नागिन का प्रेम: एक रहस्य और रोमांच की यात्रा
नागिन का प्रेम: एक रहस्य और रोमांच की यात्रा
कहानी का शीर्षक:
"नागिन का प्रेम: एक रहस्य और रोमांच की यात्रा"
लेखक: सोनू गुप्ता
---
नमस्कार दोस्तों, मैं हूं सोनू गुप्ता।
आज मैं आपके लिए एक ऐसी कहानी लेकर आया हूं जो ना सिर्फ रोमांच से भरी है, बल्कि इसमें प्रेम, विश्वास, और आत्मबल की एक गहरी छाप भी है। ये कहानी एक आम से लड़के की है, जिसका जीवन एक चमत्कारी मोड़ पर आकर पूरी तरह बदल जाता है। ये सिर्फ एक प्रेम कथा नहीं है, ये उस शक्ति की कहानी है जो हर इंसान के भीतर छुपी होती है, बस उसे पहचानने वाला चाहिए। तो चलिए, शुरू करते हैं कहानी का पहला भाग...
---
पहला भाग: जंगल की पहली मुलाकात
गांव का नाम था सीतानगर। हरियाली से घिरा हुआ, शांत, और थोड़ा सा रहस्यमयी भी। वहीं पर रहता था अर्जुन, एक सीधा-सादा, थोड़ा शर्मीला लेकिन दिल का बहुत साफ लड़का। उम्र रही होगी करीब़ 22 साल। अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था। पढ़ाई पूरी करके अभी घर पर ही था और गांव में ही छोटा-मोटा काम कर लिया करता था।
लेकिन अर्जुन के घर में कुछ वक्त से अजीब सा माहौल हो गया था। उसके पिताजी, रामकिशोर, एक पुराने साधु "बाबा त्रिलोकनाथ" के भक्त थे। कहते थे कि बाबा के पास दिव्य शक्तियां हैं, जो भविष्य भी देख सकते हैं और भाग्य भी बदल सकते हैं। अर्जुन को इन सब बातों में खास यकीन नहीं था, लेकिन पिता की बात टाल भी नहीं सकता था।
एक दिन बाबा त्रिलोकनाथ ने अर्जुन के पिता को बुला कर कहा,
"तुम्हारा बेटा अगर जीवन में तरक्की चाहता है, तो उसे जंगल के उस पुराने मंदिर में जाकर एक विशेष औषधि लानी होगी। रात के समय। और ध्यान रहे – वहां जो भी दिखे, उससे डरे नहीं। बस आंखें बंद करके आगे बढ़ता जाए।"
रामकिशोर तो जैसे इस आदेश को ईश्वरीय आदेश समझ बैठे। उसी शाम अर्जुन से कहा,
"बेटा, तू जाकर वो औषधि ले आ। ये बाबा की आज्ञा है। एक बार तू वहां गया, तो सारी बाधाएं हट जाएंगी।"
अर्जुन पहले तो चौंका, "बाबा, जंगल में? और वो भी रात को? वहां तो... कई तरह की बातें सुनी हैं लोगों से।"
मां ने भी डरते हुए कहा, "मत भेजिए इसे, रात के समय वो जंगल... वो मंदिर..."
लेकिन पिताजी गुस्से में बोले, "बाबा का आदेश है! और अर्जुन को जाना ही होगा!"
अर्जुन चुप हो गया। वो अपने मां-बाप को नाराज नहीं करना चाहता था। शाम होते-होते, एक टॉर्च, एक थैला और थोड़ी सी हिम्मत लेकर वो जंगल की ओर निकल पड़ा।
जैसे-जैसे अर्जुन जंगल में गहराई तक गया, पेड़ ऊँचे होते गए, अंधेरा गाढ़ा होता गया, और सन्नाटा तेज़ हो गया। झींगुरों की आवाज़ और कभी-कभी किसी जानवर की हल्की गुर्राहट दिल दहलाने वाली लगती थी।
करीब आधे घंटे चलने के बाद उसे एक पुराना खंडहरनुमा मंदिर दिखा। दीवारों पर बेलें चढ़ी थीं, और चारों तरफ घना जंगल था। वो आगे बढ़ ही रहा था कि तभी अचानक उसे एक फुफकारने की आवाज़ आई।
"फssssssssस्स्स..."
अर्जुन ठिठक गया। सामने एक नागिन थी – लंबी, चमकती आंखों वाली, चमचमाती काली त्वचा के साथ। लेकिन अगले ही पल वो नागिन इंसान में बदल गई – एक सुंदर स्त्री, जिसकी आंखों में रहस्य था और चेहरे पर ग़ज़ब का तेज़।
वो बोली,
"कौन हो तुम? और इस जंगल में रात के समय क्या कर रहे हो?"
अर्जुन काँपता हुआ बोला, "मैं... मैं... बाबा त्रिलोकनाथ के कहने पर... औषधि लेने आया हूं।"
वो मुस्कुराई, "बाबा त्रिलोकनाथ...?" उसकी मुस्कान में कुछ रहस्य था।
"तुम्हें नहीं पता, वो क्या चाहता है... और तुम किस रास्ते पर भेजे गए हो।"
अर्जुन हक्का-बक्का रह गया। उसने पूछा, "क्या मतलब है तुम्हारा? औषधि नहीं है यहां?"
नागिन ने धीरे से उसकी आंखों में देखा और कहा,
"तुम्हें इस जंगल में सिर्फ औषधि की तलाश में नहीं भेजा गया। तुम सिर्फ एक मोहरा हो, अर्जुन। और वो साधु... वह कोई सच्चा साधु नहीं है।"
"तुम्हें मेरा नाम कैसे पता है?" अर्जुन पीछे हट गया।
नागिन ने मुस्कराते हुए कहा, "मैं इच्छाधारी नागिन हूं। मेरा नाम नैना है। और इस जंगल की रक्षा करना मेरा काम है। मुझे सब पता है – कौन आता है, क्यों आता है, और कौन किस चाल का हिस्सा है।"
अर्जुन अब थोड़ा संयम में आया। "तो सच क्या है? और क्या मैं मरने वाला हूं?"
नैना उसकी आंखों में देखती रही और फिर बोली,
"नहीं अर्जुन। मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगी। लेकिन सच जानने की हिम्मत है तुममें?"
अर्जुन ने सिर हिलाया, "हां, लेकिन पहले ये बताओ... क्या तुम इंसान हो? या...?"
नैना थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली,
"मैं नागलोक से हूं। लेकिन मैं इंसानों की तरह महसूस कर सकती हूं। प्रेम, पीड़ा, सब जानती हूं। और शायद... अब मुझे लगता है कि मैं यहां सिर्फ जंगल की रक्षा करने नहीं, किसी खास वजह से भेजी गई हूं। शायद तुम्हारी वजह से..."
