Today's Chanakya Chapter 4
Today's Chanakya Chapter 4
४. योजना निर्माण
सुबह करीब आठ बजे ओम, अनिरुद्ध और आयशा हॉल में थे। ओम ने अपने दोस्त इंस्पेक्टर मनोज को भी बुला लिया था। मनोज ने हॉल में कदम रखा ही था कि ओम किसी कॉल को अटेंड करने के लिए वापस अपने कमरे की तरफ चल पड़ा।
" ये चोरनी इधर क्या कर रही है?" मनोज ने आयशा को देखते ही कहा।
उसकी बात सुनकर अनिरुद्ध चौक पड़ा परंतु कुछ बोला नहीं।
" अपुन टैक्सी ड्राइवर है।" आयशा ने मनोज को घूरते हुए कहा।
"अच्छा!" मनोज ने उसे गौर से देखते हुए कहा, " और शायद टैक्सी तुमने चुराई होगी।"
" अपुन ने खरीदी है ।"
" झूठ, तुम्हारे पास इतने रूपये कहा से आए या फिर चोरी से पैसों से टैक्सी खरीदी होगी।" मनोज ने गंभीर आवाज में कहा, "ये तो ओम मेरा दोस्त है इसलिए उसकी बात मानकर हर बार तुम्हें जाने देता हूं.....।"
" अपुन एक साल से ईमानदारी से टैक्सी चला रेली है।" आयशा बीच में बोल पड़ी, "अपुन ने laon लेकर टैक्सी खरीदी है।"
"Loan." मनोज ने अजीब चेहरा बनाते हुए पूछा, "और कौन देगा तुम्हें लोन।"
"सेठ राजशेखर रविचंद्रन ।" आयशा ने आंखें निकलते हुए कहा।
" सेठ राजशेखर रविचंद्रन!" मनोज ने चौंकते हुए कहा, "वो तो ओम के....।"
तभी ओम वहां आ गया। उसने हाथ के इशारे से मनोज को चुप कराने का प्रयास किया परंतु आयशा को इतना तो पता चल चुका था की ओम ने ही अप्रत्यक्ष तरीके से टैक्सी खरीदने में उसकी मदद की थी।
आयशा ने पीछे मुड़कर ओम की तरफ देखा। ओम के चेहरे के भाव बता रहे थे की वह नही चाहता था की आयशा इस बात को जाने।
"तूने अपुन की हेल्प की।" आएशा का चेहरा खिला सा गया था। "यानी तेरे दिल में भी अपुन के लिए कुछ कुछ होता है।"
" नहीं राजशेखर रविचंद्रन ने की।" ओम ने बात संभालने का व्यर्थ प्रयास किया।
आयशा अपना मुंह खोलने ही वाली थी की पर ओम ने हाथ के इशारे से चुप कराते हुए अपनी बात जारी रखी, " हम सभी यहां एक जरूरी काम से इकट्ठा हुए है, बाकी बाते बाद में भी की जा सकती है।"
ओम ने इस बात को टालने में ही अपनी भलाई समझी, दूसरी ओर अनिरुद्ध और मनोज दबी हुई हंसी हंसे जा रहे थे।
ओम ने विषय बदलते हुए सबको सिकंदर शाह के बारे में बताया।
" सिकंदर शाह!" सबसे पहले आयशा ने ही ओम के बीच में बोला, " अगर उस आदमी ने तुमको challenge दियेला है मतबल वो पहले से ही जीत चुका है।"
" तो चलो उसे जीतने देते है।" ओम ने मुस्कुराते हुए आयशा की ओर देखा।
" क्या मतलब!" अनिरुद्ध, मनोज और आयशा ने एक साथ एक ही जैसी प्रतिक्रिया दी थी।
हालांकि आयशा ने 'क्या मतबल!' बोला था।
" जब व्यक्ति को कोई वस्तु सहजता से मिल जाती है तो वह लापरवाह हो जाता है।" ओम ने कहा।
" तुम पहेलियां मत बुझाओ।" मनोज ने कहा।
" सुनो।" ओम ने सावधानी पूर्वक कहा, " अगर ऐसा हो की जो वह चुराने आ रहा है, हम उसे वो दे दे तो।" ओम ने देखा की तीनों काफी गौर से उसे सुन रहे थे, "मेरे पास एक योजना है जिससे हम उसे मजबूर कर देंगे की वह गलत चीज चुरा ले।"
"पर तुम ऐसा करोगे कैसे?" अनिरुद्ध ने प्रश्न किया।
" मैने पेंटिंग्स और मूर्तियों को लाने के लिए दो बड़ी तिजोरियाँ बनवाई है।"
" दो किस लिए?" अनिरुद्ध ने फिर पूछा।
"एक असली सामान के लिए, दूसरी खाली होगी।"
" हे!" फिर तीनों ने एक जैसी प्रतिक्रिया दी।
