The 13th अध्याय 19
The 13th अध्याय 19
सृजल फुल स्पीड में कार भगा रहा था, आज तक वो सिर्फ आराम से ही कर चलाया करता था ताकि कहीं एक्सीडेंट न हो जाए पर आनंद की मायूसी भारी उस आवाज ने सृजल को पागल से कर दिया था। सृजल का चेहरा पसीने से भरा हुआ था, उसकी दिल की धड़कन भी बहुत तेज़ हो रखी थी पर उसकी रफ्तार कम नहीं हो रही थी। अलका भी कार में कुछ घबराई हुई सी बैठी हुई थी क्योंकि उसे लग रहा था कि अगर थोड़ी सी भी चूक हुई तो उन दोनों की जान पर बन आएगी पर उसकी इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी सृजल से यह कह सके कि ‘कार को जरा धीमे कर ले’!
आखिर वो मोड़ आ ही गया जहां से सृजल के घर का रास्ता आता था, उसने झटके से गाड़ी मोड़ दी। अब लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर अंदर जाना था और सृजल का घर आ जाता। यूँ तो सृजल की ये जो घर की लोकेशन थी वहां का माहौल हमेशा ही सुनसान रहा करता था पर आज सृजल को अपने घर वाले इलाके से काफी सारी रोशनी दिखाई दे रही थी जिसे देख सृजल की घबराहट तेज़ हो गयी। घर से बस थोड़ी ही दूरी पर सृजल ने इतनी जोर के ब्रेक मारे की गाड़ी स्लिप होकर कुछ देर बाद रुकी........ अपनी कार से बाहर निकलते ही सृजल कि आंखें चोंधिया सी गयी! उसकी आँखों के सामने उसका घर धूं-धूं करके जल रहा था, आग की लपटें अब आसमान में ऊंची उठ रही थी जैसे अभी आसमान को काला कर देंगी। घर के ठीक सामने एक ऑडी खड़ी हुई थी.......जिसे बेशक सृजल अच्छे से जनता था, वो आनंद की कार थी जिसके ठीक सामने आनंद निराशा से अपने घुटने कर बल बैठा हुआ था जिसे घबराई हुई रूबी उठाने की कोशिश कर रही थी क्योंकि आग अब और तेज हो गयी थी।
सृजल दौड़ के आनंद के पास गया और उसे अपने साथ खींच कर दूर ले आया पर आनंद अब भी अपने सदमे में ही डूब हुआ था
“आनंद! आनंद क्या हुआ यहाँ पर और..और बच्चे कहाँ पर है?” सृजल ने आनंद के चेहरे को हिलाकर उसे होश में लाने की कोशिश की पर सृजल की बात पूरी होते ही जैसे आनंद अपने आप ही उस सदमे से बाहर आ गया और सृजल के गले लग रोने लगा और रोते-रोते ही उसने जवाब दिया
“सृजल..सृजल यार! उसने हमारा घर जला दिया और उस कमीने ने...हमारा घर भी जला दिया....हा sssss...... वो बच्चों को भी....हम्मSSS..उठा कर ले गया” आनंद ने किसी तरह अपनी बात सृजल के सामने रखी जो अब खुद रोने की हालत में ही था। आंसू तो उसके भी आ चुके थे जो गाल पर अपना रास्ता छोड़ रहे थे.............आनंद ने अपने शर्ट की जेब से एक पर्ची निकाली और सृजल के हाथ में दे दी। सृजल उठ कर खड़ा हो गया और रूबी ने सृजल की जगह ले ली...उस मुड़े हुए कागज को सृजल ने अपने कांपते हांथों से खोला
“हाsssहाsssss जब तेरा ये घर राख हो रहा होगा तब ही तू इसे पढ़ रहा होगा। क्योंकि जब मैं आया तब तू यहां था नहीं और उन बच्चों को तो बोलने का मौका ही नहीं दिया। वैसे तो हम दोनों का पुराना हिसाब बाकी है पर अभी मुझे जिसकी जरूरत थी मैं उन्हें ले जा रहा हूँ.....तेरा घर जलना तो मेरा छोटा सा बदला था पर जब मैं इन बच्चों की खाल खींच लूंगा और तू कुछ नहीं कर पायेगा...तब असली मजा आएगा _ ओबर!”
“हाsssssssssssssssssssssss आह......” सृजल ने उस कागज को मोड़ते हुए जमीन पर जोरर से लात मारी और तेज हुंकार लगाई। उसके आंसू और उसकी आवाज पुलिस और एम्बुलेंस की लाल बत्ती की आवाज में दब कर रह गयी... कुछ दे र में अग्निशमन दल भी आ पहुंचा और सृजल कि आंखों के सामने अब उसका घर रख के ढेर में बदलने लगा। वो कुछ भी नहीं कर सकता था सिवाय वहां पर बैठकर अपने दोस्त को संभालने के, आखिर उनकी काफी सारी यादें उस घर में मौजूद थी!
अलका अब भी वहीं खड़ी हुई थी जहाँ पर सृजल ने अपनी कार छोड़ी थी और आनंद की तरफ भाग खड़ा हुआ था। अलका का पूरा चेहरा सफेद पड़ा हुआ था, आंखें खुली की खुली और एक अजीब सा डर उसके चेहरे से टपक रहा था जैसे इस सब के होने का उसे डर था?