अर्जुन चुप हो गया। रात और गहरा चुकी थी। लेकिन उसके मन में अब डर नहीं, बल्कि जिज्ञासा थी।
नैना ने कहा,
"अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें उस साधु के असली रूप से मिलवाऊंगी। लेकिन उसके लिए तुम्हें मुझ पर भरोसा करना होगा।"
अर्जुन ने एक गहरी सांस ली और कहा,
"ठीक है नैना। मुझे सच्चाई जाननी है। चाहे जो हो जाए।"
नैना की आंखों में एक चमक आई।
"तो चलो अर्जुन... तुम्हारा भाग्य अब तुम्हें खुद बताएगा कि तुम कौन हो... और क्या बन सकते हो।"
---
गांव के लोग उस रात अर्जुन के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कोई कहता कि वो जंगल में गया है, कोई कहता कि शायद उसे कोई जड़ी-बूटी ढूंढने भेजा गया है, तो कोई कान में फुसफुसाते हुए कहता कि बाबा त्रिलोकनाथ ने उसे किसी खास काम के लिए भेजा है। लेकिन इन सबसे अलग, बाबा का एक खास चेला था – भैरव। बाबा की हर बात पर आंख मूंदकर विश्वास करता था और उसी के इशारे पर चलता था।
भैरव ने जब देखा कि अर्जुन को अकेले जंगल में भेजा गया है, तो उसे कुछ खटक गया। वह जानता था कि जंगल में वो मंदिर है जहाँ कई बार लोग गए लेकिन वापस नहीं आए। और बाबा कुछ छुपा रहा है। मगर जब रात बीती और अगली सुबह अर्जुन सही-सलामत वापस नहीं आया, तो उसका शक और गहरा हो गया।
वो चुपचाप जंगल की तरफ निकल गया। पेड़ों की ओट से, झाड़ियों के पीछे छुपते हुए वो मंदिर की ओर बढ़ा, और तभी उसने देखा – अर्जुन और एक सुंदर युवती आपस में बातें कर रहे थे। लेकिन वो कोई सामान्य युवती नहीं थी। उसकी आंखें चमक रही थीं, और जब वह मुस्कराई, तो उसकी जीभ सांपों जैसी दो भागों में बंटी हुई थी। भैरव काँप गया। उसकी सांस अटक गई। ये कोई आम लड़की नहीं थी… ये इच्छाधारी नागिन थी!
वो बिना कोई आवाज़ किए, वहां से उलटे पाँव भागा और सीधा बाबा त्रिलोकनाथ के पास पहुँचा।
"बाबा... बाबा..." भैरव हांफते हुए बोला।
त्रिलोकनाथ ध्यानमग्न मुद्रा में बैठे थे, आंखें बंद। उन्होंने आंखें खोलीं, एक अजीब सी हँसी के साथ पूछा, "क्या हुआ रे भैरव? ऐसे काँप क्यों रहा है?"
"बाबा… अर्जुन... अर्जुन जंगल में किसी औरत के साथ है। लेकिन बाबा... वो कोई आम औरत नहीं है… उसकी आंखें… उसकी जीभ… बाबा, वो इच्छाधारी नागिन है!"
त्रिलोकनाथ के चेहरे पर एक पल के लिए हैरानी छिप नहीं सकी। फिर उनकी आंखों में लालच की चमक आ गई। उन्होंने गहरी सांस ली और बोले,
"तो ये खेल चल रहा है... इच्छाधारी नागिन... वर्षों से उसकी तलाश कर रहा था मैं। और आज ये लड़का उस तक पहुंच गया। हाहा… भाग्य का खेल देखो भैरव, अब ये नागिन हमारे हाथ आएगी।"
भैरव सहमा हुआ बोला, "लेकिन बाबा... वो बहुत शक्तिशाली लगती है। अगर उसने कुछ कर दिया तो?"
त्रिलोकनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा, "शक्ति ही तो चाहिए मुझे! उस नागिन की आत्मा... अगर वो मेरे वश में आ जाए, तो अमरत्व मेरा हो सकता है। नाग पंचमी बस कुछ ही दिन दूर है। यही दिन होगा जब उसकी शक्तियां सबसे अधिक सक्रिय होंगी… और यही सबसे कमजोर भी।"
भैरव ने धीरे से पूछा, "तो क्या करेंगे बाबा?"
त्रिलोकनाथ ने आंखें बंद कर लीं और धीरे-धीरे मंत्र बुदबुदाने लगे। फिर बोले,
"हम उसे धोखे से बुलाएंगे। अर्जुन के ज़रिए ही। वो अब उस पर भरोसा कर चुकी है। उस भरोसे को ही मैं ज़ंजीर बनाऊंगा।"
इस बीच जंगल में अर्जुन और नैना पास के एक जलाशय के किनारे बैठे थे। नैना ने अर्जुन को बताया कि कैसे त्रिलोकनाथ कोई सामान्य साधु नहीं है, बल्कि वो तांत्रिक विद्या में लिप्त है और वर्षों से नागमणि और इच्छाधारी प्राणियों की तलाश में है।
"वो तुम्हें बलि का बकरा बनाना चाहता था, अर्जुन," नैना ने कहा। "ताकि मैं सामने आऊं और वो मुझे पकड़ सके। लेकिन वो ये भूल गया कि इस बार उसका मुकाबला मुझसे है, और मैं अकेली नहीं हूं।"
अर्जुन अब पूरी तरह समझ गया था कि वो किस जाल में फँस रहा था। उसके भीतर एक अजीब सी हिम्मत आ गई थी।
"नैना, अगर तुम कहो, तो मैं उसका सामना कर सकता हूं। मगर मुझे नहीं पता मुझे क्या करना है।"
नैना ने अर्जुन की तरफ देखा, उसके माथे पर हाथ रखा, और उसकी आंखें बंद कर दीं।
"तुम सिर्फ एक आम इंसान नहीं हो अर्जुन… तुम्हारे अंदर भी एक शक्ति है… शायद तुम्हारी पूर्वजन्म की कोई अधूरी यात्रा अब पूरी होने वाली है। समय आने पर तुम्हें खुद ही सब समझ में आ जाएगा।"
इस बीच, त्रिलोकनाथ ने एक गुप्त अनुष्ठान शुरू कर दिया। उसने पंचतत्वों को मिलाकर एक मायावी संजाल रच डाला। एक ऐसा मंत्र, जो नागिन को अपनी ओर खींच सके। मगर उसके लिए ज़रूरी था – अर्जुन का रक्त। क्योंकि अर्जुन अब नैना से जुड़ चुका था। उसका खून अब नागिन को महसूस होने लगा था।
नाग पंचमी की रात... पूरा गांव चांदनी में नहाया हुआ था। मगर जंगल के अंदर कुछ और ही चल रहा था।
त्रिलोकनाथ ने एक मंडल बनाया, हवन कुंड जलाया और भैरव को आदेश दिया, "जाओ, अर्जुन को किसी भी तरह यहां ले आओ। उसके बिना ये यज्ञ अधूरा है।"
भैरव ने चालाकी से अर्जुन के घर के पास जाकर खबर फैलायी कि उसकी मां की तबियत बहुत खराब है और बाबा त्रिलोकनाथ ने बुलाया है।
अर्जुन भागता हुआ गया, मगर जैसे ही उसने बाबा के स्थान में कदम रखा, ज़मीन जैसे काँपने लगी। उसके पैरों के नीचे से एक हल्की सी कंपन हुई। और तभी नैना की आंखें भी एक झटका खा गईं। उसने महसूस कर लिया – अर्जुन खतरे में है।
"अब और नहीं," नैना ने कहा। "अब मुझे सामने आना ही होगा।"
उधर, त्रिलोकनाथ ने जैसे ही अर्जुन को बांधने की कोशिश की, अर्जुन चिल्लाया, "बाबा, ये क्या कर रहे हैं आप! आपने तो कहा था कि मेरी भलाई के लिए…!"
