Akshat Garhwal

Action Crime Thriller

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Akshat Garhwal

Action Crime Thriller

ट्विलाइट किलर भाग-29

ट्विलाइट किलर भाग-29

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354


महानगरों की हमेशा से 2 खास बात रही है, पहली वहाँ की भीड़ जहाँ लोग अक्सर खो जाते है या खोय हुए लोग ही उस भीड़ का हिस्सा होते है। वहां की आधुनिकता आकर्षण पैदा करती है, आकर्षण लोगों को जमा करता है, लोग भीड़ बनते है और भीड़......महानगर बनाती है। इन महानगरों की बनावट हमेशा ही बहुत काम्प्लेक्स होती है, की सारी इमारते, तरह-तरह के व्यवसाय और उन तक पहुचने वाली सड़कें! अजी सड़के नहीं बवाल होती है, किसी मकड़ी के जाल से कम नहीं होती...एक बार जो उनमे फंस गया, रास्ता भटक ही जाता है। इसी से जुड़ी वो दूसरी खास बात है, ऊपर सड़क जितने क्षेत्र में फैली होती है उतनी ही नीचे सीवर, पाइपलाइन, गैसलाइन फैली होती है। सड़के तो कभी भी खाली नहीं होती उन से गुजरना मतलब हजारों की भीड़ से गुजरना, पर सीवर लाइन हमेशा से ही छुपने-छुपाने की जगह रही है है और सही इस्तेमाल से सड़कों से कहीं बेहतर रास्ता देती आयी है।

वह भी अपनो को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ता जा रहा था, नाले गन्दगी से भरे भ रहे थे और उसका पानी थोड़े ऊपर बनी हुई बाउंड्रीज पर भी बना हुआ था। उन्हीं बाउंड्रीज पर छपाक, छप-छप की आवाज करते हुए बस वो दौड़ते चले जा रहा था। बीच-बीचे में उसकी नजरें उन सीवर की भूल-भुलैया जैसे रास्तों की आती-जाती दीवारों पर पड़ती जिन पर ‘सेक्टर’ के नाम-नंबर लिखे हुए थे। पूरा सीवर कॉकरोच से भरा हुआ था, गंदी बदबू फैली हुई थी और गन्दा नाला किसी नदी से ज्यादा अभिमान के साथ भ रहा था। बीच मे जब वो रास्ते बदलता ओ कहीं-कहीं पर मोटे-मोटे चूहे घूम रहे होते जिन में से कुछ का आकर एक फुटबॉल जितना बड़ा था, उसके कदम की आवाज से डर कर वे अपने बिलो में घुस जाते तो कुछ उस नाले में कूद कर तैरते हुए दूसरे किनारे पर पहुंच जाते। फिर एक ऐसा मोड़ भी आया जहाँ की दीवारों पर कोई सेक्टर का नाम नहीं लिखा हुआ था बल्कि दीवार पर कुछ उकेर कर लिखा हुआ था ‘रबाले’!

