Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

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Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

तमिस्राक्षत

तमिस्राक्षत

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180


प्रिय भतीजी

सदा खिलखिलाती रहने वाली तुम्हारी लाड़ली बहन के आँखों में ज्वालामुखी का साया और चेहरे पर अलावोष्णिमा देखकर, परिस्थिति का आकलन करने से अच्छा लगा कि पूछ लिया जाए कि किस सुनामी का सामना कर लौटी है। पूछने पर उसने बताया कि अनेको बार आने का अनुरोध किया गया था। अनेक तरह से भागीदारी का प्रस्ताव मिला था जैसे मंच संचालन कर लें, पुस्तक के विमर्श में भागीदारी कर लें, धन्यवाद ज्ञापन कर लें।

लेकिन उसने सिर्फ श्रोता बनकर पुस्तक लोकार्पण के कार्यक्रम में शामिल होना स्वीकार करते हुए, बहुत विलंब से कार्यक्रम में पहुँची थी। सभी से मिलना जुलना हुआ। कार्यक्रम समाप्ती के बाद सबके संग वो भी वापिस होने लगी तो उसे अनुरोध से रोक लिया गया कि विलम्ब से आयी है, अत: थोड़ा और समय ठहरे। समान्य बातचीत के क्रम में उससे पूछा गया कि "आप सभी जगहों पर चली जाती हैं! आप आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं ! अकेली औरत रह जाने का मजा ही मजा है।"

तुम्हारी बुआ


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