त्रिलोकनाथ की आंखें लाल हो चुकी थीं, "तेरी भलाई? मूर्ख! तुझे तो मोहरा बनाया गया। तेरे खून से नागिन को इस यज्ञ में बांधूँगा और उसकी सारी शक्तियाँ मेरे अंदर समा जाएंगी!"
अर्जुन चिल्लाया, "नैना!!"
और जैसे ही उसका स्वर गूंजा, एक तेज़ हवा उठी। पेड़ हिलने लगे। और बीच हवनकुंड में धुआं घना हो गया। और उसी धुएं से एक आकृति निकली – काली, चमचमाती, लेकिन तेजस्वी। नैना आ चुकी थी।
उसने जैसे ही त्रिलोकनाथ को देखा, उसकी आंखों में गुस्सा भर गया।
"मुझे छल से बुलाया है तुमने… अब इसका परिणाम भी भोगोगे!"
त्रिलोकनाथ ने मंत्र पढ़ने शुरू किए। हवनकुंड की लपटें ऊपर उठीं, मगर नैना अब अपने पूर्ण रूप में थी – इच्छाधारी नागिन। उसके बाल हवा में लहरा रहे थे, आंखें नीली आग जैसी चमक रही थीं, और उसकी आभा इतनी तेज थी कि भैरव कांप कर जमीन पर गिर पड़ा।
"तुम्हें लगता है कि तुम मुझे वश में कर सकते हो?" नैना गरजी।
त्रिलोकनाथ ने एक आखिरी बार अर्जुन की तरफ देखा और फिर नागिन की तरफ मंत्र छोड़ने की कोशिश की, मगर उससे पहले नैना ने एक फुफकार मारी – एक तेज़ सीं-सां करती लहर उसके मुंह से निकली और हवनकुंड की सारी अग्नि बुझा दी।
त्रिलोकनाथ वहीं जमीन पर गिर गया, उसका शरीर कंपकंपा रहा था। उसकी आंखों में डर था, और चेहरा राख सा सफेद हो गया।
नैना ने अर्जुन को आज़ाद किया, उसके बंधन खोलते हुए कहा, "अब सब ठीक है। मगर ये सिर्फ शुरुआत है अर्जुन। अब तुम्हारा भाग्य बदलने वाला है।"
अर्जुन ने धीरे से कहा, "नैना… अब मैं जानता हूं कि मुझे डर नहीं, तुम्हारा साथ चाहिए।"
नैना मुस्कराई। मगर उसकी आंखों में कोई और बात थी – जैसे कुछ छुपा रही हो।
"डर की बात नहीं अर्जुन… मगर जो सामने आने वाला है, वो पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक है।"
जंगल अब शांत था। मगर हवा में अभी भी एक हल्की सी सरसराहट बाकी थी – जैसे कोई और आंधी आने वाली हो…
गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था। नाग पंचमी की रात जो कुछ हुआ था, वो किसी ने ठीक से देखा नहीं, लेकिन सबने महसूस किया था — ज़मीन का कांपना, हवा का रुक जाना, और आसमान में उठती रहस्यमयी धुंध। सुबह होते-होते ये खबर पूरे सीतानगर में फैल चुकी थी कि बाबा त्रिलोकनाथ अब न घर में हैं, न गुफा में, न मंदिर में। और उसका चेला भैरव — वो तो जैसे अपना होश ही खो बैठा था। आंखें खुली की खुली, मुंह में सिर्फ एक ही शब्द, "नागिन… नागिन…"
गांव के बुजुर्ग जो वर्षों से त्रिलोकनाथ की पूजा करते थे, अब मंदिर के पास भी जाने से डरते थे। बच्चों को सख्त हिदायत दी गई — "उस तरफ पैर मत रखना। वहां अब कोई इंसानी चीज़ नहीं रहती।"
लेकिन गांव के लोगों की ये डर सिर्फ त्रिलोकनाथ की गुफा तक ही सीमित नहीं था। अब अर्जुन और उस रहस्यमयी लड़की की चर्चा हर घर में थी। कोई कहता कि वो नागिन है, कोई कहता कि वो देवी है। लेकिन जो भी था, अब किसी की हिम्मत नहीं थी कि उनकी तरफ आंख उठाकर भी देख ले।
अर्जुन अब गांव में ही था, लेकिन उसका चेहरा पहले से बदल चुका था। उसकी आंखों में एक ठहराव था, आत्मविश्वास था, और कुछ ऐसा जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता था। और नैना — वो अक्सर रात के वक्त जंगल की ओर चली जाती, जहां वो घंटों बैठकर ध्यान करती थी। अर्जुन जानता था कि वो कुछ छुपा रही है, मगर अब वो सवाल नहीं करता था। क्योंकि उसके दिल में अब सिर्फ एक भावना थी — विश्वास।
एक रात, अर्जुन नदी किनारे बैठा था। चांदनी साफ़ चमक रही थी। तभी नैना आई, चुपचाप पास आकर बैठ गई।
"कुछ कहना चाहती हो?" अर्जुन ने पूछा।
"हां," नैना ने बिना उसकी तरफ देखे कहा। "वो खतरा… जिसके बारे में मैंने उस रात कहा था… अब वो नजदीक है।"
"कौन है वो?" अर्जुन ने गर्दन मोड़कर पूछा।
नैना ने गहरी सांस ली। उसकी आंखें अचानक तेज़ रोशनी से चमकने लगीं।
"नागलोक में एक नियम है अर्जुन — कोई इच्छाधारी नागिन अगर इंसान से प्रेम कर बैठे… तो नागलोक की राजसभा उसे दंड देती है। और अगर वो प्रेम आगे बढ़े… तो एक खास योद्धा भेजा जाता है — जिसे कहते हैं 'विरुधनाग'।"
"विरुधनाग?" अर्जुन ने दोहराया।
"हां," नैना ने उसकी तरफ देखा। "वो नागों का दंडाधिकारी है। शक्तियों में मुझसे कहीं अधिक। और अब वो आ रहा है… मुझे वापस खींचने… या नष्ट करने।"
अर्जुन चुप हो गया। कुछ पल बाद बोला, "तो क्या हम भाग नहीं सकते?"
