कि ये कहानी कभी खत्म न हो। क्या तुम मेरी दुल्हन बनोगी?"
उसके आँसू बह निकले, और उसने बस "हाँ" कहा। लेकिन उस एक "हाँ" में इतना प्यार, इतनी सच्चाई थी कि लगा, पूरी कायनात ने हमारे इश्क़ की गवाही दी है।
शादी सादगी से हुई, लेकिन उसमें प्यार का शोर गूंज रहा था। मेरी माँ ने उसे गले लगाकर कहा, "अब ये घर पूरा हुआ।"
सिया ने मेरे नाम की महंदी जब अपने हाथों में देखी, तो उसे घंटों देखती रही। बोली, "क्या तुम जानते हो, इस रंग में तुम्हारी रूह तक घुल गई है।"
पहली रात हम दोनों साथ थे — एक-दूसरे के सबसे करीब। वो मेरे पास बैठी, और मैंने धीरे से उसकी चूड़ियाँ उतारनी शुरू कीं। हर चूड़ी के साथ वो सिहरती, और मैं उसके माथे पर एक-एक चुंबन छोड़ता गया।
उसके होंठ थरथरा रहे थे, पर उसकी नज़रों में सिर्फ विश्वास था। मैंने उसके कानों में फुसफुसाया, "अब हम दो जिस्म नहीं, एक जान हैं।"
उसने मेरी पीठ पर अपने नर्म हाथ रखे और धीरे से कहा, "तुम्हारी धड़कनों में अब मेरी हर साँस है।"
हमने एक-दूसरे को वैसे ही चाहा जैसे दो टूटे हुए हिस्से एक पूर्णता बनाते हैं — बिना जल्दबाज़ी, बिना शर्त... बस पूरी सच्चाई से।
हमारी रातें अब सिर्फ़ नींद की नहीं होती थीं, बल्कि उन अनकहे जज़्बातों की होती थीं, जो हमारी साँसों के बीच बहते रहते।
कभी वो मेरी बाहों में सो जाती, तो मैं घंटों उसकी साँसों की लय सुनता रहता।
कभी वो मुझे अपनी कहानियाँ सुनाती, और मैं उसे अपनी उंगलियों से जवाब देता।
हर दिन हम और करीब आते गए — जिस्म से नहीं, रूह से। उसकी आँखें मेरी दुनिया थीं, और मेरा सीना उसका सबसे महफूज़ ठिकाना।
वो सुबह, जब उसने मेरी शर्ट पहनकर रसोई में चाय बनाई, और उलझे बालों में मेरी ओर मुस्कुराकर देखा, उस पल मैंने खुद से कहा — "सोनू, अब तेरी मोहब्बत तेरी ज़िंदगी बन चुकी है।"
अब हम दो लोग नहीं हैं — हम एक वादा हैं, एक मुकम्मल ख्वाब।
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तो दोस्तों, कैसी लगी आपको मेरी ये कहानी?
मैं हूं सोनू गुप्ता — ऐसे ही मिलता रहूंगा आप सबसे, एक और दिल से निकली मोहब्बत की कहानी लेकर।
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