तृप्ति--भाग(२)
तृप्ति--भाग(२)
प्रातःकाल का समय और मन्दिर का प्राँगण ____
अभी सूर्य देवता ने अपना प्रकाश चहुँ ओर नहीं बिखेरा है,सभी स्थानों पर साज-सज्जा चल रही है,मंदिर में आज देवी दुर्गा की नयी मूर्ति की स्थापना होनी है जो कि पड़ोसी राजा ने मित्रता-स्वरूप भेंट की है,उसी का उत्सव है,भोज -भण्डारा है,राज्य के सभी वासियों को आमंत्रित किया गया है,राजा कर्णसेन का आदेश है कि किसी भी घर मे आज चूल्हा नहीं जलना चाहिए।।
दिन चढ़ने तक सभी नगरवासी उपस्थित हो चुके हैं,भोजन की तैयारी प्रातःकाल से ही चल रही थी,अब सभी भोजन का आनन्द उठा रहे हैं,तभी घोषणा हुई की महाराज पधारने वाले हैं,सभी अपने अपने यथास्थान पर खड़े हो गए।।
कुछ समय पश्चात महाराज उपस्थित हुए एवं अपने सिंहासन पर विराजमान हो गए,तभी राजा के मंत्री ने घोषणा की अब देवी के स्थापना का समय है एवं देवी की स्थापना हेतु पूर्व पुरोहित जी को आदरपूर्वक बुलाया गया,उन्होंने देवी की स्थापना विधिवत पूर्ण की,साथ में पूर्व पुरोहित जी ने अपना पद त्यागने की घोषणा की और उस पद का कार्यभार नवीन पुरोहित जिसका नाम गौरीशंकर है उसे सौपनें की घोषणा की,सभी ने हृदय से नवीन पुरोहित का स्वागत किया।।
इसके उपरांत मन्दिर के प्राँगण में कमलनयनी का नृत्य प्रारम्भ हुआ,नृत्य करते करते कमलनयनी ने देवी के चरणों में पुष्प अर्पित कर दिए,परन्तु ये सब गौरीशंकर को तनिक भी ना भाया और उसने कमलनयनी को शीघ्र ही टोकते हुए कहा___
"तुम जैसी स्त्री देवी को पुष्प कैसे अर्पित कर सकती है?"
कमलनयनी ने ये सुना तो क्रोधित होकर बोली____
"क्षमा कीजिएगा,पुरोहित जी!परन्तु आज तक मुझे किसी ने भी ये कार्य करने से नहीं रोका,मैं तो सदैव ही मंदिर में देवताओं के दर्शन करने जाती हूँ,परन्तु आज तक कभी किसी को भी कोई आपत्ति नहीं हुई।"
"परन्तु ,मुझे आपत्ति है,मैं कभी भी नहीं चाहूँगा कि आप जैसी स्त्री कभी भी मन्दिर में प्रवेश करें और देवताओं के दर्शन करें," गौरीशंकर बोला।।
"परन्तु क्यों?" कमलनयनी ने पूछा।।
"क्योंकि तुम एक नर्तकी हो,तुम्हारा यहाँ क्या कार्य?तुम अपने बनाव श्रृंगार पर अधिक ध्यान दो तो अच्छा होगा,क्योंकि तुम्हें तो पुरुषों को प्रसन्न रखना होता है और यही तुम्हारा महत्वपूर्ण कार्य है,"गौरीशंकर बोला।।
इतना सुनकर कमलनयनी ने क्रोधित होकर कहा___
"श्याम! चलो यहाँ से,इतना अपमान" और उसने महाराज से भी कहा__
"क्षमा कीजिएगा महाराज! राजपुरोहित के लिए आपका चुनाव सही नहीं रहा,आपने उचित व्यक्ति को राजपुरोहित नहीं बनाया,जिस व्यक्ति को ये भी ज्ञात ना हो कि स्त्रियों से कैसे बात की जाती है वो भला राजमन्दिर का पद कैसे सम्भाल पाएगा।"और इतना कहकर कमलनयनी नागिन की तरह फुफकारते हुए चली गई।।कमलनयनी के जाते ही महाराज कर्णसेन ने गौरीशंकर से शालीनतापूर्वक कहा____
