"जब पहली नज़र ने दिल छू लिया: एक सच्ची प्रेम कहानी"
"जब पहली नज़र ने दिल छू लिया: एक सच्ची प्रेम कहानी"
नमस्कार दोस्तों!
मैं हूं सोनू गुप्ता, और आज मैं लेकर आया हूं आप लोगों के लिए —
"जब पहली नज़र ने दिल छू लिया..."
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सूरज आसमान पर चढ़ा हुआ था, गर्मी अपनी सारी हदें पार कर चुकी थी, और पसीने से भीगा हुआ शहर किसी उबलते तवे जैसा लग रहा था। लेकिन उस चिलचिलाती दोपहर में भी एक लड़का उम्मीद की ठंडी सांस लेकर अपने पहले कॉलेज के दिन के लिए तैयार हो रहा था। वही लड़का, जो आज तक अपनी ज़िंदगी में सिर्फ़ एक चीज़ का इंतज़ार करता आया था — इज्ज़त।
नाम — रवि।
चेहरा साधारण, कपड़े मामूली, और चाल में ना कोई रौब, ना कोई रवानी।
मोहल्ले के लोग अक्सर कहते, "कुछ नहीं कर पाएगा ये लड़का। देख लेना, यही बाप के जूते पॉलिश करेगा।"
पड़ोस के अंकल तक भी ताने कसते —
“अरे रवि, कॉलेज में भी ऐसे ही गूंगा बकरा बना रहेगा क्या? या वहां जाकर भी फटी पैंट ही पहननी है?”
मां चुपचाप सुन लेती थी, बाप बस आहें भरता, और रवि... रवि हर बार अपनी किताबें और सपनों के पन्नों के पीछे खुद को छिपा लेता।
लेकिन आज, रवि ने मन में ठान लिया था —
"अब कुछ बदलूंगा। कम से कम खुद को तो साबित करूंगा।"
कॉलेज की इमारत में कदम रखा तो आंखें चौंधिया गईं। सब लड़के-लड़कियां स्टाइल में, हँसी-ठिठोली, महंगे फोन, बाइक्स की बातें, फैशन की चर्चा... और रवि? वो बस एक पुरानी साइकिल, दो जोड़ी कपड़े, और मां के दिए चार परांठों के साथ आया था।
रजिस्ट्रेशन काउंटर पर पहुंचा तो पीछे खड़े लड़कों ने फुसफुसाना शुरू कर दिया —
“देखो, नया माल आ गया। यार, ये तो लगता है हॉस्टल का झाड़ू लगाने आया है।”
“अबे इसकी शर्ट तो देख, ऐसी तो मेरे पापा पोंछा लगाते हैं।”
रवि ने कुछ नहीं कहा। सिर झुकाकर फॉर्म भरा और क्लासरूम की तरफ़ बढ़ गया।
क्लास के दरवाज़े के पास पहुंचा तो दो लड़कों ने आगे बढ़कर रास्ता रोक लिया।
“पहले दिन है ना? रैगिंग नहीं करते हम, पर एक बात बताओ — इतने गंदे कपड़े पहनकर किसको इम्प्रेस करने आया है? खुद को तो शीशे में देखता है?”
बाकी लड़के हँसने लगे। एक ने उसकी फाइल खींच ली, दूसरे ने बैग गिरा दिया।
रवि चुपचाप झुका, बैग उठाया, फाइल समेटी, और कुछ बोले बिना क्लास के आखिरी कोने में जाकर बैठ गया।
मन के भीतर एक भूचाल था। गुस्सा भी, शर्म भी, और एक कसक भी।
क्या हर कोई दिखावे से ही तय करता है कि सामने वाला क्या है?
और फिर...
दरवाज़े से वो दाखिल हुई।
वही लड़की।
सफेद सूट, हल्के नीले दुपट्टे के साथ। चाल में सादगी, आंखों में गहराई, और चेहरे पर ऐसा सुकून, जैसे सावन की पहली फुहार।
वो क्लास में आई, और सीधा जाकर रवि के पास बैठ गई।
पूरा क्लास चौंक गया।
“क्या हो गया इसको?”
“अबे, यही सीट मिली थी क्या?”
“इस छोरे से दोस्ती करेगी ये? हाह!”
