Akshat Garhwal

Tragedy Thriller

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Akshat Garhwal

Tragedy Thriller

ट्विलाइट किलर, भाग-24

ट्विलाइट किलर, भाग-24

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समय के बारे में बहुत सी कहानियां और सद्विचार सुने हुए है, बहुत से तो ऐसे भी होंगे जो आज तक आप सभी को रोज सुन ने को मिल जाते होंगे, मिलते ही होंगे। जिसमे स्टूडेंट्स के लिए ‘टाइम मैनेजमेंट’ का विषय बहुत ही आम है....और मैं भी ऐसा ही कुछ बताने वाला हूँ जो आप रोज देखते समझते होंगे पर क्योंकि वह कहना कोई बड़ी बात नहीं है इसलिए उस पर शब्द रखना जरूरी नहीं समझते। ठीक वैसे ही.....समय एक ही है चाहे फिर वो हिमांशु के लिए हो जो जापान में है, जय के लिए हो जो बंकर के किसी कमरे में बैठा हो, सौरभ के लिए हो जिसका कोई अता-पता नहीं है, राजन जो जय की जान के पीछे अब भी पड़ा है या फिर बात ‘वू’ के ईस्टर्न फैक्शन की जो जय A.K.A Twilight Killer को फसाने के लिए पूरी तरह से तैयार एक योजना को उपयोग में लाने की कोशिश में लगा हो....समय किसी के लिए भी रुका नहीं था, उसे किसी का इंतजार करने की आदत नहीं थी और समय की तरह ही कोई भी रुका नहीं था। सभी अपने-अपने किरदार का काम कर रहे थे.....!

हिमांशु को जापान गए हुए आज पूरा 1 हफ्ता गुजर गया था, उसकी टीम उसके इंतजार में थी पर समय उन्हें भी बहुत कम ही मिल रहा था। जिस दिन हिमांशु जापान गया था उसी वक्त से टीना, राम-राघव और पुनीत की भयावह ट्रेनिंग शुरू हो गयी थी, शियाबेई के वू बहुत ही ज्यादा ताकतवर थे उनके साथ सीखना और अभ्यास करना जानलेवा साबित हो सकता था। शियाबेई के 100 सबसे अच्छे फाइटर अपने ‘वू’ क्लान की मार्शल आर्ट तकनीक का बहुत ही अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे और शियाबेई ने हिमांशु की टीम को ‘वू’ क्लान का मार्शल आर्ट्स सिखाने की ठान ली थी क्योंकि वो सभी बहुत ही टैलेंटेड थे,बेसिक्स पर उनकी पकड़ बहुत तेज थी। शियाबेई उन्हें बराबर से अपनी मार्शल आर्ट्स की तकनीक सिखाता और फिर अपने लोगों से लड़वाता....या यह कह लो कि उन्हें पिटवाता। कोई कितनी भी जल्दी कुछ क्यों न सीख ले..एक्सपीरियंस बहुत जरूरी होता है। कितनी भी चोट लगे, खून निकलने लगे..वो तब तक लड़ते रहते थे जब तक खड़े रहने की हिम्मत ना हो पर ऐसा भी नहीं था कि उन्हें ऐसे ही पीट कर वापस भेज दिया जाता था। ‘वू’ क्लान की एक्यूपंक्चर मेडिकल तकनीकें बहुत ही चमत्कारी थी, शाम को 6 बजे उन्हें छोड़ने से पहले उन्हें यहीं एक्यूपंक्चर ट्रीटमेंट दिया जाता था जिस से उनका शरीर घावों और थकान को तेजी से ठीक करने लगता था। हिमांहसु कि पूरी टीम इस सब से चकित थी पर अपने शरीर की बढ़ती ताकत देख कर वो सभी उस ट्रेनिंग से पीछे नहीं हट रहे थे। पुनीत का हाल सबसे बुरा था, हालांकि वह टेक्नोलॉजी में एक्सपर्ट था पर केवल 5 घण्टे की उसकी मार्शल आर्ट्स ट्रेनिंग में उसकी हालत खराब हो जाती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था, वो लोग एक्यूपंक्चर ट्रीटमेंट के बाद रोज वापस बेस पर जाते, नहाते..थोड़ा घूमते फिरते और फिर आसुना और निहारिका के हाथ का बना हुआ स्वादिष्ट भोजन करते! उन्हें आसुना और निहारिका के हाथ का खाना बहुत ज्यादा पसंद था और अब तो वे रोज बातों ही बातों में आसुना और निहारिका से उनकी जिंदगियों की कहानियां भी सुन लिया करते थे। वेसे तो यह सब केस स्टडी के अंतर्गत आता था पर वो लोग इसे सामान्य बातचीत के तौर पर समझते थे...जैसे दोस्तों के बीच की बातें हो। ...........और आज का दिन भी कोई अलग नहीं था।