नैना ने सिर हिलाया, "नहीं अर्जुन। ये लड़ाई भागने की नहीं है। ये लड़ाई मेरी पहचान की है। मैं सिर्फ एक नागिन नहीं, अब मैं तुम्हारी जीवन संगिनी बन चुकी हूं। और इसके लिए मुझे लड़ना ही होगा — अपने अस्तित्व के लिए, अपने प्रेम के लिए।"
अगले कुछ दिन शांत बीते, लेकिन हवा में अजीब सी बेचैनी थी। और फिर... वो रात आई।
गांव के पालतू जानवर जोर-जोर से चिल्लाने लगे, पेड़ बिना हवा के झुकने लगे, और नदी का पानी उल्टी दिशा में बहने लगा। जैसे कोई बहुत भारी शक्ति पृथ्वी पर उतर रही हो।
अर्जुन और नैना उसी मंदिर के पास थे, जहां पहली बार मिले थे। और तभी… हवा में एक भयानक सी सीटी की आवाज़ आई — जैसे किसी नाग की फुफकार पूरी घाटी में गूंज रही हो।
आसमान में एक काली छाया उतरी। वो मानवी आकृति में था, मगर उसकी त्वचा पर नागों की जैसी छाल थी, आंखें लाल, और शरीर इतना विशाल कि उसके कदम से ज़मीन कांप उठी।
"नैना!" उसकी आवाज़ गूंज उठी, "तुमने नागों के नियम तोड़े हैं। अब या तो मेरे साथ चलो… या मृत्यु को स्वीकार करो!"
नैना ने खुद को मनुष्य रूप से नाग रूप में बदला — आंखें नीली, शरीर पर चांदी जैसी धारियां। उसकी फुफकार से पेड़ कांप गए।
"विरुधनाग! मैं अब तुम्हारी आज्ञा का पालन नहीं करूंगी। मैं अपने प्रेम की रक्षा करूंगी!"
विरुधनाग हँसा — गूंजती हुई, डरावनी हँसी। "तुम्हारा प्रेम एक मानव है! एक कमजोर प्राणी! उसके लिए तुम अपनी जाति को त्याग दोगी?"
"अगर त्यागना पड़े तो हां।" नैना गरजी।
और फिर शुरू हुई लड़ाई — धरती और आकाश के बीच। नाग और नागिन के बीच। विरुधनाग ने अपने पूंछ से बिजली की लहर छोड़ी, मगर नैना हवा में चक्कर काटती हुई उससे बच गई। उसने अपनी जुबान से आग की लपट छोड़ी, जिससे पास का पेड़ जलकर राख हो गया।
अर्जुन ने दूर खड़े होकर देखा, परंतु चुप नहीं रहा। उसने पास के मंदिर से त्रिशूल उठाया, जो वहां वर्षों से टंगा था।
"नैना! पीछे हटो!" अर्जुन चिल्लाया।
नैना चौंकी, "नहीं अर्जुन! ये नाग युद्ध है, इसमें इंसानों का दखल…"
मगर अर्जुन दौड़ पड़ा। वो नहीं जानता था कि उसमें क्या शक्ति है, लेकिन नैना ने एक बार कहा था — "वक्त आने पर सब खुद समझ जाओगे।"
और वही हुआ।
जैसे ही अर्जुन ने त्रिशूल को ऊपर उठाया, उसकी आंखों में नीली चमक दौड़ गई। शरीर से एक तेज़ प्रकाश फूटा — मानो किसी देवी का आशीर्वाद उसमें समा गया हो।
विरुधनाग ने चौंक कर देखा, "ये क्या है? ये मानव…!"
अर्जुन ने त्रिशूल घुमाकर विरुधनाग की ओर फेंका — वह सीधे उसकी छाती में जा धंसा। एक भयानक चीख हवा में गूंजी, जैसे पूरा नागलोक दहल गया हो।
विरुधनाग ज़मीन पर गिरा, उसके शरीर से धुआं निकलने लगा। वो कराहते हुए बोला, "ये शक्ति… ये नागबल… इस मानव में कैसे?"
नैना धीरे से बोली, "क्योंकि ये सिर्फ मानव नहीं है। ये मेरी आत्मा का हिस्सा है। और प्रेम में शक्ति होती है — जितनी तुम सोच भी नहीं सकते।"
विरुधनाग की आंखें बंद हो गईं, और उसका शरीर राख में बदल गया — हवा में उड़ता हुआ, जैसे कभी था ही नहीं।
सारा जंगल शांत हो गया।
उस रात के बाद सीतानगर के लोग न अर्जुन को सामने से टोकते, न नैना को देखते। जो पहले ताना मारते थे, अब हाथ जोड़कर दूर से नमस्कार करते थे।
गांव के तांत्रिकों ने अपने सामान जला डाले। उन्होंने समझ लिया था — अब पुरानी चालाकियां नहीं चलेंगी। और अगर किसी ने भी अपनी सीमा लांघी, तो सिर्फ एक फुफकार ही काफ़ी होगी।
अर्जुन और नैना अब गांव के बाहर एक छोटी सी झोंपड़ी में रहते थे — नदी किनारे। वहां शांति थी, और प्रेम भी। मगर नैना अब भी रात को आसमान की तरफ देखती थी… क्योंकि उसे पता था…
अब जो खतरा टला है… वो बस एक चरण था।
नागलोक चुप बैठा नहीं रहेगा… और इंसानी लोभ भी कब खत्म हुआ है?
पर वो तैयार थी।
इस बार अकेली नहीं थी।
उसका अर्जुन उसके साथ था।
नदी किनारे हल्की सी ठंडी हवा बह रही थी। अर्जुन और नैना अपनी छोटी सी झोपड़ी के बाहर बैठे थे। पास में चूल्हे पर चाय चढ़ी थी और आसमान में तारे साफ़ दिख रहे थे। नैना की नज़र बार-बार दूर आकाश की तरफ जा रही थी, जैसे कोई अनजानी बेचैनी उसके मन में घूम रही हो।
"तुम कुछ सोच रही हो?" अर्जुन ने धीरे से पूछा, उसकी उंगलियां नैना की हथेली पर रखी थीं।
नैना ने एक फीकी सी मुस्कान दी, "तुम्हें पता है अर्जुन… नागलोक की चुप्पी सबसे बड़ा तूफ़ान होती है। जब वहां से कोई जवाब नहीं आता, तो समझ जाओ कि वहां कुछ बड़ा पक रहा है।"
अर्जुन ने उसकी उंगलियों को थोड़ा और कस कर थामा, "जो भी हो… मैं तुम्हारे साथ हूं।"
नैना उसकी तरफ देखती रही। उसकी आंखों में एक अजीब सा अपनापन था — जैसे किसी ने सदियों से उसे देखा ही नहीं था उस नजर से।
"यही तो डर है अर्जुन…" नैना ने धीमे से कहा, "अगर नागलोक ने तुम्हें मुझसे छीनने की कोशिश की तो? अगर उन्होंने फैसला कर लिया हो कि हमें अलग करना ही है?"