"पुरोहित जी! हमने आज तक किसी भी नृत्यांगना को मंदिर में जाने से नहीं रोका ,परन्तु यदि आपको ये अनुकूल नहीं लगता तो आज के बाद कोई भी नृत्यांगना मन्दिर में प्रवेश नहीं करेगी।"
"जी बहुत बहुत धन्यवाद महाराज! मुझे आपसे ऐसी ही आशा थी",गौरीशंकर बोला।।
उधर कमलनयनी मूर्छित नागिन की भाँति फुँफकार रही थी,उसे अत्यधिक क्रोध आ रहा था,उसके आत्मसम्मान पर तीक्ष्ण प्रहार हुआ था,उसने मन में विचार किया कि जहाँ इतने सारे पुरुष उसके एक संकेत पर अपने प्राण त्यागने को तत्पर हो जाते हैं,वहाँ मन्दिर के एक तुच्क्ष से पुरोहित ने उसका इतना अपमान किया,उसकी सुन्दरता पर तनिक भी मोहित ना हुआ और तो और उसे देवी पर पुष्प अर्पण करने से भी रोका,अब कमलनयनी ने हठ पकड़ ली कि वो पुरोहित का ध्यान भंग करके रहेगी और एक ना एक दिन अवश्य ही अपने मोह-पाश में फँसाने में सफल होगी।।
अब कमलनयनी अपनी हठधर्मिता पर आ गई थी ,उसने गौरीशंकर के विषय में सब कुछ ज्ञात करने का प्रयास किया और वो कुछ कुछ सफल भी हुई,उसने ये ज्ञात कर लिया कि गौरीशंकर कब महल आता है?कब मन्दिर जाता है?उसकी दिनचर्या क्या है?गौरीशंकर प्रातः सर्वप्रथम गंगा स्नान के लिए जाता था, इसके उपरांत वो मन्दिर में पूजा-अर्चना करता था,ये कमलनयनी ने सरलतापूर्वक ज्ञात कर लिया था।। उसने मयूरी के साथ मिलकर एक योजना बनाई और मयूरी से कहा कि अब देखती हूँ कि ये पुरोहित और कितने समय तक अपना धर्म और चरित्र बचाता है,वें अपनी योजनानुसार दोनों गंगा तट पर पहुँची और झाड़ियों के पीछे छुपकर गौरीशंकर की प्रतीक्षा करने लगी,गौरीशंकर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कमलनयनी बिल्कुल पारदर्शी रेशमी श्वेत साड़ी पहनकर आई थी,जिससे उसकी छरहरी काया उस साड़ी के भीतर से झलके।।
बहुत ही सुन्दर दृश्य था गंगा नदी का,नदी की कलकल की ध्वनि सुनाई दे रही थी,सीढ़ियों से उतरकर छोटा सा घाट था,केवल स्नान करने हेतु,अगल बगल घनी झाड़ियाँ लगीं थीं,नदी के दूसरे किनारे पर पहाड़ों से सूर्य का हल्का हल्का प्रकाश अपनी लालिमा बिखेर रहा था,अत्यधिक लुभावना दृश्य था,हल्की हलकी ठंड भी थी।।
तभी कमलनयनी को गौरीशंकर आता हुआ दिखाई दिया,उसने मयूरी से कहा कि ___
"अब अभिनय का समय आ गया है,मैं अपना कार्य करती हूँ,बस तुम दर्शक की भाँति मेरा अभिनय देखो।"