उन सभी का खाना हो चुका था और थोड़े थके हुए चेहरों को लिए सभी एक टेबल के साथ आपस मे बैठे हुए बातें कर रहे थे। तभी किसी के कदम उस लोहे के दरवाजे के खुलने के साथ ही आने को हुए.....वो अतुल और रेशमा थे।

“वाओ अतुल, काफी दिनों से दिखे नहीं..आओ.. बैठो” अतुल पिछले 6 दिनों से अपने काम से फ्री ही नहीं हो पा रहा था पर आज वो यहाँ पर मौजूद था। रेशमा और अतुल ने कुर्सियों पर खुद को बैठाया

“यह पूरा हफ्ता Twilight killer को लेकर बनी सुरक्षा गाइडलाइन को लेकर बिजी थे, आना ही नहीं हो पाया” अतुल ने मुस्कुरा कर कहा

तभी उसकी नजर हिमांशु की टीम के लोगों के पितेहाल चेहरों और थकान भरी आंखों की तरफ गयी, वो खुद को पूछने से रोक नहीं पाया “अब इन लोगों को क्या हुआ? ऐसा लग रहा है किसी ने तबियत से मार लगाई हो...हाहाहाssss” अतुल को हंसी आ गयी जिस पर आसुना भी खुद को हंसने से रोक नहीं पाई।

“इन सभी की ट्रेनिंग जोर-शोर से चल रही है...बस उसी का परिणाम सामने है। इनका मास्टर बहुत सख्त है....” आसुना ने थोड़े व्यंगात्मक तरीके से कहा

“निहारिका कहीं नहीं दिख रही....?” अतुल ने आस-पास नजरें घुमाई पर उसे वो दिखी नहीं, जिस पर टीना का तुरंत ही जवाब आया

“वो हिमांशु सर का कॉल आया है ना...तो वो दोनों बातें कर रहे है। जब से सर गए है तब से रोज ही कॉल आता है” टीना ने सर लटकाते हुए चंचल भाषा मे कहा

“क्या....? हमें तो इतने दिनों में एक मैसेज भी नहीं किया और यहाँ पर भाई साहब कॉल पर कॉल किये जा रहे है” व्यंग और शक भरी आवाज और चेहरे के भाव देखने लायक थे, सभी के चारों पर मुस्कान थिरक उठी। जब से वे सभी साथ मे रह रहे थे तभी से अतुल को निहारिका और हिमांशु के बीच एक अजीब सा अहसास जुड़ा लग रहा था और अब इतने दिनों में अतुल के साथ-साथ बाकी सभी को भी इस बात की भनक लग चुकी थी कि हिमांशु और निहारिका के बीच ‘कुछ’ चल रहा था...और ‘कुछ’ का मतलब वहीं है जो आप सभी के मन में इस वक्त चल रहा है।

“वेसे अब हिमांशु की बात निकली ही यही तो एक बात बताना चाहूंगा” कहने से पहले उसने रेशमा की ओर देखा जैसे उस से परमिशन मांग रहा हो। रेशमा ने हामी भरी “मैं हिमांशु को बचपन से जानता हूँ, हमारे घर गोआ में एक ही गली में थे। वह हमेशा से ही बहुत ही आम और सीधा सा लड़का था, सभी से हिल-मिल कर रहने वाला..और लड़कियों के मामले में बहुत ही ज्यादा शर्मीला, इसलिए अभी निहारिका और इसे साथ बात करता देखना सच मे आश्चर्य ही है..हाहा...। खैर वेसे तो उसमें कोई कमी नहीं थी, स्कूल में भी हर शिक्षक उसे पसंद करता था और दोस्तों के बीच तो वो था ही मस्त, पर उसकी एक बुरी आदत थी!”