रात के अंधेरे में किसी बहुत सारे घरों वाले इलाके में, वो गटर के ढक्कन को खोल कर बाहर आया। उसके काले कपड़े उस रात के अंधेरे में किसी साय की तरह घुल मिल गए थे, केवल स्ट्रीट लाइट कहीं-कहीं पर जल रहे थे और बाकी पूरी सड़के सुन सान थी। उसे कभी उम्मीद नहीं थी कि कभी ऐसा भी दिन आएगा जब रात के 12 बजे उसे यह इलाका इतना सुनसान दिखेगा....आज हुए बम ब्लास्ट्स ने लोगों के होश सच मे उड़ा दिए थे, दहशत ने लोगों को छुपने को मजबूर कर दिया था क्योंकि कोई नहीं जानता था कि वो बम ब्लास्ट किसने किये है पर इतना पता था कि बम ब्लास्ट ह्यूमन बॉम्ब्स के द्वारा करवाये गए थे नहीं जानता था कि रात के साये में ना जाने कौन घूम रहा होगा? जो कि उनकी जान के पीछे ही पड़ जाए। भागते हुए उसे एक बोर्ड दिखा जिस पर लिखा हुआ था.....’गौतम नगर’! कुछ दूर चलने के बाद घर कम होने लगे और तभी जहाँ पर रास्ता खत्म होता है वहाँ पर एक बड़ा सा गर्दन दिखा जो रात के अंधेरे में हरे पेड़ों से भरा हुआ पर काला सा दिख रहा थाजैसे अंधेरे ने उसे खुद में ढंक लिया था। उस गर्दन से ही लगा हुआ एक अकेला घर था। बड़ा सा 2 मंजिला घर, जिसकी बनावट बहुत ही सामान्य चौकोर थी, ऊपर बालकनी थी जिसके पीछे बहुत बड़ी कांच की दीवार-खिड़की थी। नीचे घर के बगल में ही जुड़ा हुआ एक बड़ा सा गैराज था जिसके शटर पर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘NJ’ लिखा हुआ था। जय ने उसी सफेद घर की बेल बजायी और इंतजार करने लगा,

कुछ ही पलों में उसे हल्के दबे कदमों की आवाज सुनाई दी, साथ ही उसे किसी चीज के ‘क्लिक’ होने की आवाज भी आई जिसे जय तुरंत ही पहचान गया, वह ‘हैंडगन’ लोड करने की आवाज थी! जय अपनी जगह से हिला ही नहीं जैसे उसे कोई डर नहीं था पर वह सतर्क हो गया। धीरे से दरवाजे का नोब घूमा और अचानक से ही अंदर से दरवाजा खुला और कोई लड़की एक ‘गलोक-50’ हैंडगन उसके दिल की तरफ निशाना लिए खड़ी थी। जैसे ही उसकी नजरें बाहर खड़े उस आदमी के चेहरे पर गयी उसकी गन नीचे हो गयी, चेहरे के भाव नरम हो गए और उसने उसे गले से लगा लिया

“ओह माय गॉड, जय! तुम्हें इतने दिनों बाद देख कर बहुत अच्छा लगा। मैं तो एक पल के लिए डर ही गयी थी.....” उस लड़की ने जय को गले लगाते हुए कहा, जय ने भी उसे नरम बाहों से गले लगाया। “चलो अंदर चलो, बाहर रुकना ठीक नहीं है”

उसने जय को अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर लिया, उस बन्द दरवाजे के ऊपर एक नेम प्लेट लगी हुई थी जिस पर एक नाम लिखा हुआ था, जो बहुत ज्यादा सुना और जाना पहचाना था। उस लिखा हुआ था

‘ड्रग एंड बॉडी रिसर्चर, मिस्टर नवल सरकार!’

घर के अंदर जाते ही अगल बगल 2 कमरे पड़ते थे, बाई ओर किचन था उर दाई ओर हॉल था जो कि गैराज से जुड़ा हुआ था, सामने किचन की दीवार से सटी हुई एक सीढ़ी थी जो कि ऊपर के उस बड़े कमरे में जाती थी और उसी सीधी के बगल में आगे की ओर एक दरवाजा था जो कि बाथरूम था। जय के लिए यह सब नया नहीं था वो इसी घर मे कई बार आ चुका था...पर आज उसे कुछ अलग और भारी-भारी सा लग रहा था। दहलीज पर खड़ा हुआ वो कुछ पल के लिए अतीत में खो गया! वो हमेशा जब भी इस घर मे आया था उसके साथ नवल था। कभी वे साथ मे संडे बिताने के लिए आता था तो कभी यूं ही मिलने के लिए। उन दोनों का बहुत सा समय इस घर मे बीता था और यहीं नवल का असली घर था। इसके अलावा एक बंगला भी था जो नवल और जय ने मिल कर खरीदा था....कई गर्मी की छुट्टियां उनकी उस बंगले में ही बीतीं थी। अब ये घर नवल की हंसी से नहीं गूंज रहा था बल्कि एक अलग से ठंडे और भारी से अंधेरे में डूबा हुआ था।

“जय!” उस लड़की ने जय के कंधे को पकड़ कर उसे हिलाया तो जय अपनी पलकों को तेजी से झपकते हुए उसकी ओर देखा।

“आओ, अंदर चलो....”