रवि खुद भी हैरान था। वो लड़की... उसने खुद चुनी थी रवि की बगल वाली सीट।
कुछ पल तक खामोशी रही। फिर उसने धीरे से पूछा —
“तुम्हारा नाम रवि है ना?”
रवि ने सिर हिलाया।
“तुम ठीक हो? मैंने देखा... कुछ लोग परेशान कर रहे थे बाहर।”
रवि ने कुछ नहीं कहा, बस उसकी आंखों में देखता रहा। और उस पल में रवि को पहली बार लगा,
"कोई है... जो मेरी आवाज़ को सुने बिना भी मेरा दर्द समझ सकता है।"
वो हल्के से मुस्कुराई।
“डरो मत। ये लोग बस बोलते हैं। हकीकत में कुछ नहीं कर सकते। जो इंसान चुप रहकर सहता है, वो अंदर से बहुत मजबूत होता है।”
इतना कहकर वो अपनी किताब निकालने लगी।
और रवि?
वो बस उस एक पल में जी रहा था।
क्योंकि ज़िंदगी में पहली बार, किसी ने उसे इंसान की तरह देखा था।
पहलीबार.
कॉलेज का माहौल धीरे-धीरे रवि के लिए थोड़ा बदलने लगा था, लेकिन उस बदलाव का कारण रवि नहीं, वो लड़की थी। नाम — सोनल।
सोनल का रवि के पास बैठना जैसे क्लास के लिए कोई भूचाल था। वो लड़की जो हर किसी की नज़रों में खास थी — खूबसूरत, पढ़ने में तेज, और सबसे बड़ी बात, उसके अंदर एक अलग सा निखार था। रवि को खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसके जैसे एक मामूली लड़के के पास सोनल क्यों बैठती है, क्यों उससे बात करती है, और क्यों... उसकी आँखों में देखती है जैसे कुछ ढूंढ रही हो।
शुरुआत में कुछ लोगों ने मजाक उड़ाया, फिर ताने दिए, फिर बदतमीज़ी तक उतर आए।
“अबे रवि, तूने क्या जादू किया है उस पर? तंत्र-मंत्र सिखा दिया क्या?” “भाई, इस रवि की शक्ल तो देखो... और सोनल? ये तो कॉलेज की क्वीन है यार!” “अबे लगता है लड़की को दया आ गई है इस झोलाछाप पे!”
रवि चुपचाप सब सुनता रहा।
सोनल बस हल्के से मुस्कुराती, और हर दिन उसके बगल की सीट पर बैठती रही।
पर यही बात कुछ लड़कों को हज़म नहीं हुई।
उनमें सबसे आगे था रजत — रईस बाप का बेटा, बाइक से कॉलेज आने वाला, अंग्रेजी में बातें करने वाला, और सोनल को कॉलेज शुरू होते ही प्रपोज करने की सोच चुका था।
उसे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि जिस लड़की के लिए वो हर दिन नए कपड़े पहनता था, जो उसकी महंगी घड़ी को एक नज़र भी नहीं देखती थी, वो एक ऐसे लड़के के साथ बैठती है जो न तो फैशनेबल था, न दिखने में खास, और न ही उसके जैसे बैकग्राउंड से।
एक दिन लंच टाइम में, रजत अपने दोस्तों के साथ रवि को पकड़कर कैंटीन के पीछे ले गया।
“देख बे, तू जैसा है ना, तू बस गुमनाम रहने के लिए बना है। और सोनल... वो हमारे जैसे लोगों के लिए है। तेरे जैसे गंदे शख्स के साथ उसका बैठना हमारे कॉलेज का लेवल गिराता है।”
रवि कुछ कहने ही वाला था कि रजत ने धक्का दे दिया।
पर तभी पीछे से सोनल की आवाज़ आई —
“रजत! छोड़ दो उसे।”
सब चौंक गए। सोनल पास आई, रवि को संभाला, और गुस्से में बोली —
“जिस इंसान में इंसानियत नहीं होती, उसके पास चाहे जितने पैसे हों, वो हमेशा गरीब ही रहता है। रवि जैसा दिल लेकर देखो एक बार... शायद ज़िंदगी समझ आ जाए।”
उस दिन कैंटीन में मौजूद हर आंख रवि की तरफ़ थी। किसी के लिए वो मजाक था, किसी के लिए इज्ज़त बन गया था।