अतुल इतना कहते ही थोड़ा रुक गया, पर हिमांशु की टीम के लोग यह सब ध्यान से सुन रहे थे उनका तो सस्पेंस सा बन गया था, राम चीखा

“अरे रुक क्यों गए यार, बताओ न, क्या बुरी आदत थी?”

“असल मे हिमांशु सर खुद के बारे में ज्यादा बातें नहीं करते इसलिए उन्हें जानना हमारे लिए बहुत ही रोचक है” टीना ने राम की बात को सामान्य किया

अतुल उनकी बात समझ गया और उसने अपनी बात जारी रखी, “वह किसी की भी मदद करने से पीछे नहीं हटता था भले ही फिर उसे किसी के भी खिलाफ क्यों न जाना पड़े....यह उसकी बहुत ‘बुरी’ आदत थी। हम्म...दूसरों की मदद करने में वो इतना आगे था कि उसे खुद की कोई परवाह नहीं थी, एक बार वो अपने परिवार के साथ बाहर मार्किट में गया हुआ था मैं भी उस के साथ वहीं पर था। सब कुछ ठीक चल रहा था हम आराम से घूम रहे थे कि तभी वहाँ पर एक एक्सीडेंट हो गया। एक अधेड़ उम्र के आदमी को एक कार ने टक्कर मार कर चली गयी थी, बहुत खून बह रहा था उसके शरीर से और वह हाथ उठा कर किसी तरह लोगों से मदद मांग रहा था, लड़खड़ाते हुए जमीन पर पड़े हुए। सब लोग देख कर यह तो कह रहे थे कि ‘बुरा हुआ’ पर कोई भी मदद को आगे नहीं बढ़ा, सब डोर से तमाशा देख रहे थे...मैं खुद उन तमाशबीनों में से एक था। तभी हिमांशु जो उस वक्त 16 साल का था भीड़ से निकल कर उसकी मदद के लिए आ गया और उसे उठा कर ऑटो को रोकने लगा। उसके माता-पिता ने बहुत रोका यहाँ तक कि उसे मारा भी पर वह तस से मस ना हुआ और आखिर में एक ऑटो वाले रुका जिसके साथ वो उस आदमी को हॉस्पिटल ले गया। जहां पर न सिर्फ उसका इलाज करवाया बल्कि उसकी मदद के लिए अपनी गोल्ड चेन भी बेंच दी..उस आदमी ने होश आते ही मेरे सामने जय का दिल से शुक्रिया किया...जय खुश था, उस आदमी के परिवार ने तो उसे भगवान का रूप भी कहा। पर जब हम वापस घर गए तो उसके घर वालो से उसका बहुत बुरा झगड़ा हुआ उन्होंने उसे गालियां दी, मारा-पीटा और ना जाने उस घर की चार दीवारी में क्या-क्या हुआ और उस सब की जड़ हिमांशु की उस चेन का बिकना उर उस आदमी की मदद को लेकर था। आखिर में कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी....”

अतुल एक बार फिर कहते-कहते रुक गया, इस बार सांस लेने को जिस पर पहले राम भड़का था तो इस बार राघव भड़क गया!

“फिर से!...फिर से रुक गए!?” राघव आंखों को बंद करते हुए चीखा

“अब जरा सांस लेने के लिए भी रुकना मना है क्या?” अतुल ने उसे आंखें दिखाई बदले में राघव ने भी मुह फेर लिया।

“सच मे!...पर ऐसे जरूरी पॉइंट्स पर आकर ही आपको सांस लेनी होती है क्या?” टीना की बात सुनकर अतुल ने एक बार को सभी पर नजरें डाली, वो सभी बहुत ही ध्यान से अतुल को ही देख रहे थे। वह समझ गया कि ज्यादा रुकना सेहत के लिए अच्छा नहीं है! एक गहरी सांस लेकर उसने जारी रखा... पर उस बात को याद करते ही उसके चेहरे पर उदासी छा गयी, जो वो अभी बताने वाला था।