" हू!" ओम ने अनिरुद्ध की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा, " अनिरुद्ध तुम आज से ही मीडिया में अपनी पेंटिंग्स और मूर्तियों के बारे में जितना हो सके उतना प्रचार करते रहोगे। पैसा देकर तुम यह खबर चलवाओगे रहोगे की वो कब आ रही है, कैसे आ रहीं है, कैसे उनको ट्रांसपोर्ट किया जाएगा, सब, सब कुछ तुम मीडिया के सामने बोलेंगे।"
"क्या?" अनिरुद्ध को जैसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
" तुम लोग पूरी बात सुन लो फिर कोई सवाल हो तो पूछ लेना।" ओम बीच में किसी भी प्रकार का इंटरप्शन नहीं चाहता था।
उसने अपना चश्मा ठीक करते हुए आगे कहा, "कस्टम्स की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तुम्हारी सारी प्राचीन वस्तुओं को वही तिजोरी में रख दिया जाएगा और फिर उस तिजोरी को एक ट्रक पर लदे कंटेनर में रख दिया जाएगा। वही एक और कंटेनर में दूसरी खाली तिजोरी भी पहले से मौजूद होगी।" ओम बिना रुके बोले जा रहा था, " उस दिन भी अनिरुद्ध को मीडिया की भीड़ को इकट्ठा करके ऐसे दिखाना होगा की उस खाली तिजोरी में ही सारी प्राचीन वस्तुएं है।"
"तुम उससे खाली तिजोरी चुरवाना चाहते हो " मनोज ने मुस्कुराते हुए कहा।
"बिल्कुल।" ओम भी मुस्कुराया, "जब तक वह खाली तिजोरी चुराएगा हमारी भरी हुई तिजोरी अनिरुद्ध के गांव पहुंच चुकी होगी क्योंकि एक शक्तिशाली लेजर से उस तिजोरी को काटने में भी कम से कम 15 घंटे लगेंगे, इस पर भी समय को खींचने के लिए मनोज उसको गिरफ्तार कर लेगा ।"
" पर मैं उसे गिरफ्तार करूंगा किस जुर्म में।" मनोज ने अचरज भरे अंदाज में पूछा।
"अनिरुद्ध रामचंद्रन द्वारा उसी दिन लिखवाई गई FIR के आधार पर जिसमें वह यह लिखवाएगा की सात दिन पहले सिकंदर शाह ने उसकी पेंटिंग्स और मूर्तियां चुराने की धमकी दी थी।" ओम ने दांत दिखाते हुए कहा।
"अगर बिना सुबूतों के मैंने ऐसा कुछ किया तो भी उसका वकील कुछ ही घंटों में उसे छुड़ा लेगा और मुझे कोर्ट में घसीटेगा अगल से।"
"कोर्ट वाला मैटर मैं देख लूंगा।" ओम ने मनोज को ललचाते हुए कहा, " पर सोचो, तुम उसे गिरफ्तार करने जाओ और वह तिजोरी के साथ ही पकड़ा जाए तो।" ओम आगे बोलता ही रहा, " हालांकि वह तिजोरी को अपने गुप्त स्थान पर छोड़कर अपने लिए perfect alibi भी ढूंढ सकता है ताकि वह यह बता सके की चोरी के समय वह कही ओर था।"
" हां, पर सिकंदर को अगर इस बात का पता लग गया कि तिजोरी खाली है तो?" अनिरुद्ध ने ओम की बात पर गौर करते हुए पूछा।
" तुम्हारे गांव से करीब 20 किलोमीटर पहले वैंकटपुरम में मेरे मित्र सुब्रमण्यम की फैक्ट्री है।" ओम ने कहा, " उस दिन हमारी तिजोरी को ले जाने वाला ट्रक भी उसके 40 ट्रकों के साथ उसकी फैक्ट्री पहुंच जाएगा।"
" और सब सोचेंगे की सारे 41 ट्रक अपना सामान खाली कर वापिस फैक्ट्री जा रहे है।" मनोज ओम से प्रभावित होता हुआ बोला।
" निसंदेह।"
" पर ट्रक चलाएगा कौन?" आयशा ने पूछा।
" वो सुब्रमण्यम किसी हो हायर कर लेगा, उन्हीं ट्रक्स के साथ आएगा।" ओम बोला। " उस ट्रक ड्राइवर को केवल इतना ही पता होगा की एक ट्रक पहले से ही पोर्ट पर है और उसे उस ट्रक को फैक्ट्री लाना है।"
" ऐसा क्यों?" अनिरुद्ध ने पूछा, "क्यों न हम ही एक ट्रक ड्राइवर हायर कर ले।"
" क्योंकि मैं नहीं चाहता की यह खबर लीक हो की हम दो ट्रक ड्राइवर हायर कर रहे हैं।" ओम ने उसे समझाते हुए कहा।