लेकिन रजत की ईगो को गहरी चोट लगी थी।
उस रात, उसके दिमाग में एक ही ख्याल था — “इस रवि को रास्ते से हटाना है।”
अगले हफ्ते, एक अफवाह पूरे कॉलेज में फैल गई —
“रवि ने सोनल के साथ बदतमीज़ी की है।”
कुछ लोगों ने यकीन किया, कुछ ने शक किया, पर रवि... वो तो खुद हैरान था। उसके तो हाथ कांप रहे थे, चेहरा पीला पड़ चुका था। वो जानता था, ये झूठ है। लेकिन झूठ अक्सर तेज़ भागता है, और सच... वो तो बस धीरे-धीरे चलता है।
सोनल ने सबके सामने आकर कहा —
“ये खबर झूठी है। रवि ने कभी भी मुझसे गलत व्यवहार नहीं किया। जिसने भी ये फैलाया है, उसकी मानसिकता ही गिरी हुई है।”
कॉलेज की डायरेक्टर ने खुद मामले की जांच करवाई। CCTV फुटेज निकले, सच्चाई सामने आई — रवि बेगुनाह था।
रजत को कॉलेज से चेतावनी मिली, पर रवि के अंदर एक कुछ और ही टूट गया था।
उसने सोनल से कहा,
“तुम क्यों मेरी तरफ़दारी करती हो? तुम खुद को मुश्किल में डाल रही हो... मैं तुम्हारे लायक नहीं।”
सोनल ने बस इतना कहा,
“रवि, इंसान की कीमत कपड़ों से नहीं, कंधे पर पड़े हाथ और दिल की साफ़ नीयत से होती है। तुम जैसे लोग इस दुनिया में कम हैं... और मैं ऐसे इंसान के पास बैठने में फख्र महसूस करती हूं।”
रवि चुप हो गया।
उसकी आंखें नम थीं, पर पहली बार वो आंसू दर्द के नहीं, अपनाए जाने के थे।
अब रवि के लिए कॉलेज एक युद्ध बन गया था।
वो किताबों में डूब गया। लाइब्रेरी में देर तक बैठना, हर असाइनमेंट सबसे पहले जमा करना, और हर उस चीज़ में आगे बढ़ना, जिसमें लोग उसे पीछे धकेलना चाहते थे।
सोनल बस दूर से देखती... कभी मुस्कुराकर, कभी आंखों से दुआ करके।
एक तरफ़ लोग अब भी रवि को नीचा दिखाने की कोशिश करते, दूसरी तरफ़ रवि हर रोज़ अपने आप को ऊंचा उठाने की कोशिश करता।
और उस कोशिश के हर कदम पर... सोनल उसका साया बनकर खड़ी थी।
जुनून.
रवि अब कॉलेज में किसी का मज़ाक नहीं था। वो पहले से ज़्यादा शांत, लेकिन पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत हो गया था। उसके कपड़े आज भी वैसे ही थे, चाल में वही संकोच, लेकिन आँखों में अब एक अलग चमक थी — जुनून की चमक।
लोग अब भी उसे देखकर हँसते थे, कुछ आज भी उसे "गरीबों का हीरो" कहते थे, लेकिन रवि ने किसी को जवाब देना बंद कर दिया था। उसे अब एक ही चीज़ की फ़िक्र थी — खुद को बेहतर बनाना।
सोनल अब उसकी सबसे बड़ी ताक़त बन चुकी थी। वो हर बार उसके पास खड़ी दिखती थी जब रवि को सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती। असाइनमेंट हो, प्रेजेंटेशन हो, या फिर बस चुपचाप बैठकर पढ़ाई करना हो — सोनल का साथ उसके लिए जैसे एक सहारा नहीं, संजीवनी बन गया था।
लेकिन समाज कब इतनी आसानी से मान लेता है कि एक अमीर, सुंदर, और समझदार लड़की, किसी गरीब लड़के से दोस्ती ही नहीं, बल्कि... कुछ ज़्यादा महसूस करने लगी है।
एक दिन कॉलेज के बाहर सोनल के पापा की गाड़ी आकर रुकी।
ड्राइवर ने कहा,
“मैडम, साब ने बुलाया है।”
सोनल रवि की ओर देखती है, हल्का सा मुस्कराती है और कार में बैठ जाती है।
अगले दिन वो कॉलेज नहीं आई। फिर दूसरा, फिर तीसरा दिन...
