Priyanka Gupta

Drama Inspirational Children

4.0  

Priyanka Gupta

Drama Inspirational Children

तुझे सब पता चल जाता है

तुझे सब पता चल जाता है

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"तुझे सब पता है मेरी माँ। आप इसीलिए मुझसे मिलने चली आयी।" अपनी मम्मी को दरवाज़े पर खड़ा देखते ही किशोर अविनाश छोटे से बच्चे की तरह अपनी मम्मी से चिपक गया था। 

अविनाश की हालत देखकर देविका को रोना आ रहा था, लेकिन वह अपने आँसुओं को जज्ब कर गयी थी। अविनाश के सामने कमजोर पड़ती तो, अविनाश और बिलख उठता। 2 महीने में ही अविनाश का चेहरा मुरझा गया था। आँखें अंदर धँस गयी थी, चेहरे पर हड्डियाँ गिनी जा सकती थी। हट्टा -कट्टा अविनाश एकदम कमजोर हो गया था। उसने जो कपड़े पहने हुए थे, सब बाबाजी के चोला बन गए थे। 

अविनाश IIT -JEE की कोचिंग के लिए 10th के बाद ही कोटा आ गया था। देविका ने उसे आने से मना किया था कि, "तू मेरे बिना अकेले एक दिन नानी के पास तो रहता नहीं, वहाँ अकेले कैसे रहेगा ?"

"अरे मम्मी, मैं बड़ा हो गया हूँ। सब मैनेज कर लूँगा। आप 10th क्लास में पूरे जिले में फर्स्ट आये बच्चे से बात कर रहे हो।" अविनाश ने आत्मविश्वास से कहा था। 

"बेटा, तू नहीं रह पायेगा। तेरी माँ हूँ, तुझे तुझसे ज़्यादा जानती हूँ।" देविका ने कहा था। 

"मैं तो रह लूँगा। शायद आप ही नहीं रह पाओगे।" अविनाश ने शरारत से कहा था। 

"बहुत बड़ा हो गया है।" देविका ने कहा था। 

"बेटा, IIT-JEE की तैयारी 12th के बाद कर लेना। आजकल 12th के अंक भी रैंकिंग तय करते हैं।"अविनाश के पापा संजय ने भी समझाने की कोशिश की थी। 

"पापा, वो तो ठीक है। लेकिन कॉम्पिटिशन इतना बढ़ गया है, अगर मैं अभी से तैयारी नहीं करूँगा तो पीछे रह जाऊँगा। मैं 12th और IIT की तैयारी दोनों अच्छे से कर लूँगा।" अविनाश ने कहा। 

"ठीक है, बेटा।" संजय और देविका ने न चाहते हुए भी अपने बेटे की बात मान ली थी। उन्हें भी इस बात का इल्म तो था ही कि कॉम्पिटिशन बहुत बढ़ गया है। अगर हमने इसे रोका और यह चयनित नहीं हो पाया तो पूरी ज़िन्दगी यह बात इसे सालती रहेगी। 

संजय और देविका दोनों ही अविनाश को कोटा छोड़ आये थे। उन्होंने उसे कोचिंग में प्रवेश दिलवा दिया था। उसे एक जगह पेइंग गेस्ट रखवा दिया था। देविका ने कोचिंग और पेइंग गेस्ट मालकिन के फ़ोन नंबर ले लिए थे। 

संजय ने झिड़का भी था कि, "तुम्हें अपने बेटे पर भरोसा नहीं है क्या ? जो सबके फ़ोन नंबर लेकर चल रही हो। "

"तुम मेरे मामले में दखल मत दो। पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए।" देविका ने संजय की बातों की उपेक्षा करते हुए कहा था। 

देविका और संजय अविनाश को छोड़कर आ गए थे। अविनाश के जाने से घर सूना -सूना लगने लगा था। घर में बड़ी बेटी सिया थी, जो B. Com कर रही थी। वह जब -तब माहौल को हल्का बनाने की कोशिश करती रहती थी। 

अविनाश को गए हुए अभी महीना भर ही हुआ था कि पता चला उसके साथ वाले रूम में रहने वाले बच्चे ने आत्महत्या कर ली। पढ़ाई का बोझ, प्रतिस्पर्धा का दबाव और घरवालों से दूरी मासूम बच्चे सह नहीं पाते और ऐसे कदम उठा लेते हैं। अविनाश इन सबसे बहुत घबरा गया था। उसने घर पर फ़ोन करने भी कम कर दिए थे। देविका फ़ोन करती तो बड़े नपे-तुले शब्दों में जवाब देता था। 

देविका अपने बेटे की हालत समझ रही थी। उसने मकान मालकिन को फ़ोन लगाया, तब मकान मालकिन ने बताया कि, "अविनाश तो पिछले 15 दिनों से क्लास ही नहीं जा रहा है। वह अपने रूम से भी बाहर नहीं निकलता। "

देविका ने कोचिंग में फ़ोन लगाया और उन्होंने भी इस बात की पुष्टि कर दी कि, "अविनाश कई दिनों से क्लासेज अटेंड नहीं कर रहा और इतना ही नहीं उसके क्लास टेस्ट में बड़े ही कम नंबर आ रहे हैं। "

देविका समझ गयी थी कि, "अविनाश वहाँ ठीक नहीं है। लेकिन वह ज़िद करके गया था, इसीलिए वापस नहीं आ रहा है। "