कुछ समय पश्चात गौरीशंकर घाट तक आ पहुँचा , उसने अपने संग लाईं वस्तुओं को धरती पर रखा और नदी में उतरकर कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगा,तभी कुछ समय पश्चात नदी के किसी ओर से बचाओ...बचाओ का स्वर गूँज रहा था,गौरीशंकर का ध्यान उस ओर गया और उसने देखा कि कोई स्त्री नदी मेः डूब रही है और सहायता हेतु चिल्ला रही है,गौरीशंकर ने देखा कि वो स्त्री अब डूब चुकी है और गौरीशंकर बिना सोचे समझे ही नदी मे कूद पड़ा और कुछ समय पश्चात ही गौरीशंकर उस स्त्री को बचा लाया,गौरीशंकर उसे अपनी गोद में बाँहों में पकड़कर घाट के बाहर ला रहा था,उस समय कमलनयनी को गौरीशंकर की सुडौल बाँहों में कुछ विचित्र से भाव उत्पन्न हुए,गौरीशंकर के तन से आ रही महक ने कमलनयनी को बेसुध सा कर दिया था,परन्तु वो गौरीशंकर की बाँहों में अचेत होने का निरन्तर अभिनय करती रही,
उसकी गीली पारदर्शी साड़ी में से उसका उसका अंग अंग झलक रहा था,उसके लम्बे खुले बालों से पानी बूँद बूँद करके टपक रहा था,उसके गीले गुलाब से कोमल होंठ लरझ रहे थे और ठंड से उसका शरीर काँप रहा था,तभी गौरीशंकर ने उसे धरती पर लिटाकर उसके पेट पर दबाव डाला,कमलनयनी के मुँख से कुछ जल बाहर आया,परन्तु वो अभी भी अचेत अवस्था में थीं,तत्पश्चात गौरीशंकर ने अपने मुँख से कमलनयनी के मुँख में श्वास भरी,इससे कमलनयनी कुछ विचलित हुई और उसके शरीर में कम्पन हुआ ,धमनियों में रक्त का संचार होने लगा,कमलनयनी ने अपनी आँखें खोली और बोली___
"पुरोहित जी,आप!मैं यहाँ कैसे? मैं तो डूब रही थी,क्या आपने मेरे प्राण बचाएं?"
तभी गौरीशंकर बोला___"क्षमा कीजिएगा, देवी! किन्तु आपके स्थान पर कोई और होता तो तब भी मैं ऐसा ही करता,मानवता ही पहला धर्म होता है और मैने अपना धर्म निभाया है।"और इतना कहकर गौरीशंकर ने धरती पर रखीं अपनी वस्तुएं उठाईं और चला गया।।
गौरीशंकर के जाते ही मयूरी झाड़ियों से बाहर निकली और परिहास करते हुए बोली___"अभिनय तो आपने बहुत अच्छा किया किन्तु पुरोहित जी तो लगता है कि पाषाण हृदय हैं,कोई भी अन्तर ना पड़ा उनको।"
"सही कहती हो मयूरी! ये कैसा पुरूष है?" इसका हृदय है या पाषाण,कमलनयनी बोली।
परन्तु,अब कमलनयनी को गौरीशंकर का स्पर्श विचलित कर गया था,वो गौरीशंकर के होंठों की ऊष्णता को अपने होंठों पर अनुभव कर रही थी,उसके अन्तःमन में तरंगें उठ रही थीं,उसका मन अधीर हो उठा,वो अब पुनः गौरीशंकर का स्पर्श पाना चाहती थी,गौरीशंकर के तन की ऊष्णता उसे बार बार पिघला रही थी और वो पिघल कर अब गौरीशंकर में समाना चाहती थी।।
कुछ समय पश्चात___
अब कमलनयनी की दशा अत्यंत ही व्याकुल सी प्रतीत होती,वो ना अब नृत्य का अभ्यास करती और ना ही बनाव श्रृंगार पर ध्यान देती,ना ही अब वो समय से भोजन करती,अपने विचलित चित्त को शांत करने के लिए उसने मन्दिर जाने का विचार बनाया।और आज वो साधारण तरीके से तैयार होकर मयूरी के संग मन्दिर पहुँची ही थी कि गौरीशंकर क्रोधित होकर बोला___
"तुम! पुनः आ गई,तुम्हारा यहाँ आना निषेध है तो क्यों यहाँ अपना अपमान करवाने चली आती हो,जाओ इसी समय यहाँ से चली जाओ।"
कमलनयनी ने इतना सुना और रोते हुए मन्दिर से भाग आई.....