“उसके पिता ने उसे धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया!” यह सुनते ही वहाँ बैठा हुआ हर शख्स हैरान रह गया, आंखे बड़ी हो गयी और सीने में एक अजीब सी हलचल मच गई जैसे कुछ चुभ गया हो “हर कोई यह तमाशा देख रहा था, गली मोहल्ले के लोग, पड़ोसी, गुजरने वाले लोग और....उसका परिवार भी। वैसे तो घरवालों से बहस होते हुए मैंने कई बार देखी थी, कभी उसकी माँ उसे डांटा करती थी तो कभी पिता उसे 2 थप्पड़ लगा दिया करते थे, कारण बहुत बड़े नहीं होते थे इसलिए मुझे भी कभी नहीं लगा था कि...मुझे हिमांशु को इस हालत में देखना पड़ेगा। वह जमीन पर धूल से लथपथ घुटनो के बल गिरा हुआ था, उसकी माँ की आंखों में गुस्से के अलावा कुछ भी नहीं था और उनके पीछे छिपी मंझली बहन और उस से चिपका हुआ 5 साल का उसका भाई शायद वे उसे बचाना चाहते थे पर डर के मारे गर के दरवाजे पर लटके हुए पर्दे के पीछे भरी आंखे लिए केवल देख सकते थे। मुझे आज भी अच्छे से याद है कि उसके पिता का चेहरा ऐसे क्रूर गुस्से से भरा हुआ था जैसे वो अपने बेटे से नहीं बल्कि किसी गुंडे से निपट रहे हों...’तेरे इस मदद करने वाले पागलपन ने ना जाने कितनी बार हमें परेशान किया है पर हर बार मैं यह सोच कर कुछ नहीं कहता था कि बच्चा है दुनिया देखेगा तो सुधर जाएगा पर तूने तो एक अनजान की मदद के लिए अपने गले की सोने की चेन ही बेच दी, जनता है कितने की थी! पूरे 50000 की! हे भगवान मेरे तो भाग्य ही फुट गए तेरे जैसी औलाद को पाकर..निकल जा! निकल जा मेरी नजरों के सामने से वरना तेरी जान ले लूंगा..अब तेरा इस परिवार से कोई रिश्ता नहीं है...मेरा कभी कोई बड़ा बेटा था कि नहीं....निकल जाssssss!’........”

उन शब्दों में जैसे जान थी और वे हिमांशु के अतीत कक हिस्सा न होकर वहाँ बैठे हर किसी के जीवन के दाग थे...ऐसा प्रतीत होते हुए वो सब किसी बड़े घाव की तरह चुभा, कोई चोट नहीं लगी पर दर्द बहुत हुआ। सभी के चेहरे तकलीफ में थे पर वे आगे सुनते रहे...

“घर के अंदर कदम पटकते हुए वे चले गए और दरवाजा बंद कर लिया! पूरा मोहल्ला हिमांशु की हालत देख रहा था, किसी ने उसके माँ-बाप की तरह उसे कोसा तो कोई उस पर तरस खाने का नाटक करने लगा और फिर कुछ ही देर में वे सभी अपने काम करने लगे जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मैं और मेरे माता-पिता भी वह सब देख रहे थे पर उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वे जाकर इतने लोगों के सामने हिमांशु को बुला कर अपने घर ले चले इसलिए उन्होंने मुझे भेजा ताकि कोई कुछ न कह सके....हिमांशु का चेहरा सूना लग रहा था, आंखों में जैसे रोशनी नहीं थी, जैसे बेजान लाश पड़ी थी। मैंने उसे 5-6 बार आवाज लगाई तब कहीं जाकर उसे सुनाई दिया। मैं उसे किसी तरह घर ले आया पर उसने एक शब्द भी नहीं निकाला जबकि हमने बात करने की बहुत कोशिश की, उस रात उसने एक साल किया और हम सभी सो गए। अगले दिन एक मिलिट्री कार आकर घर के सामने रुकी। हिमांशु ने मुझे कहा कि ‘वह मुझे कॉल कर लिया करेगा इसलिए चिंता न करे’...और उन मिलिट्री वालों एक साथ वह चला गया और वहीं से उसका लोगों की मदद करने का पागलपन शुरू हो गया...और इसलिए मिलिट्री में उसकी ट्रेनिंग शुरू हो गयी। ना जाने कितनी तकलीफे उसने सही...और तब जाकर उस इस मुकाम पर पहुंच जहाँ पर किसी की मदद करने के लिए उसे किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है”