अर्जुन ने हल्के से मुस्कराते हुए कहा, "अगर वो हमें अलग करने आएंगे… तो उन्हें पहले हमें समझना होगा। और हम दोनों अब सिर्फ दो शरीर नहीं हैं, नैना… हम एक आत्मा बन चुके हैं।"
अगली सुबह, कुछ अजीब हुआ।
झोपड़ी के बाहर ज़मीन पर एक निशान बना था — सांप की पूंछ जैसा, लेकिन आग में जली हुई लकीर जैसी। अर्जुन ने देखा, नैना का चेहरा फौरन गंभीर हो गया।
"ये उनका संदेश है," उसने कहा।
"किसका?"
"नागलोक का। ये 'शमन-चक्र' है। इसका मतलब है कि अब अंतिम फैसला लिया जाएगा। मुझे बुलाया गया है नागलोक की सभा में।"
"और मैं?"
"तुम… तुम साथ नहीं आ सकते अर्जुन। इंसानों को वहां अनुमति नहीं है।"
"लेकिन मैं कैसे मान लूं कि तुम अकेली जाकर…"
"तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना?" नैना ने उसकी आंखों में देखा। "तो फिर सिर्फ एक बार, बस एक बार और, मेरी बात मान लो।"
अर्जुन कुछ कह नहीं सका। उसने बस उसके माथे को चूमा और कहा, "जाओ… लेकिन वापस ज़रूर आना। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा।"
उस रात नैना ने अपनी पुरानी चमड़ी को फिर से धारण किया — पूरी नागिन रूप में, वो आकाश की तरफ उठी, जैसे हवा में तैर रही हो। कुछ ही क्षणों में वह नज़र से ओझल हो गई।
नागलोक — वो जगह जहां हर दीवार जिंदा लगती थी, जहां हर कोना हज़ारों साल की कहानियां बयां करता था। नैना सीधे सभा स्थल पर पहुंची। वहां पहले से कई नाग-नागिनें बैठे थे, जिनके चेहरे सख्त, भावहीन थे।
सभा के बीचों-बीच एक सिंहासन था — उस पर बैठा था 'नागराज अधिनाग' — नागलोक का सर्वोच्च शासक।
"नैना," उसकी भारी आवाज़ गूंजी, "तुम पर आरोप है कि तुमने एक मानव से प्रेम किया, नाग नियमों को तोड़ा, और नाग योद्धा विरुधनाग को नष्ट किया। तुम जानती हो इस अपराध की सज़ा क्या होती है?"
नैना ने नज़रें झुकाए बिना कहा, "जानती हूं। लेकिन मैं ये भी जानती हूं कि विरुधनाग को मारने की वजह प्रेम नहीं थी, बल्कि आत्मरक्षा थी।"
सभा में हलचल हुई।
"तुम एक मानव के लिए अपनी जाति को छोड़ दोगी?" अधिनाग ने पूछा।
"नहीं महाराज," नैना बोली, "मैंने अपनी जाति को नहीं छोड़ा। लेकिन मैंने उस इंसान को चुना, जिसने मुझे सिर्फ एक नागिन की नज़र से नहीं देखा। जिसने मेरी आत्मा को समझा। और अगर इस प्रेम को अपराध माना जाए, तो मैं हर जनम में ये अपराध करने को तैयार हूं।"
सभा में कुछ बुजुर्ग नाग बोले, "मगर प्रेम के नाम पर नागलोक के नियम नहीं बदले जा सकते। नहीं तो हर इच्छाधारी मनमर्जी करेगा।"
नैना ने गहरी सांस ली, "अगर मेरी सज़ा तय है… तो दे दीजिए। लेकिन एक बार अर्जुन को बुलाइए। उसे सामने रखिए, और फिर मेरी आंखों में देख कर फैसला कीजिए।"
सभा में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था — किसी नागिन ने मानव को नागसभा में बुलाने की हिम्मत की हो।
लेकिन अधिनाग ने कहा, "ठीक है। अगर तुम्हारा प्रेम सच्चा है… तो वह इस अग्निपरीक्षा से गुज़रे। अगर वह जीवित बचा, तो तुम दोनों को माफ़ी मिल सकती है।"
नैना चौंकी, "नहीं! ये अन्याय है।"
"तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो डर कैसा?"
नैना के सामने कोई विकल्प नहीं था।
उधर, उसी रात अर्जुन को सपना आया — नैना उसे पुकार रही थी।
सुबह होते ही, उसने बिना किसी से कुछ कहे झोपड़ी छोड़ी और वही रास्ता लिया, जो नैना गई थी। लेकिन जैसे ही वो नदी के पार पहुंचा, एक तेज़ रोशनी उसके चारों ओर फैल गई… और जब होश आया, तो उसने खुद को नागलोक की सीमा पर खड़ा पाया।
नैना वहीं खड़ी थी।
"तुम आ गए…" उसकी आंखें नम थीं।
"क्या सोचा था? कि बुलाओगी और मैं नहीं आऊंगा?"
सभा फिर से जुटी। अधिनाग ने कहा, "मानव अर्जुन… अगर तुम सच्चे हो, तो इस अग्निपथ से गुजर कर दिखाओ। सिर्फ वो ही नागिन का सच्चा जीवनसाथी बन सकता है, जो अपनी आत्मा की अग्नि में निखर कर निकले।"
अर्जुन ने बिना कुछ बोले उस अग्निपथ पर कदम रख दिया।
जैसे ही पहला कदम पड़ा, ज़मीन जल उठी, उसकी त्वचा तपने लगी, मगर उसने रुक कर एक बार नैना को देखा — और आगे बढ़ता गया। आग उसकी रगों में उतर रही थी, मगर उसके मन में सिर्फ एक ही बात थी — नैना।
जैसे-जैसे उसने कदम बढ़ाए, उसके शरीर की सारी सीमाएं टूटने लगीं — मगर साथ ही उसकी आंखों से रोशनी भी निकलने लगी। हर दर्द, हर जलन, जैसे प्रेम की शक्ति में घुल रही थी।
अंत में, जब वो आखिरी पत्थर पर पहुंचा, आग बुझ गई।
सभा में सन्नाटा था।
नागराज अधिनाग खुद उठ खड़ा हुआ।
"हमने आज देखा — एक मानव भी प्रेम की उस ऊंचाई को छू सकता है, जहां देवता भी नहीं पहुंच पाते। अर्जुन, तुम अब सिर्फ मानव नहीं रहे… तुम्हारे अंदर नाग तत्व जाग गया है।"
नैना की आंखों से आंसू बह निकले।
"अब से तुम दोनों नागलोक और पृथ्वीलोक के पुल हो। और मैं इस सभा की ओर से तुम्हें आशीर्वाद देता हूं।"
सभा की पूरी भीड़ ने सिर झुका दिए।
नैना दौड़कर अर्जुन से लिपट गई। वो सिर्फ लिपटी नहीं — उसमें जैसे उसके सारे जन्मों की थकावट उतर गई थी।
उस दिन नागलोक ने सिर्फ दो प्रेमियों को स्वीकार नहीं किया… उसने प्रेम की ताकत को मान्यता दी।
और जब अर्जुन और नैना लौटे — तो उनके पीछे सिर्फ आशीर्वाद नहीं था…
बल्कि पूरा नागलोक उनकी रक्षा की सौगंध लेकर पीछे खड़ा था।
अब सीतानगर में न कोई आंख उठाता, न कोई आवाज़ निकालता। और अगर कोई बच्चा गलती से पूछ भी लेता — “वो नागिन आंटी कौन हैं?”