रवि बेचैन हो उठा। हर क्लास में उसकी आंखें बस दरवाज़े की ओर लगी रहतीं।
हर बार एक उम्मीद, हर बार एक खालीपन।
फिर चौथे दिन सोनल आई, लेकिन उसका चेहरा बुझा हुआ था।
रवि दौड़कर पास गया,
“सब ठीक है ना?”
सोनल कुछ पल चुप रही, फिर धीमे से बोली —
“मेरे पापा को पता चल गया है… हमारे बारे में।”
रवि का चेहरा सफेद पड़ गया।
“हमारे बारे में?” उसने हैरानी से पूछा।
सोनल की आंखें नम हो गईं।
“उन्हें लगता है कि मैं अपने स्टेटस से नीचे गिर रही हूं। उन्होंने कहा — ‘अगर तूने उस लड़के के साथ कोई भी रिश्ता आगे बढ़ाया, तो हमारे रिश्ते खत्म।’”
रवि की सांस रुक सी गई।
“तो... अब?” वो मुश्किल से बोल पाया।
सोनल ने उसकी आंखों में देखा, जैसे वहां खुद को ढूंढ रही हो।
“अब कुछ नहीं रवि... अब मैं खुद को साबित करूंगी। जैसे तुमने किया है। तुमने अपनी मेहनत से सबके मुंह बंद किए हैं, अब मेरी बारी है। मैं अपने घर में, अपने लोगों को दिखाऊंगी कि प्यार किसी क्लास या पैसे से नहीं, इंसान की सच्चाई से होता है।”
उस दिन सोनल कॉलेज से चली गई।
अगले कुछ हफ्तों तक, रवि फिर से अकेला हो गया। लेकिन इस बार वो अकेला होकर भी अकेला नहीं था।
हर पन्ने पर, हर लाइन में, हर फॉर्मूले में, हर शब्द में... सोनल थी।
तीन साल बीते।
रवि ने कॉलेज टॉप किया। हर टीचर उसके नाम की तारीफ़ करता था।
जहाँ पहले लोग उसे देखकर हँसते थे, अब खड़े होकर सलाम करते थे।
कॉलेज खत्म हुआ, और रवि को एक नामी कंपनी में जॉब मिल गई। छोटा पैकेज, पर खुद की मेहनत से कमाया हुआ।
उसने एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया, मां को गाँव से शहर बुला लिया। और हर दिन एक नई उम्मीद के साथ काम पर जाता।
लेकिन अंदर एक सवाल अब भी जिन्दा था —
क्या सोनल अब भी... वही सोचती है?
एक शाम ऑफिस से लौटते हुए दरवाज़े पर एक लेटर पड़ा मिला।
लिफाफा खोला —
"कल शाम पाँच बजे, लालबाग की पुरानी लाइब्रेरी के पास आना। अगर अब भी यकीन हो... तो आना। — सोनल"
रवि की धड़कनें तेज़ हो गईं।
अगले दिन, समय से पहले वो वहाँ पहुंच गया।
लाइब्रेरी के बाहर खामोशी थी। पुराना पीपल का पेड़, हवा में सरसराहट... और तब सामने से एक सफेद सलवार-सूट में, वही हल्का नीला दुपट्टा उड़ता हुआ, सोनल आती दिखी।
रवि एकदम स्थिर।
सोनल पास आई, और बिना कुछ कहे उसका हाथ थाम लिया।
“मैंने कर लिया सब साफ़ अपने घर में। माँ ने मुझसे पूछा — क्या तुझे उस लड़के पर भरोसा है? मैंने कहा — नहीं... उसके भरोसे पर भरोसा है।”
रवि की आँखें भर आईं।
“तुम्हें अभी कुछ नहीं मिला रवि। लेकिन तुम वही हो जो एक दिन सब कुछ पा जाएगा। और जब लोग पूछेंगे कि तुम्हारी सबसे बड़ी जीत क्या थी — तो मैं गर्व से कहूँगी, रवि ने मुझे चुना।”
उसने रवि का हाथ और कसकर पकड़ा।
“अब चलो, ज़िंदगी शुरू करते हैं... दोनों मिलकर।”