अतुल की आंखों से आंसू निकल पड़े, रेशमा की भी आंखे भर आयी पर उसने अपने हाथ से अतुल के आंसू पोंछे। राम-राघव, पुनीत को भी रोना आ गया था, हाथ से आंसू पोंछते हुए उन्होंने चेहरे लटकाये रखे...टीना को भी यह तकलीफ पता चली थी पर उसने खुद को मजबूत कर रखा था ताकि उसके आंसू आंखों से नीचे ना आ जाएं। आसुना कि पलके नम थी, उसकी मुस्कुराहट बिगड़ गयी थी....पर अभी अतुल का कुछ कहना बाकी था!

“वह दिन था और उसके बाद का दिन था, सब हिमांशु के बगैर ही गया। मैं वहीं पर था जब मैं उसके परिवार को रोज देखता था। वो सभी हिमांशु के बगैर बहुत खुश थे, जितने मैंने कभी भी नहीं देखा था...सच कहूँ तो उनका यूं मुस्कुराना, हिमांशु को याद करने की कोशिश भी ना करना..बहुत चुभता था, यहां..यहाँ सीने में जैसे आग लग जाती थी” अतुल ने अपने सीने पर हल्की थपकियाँ मारते हुए कहा, आंसू थमे नहीं थे पर वह बोल रहा था “हमने माँ-बाप के प्यार और त्याग की कहानियां न सिर्फ पढ़ी थी, बल्कि अपनी आंखों से देखीं भी थी पर यह कहानी जहाँ पर हिमांशु के माता-पिता ने उसे इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि वह लोगों की मदद करता था, किसी की जान बचाई थी! यह कहानी पहली बार देखी सुनी थी...अरे काली मां की आरती में भी हम बोलते है कि ‘पूत-कपूत सुने है हमने पर न माता सुनी कुमाता’....यह पंक्ति उस दिन सही होती जान पड़ी थी। मां-बाप के प्यार की कहानियां तो हर कोई सुनता है और उस से मिली शिक्षा को ग्रहण करने को भी कहता है पर हिमांशु के जैसी ही कई कहानियां आज भी समाज मे इसलिए दबी पड़ी है क्योंकि समाज से इसमें एक अच्छी सीख नहीं जाती...केवल इसलिए यह कहानियां सामने नहीं आती क्योंकि समाज इस कहानियों को लीग से हट कर मानता है फिर चाहे वो कितनी भी असलियत क्यों न रखती हो!....समाज मे उन कहानियों का कोई मोल नहीं है जो मूल संरचना से हट कर हो....और दुनिया की यह असलियत मुझे धीरे-धीरे समझ आयी”

अतुल के मुंह से निकली इस कहानी ने बहुत ही अलग कुछ बताया था, जिसमे दर्द, रूढ़ि, क्रोध और तिरस्कार था। इस तरह की कहानियां जैसे समाज मे अस्वीकृत थी, ये एक ‘टैबू’ था, माहौल पूरी तरह से उदास हो गया था पर सभी को एक बात की खुशी भी थी कि आज वो जिस हिमांशु को देखते है वह इतने जख्म लेकर भी मुस्कुराया.....बिना गलत राह पर चले।

“हम्म...उम्मीद नहीं थी कि इस तरह का संयोग होगा” आसुना के आंसू भरे चेहरे पर एक बार फिर मुस्कुराहट थी जिसने सभी को रोक कर उन्हें अपनी ओर खींच लिया था “ऐसा लगा जैसे यह कहानी कहीं सुनी हुई थी.....बिल्कुल इसी तरह की कहानी जय की भी है! यकीन नहीं होता कि दुनिया की 2 एक जैसी कहानियां इतने करीब देखने को मिलेंगी”

आसुना के मुँह से या तो यह जान बूझकर आया था या फिर उसकी भावनाओ ने बहना शुरू कर दिया था! पर इस सब की वजह से सभी के मन मे यह जिज्ञासा आ गयी थी कि आखिर ‘जय’ की कहानी क्या थी? अतुल ने आंसू पोंछे और पूछा

“क्या तुम बताना चाहोगी की क्यों जय और हिमांशु की कहानियां एक जैसी है?”