" Great, पर उसकी सिक्योरिटी का क्या?" अनिरुद्ध प्रश्न पर प्रश्न किए जा रहा था।
" हाँ मैं तिजोरी में ट्रैकर लगा दूंगा ।" ओम ने लापरवाही के साथ कहा।
"बस ट्रैकर ही।" अनिरुद्ध ने चौंकते हुए पूछा।
" हां, क्योंकि मैं नहीं चाहता की किसी को शक हो। अगर हम खाली ट्रक के लिए भी सिक्योरिटी लगाएंगे तो शक तो होना ही है।" ओम ने उसे समझाते हुए कहा।
"उस दिन आयशा !" ओम ने आयशा की हाथ से इशारा करते हुए कहा, "तुम अनिरुद्ध के साथ रहोगी, कार चलाओगी और ट्रक का ऐसे पीछा करोगी जैसे उसमें सच में पेंटिंग्स और मूर्तियां हो।"
"ओके बॉस।" आयशा ने उसे सैल्यूट मारते हुए कहा।
"मनोज अपने साथियों के साथ तुम्हारे पीछे रहेगा।" ओम ने आगे कहा, " साथ ही दो गाड़ियों में मेरे कुछ आदमी भी तुम्हारे पीछे रहेंगे।"
मनोज ने भी स्वीकारात्मक रूप से अपना सिर हिलाया।
" और तुम, तुम क्या करेगा उस टाइम?" आयशा ने पूछा।
" मैं अनिरुद्ध के पुश्तैनी बंगले पर रहूंगा, हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए।" ओम मुस्कुराया।
" क्यों?" अनिरुद्ध ने अजीब सा मुंह बनाते हुए कहा।
"क्योंकि तुमने ही बताया था उस बंगले में भूत है।" ओम ने लापरवाही के साथ हंसते हुए जवाब दिया।
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सबके जाने के बाद ओम चुप चाप छत पर चला गया ।
ओम छत के एक किनारे पर खड़ा सूर्य को अस्त होते हुए देख रहा था।
" मुझे समझ नहीं आ रहा है ओम की तुम्हारे और आयशा के बीच क्या चल रहा है।" अनिरुद्ध उसके पीछे आकर खड़ा हो गया था।
" क्या चल रहा है।" ओम ने उसकी तरफ मुड़ते हुए कहा, "कुछ भी तो नहीं।"
" देखो अगर तुम्हें बताना नहीं है तो मना कर सकते हो।" अनिरुद्ध ओम की ओर दो कदम बढ़ते हुए बोला, " पर मैं भोला नहीं हूं। मुझे तुम्हारी आंखों में भी उसके लिए प्यार दिखाई देता है फिर तुम उसे हर बार क्यों इग्नोर करते हो?"
"यह सच है की मैं भी उसे पसंद करता हूं पर मैं नहीं चाहता की आगे जाकर उसे दुखी होना पड़े।"
" और ऐसा कैसे होगा?"
" तुम मुझे जानते हो मैं एक proud हिंदू हूं और मैं हर जगह बिना किसी हिचकिचाहट के इसका प्रदर्शन भी करता हूं, अटल जी की कविता तरह 'हिन्दू तन - मन हिंदू जीवन, रग -रग हिंदू मेरा परिचय', हमारे संबंध जल्दी टूट जाएंगे जब हमारी वैचारिक भिन्नताओं में संघर्ष होगा।" ओम धाराप्रवाह बोले जा रहा था, " और मैं पिछले 3 सालों से love जिहादियों के विरुद्ध काम कर रहा हूं, अगर मैं ही उससे प्यार करूंगा तो मैं भी उन लोगों जैसा कहलाऊंगा।"
" मुझे लगता है तुम कुछ ज्यादा ही आदर्शवादी हो रहे हो ओम।" ओम ने उसे समझाते हुए कहा, "तुम उन लोगों की तरह नहीं कहलाओगे क्योंकि आयशा जानती है की तुम हिंदू हो, तुमने उससे कुछ नहीं छुपाया है।"
" पर मैं।" पहली बार ओम अपनी बात नहीं रख पा रहा था।
अनिरुद्ध ने उसकी मनोस्थिति को गैर से देखते हुए कहा, "मेरे दोस्त साइकोलॉजी में इसे conflicts कहते है, इससे बाहर निकलने की कोशिश करो।" अनिरुद्ध ने ओम के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, " कुछ जवाब केवल समय ही दे सकता हैं इसलिए मेरी बात मानो तो आयशा से भागने की बजाय उसे समय दो।
ओम ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
सूर्य अस्त हो चुका था।