टाई
टाई
प्रकाश, को पहली बार टाई पहन कर ऐसा लग रहा था मानों वह कितनी बड़ी जीत को हासिल कर लिया हो।इस दिन का सपना उसने खुले आँखों से तो हरगिज़ नहीं देखा था।
"कहाँ था वह,आज कहाँ पहुँच गया ?शायद ,आज वह इस मुक़ाम तक नहीं पहुँच पाता अगर वहाँ नहीं होता।यहाँ तक पहुँचने की प्रेरणा उसे उसी पराए घर से मिली थी। जहाँ उसे कई भाई बहनों का साथ मिला जिनके साथ वह लड़ते झगड़ते बड़ा हुआ।कुछ बड़ा हुआ तो बहनों का साथ छूट गया।रात रात भर बहनों की याद में रोता रहता था क्योंकि उनसे जो स्नेह मिलता था उससे वह अपने आप को सुरक्षित महसूस करता।जगत चाचा हैं तो अच्छे पर उनमें वैसी ममत्व नहीं...क्या करे बेचारे के ऊपर इतने सारे बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी जो थी।लेकिन वो नही होते तो शायद आज वह इस मंच पर नहीं होता।
सभागार में मंच पर आसीन गणमान्य लोगों के मध्य वह बैठा था।सभी विद्वत्जन बारी -बारी से अपना वक्तव्य रख कर बैठ चुके थे।अंत में प्रकाश जो आज का मुख्य अतिथि भी था।बिरला महाविद्यालय के वार्षिक महोत्सव में बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि “सपना देखना कभी मत छोड़ना।”कामयाबी अवश्य मिलेगी।फिर इशारे से प्रकाश ने नीचे एक कोने में बैठे कुछ बच्चों को ऊपर बुलाया और कहा ये सभी हमारे रिश्तेदार हैं ;’’पालना घर ‘’के अनाथ बच्चे। मैंने भी बीस साल इस घर में बिताया है।
मुझे जब संस्था के लोग आकर कपड़े ,खाद्य सामग्री देते थे तो लगता था ज़मीन फट जाए और मैं समा जाऊँ। मैं सोचता कब मैं किसी को देने लायक़ बनूँगा। आज मैं दान में मिले पुस्तकों को पढ़कर आपके समक्ष खड़ा हूँ और ये टाई जो मैंने पहन रखा है,इसे बचपन से संजों कर रखा था...।