तो मां बस इतना कहती, “वो सिर्फ नागिन नहीं बेटा… वो प्रेम है।”
झोपड़ी के बाहर बारिश की हल्की बूंदें पड़ रही थीं। मिट्टी की सौंधी खुशबू पूरे माहौल में घुली थी। अर्जुन चुपचाप नैना के भीगे बालों में उंगलियां फेर रहा था और नैना उसकी गोद में सिर रखे धीरे-धीरे सांस ले रही थी — जैसे सारी थकान उसके सीने पर रख दी हो। चूल्हे पर खिचड़ी पक रही थी, पास में दिए की लौ टिमटिमा रही थी, और दिल के अंदर… एक अलग ही सी गर्माहट थी।
"तुम्हें पता है," नैना बोली, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि कोई मुझसे इस तरह भी प्यार करेगा… मेरे नागिन रूप के बाद भी, मेरे भूत के बावजूद…"
अर्जुन ने उसकी ठंडी हथेलियां अपने गालों से लगाईं, "तुमने कभी आईने में खुद को देखा भी है क्या? जो तुम हो… वो किसी जन्म में हो ही नहीं सकता। और वैसे भी, तुम नागिन नहीं हो… मेरी जान हो।"
नैना हँस पड़ी — वो हँसी जिसमें बचपन का सुकून, जवानी का जोश और जन्मों का अपनापन सब कुछ था।
"तो फिर शादी क्यों नहीं कर लेते हम?" उसने चुपचाप पूछा।
अर्जुन चौंका नहीं। वो बस मुस्कराया।
"करते हैं। लेकिन तुम्हारे हिसाब से, तुम्हारी तरह — नागिन स्टाइल में। जंगल, नदी, चाँदनी और सिर्फ हम दोनों।"
नैना एकदम उठकर बैठ गई, उसकी आंखें चमकने लगीं, "सच?"
"एकदम सौ प्रतिशत।"
कुछ दिनों बाद...
जंगल में एक खूबसूरत सी खुली जगह थी — चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे सागौन के पेड़, बीच में साफ मैदान, और ऊपर खुला आसमान। वहां ना कोई पंडित था, ना कोई घुंघरू, ना कोई बैंड। सिर्फ कुछ मोर नाच रहे थे, चिड़ियों की चहचहाहट थी, और एक पुराना सा मृदंग जिसे अर्जुन खुद बजा रहा था।
नैना ने खुद ही अपनी शादी की साड़ी बुनी थी — सफेद रंग की, किनारे पर नीले और चांदी के पैटर्न, जो उसकी नाग त्वचा की तरह चमकते थे। उसके गले में कोई हार नहीं था — बस एक छोटा सा पत्ता, जिसे अर्जुन ने अपने हाथ से तोड़ कर एक धागे में पिरोया था।
शादी में कोई भीड़ नहीं थी — सिर्फ दो साक्षी थे।
आकाश और पृथ्वी।
नदी के किनारे खड़े होकर दोनों ने एक-दूसरे की आंखों में देखा।
"तुम मुझे स्वीकार करती हो?" अर्जुन ने पूछा, मुस्कराते हुए।
नैना ने सिर हिलाया, "हर जन्म में।"
"और तुम?" नैना बोली।
"जैसे सांप अपने पुराने चोले को छोड़ देता है… वैसे ही मैं अपनी पुरानी जिंदगी को छोड़ चुका हूं। अब सिर्फ तुम्हारा हूं।"
फिर नैना ने अपना नागिन रूप लिया, और अर्जुन ने अपनी आंखें बंद कर लीं — मगर डर के मारे नहीं, उस भक्ति से… उस आदर से जो उसके दिल में था।
नैना ने धीरे से अपनी पूंछ को उसकी कलाई पर लपेटा — नागलोक की भाषा में यह ‘बंधन’ कहलाता है। शादी का सबसे बड़ा प्रतीक।
अर्जुन ने उसके माथे पर एक चुटकी मिट्टी लगाई — नागलोक में इसे "धरती का सिंदूर" कहा जाता है।
फिर दोनों चुपचाप नदी में उतर गए। ठंडी लहरों ने उनके पैरों को छुआ, और अर्जुन ने हाथ जोड़कर कहा, "हे नदी माता, गवाह बनो इस मिलन की।"
नदी की लहरें जैसे जवाब में हल्की सी उछलीं — और फिर सब कुछ शांत हो गया।
उस रात दोनों वहीं नदी किनारे एक चटाई पर बैठे थे। चाँद ऊपर था, हवा में बेला की खुशबू थी, और उनके बीच — एक चुप्पी थी, जो बोलती थी।
"अर्जुन…"
"हां…"
"क्या तुम अब भी सोचते हो कि ये सब सपना है?"
"अगर सपना है, तो मैं कभी जागना नहीं चाहता।"
नैना धीरे से उसकी गोद में लेट गई। अर्जुन ने उसके बालों में उंगलियां फेरीं, और नैना ने उसकी छाती पर हल्की सी थपकी दी, "अब ये दिल सिर्फ मेरा है।"
"हमेशा से।"
धीरे-धीरे बारिश फिर शुरू हो गई। बूंदें उनके बदन पर गिर रहीं थीं, लेकिन वो दोनों वैसे ही बैठे रहे — गीले, लेकिन सजे हुए, भीगे मगर पूरे हो चुके।
नैना ने उसके कान में धीरे से कहा, "तुम्हें पता है अर्जुन… नागिनों का प्यार बहुत गहरा होता है। हम एक बार जिसे चुन लें… फिर कभी पीछे नहीं हटते।"
"तो मैं तुम्हारी किस्मत बन गया?" अर्जुन ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"नहीं… किस्मत तो वो होती है जो मिलती है… तुम मेरी चाहत हो, मेरी लड़ाई हो, मेरी जीत हो।"
अर्जुन ने हल्के से उसका चेहरा ऊपर उठाया — और चूम लिया।
ना ज़मीन कांपी, ना आसमान गूंजा — बस कुछ पल के लिए, सारी कायनात थम सी गई।
क्योंकि वो दो आत्माएं, जो जन्मों से रास्ता खोज रही थीं… अब एक ही धड़कन में बंध चुकी थीं।
रात लंबी थी… और प्यार अब रुका नहीं।
तारों की गवाही में, चूल्हे की राख में, नदी की लहरों में, और उन दो धड़कनों के मेल में…
अब सब कुछ बस प्रेम था।
पूरा, गहरा, और हमेशा के लिए।
झील के किनारे हल्की सी धूप फैली थी। रात की ओस अब पत्तों से गिरकर ज़मीन में समा चुकी थी और हवा में हल्का सा फूलों का मीठा गंध तैर रहा था। आसमान बिल्कुल साफ था, नीला और गहरा, जैसे आज प्रकृति भी अपने सबसे सुंदर रूप में खुद को सजा रही हो।
नैना झील के पास एक पुराने पत्थर के चबूतरे पर बैठी थी। उसके बाल खुले हुए थे, और उसने एक हल्की गुलाबी साड़ी पहन रखी थी — साड़ी का पल्लू हवा में उड़ रहा था, जैसे कोई चंचल परिंदा आसमान को छूना चाहता हो। उसके माथे पर हल्दी की हल्की चमक, आंखों में शरारत और होंठों पर वो मुस्कान थी जो सदियों तक किसी का चैन छीन सकती थी।
अर्जुन थोड़ी दूर से आते हुए उसकी ओर देख रहा था — धीरे-धीरे, थमे कदमों से, जैसे उस पल को जल्द नहीं बिताना चाहता। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी — जैसे किसी फकीर को उसकी मुराद मिल गई हो।
"तुम इतनी सुंदर लग रही हो, नैना, कि लगता है सूरज भी आज तुमसे जल कर बादलों में छुप गया है," अर्जुन मुस्कराया।
नैना उसकी ओर देख कर हँसी, "आज सिर्फ सुंदरता की बात मत करो अर्जुन… आज कुछ नया करना है… कुछ ऐसा जो शायद ही किसी ने कभी देखा हो, महसूस किया हो…"
"क्या?" अर्जुन ने चौंकते हुए पूछा।
नैना उठ खड़ी हुई। उसकी साड़ी की लहराती झालरें ज़मीन को छू रही थीं। उसने दोनों हाथों से अपनी साड़ी का पल्लू फैलाया और बोली, "आज तुम मेरी गोद में बैठोगे।"
अर्जुन की आंखों में हल्की सी हँसी और हैरानी एक साथ थी। "मैं? तुम्हारी गोद में?"