सभी ने एक बार फिर अपने दिल को थाम लिया क्योंकि हिमांशु के अतीत ने पहले ही झकझोर दिया था..वे और नहीं सुन ना चाहते थे पर खुद को रोक नहीं पा रहे थे।

“मैंने यह सब आंखों से तो नहीं देखा था पर नवल के शब्द असलियत से कम नहीं थे” नवल की बात आते ही सभी ने अपना दिल थाम लिया “जय को वो तब से जनता था जब वे 6th क्लास में थे, उसके मुताबिक जय बहुत ही ज्यादा सीधा-साधा था अगर कोई उस से कहता कि यह काम कर दे..तो वो बिना किसी सवाल के वो काम कर भी दिया करता था, कभी-कभी धमकी पर गलत काम भी पर वह अपने सभी दोस्तों से बहुत प्यार करता था। जिस स्कूल मे वे सभी पढ़ते थे वो वह गांव से दूर था तो जय किराये से रहता था, वह बहुत ही ज्यादा इमोशनल हुए करता था और इसी व्यक्तित्व के कारण के बार सौरभ के उसे बुली करने के कारण उसने सौरभ की शिकायत अपने टीचर से कर दी थी जिस पट टीचर ने सौरभ के साथ-साथ सभी को बहुत डांटा था वह घटना के बाद से उसकी पूरी क्लास ने उस से बात करना छोड़ दिया था। अब सौरभ का अत्याचार और बढ़ गया और वो जय को परेशान करने लगा,इतना कि जय डिप्रेसन में चला गया। केवल नवल और निहारिका ने ही उसका साथ नहीं छोड़ा था...और उनकी ही मदद से वह अपने डिप्रेशन से बाहर भी निकला था। (कहानी- अवसाद से हौसले की उड़ान तक...यह कहानी मेरी बायो में मिल जाएगी) उसके बाद उसने सौरभ को भी नजा चखाया और खुद को उनके चंगुल से भी छुड़ा लिया पर असल परेशानी के बल स्कूल नहीं था”

आसुना भी कहते हुए थोड़ा रुक गयी, टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाया और थोड़ा पीकर रख दिया। वेसे तो टीना इस बार उसे टोकने वाली थी पर उसने कुछ नहीं कहा, सभी वह सुन ने को उतावले थे....

“असल मे जय बहुत सीधा तो था ही साथ ही डिप्रेशन के कारण उसकी मेमोरी में प्रॉब्लम आ गयी थी। उसे चीजे पहले भी याद नहीं रहती थी पर डिप्रेशन के बाद वह बहुत भूलने लगा था, उसके चश्मे का नम्बर भी बढ़ गया था और उसे ठीक से दिखाई नहीं देता था..उसने नवल को बताया था कि बिना चष्मे के उसे ब्लर दिखता था। उसके माता-पिता पहले से ही सख्त थे जिस कारण वह उन्हें कुछ भी नहीं बताता था यहाँ तक कि उसे कभी डिप्रेशन था यह भी उन्हें आज-तक पता नहीं चला होगा। आंखों के खराब हो जाने और भूलने को लेकर वो हमेशा ही उसे डांटते रहते थे। निहारिका बताई थी कि कई बार उसने जय की माँ के उन से यह भी कहते हुए सुना था कि ‘काश तू पैदा ही न होता, तेरी जैसी औलाद भगवान किसी को भी ना दे....तू मर क्यों नहीं जाता!’...इस तरह की बातों से जय को कितनी तकलीफ होती थी हम उसे इमेजिन भी नहीं कर सकते। उसने सौरभ को हराया था पर खुद वह कितनी बार हारा था इसकी कोई भी गिनती नहीं थी, वह बहुत बार घुट-घुट कर रोया था। कभी निहारिका के कंधों पर उसके आंसू गिरे थे तो कभी नवल के पर जब तक वो उन दोनों के साथ था उसने सब कुछ सहा था और हार नहीं मानी थी पर फिर एक दिन......12वी की परीक्षा खत्म होते ही उसके माता-पिता उसके कमरे पर आये, नवल और निहारिका उस दिन उसी के साथ थे। उन्होंने शायद पहले से ही अपना मन बना लिया था वे आये, बिना बात का झगड़ा किया..उसे बुरा-भला कहा और उसे घर से निकाल दिया, एक माता-पिता के तौर पर उन्होंने जय को पूरी तरह से अपने बेटे के अधिकार से हटा दिया। जाते-जाते यह कह गए कि उसके जैसी बेवकूफ औलाद का ना होना ही बेहतर है, उन्हें अफसोस है कि जय उनका बेटा है। बस फिर वो वेसे ही क्रूर चेहरे के साथ उसे छोड़ कर चले गए जैसे चिड़िया किसी इंसान के हाथ से छुए अपने ही अंडों को घोंसले से सरका कर गिरा देती है। जय पूरी तरह से टूट गया था पर उनके दोस्त और बहन ने उसका साथ नहीं छोड़ा, जय को नवल अपने घर ले गया पर जय को संभालना मुश्किल हो गया। आखिर उसके माता-पिता ने उसे छोड़ दिया था किसी भी बच्चे के लिए इस से बड़ा दुख और क्या हो सकता था। लेकिन नवल ने उसे संभाला और जब जय उस सदमे से उबर गया तो जय खुद ही आगे की पढ़ाई के लिए जापान आ गया......सब कुछ पीछे छोड़ कर!”