शादी साधारण नहीं थी, लेकिन सादगी में ही उसकी भव्यता थी।
कोई शाही मंडप नहीं, न ही चमकती हुई सजावटें। बस एक खुला सा आंगन, गुलाबी रेशमी पर्दे, कुछ फूलों की माला, और चारों ओर वो चेहरे जो कभी रवि को देखकर हँसते थे... आज खुद को दबी नजरों से देख रहे थे।
सोनल ने जब शादी के कार्ड छपवाए, तो सबसे पहला कार्ड उस कॉलेज के डायरेक्टर को दिया, जिसने रवि के चरित्र पर उठे झूठे सवालों के समय उसे न सिर्फ समर्थन दिया था, बल्कि लड़कर उसकी सच्चाई को सामने लाया था।
और सबसे आखिरी कार्ड... रजत के घर के बाहर रवि ने खुद पहुंचाया।
रजत ने देखा — वही लड़का जिसकी शक्ल पर वो कभी तंज कसा करता था, आज गले में फूलों की माला, सिर पर सेहरा और चेहरे पर आत्मविश्वास का उजाला लिए खड़ा है।
रवि ने मुस्कराकर कार्ड थमाया —
“आना ज़रूर। और हाँ... अगर तुम्हें अब भी लगता है कि मैं गलत था, तो तुम्हारे आने की ज़रूरत नहीं। लेकिन अगर कहीं अंदर ये लगे कि तुमने किसी वक्त किसी को बिना जाने जज किया था, तो... आना ज़रूर।”
रजत कार्ड को घूरता रहा। और शादी के दिन... सबसे पीछे, भीड़ से छुपता हुआ, वो आया।
शादी के मंडप में जब सोनल और रवि ने एक-दूसरे की आंखों में देखा, तो वो सिर्फ एक वादा नहीं था, वो एक इतिहास था।
जिस प्यार को लोगों ने असंभव समझा था, वो अब सात फेरे ले रहा था।
रवि की मां, जो कभी खुद को समाज में शर्मिंदा समझती थीं, आज उनके सिर पर गौरव का ताज था।
“हमारे बेटे ने लड़की की संपत्ति नहीं, उसका सम्मान जीता है,” उन्होंने हर रिश्तेदार से कहा।
शादी के बाद दोनों ने एक छोटा सा फ्लैट किराए पर लिया — छत से शहर की रोशनी दिखती थी, खिड़की से सुबह की धूप आती थी, और कमरे में किताबों की खुशबू थी।
रात को पहली बार जब रवि और सोनल ने एक साथ चाय पी, तो वो सिप एक रस्म से ज़्यादा था — एक सुकून का घूँट।
सोनल ने रवि के कंधे पर सिर रखा और पूछा —
“कभी सोचा था, हम यहां तक पहुंचेंगे?”
रवि ने उसकी उंगलियों को छूते हुए कहा —
“हां... जब तुमने पहली बार मेरी तरफ देखा था, तब लगा था — ये लड़की मुझे सिर्फ देख नहीं रही, मुझे पढ़ रही है।”
रातें अब किताबों से ज़्यादा बातों में बीतने लगीं।
वो दोनों अक्सर पुराने दिनों की बातें करते।
कैसे सोनल क्लास में उसके बगल में बैठती थी, कैसे लोग फुसफुसाते थे, और कैसे रवि का दिल उस वक्त तेज़ धड़कता था जब सोनल की उंगलियाँ उसकी कॉपी पर टिकती थीं।
अब वही उंगलियाँ उसकी हथेली में लिपटी थीं।
रवि की नौकरी धीरे-धीरे आगे बढ़ी। प्रमोशन हुआ, फिर एक इंटरव्यू में उसके कॉलेज की कहानी किसी पत्रकार ने पूछ ली।
उसने सब बता दिया — सच, दर्द, अपमान, और... प्यार।
वो आर्टिकल एक नामी अख़बार के फ्रंट पेज पर छपा —
"जिसे सबने ठुकराया, उसने अपने प्यार को इतिहास बना दिया"