"हां… हमेशा तुमने मुझे अपनी बाहों में लिया है… हमेशा मैंने तुम्हारे सीने पर सिर रखकर चैन पाया है… आज मैं तुम्हें अपनी गोद दूंगी। उस रूप में… जिसमें सिर्फ औरत ही नहीं, पूरी सृष्टि समा जाती है।"
नैना ने अपनी साड़ी को चारों ओर फैला लिया, और चबूतरे पर बैठते हुए अपने घुटनों को मोड़ लिया। उसने अपने पल्लू से एक छोटा सा घेरा बनाया और धीरे से कहा, "आओ अर्जुन, ये जगह अब सिर्फ तुम्हारे लिए है।"
अर्जुन एक क्षण के लिए चुप रहा। उसने नैना की आंखों में देखा — वहां कोई मज़ाक नहीं था, कोई शरारत नहीं… बस सच्चा, साफ, निर्मल प्रेम था। ऐसा प्रेम जो पुरुष को सिर्फ वीर नहीं, बच्चा भी बनाता है।
वो धीरे से उसकी ओर बढ़ा, और जैसे कोई थका हुआ पंछी अपनी सबसे सुरक्षित डाल पर लौटता है, वैसे ही वो नैना की गोद में बैठ गया — उसकी दोनों जांघों के बीच, सीधा उसके बदन से लगकर।
नैना ने अपने पल्लू को दोनों ओर से फैला कर अर्जुन को ढँक लिया। उसके बालों में उंगलियां फिराते हुए वो कुछ नहीं बोल रही थी, लेकिन उसकी सांसों की गर्मी से अर्जुन का दिल धड़क रहा था।
"तुम जानती हो नैना," अर्जुन ने धीरे से कहा, "इस दुनिया में हर पुरुष को लगता है कि उसे मज़बूत दिखना है… लेकिन जब मैं तुम्हारी गोद में होता हूं, तो मैं खुद को सबसे ज़्यादा पूरा महसूस करता हूं… कमज़ोर नहीं, संपूर्ण।"
नैना ने उसका सिर चूम लिया, "यही तो प्रेम है अर्जुन… जहाँ तुम कुछ साबित नहीं करते, बस हो… और मैं तुम्हें वैसे ही अपना लेती हूं जैसे तुम हो।"
अर्जुन ने अपना चेहरा उसकी साड़ी में छुपा लिया। उसकी सांसें तेज़ थीं, और दिल की धड़कनें जैसे एक लय में बज रही थीं — नैना के धड़कनों के साथ मिलकर।
अब उसका सिर नैना की छाती पर था, और नैना अपने घुटनों पर झुकी हुई उसे थामे हुए थी — जैसे कोई नदी अपने किनारे को समेट रही हो।
"आज मैं सिर्फ नागिन नहीं हूं अर्जुन," नैना ने फुसफुसाते हुए कहा, "मैं आज एक व्यास हूं… एक स्त्री का वो रूप जो तुम्हें अपने भीतर सहेज रही है।"
अर्जुन ने आंखें मूंद लीं।
उसके लिए ये दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह थी — ना कोई डर, ना कोई संघर्ष, बस प्रेम।
नैना की साड़ी अब हवा में उड़ रही थी, और उसका पल्लू अर्जुन के चेहरे को ढँक रहा था। उस पल्लू के नीचे अब सिर्फ एक प्रेम था — जो शब्दों से नहीं, स्पर्श से बंधा था।
नैना ने अपनी उंगलियां उसके माथे पर रखी और बोली, "तुम्हारी हर थकान, हर सवाल, हर डर… अब मेरी सांसों में समा चुका है।"
अर्जुन उसकी गोद में हल्का सा ऊपर उठा और उसकी आंखों में देखा। "क्या मैं हमेशा यहां रह सकता हूं?"