इतना कह कर वो अंदर उस हॉल वाले कमरे में पहुंच गया, उस लड़की के पीछे-पीछे! अंदर केवल नाईट बल्ब ही जल रहे थे जो कि हल्के लाल रंग की रोशनी को फैलाये हुए थे। अगर यह कोई हॉन्टेड घर होता तो पक्का इस लाइट ने लोगों के रोंगटे उखड़ कर गिर जाते, अंदर का माहौल बहुत ही ज्यादा शांत था..इतना कि सामने LCD के पास लगी हुई गोल दीवार घड़ी की टिक-टिक बहुत ही साफ सुनाई दे रही थी जैसे वो गांधी उसके कानों के पास हो। अंदर सब कुछ अपनी जगह पर ही था, TV के सामने 3 लंबे गद्देदार सोफे और 5 गद्देदार कुर्सियां, बाई दीवार से टिकी हुई पुस्तक की श्वेत रंग की धातु वाली अलमारी जिस पर कांच का कवच था, उसी दीवार पर कुछ सेल्व बने हुए थे जिस पर नवल की कुछ तस्वीरें थी, कुछ जय के साथ, कुछ परिवार के साथ तो कुछ उसके रिसर्च से जुड़ी हुई। दाई ओर कुछ भी नहीं था केवल एक तिजोरी थी जो कि दीवार में जुड़ी हुई थी......इस समय सभी डिजिटल लॉकर का इस्तेमाल करते थे जिसमे एक इलेक्ट्रिक सर्किट लगा हुआ होता था पर नवल के घर मे लगी हुई यह तिजोरी गियर वाली थी जो कि पुराने समय से उपयोग में लायी जा रही थी। दाई दीवार के कोने में एक लकड़ी का दरवाजा भी था जो बगल के गेराज में खुलता था, यह सब देखते हुए वे दोनों एक दूसरे के सामने सोफे वाली कुर्सियों पर बैठ गए।

“तुम कैसे हो जय? और यह क्या हाल बना रखा

है......जानते हो, लोग तुम्हें हत्यारा कह रहे है! नवल कभी नहीं चाहता केई तुम इन सब मुश्किलों से गुजरो...” उस ढकी की आवाज में सहानुभूति के साथ दुख भी था जैसे कोई अफसोस हो।

“उस रात.....मैंने नवल को नहीं मारा था नित्या, जैसा कि CBI कह रही थी”

“जानती हूँ!” नित्या की आंखों में नमी थी पर आवाज में पूरा भरोसा था “तुमने यह सोचा भी कैसे की मैं तुम्हे नवल का हत्यारा मान लेती?! हर कोई जानता है कि जय और नवल एक दूसरे को कितना चाहते थे, जो इंसान नवल के लिए मर मिटने को तैयार रहता था वो भला नवल को कैसे मार सकता था?! मैंने काफी कोशिश की थी CBI से तुम्हें छुड़वाने की पर उन लोगों ने मेरी एक भी ना सुनी”

यह सुनकर जय की आंखों में आंसू आ गए, चेहरे पर छोटी सी मुस्कान थी जैसे मन से कोई बोझ उतर गया हो।

“थैंक यू नित्या..मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें भी दुनिया की तरह ही मुझ पर इस बात का भरोसा हो जाये कि मैंने ही नवल को....” जय ने अपने होठों को दांतों तले दबा लिया। अब तक जय को नवल की मौत के बाद कभी भी भावुक नहीं देखा था......