कॉलेज ने रवि को इनवाइट किया — बतौर मुख्य अतिथि।
रवि ने वही कपड़े पहने, जो कॉलेज के दिनों में पहना करता था — एक सादी सी शर्ट, एक फटी हुई जीन्स, लेकिन कंधे सीधे, गर्दन ऊँची।
जब वो स्टेज पर पहुँचा, छात्र तालियाँ बजा रहे थे।
पीछे की सीट पर रजत बैठा था, नज़रें झुकी हुईं, हाथ ताली बजाने से पीछे नहीं हटे।
रवि ने माइक उठाया और कहा —
“मैं एक गरीब लड़का था। लेकिन गरीब सोच से नहीं... हालात से। जो मेरे पास नहीं था, वो मैंने पाया — पढ़ाई से। और जो मेरे पास था — इमानदारी, प्यार और सच्चाई, वो मैंने कभी खोने नहीं दिया।”
बात खत्म होते ही सोनल खड़ी हो गई — पहली तालियां उसकी थीं।
अब रवि शहर के एक सफल लेखक भी बन गया था।
उसने अपनी कहानी को किताब का रूप दिया — “उसने मुझे पढ़ा”।
लॉन्च इवेंट पर सोनल ने वो किताब सबके सामने रवि को भेंट दी। और एक लाइन पढ़ी —
“एक लड़का जो खुद को साबित करना चाहता था, और एक लड़की जिसने उसे कभी गिरने नहीं दिया।”
लोग जो पहले कहते थे — “ये लड़की पागल है जो रवि जैसे लड़के से जुड़ रही है,”
अब कहते थे — “काश हमारी बेटी भी इतना समझदार फैसला करे।”
जो रिश्तेदार पहले ताने मारते थे —
“इस लड़के के पास तो कुछ नहीं है,”
अब पूछते थे — “तुम्हारे जैसे दामाद को ढूंढें कहां से?”
शहर में जब कभी कोई प्रेम कहानी की मिसाल दी जाती, तो कहा जाता —
“रवि और सोनल जैसे बनो... प्यार को सहारे की नहीं, भरोसे की ज़रूरत होती है।”
रवि और सोनल की जिंदगी अब भी बहुत भव्य नहीं थी, पर बहुत खास थी।
हर रात दोनों साथ किताब पढ़ते, चाय पीते, और खिड़की से आती हवा में पुरानी यादों को उड़ते हुए महसूस करते।
और जब भी कोई रवि से पूछता —
“तुम्हारी सबसे बड़ी जीत क्या है?”
तो वो बस सोनल की तरफ देखता... और मुस्कुरा देता।
[कमरा हल्की रौशनी में डूबा है। पर्दों से छनती पीली रोशनी, और खिड़की से आती रात की ठंडी हवा कमरे में धीमे-धीमे बह रही है। रवि और सोनल एक साथ बिस्तर पर बैठे हैं, हाथों में किताबें हैं, लेकिन निगाहें अब किताबों से ज़्यादा एक-दूसरे पर टिकी हुई हैं।]
सोनल (धीरे से मुस्कुराकर):
"किताब बंद कर दो रवि… आज कहानी नहीं पढ़नी… आज कहानी जीनी है।"
रवि (नज़रों में वही पुरानी शरारत):
"तुम्हें नहीं लगता कि हमारी ज़िंदगी की सबसे रोमांटिक किताब… खुद हम ही हैं?"
सोनल:
"हां… और सबसे हसीन पन्ना अभी लिखा जाना बाकी है।"
[सोनल धीरे से रवि की ओर झुकती है, उसके गालों पर हल्की सी नमी छोड़ती है, जैसे कोई भूला-बिसरा सपना वापस आ रहा हो। रवि उसकी उंगलियाँ पकड़ता है — वही उंगलियाँ, जो कभी क्लास में उसकी कॉपी पर चलती थीं, आज उसकी साँसों के करीब थीं।]
रवि (धीरे से कान के पास):
"याद है… जब तुमने पहली बार मेरा हाथ पकड़ा था, उस दिन लाइब्रेरी के पास?"