आसुना के शब खत्म होते होते ठंडे से हो गए जैसे शीट लहर हो और सभी की आंखों में आंसू जहर-जहर बहने लगे उन्हें उम्मीद नहीं थी कि जय की कहानी भी इतनी परेशानी भरी होगी। आसुना ने एक बार फिर खुद की आवाज को संभाला,

एक अच्छा और सीधा इंसान होना आज के समय मे सबसे बड़ा श्राप है......यह बात नवल ने जय को लेकर मुझे बताई थी, उसके मुताबिक जय को इस सब से कहीं बेहतर जिंदगी मिलनी चाहिए थी पर इस दुनिया मे कुछ भी जायज नहीं है। जब हिमांशु की कहानी सुनी तो अपने आप ही जय का अतीत भी याद आ गया...कितना मिलता जुलता है ना?” आसुना ने रुआंधे चेहरे पर भी मुस्कान लाते हुए कहा

“सही कहा, दोनों की कहानी काफी मिलती जुलता है बस इतना ही अंतर है कि हिमांशु ने अच्छाई का रास्ता कभी नहीं छोड़ा और जय ने अच्छाई का रास्ता अपनाया ही नहीं” टीना ने सीधी बात कही

तभी वहां पर निहारिका आ गयी, उसके चेहरे पर खिली हुई मुस्कान थी आखिर उसे थोड़े ही पता था कि अंदर माहौल नम हो गया था। खिलखिलाती वह अंदर तो आ गयी पर सभी के आंसू भरे चेहरे देख कर उसे शॉक सा लग गया, हाथ मे पकड़ा हुआ फ़ोन और भी कस लिया और चेहरे की मुस्कान उड़ गई,

“क्या हुआ..तुम सब रो रहे हो क्या?...तू सब रो क्यों रहे है...क्या हुआ?” निहारिका के शब्द लड़खड़ा गए उसका दिल धक कर गया। उसे कुछ भी समझ भी आया आखिर हो क्या रहा था यहाँ पर! बिना कुछ कहे बस आसुना उठी और मन आंखों को लिए अपने चेहरे को निहारिका के कंधे में छुपा लिया। यह देख कर सभी उठ कर उसके गले आ पड़े, कोई रो रहा था तो किसी की आंखें नम थी पर हर कोई चुप था,,,निशब्द! निहारिका को कुछ भी नहीं सूझा पर फिर उसने गहरी सांस ली और ठीक वहीं किया जो वो पहले जय के साथ करती। बारी-बारी सभी के सर पर हाथ फेरा जो अब भी उस से चिपटे हुए थे और बोली........

सब कुछ थी है...सब कुछ ठीक है.....जब तक हम साथ है...कुछ भी नहीं होगा...कुछ भी नहीं”

निहारिका की भी पलकें नम हो गयी जैसे बारिश की बूंद थामे पत्तियां.....!



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