नैना ने बिना कुछ कहे, बस उसकी पीठ पर उंगलियों से एक वृत्त बनाया — जैसे किसी मंत्र की तरह।
फिर वो दोनों वहीं बैठे रहे — उसकी साड़ी के नीचे, हवा की नरम थपकियों में, झील की हल्की-हल्की लहरों की गूंज में।
समय जैसे रुक गया था। चिड़ियाँ चुप थीं। सूरज अब ढल रहा था। और दोनों की परछाइयाँ एक-दूसरे में घुल रही थीं।
नैना ने उसके बालों में अपनी नाक रगड़ी और कहा, "अब तुम सिर्फ प्रेम नहीं हो अर्जुन… तुम मेरी आत्मा में लिपटा हुआ विश्वास हो।"
अर्जुन ने अपनी उंगलियों से उसकी हथेली पकड़ी और हल्के से चूमा।
फिर वो पूरी शाम — उसकी गोद में बैठे-बैठे — बस एक-दूसरे की धड़कनों को सुनते रहे।
ना कोई पूजा थी, ना कोई शास्त्र।
बस एक स्त्री की गोद में बैठा पुरुष… और उसके चारों ओर उड़ता उसका पल्लू — जैसे आसमान ने खुद प्रेम को छू लिया हो।
---
---
---
नागिन का प्रेम: जब आत्मा प्रेम करती है और रहस्य एक शक्ति बन जाते हैं
मैं सोनू गुप्ता, एक ऐसा लेखक, जो कहानियों को केवल कल्पना का हिस्सा नहीं मानता, बल्कि उन्हें जीवन का आईना समझता है। मेरे लिए कहानी केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि वह एक पुल है – जो इंसान को उसके भीतर के अनुभवों, सवालों और भावनाओं से जोड़ता है। मेरा प्रयास यही रहता है कि जब आप मेरी लिखी कहानी पढ़ें, तो वह केवल आपकी आंखों से न गुज़रे, बल्कि आपके दिल और आत्मा से होकर जाए।
‘नागिन का प्रेम’ मेरी कल्पना की उपज नहीं, बल्कि मेरे भीतर उठते भावनात्मक तूफानों की एक अभिव्यक्ति है। यह एक ऐसी कहानी है जो प्रेम, आत्मबल, रहस्य और भीतर छुपी शक्ति के चारों ओर घूमती है। यह कहानी सिर्फ नागिन की नहीं, सिर्फ अर्जुन की नहीं – यह कहानी है उस भीतर की यात्रा की, जो हर इंसान कभी ना कभी तय करता है… या करना चाहता है।
---
अर्जुन: एक आम युवक, असामान्य संघर्षों के साथ
अर्जुन एक ऐसा युवक है जो बाहर से सामान्य लगता है, लेकिन भीतर से बेहद टूटा हुआ है। वह उन लाखों युवाओं की तरह है, जो जीवन की दौड़ में खुद को ही खो देते हैं। वह खुद को तब पहचान पाता है जब उसका सामना होता है एक रहस्यमय जंगल से – एक ऐसा जंगल जो असल में उसके अंदर छिपे डर, असुरक्षा और सवालों का प्रतिबिंब है।
---
जंगल: आत्मा का रहस्य
यह जंगल कोई साधारण स्थान नहीं है – यह अर्जुन की आत्मा का वह हिस्सा है, जहाँ वह खुद से टकराता है। हर पेड़, हर छाया, हर आहट उसके भीतर के छिपे भावों और अधूरी कहानियों की झलक देती है। यह जंगल उसके भीतर का युद्धक्षेत्र है – जहाँ उसे खुद से लड़ना है।
---
नैना: इच्छाधारी नागिन नहीं, प्रेम और शक्ति का प्रतीक
नैना एक इच्छाधारी नागिन है – लेकिन वह कोई डरावना रूप नहीं, बल्कि एक शक्ति है। वह अर्जुन के जीवन में केवल प्रेमिका बनकर नहीं आती – वह उसके भीतर की शक्ति को जगाने वाली शक्ति बन जाती है। नैना प्रेम की उस परिभाषा को जीवंत करती है जिसमें न शर्त है, न सीमा। वह अर्जुन को सिखाती है कि प्रेम केवल बाहरी जुड़ाव नहीं, बल्कि भीतर की सबसे गहरी पहचान है।
---
त्रिलोकनाथ: तांत्रिक नहीं, भीतर का अंधकार
त्रिलोकनाथ एक तांत्रिक है – लेकिन प्रतीक है उस नकारात्मक ऊर्जा का, जो हर इंसान के भीतर छुपी होती है। वह अर्जुन के डर, भ्रम और कमजोरियों का प्रतिनिधि है। उसका मकसद केवल प्रेम को खत्म करना नहीं है – बल्कि उस आत्म-ज्ञान को रोकना है जो अर्जुन को मुक्त कर सकता है। त्रिलोकनाथ हर उस विचार का रूप है जो कहता है – "तू असमर्थ है, तू प्रेम के लायक नहीं है।"
---
अर्जुन की आत्म-खोज की यात्रा
नैना का प्रेम अर्जुन को एक नई दृष्टि देता है। वह त्रिलोकनाथ से लड़ता है – लेकिन यह युद्ध बाहरी नहीं, भीतर का है। ना कोई तलवार है, ना कोई मंत्र। बस एक साहस है – खुद से लड़ने और सच्चाई से टकराने का साहस। यही अर्जुन की असली विजय है।
---
प्रतीकों की गहराई: कहानी के भीतर का दर्शन
अर्जुन – हम सबका प्रतिनिधि, जो खो गया है और अब खुद को खोज रहा है।
नैना – आत्मा की शक्ति, प्रेम का पवित्र रूप, और स्त्रीत्व की दिव्यता।
त्रिलोकनाथ – भीतर का अंधकार, संदेह और डर।
जंगल – आत्मा का वह रहस्यमय क्षेत्र, जहाँ भय और आत्मज्ञान दोनों छिपे हैं।
---
प्रेम: एक नई परिभाषा
‘नागिन का प्रेम’ यह सिखाती है कि प्रेम सिर्फ भावुकता नहीं, बल्कि आत्मिक उत्थान है। यह प्रेम आपको खुद से जोड़ता है, आपके भय को चुनौती देता है और आपकी आत्मा को मुक्त करता है। अर्जुन और नैना का प्रेम इस बात का प्रमाण है कि जब भावनाएं सच्ची हों, तो वे किसी भी बाधा को पार कर सकती हैं।
---
कहानी की प्रेरणा
यह कहानी मैंने इसलिए लिखी क्योंकि मुझे लगता है कि हर इंसान के भीतर एक अर्जुन और एक नैना है। अर्जुन – जो खोया हुआ है। नैना – जो उसे शक्ति देती है। और एक त्रिलोकनाथ – जो उसे हर रोज तोड़ने की कोशिश करता है। इस कहानी में वो सब कुछ है जो आज के समय में ज़रूरी है – प्रेम, पहचान, संघर्ष और आत्मबोध।
---
तो कैसी लगी आपको यह कहानी?
उम्मीद है आपको यह कहानी पसंद आई होगी।
अगर आप मुझसे कोई सवाल करना चाहते हैं, आपके मन में कोई विषय चल रहा है, या आप इस कहानी से जुड़ी कोई बात साझा करना चाहते हैं – तो कृपया मेरे व्हाट्सएप नंबर पर संपर्क करें।
📞 मेरा व्हाट्सएप नंबर है: [यहाँ अपना नंबर डालें]
---
⚠️ महत्वपूर्ण चेतावनी और 8303287668 सूचना:
यह नंबर केवल उन पाठकों के लिए है, जो इस कहानी से जुड़ना चाहते हैं, साहित्यिक चर्चा करना चाहते हैं या रचनात्मक संवाद में हिस्सा लेना चाहते हैं। कृपया इस नंबर का अनावश्यक कॉल, फालतू मैसेज, या निजी टोन में बकवास करने के लिए प्रयोग न करें।
जो व्यक्ति बार-बार समझाने के बाद भी इस नंबर का दुरुपयोग करते हैं, उनके नंबर को स्थायी रूप से ब्लॉक कर दिया जाएगा और उनके खिलाफ साइबर अपराध नियंत्रण विभाग में विधिक शिकायत दर्ज कराई जाएगी।
यह मंच रचनात्मक और सकारात्मक संवाद के लिए है, कृपया इसे बनाए रखें।
---
आपका सहयोग ही मुझे और बेहतर कहानियाँ लिखने की प्रेरणा देता है।
आप सभी का धन्यवाद।