सोनल (आँखें बंद करते हुए):
"उस दिन नहीं रवि… मैंने तुम्हें पहली बार अपने दिल में पकड़ा था, जब तुमने मेरे सामने खामोश रहकर भी सब कुछ कह दिया था।"
[धीरे-धीरे रवि उसके बालों में उंगलियाँ फेरता है। उसकी धड़कनों की रफ्तार अब साफ सुनाई देने लगी है। सोनल की सांसें उसके सीने पर थिरकने लगती हैं।]
रवि (धीरे से):
"तुम्हारी ये साड़ी... तुम्हारे गालों का रंग चुरा लाई है शायद।"
सोनल (हौले से हँसती है):
"और तुम्हारे ये होंठ... अब भी वैसे ही कहानियाँ बुनते हैं, जैसे पहले सोचते थे।"
[रवि उसे करीब खींच लेता है, उनके बीच की दूरी जैसे वक़्त खुद मिटा रहा हो। वो अब एक-दूसरे की साँसों में खो गए हैं। सोनल अपनी हथेलियाँ रवि के चेहरे पर रखती है — नज़रों में गहराई, होठों पर नमी, और दिल में एक नर्म सी बेचैनी।]
सोनल:
"रवि... क्या तुम जानते हो, जब भी मैं तुम्हें देखती हूं, मुझे लगता है — मैं एक बार फिर उसी लड़की में बदल जाती हूं जो पहली बार तुम्हारे पीछे पीछे लाइब्रेरी तक चली थी, बिना बताए।"
रवि:
"और मैं अब भी वही लड़का हूं… जो हर दिन तुम्हारे होने को एक चमत्कार मानता है।"
[उनके बीच की सारी आवाज़ें अब खामोश हो जाती हैं। सिर्फ हल्के चूमते शब्द, गालों की गर्मी, और सांसों की धड़कन सुनाई देती है। रवि धीरे से सोनल की पीठ पर हाथ फेरता है, और वो उसकी गर्दन में चेहरा छुपा लेती है।]
सोनल (फुसफुसाते हुए):
"काश ये रात कभी खत्म ना हो…"
रवि (धीरे से उसके कान में):
"जब तुम पास होती हो, तो मुझे लगता है — हर सुबह तुम्हारा नाम लेके ही होनी चाहिए… और हर रात, तुम्हारी बाहों में खत्म।"
[कमरे की रौशनी धीमी होती है। दोनों अब बिस्तर पर एक-दूसरे में सिमटे हुए लेटे हैं। सोनल उसकी छाती पर सिर रखकर, उसकी धड़कनों को जैसे पढ़ रही हो — जैसे हर धड़कन उसका नाम पुकार रही हो।]
रवि:
"तुम्हारी हर मुस्कान में मेरा सुकून है… और हर आहट में मेरी ज़िंदगी।"
सोनल:
"और तुम्हारे सीने पर रखी मेरी ये साँस… यही मेरी सबसे प्यारी जगह है।"
[धीरे से रवि उसके माथे को चूमता है। चुप्पी अब इतनी गहरी है कि सिर्फ दिलों की बात सुनाई देती है।]
रवि:
"मैं तुमसे प्यार करता हूं, सोनल… हर उस पल के लिए जो मैंने तुम्हारे बिना जिया… ताकि तुम्हारे साथ हर पल को अमर कर सकूं।"
सोनल (आंखों में नमी लिए):
"और मैं तुमसे प्यार करती हूं… इसलिए नहीं कि तुमने मुझे चुना… बल्कि इसलिए कि तुमने मुझे कभी हारने नहीं दिया।"
[कैमरा अब खिड़की के बाहर जाता है। चाँद की रौशनी कमरे पर बिखरती है। दो प्रेमी — ज़िंदगी की सबसे मीठी किताब की सबसे हसीन रात जी रहे हैं। कोई शोर नहीं, कोई सवाल नहीं… बस एक सुकून, एक अपनापन, और एक बेजोड़ प्यार।]
[थोड़ी देर में दोनों नींद की आहट में खो जाते हैं — पर हाथ अब भी एक-दूसरे के हाथ में हैं। और होंठों पर एक ऐसी मुस्कान… जो पूरी दुनिया को चुप करा दे।]
तो दोस्तों, कैसी लगी आपको ये कहानी?
मैं हूं सोनू गुप्ता, और ऐसे ही मिलते रहेंगे एक और नई, सच्ची और बेहद रोमांटिक कहानी के साथ…
तब तक… प्यार को जिएं, शब्दों को महसूस करें, और रिश्तों को वक्त दें।