“पर उस रात हुआ क्या था?” नित्या ने सर झुकाय दुखी स्वर में पूछा

जय उसे बताना नहीं चाहता था कि उस रात हुआ क्या था? वो नवल की पत्नी थी, उसके दुख से जय खुद को अनजान समझ रहा था नित्या को उस रात की बर्बरता को नहीं बताना चाहता था....वो लोग नवल के पीछे क्यों थे यह भी नहीं बताना चाहता था क्योंकि इस से नित्या खतरे में पड़ सकती थी। पर नित्या का हक था कि वो अपने पति के बारे में सच्चाई जाने इसलिए जय ने उस रात के किस्से को दोहराया। जैसे-जैसे जय उस रात के अंत के पहुंच रहा था नित्या की घबराहट और कम्पन बढ़ रहा था जैसे वह गुस्से और दर्द से कांप रही हो, जय उस से नजरें नहीं मिला पाया। अंत मे नित्या रोई नहीं बल्कि गुस्से में उसकी आंखें लाल पड़ गयी, उसने जय को देखा

“वादा करो जय! अगर तुम्हें वो हत्यारे मिल जाते है तो तुम उन्हें ऐसी मौत दोगे की उनकी रूह भी कांप उठे” नित्या गुर्राई “उन हत्यारों ने मेरे मासूम नवल को बेरहमी से मार दिया और अब.....उनकी सजा भी मौत ही होगी...केवल एक भयानक मौत!”

जय ने उसे शांत किया, रुमाल से उसके आंसू पोंछे और कहा,

“मेरा वादा है तुमसे और अपने आप से! उन लोगों की मौत मेरे ही हाथों से होगी और इतनी भयानक होगी कि यमराज भी देख कर कांप जाएंगे” जय ने दांत घिसते हुए कहा और वादा करके वो अपनी जगह पर बैठ गए।

उन दोनों के बीच कुछ देर की चुप्पी रही उन दोनों ने एक दूसरे की भावनायों को शांत होने का समय दिया। कुछ पलों बाद नित्या ने गहरी सांस ली और रुमाल से अपने आंसुओ को आंखों के किनारों से पोंछते हुए खड़ी हो गयी। उसने जय को एक जबरदस्ती की मुस्कान के साथ देखा और बोली

“वैसे इतने दिनों बाद तुम यहाँ पर क्यों आये हो? मुझे लगा था कि तुम जल्दी ही मिलकर मुझे बताते की उस रात क्या हुआ था?”

“इतने समय से मैं उन लोगों की तलाश में था जिन ने नवल को मारा था” जय ने कहा “और अब जब उनका पता चल गया है तो उन्हें मारने के लिए एक जाल बिछाना है इसलिए मैं यहाँ पर आया हूँ”

नित्या को कुछ समझ नहीं आया, वो जय को अजीब नजरों से देखती रही।

“मैं कुछ समझी नहीं! तुम क्या कह रहे हो यह...”

“आज हुए बम ब्लास्ट,,,,ये उन हत्यारों ने ही करवाये है। वो लोग चीन के एक हत्यारों और आतंकवादियों के बहुत बड़े गुट के सदस्य है और इस सब की केवल एक ही वजह है, प्रोजेक्ट U.B.D.(Ultra immunological Bio mutagen Drug)” जय ने खड़े होते हुए कहा

“तुम्हारा मतलब वो ड्रग जो नवल तैयार कर रहा था जिस से लोगों को रोग मुक्त बनाया जा सकता था!” नित्या चोंक पड़ी

“हाँ, ये लोग बहुत खतरनाक है और अगर उन लोगों के हाथों यह ड्रग लग गया तो पता नहीं ये उसका कितना गलत इस्तेमाल करेंगे। पर अब यहीं ड्रग उन सभी हत्यारों को बाहर निकालने में काम आएगा”

इतना कह कर जय आगे बढ़ा और उस तिजोरी के सामने जाकर खड़ा हो गया। वो उस तिजोरी को ऐसे देख रहा था जैसे उसके अंदर कोई खजाना था,

“इसकी चाबी देना जरा?”