"सुनो, मुझे अविनाश की बहुत याद आ रही है। मैंने २ दिन स्कूल से छुट्टी ले ली है। मैं आज ही कोटा उससे मिलने जा रही हूँ।"देविका ने संजय को बताया। 

"अगले हफ्ते तक रुक जाओ, फिर मैं भी चल लूँगा।" संजय ने कहा। 

"नहीं, अब तो छुट्टी मिल गयी है। अगले हफ्ते हमारे स्कूल में इंटर स्कूल फेस्ट हो रहा है, तब मुझे छुट्टी नहीं मिलेगी।"देविका ने कहा। 

"ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। जब तुम पहले ही सब तय कर चुकी हो तो पूछने की औपचारिकता क्यों ?",संजय ने तंज कसा। 

देविका ने संजय की बात की उपेक्षा कर दी थी। वैसे भी पति कितना ही आधुनिक होने का दम्भ भरे, पत्नी का स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना उसे कहाँ सुहाता है। देविका आत्मनिर्भर होकर भी सारे काम संजय से पूछकर ही तो करती थी। लेकिन यहाँ पर सवाल उसके बेटे का था। संजय साथ जाते तो शायद अविनाश डर से अपनी इच्छा खुलकर नहीं बताता। 

देविका २ दिन के खाने की तैयारी करके गयी, जिससे पीछे से संजय और सिया को कोई तकलीफ न हो। वह सब्जी बनाकर फ्रीज में रख गयी थी। एक दिन का आटा भी गूंथकर फ्रीज में रख गयी थी। एक समय का तो खाना भी बनाकर गयी थी। खुद के साथ ले जाने के लिए पूड़ी और आलू की सब्जी, आलू के परांठे और दानामेथी की सब्जी तो बनाई ही थी तो थोड़ी ज्यादा बना दी थी। दानामेथी तो कई दिनों तक खराब भी नहीं होती। 

माँ को सामने देखते ही अविनाश पुलकित था। अविनाश की मेस से दोपहर का खाना आया। दाल तो पानी जैसी थी, चावल इतने मोटे थे कि खाये न जाए, रोटी कच्ची थी, सब्जी तो एकदम ही फीकी थी। अविनाश ने कहा, "मम्मी आपने आदतें ऐसी कर दी हैं कि यह खाना खाया ही नहीं जाता। जब से आया हूँ, तब से कभी मैगी खाकर और कभी ब्रेड -बटर खाकर चला रहा हूँ। "

देविका ने अपने साथ लाया टिफ़िन खोल दिया। हमेशा तवे से उतरती रोटी खाने वाला अविनाश ठंडे परांठे और पूड़ी बहुत ही चाव से खाने लगा। देविका उसे भीगी आँखों से देख रही थी। 

"बेटा, तू वापस चल। मेरा वहाँ तेरे बिना मन नहीं लगता।" देविका ने कहा। 

"सच्ची मम्मी।" अविनाश ने ख़ुशी से चौंकते हुए पूछा। 

फिर एकदम से उदास होकर बोला, "मम्मी, कोचिंग में फीस भी दे दी। मकान मालिक को एडवांस भी दे दिया। पापा बहुत गुस्सा करेंगे। पैसे बर्बाद होंगे। "

"नहीं बेटा, तुझे इन सबके बारे में सोचने की जरूरत नहीं है। यहाँ तू कितना कमजोर हो गया है। उधर सिया भी तुझे याद कर -करके दुबली हो रही है। पापा कुछ नहीं कहेंगे।" देविका ने उसे समझाया। 

इतना कहकर देविका उसका सामान पैक करने लग गयी। देविका अविनाश के स्कूल उसकी TC लेने गयी। कोचिंग वाले कुछ स्कूलों से टाई अप करके रखते हैं ताकि बच्चे प्रैक्टिकल और एग्जाम दे सकें। अविनाश की हालत से प्रधानाध्यापक पहले से ही वाकिफ थे, अतः फटाफट TC दे दी। देविका कोचिंग भी गयी, अगर कुछ फीस वापस दे दें। लेकिन कोचिंग वालों ने फीस वापस देने से सख्त मना कर दिया। देविका के लिए वैसे भी पैसे से ज्यादा जरूरी अविनाश का ठीक होना और खुश रहना था। 

देविका अविनाश को अपने साथ लेकर वापस आ गयी थी। संजय ने थोड़ी नाराज़गी दिखाई, लेकिन बाद में समझ गए। पापा नारियल की तरह होते हैं, ऊपर से सख्त और अंदर से नरम। सिया तो अविनाश को वापस आया देखकर ख़ुशी से पागल हो रही थी। देविका और संजय अविनाश का एडमिशन करवाने उसके पुराने स्कूल गए। काफी मिन्नतों के बाद अविनाश को एडमिशन मिल गया। 

अविनाश दोबारा सही ट्रैक पर आ गया था। उसने 12th में मेरिट में स्थान बनाया। अब वह एक परिपक्व किशोर हो गया था। वह दोबारा तैयारी के लिए कोटा गया और इस बार वह वहाँ सेटल हो गया था। IIT -Jee की प्रवेश परीक्षा में उसे अच्छी रैंक मिली और उसका प्रवेश IIT -Delhi में हो गया। 

अविनाश अभी भी अक्सर कहता है, "तुझे सब पता चल जाता है मम्मी। "


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