“पता नहीं तुम क्या सोच रहे हो पर इस तिजोरी के अंदर केवल कुछ सोने और प्लैटिनम की ज्वेलरी और एक पुरानी मढ़ी हुई फोटो के अलावा और कुछ भी नहीं है” चाबी देते हुए नित्या ने जय को बताया

“बस तुम देखती जायो, एक कारण था कि नवल ने इसके बारे में कभी किसी को नहीं बताया था”

जय ने चाबी से वो तिजोरी खोली और उसमें से सारा सामान बाहर निकाल लिया। नित्या जय को बहुत ध्यान से देख रही थी, वो कुछ चकित थी तो कुछ सचेत सी भी जैसे वह जय से किसी तरह का खतरा महसूस कर रही थी। तिजोरी की निचली सतह पर जय ने हाथ फेरा जैसे धूल हटा रहा हो और अचानक ही उसने तिजोरी की गहराई में हाथ डाल कर बहुत तेज झटके से कुछ खींचा। ‘खट्ट’ की तेज आवाज के साथ तिजोरी की निचली सतह की परत निकल कर सामने की ओर आ गयी......यह देख कर नित्या के चेहरे की हवाइयां उड़ गई, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसे इस सब के बारे में कुछ नहीं पता था। उस परत के नीचे एक लंबा सा खाँचा था जिसमे कुछ नक्काशी बनी हुई थी, जय ने उस पुरानी सी फोटो फ्रेम को उठाया जिसमें उसकी,नवल की स्कूल से जुड़ी हुई एक ग्रुप फोटो लगी थी। जय ने उसके पीछे लगे हुए लकड़ी के स्टैंड को घुमा कर निकाला, यह ठीक वैसा ही था जैसा कि उस तिजोरी की सतह के खाँचा....और उसे जय ने उस खांचे में डाल कर दबाया। किसी बटन की तरह वो खाँचा थोड़ा सा दबा और एक आयत के आकार में वह साथ नीचे की ओर चली गयी, उस खांचे के बीच मे एक गोल सिक्के जितनी जगह थी जिसमे उंगली डाल कर जय ने किसी ढक्कन की तरह उसे खोल लिया। अंदर हाथ डाल कर एक डायरी और एक कांच की ट्यूब निकाल ली जिसका ऊपरी और निचला सिरा धातु का था। उसके अंदर DNA के मॉडल जैसी ट्यूब थी जिसमें एक स्ट्रैंड डार्क हरे रंग कद्रव से भरा हुआ था तो दूसरा हल्के हरे द्रव्य से। उसे निकाल कर जय ने अपनी जेब मे डाला, नित्या यह सब देख कर जरूरत से ज्यादा हैरान थी

“यह सब क्या है जय? और मुझे इस बारे में क्यों पता नहीं था?” नित्या ने आश्चर्य से पूछा

“क्योंकि नवल नहीं चाहता था कि इस ड्रग की वजह से तुम किसी भी तरह के खतरे में पड़ो” जय ने उसकी तरफ मुड़ कर कहा “उसने यह ड्रग इसके ऑफिसियल अनाउंसमेंट से पहले ही तैयार कर ली थी और अपने भाषण के जरिये उसने यह जता दिया था की वो ड्रग उसके ही पास है। उसके बाद उसने यह तिजोरी जो पहले से ही इस तरह से बनी हुई थी, यहां पर लगा दी और अपना यह ड्रग, साथ ही इस प्रोजेक्ट U.B.D. का रिसर्च रिकॉर्ड भी इसमें छुपा दिया। उस रात उसने मुझे यह सब बताया था.....ताकि अगर उसे कुछ हो जाये तो कम से कम यह बात मुझे पता रहे”

नित्या ने कुछ भी नहीं कहा वो केवल वहाँ पर खड़ी रही। शायद उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस वक्त क्या कहा जाए? नवल उस से कितना प्यार करता था यह बात जय जानता था, उन दोनों के बीच भले ही अन-बन होती रहती थी पर वो नित्या को खतरे में डालने जैसा कदम कभी नहीं उठाता।

“तो...वो हमेशा मुझे खतरे से दूर रखना चाहता था....पर खुद की कोई फिक्र नहीं थी? क्या उसे यह नहीं सोचा था कि उसे अगर कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा?” नित्या बड़बड़ाई

“खुद से ज्यादा किसी और कि चिंता करना, उसे खुश देखने की इच्छा रखना....यहीं तो प्यार है नित्या!” जय ने नित्या के सवाल का जवाब केवल एक ही पंक्ति में दे दिया था। नित्या की नजर पहले जय के उस जेब पर गयी जिसमें उसने वो ड्रग रखा था और फिर उसने जय को देखा

“सच कहा तुमने.....यही तो प्यार है” नित्या ने हल्की मुस्कान के साथ आंखे बंद करके कहा

“अच्छा आब जब मैने यह ड्रग अपने पास ले लिया है तो अब तुम्हें कोई भी खतरा नहीं है। अब मैं यहाँ से चलता हूँ, किसी तरह आज की रात काट लो बाकी कल मैं तुम्हारे सुरक्षा का अच्छा इंतजाम कर दूंगा...मेरा फोन नंबर ले लो, जरूरत पड़ने पर कॉल कर लेना”

जय ने उसे अपना नंबर दिया और गेराज का दरवाजा खोल कर अंदर गया. वहाँ पर काफी सारा गाड़ियों से जुड़ा हुआ समान रखा हुआ था, कुछ टूलबॉक्स रखे हुए थे। एक कार जो कि काली ऑडी थी, खुली पड़ी हुई थी जैसे किसी ने उसका पोस्टमॉर्टम कर दिया हो। उसी के बगल में कुछ ढंका हुआ रखा था...जिस से जय परिचित था। नित्य उसी दरवाजे के पास खड़ी होकर उसे देख रही थी, वह जय को घूर रही थी जैसे जय ने कुछ गलत किया हो,

“एक्सीडेंट के बाद मैंने इस कार को पूरा खुलवा दिया था” नित्या बोली

“हाँ वह तो दिख ही रहा है” जय ने चारों तरफ नजरें दौड़ाई और एक जगह उसे काले रंग के बिल्ले वाली चाबी तंगी हुई दिख गयी। उसने उस चाबी को लिया और झट से कर के बगल में ढकी उस चीज में से पर्दा खींचा!

उनके नीचे एक रॉयल एनफील्ड की बाइक थी, देख कर ही समझ मे आ गया था कि उस बाइक में काफी सारे मॉडिफिकेशन किये गए थे, वह कोई सामान्य बाइक नहीं थी, उसका रंग चमकीला काला था। जय ने उस पर हाथ फेरते हुए कहा

“नवल और मैंने इसे मिलकर खरीदा था, सोचा था किसी दिन बाइक रैली में घूमने जाएंगे....वह तो इस मे बेथ कर रेस लगाना चाहता था” जय ने कुछ मुस्कुरा कर कहा “कोई बात नहीं, रेस तो अब भी जरूर लगेगी। बस अंतर इतना होगा कि पहले रेस मजे के लिए करने वाले थे और अब रेस बदले के लिए करेंगे”

कह कर उसने बाइक में चाबी लगा कर उसे स्टार्ट किया और बैठ गया। नित्या उसे अब भी चुप चाप देख रही थी, उसने शटर को दीवार पर लगे हुए हैंडल से ऊपर किया। जय ने बाइक को रेस देनी शुरू की तो उसमें से बहुत ही कम आवाज आ रही थी जैसे अंदर इंजन बहुत खुश हो रहा हो, जय ने उसकी ताकत महसूस की और गेयर चढ़ा कर जाने लगा

“अपना ख्याल रखना जय!” नित्या ने थोड़ी चिंता के साथ कहा

“बिल्कुल, और तुम भी...अपना ख्याल रखना”

और इतना कह कर दनदनाते हुए बाइक पर वो निकल पड़ा। नित्या उसे तब तक देखती रही जब तक वो उस मोड़ से ओझल नहीं हो गया। नित्या की आंखे शून्य जैसी हो गयी और बिना किसी देरी के वो घर के अंदर चली गयी।


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