सृजल के घर को जले हुए 4 घंटे बीत चुके थे और अभी रात के 11 बजे सृजल, आनंद, अलका और रूबी तीनों एक ही कर मैं बैठे हुए पुलिस स्टेशन से रूबी के घर जा रहे थे। घर जलने के बाद पुलिस और मीडिया दोनों ही आ गए थे पर रूबी ने अपनी खुशहाल बुद्धि से उन दोनों को ही संभाल लिया था। पुलिस ने जांच की और ये घोषित कर दिया कि गैस सिलिंडर लीक हो जाने के कारण ही ये हादसा हुआ था और मीडिया ने इसी बात को टीवी पर दिखाया। पर अभी भी कुछ चैनल ये बताने को तुले हुए थे कि मिस रूबी के विदेशियों से सम्बंध होने के कारण कोई खतरनाक आर्गेनाईजेशन उनके साथियों पर हमला करके उन पर किसी तरह का दबाव डालने चाहते हो.................. इस सब को सुनने के बाद भी सृजल और आनंद ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी थी..वो दोनों अभी भी कर में चुप ही थे। जब पुलिस स्टेशन में लाये गए तब भी चुप थे, जब सवाल पूछे गए तब भी, उनके जवाब भी चुप्पी में ही थे और अब भी वो दोनों चुप ही थे।
रूबी ड्राइव कर रही थी और अलका उसके बगल में बैठी हुई थी। दोनों ने एक दूसरे को फिलहाल चुप ही रहने का इशारा किया। अभी किसी को भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? अगर ओबर जैसा हत्यारा सृजल के घर तक पहुंच सकता है तो फिर अगर उसे हमला ही करना हुआ तो वो रूबी के घर पर भी आ सकता है,पर सवाल तो अब भी है कि आखिर ओबर ने उन बच्चों को ही क्यों ले गया? वो चाहता तो उन बच्चों को मार भी सकता था..फिर उसने ऐसा क्यों नहीं किया?
इन्ही सवालों में गुम होकर रूबी घर तक पहुंच गई, वैसे उसे घर कहना सही नहीं होगा क्योंकि वो तो एक विला था। लगभग 10 एकड़ की जगह में फैला हुआ वो किसी 5 स्टार होटल से कम नहीं था। पूरे दस एकड़ में आखिर क्या नहीं था? स्विमिंग पूल से लेकर खुद का एक तालाब, अपनी प्राइवेट कर से लेकर एक पूरा का पूरा शोरूम और खाने के एक मेस से लेकर पूरा का पूरा बावर्चीखाना! अब क्योंकि उसके पास इतनी बड़ी जगह थी तो उसे यहीं पर रहना चाहिए था पर असल में रूबी यहां नहीं रहती थी। यहां पर वो अक्सर अपने मेहमानों को ही लाया करती थी जो उस आलीशान बंगले में रुक करते थे............................. उसी आलीशान बंगले के पीछे कुछ दूरी पर एक छोटा सा पर काफी आरामदायक घर था और ये वो घर था जहां पर असल में रूबी रहती थी,मतलब खाना-सोना-रहना सब यहीं करती थी। बंगले के चारों तरफ काफी सिक्युरिटी थी पर ऐसे ही किसी को नहीं दिखती थी। कुछ गार्ड्स पूरे बंगले के आस-पास जरूर दिख जाएंगे पर किसी को क्या पता कि वहाँ का माली भी अपनी कमर में गन लटकाय घूम रहा है और यह बात सिर्फ तीन ही लोग जानते है...सृजल,आनंद और खुद रूबी! अंदर आते ही एक ड्राइवर ने रूबी और बाकियों के उतरने के बाद कर को लेकर अंदर गेराज में रख दिया। 2 गार्ड्स अंदर से आये जो कि बाउंसर्स की तरह दिख रहे थे, उन्होंने सफेद टी-शर्ट और काला पेंट पहना हुआ था, वो आगे आ गए और उनके पीछे-पीछे ये सभी चलने लगे। बंगले के बाजू से होते हुए वो आगे बढ़े तो कुछ दूरी पर रूबी का वो छोटा सा घर दिखाई दिया जिसके बाहर कोई भी गार्ड नहीं था। वो घर छोटा जरूर था पर सुंदर भ था ऊपर से उसमें कांच की खिड़कियां और रोशनदान था, एक ऐसा घर जो सुकून की जिंदगी बिताने के लिए काफी था।
“मुझे घर की चाबी देकर तुम दोनों जा सकते हो, 1 घंटे में खाना भिजवा देना और कल की सारी मीटिंग्स कैंसिल कर देना” वो अपने साथ आये दोनों गार्ड्स से बोली “समझ गए ना अमर और देव?”
“पर कल तो आपकी ऑस्ट्रेलियन फार्मासूटिकल ‘लाइफ नेचर’ के साथ एक डील है ना....और कल तो सृजल सर की फाइट भी होनी है’ अमर अपने दांये कान में एक बाली पहनता था और देव के बाल हमेशा ही कटोरा कट रहते थे
‘उनसे कहो कि ये डील अभी 50-50 पर सेटल कर दे और एक प्रॉब्लम के कारण फिलहाल मैं उनसे नहीं मिल पाऊंगी.....अब कोई सवाल नहीं! खाना भिजवा देना और तुम लोग भी खा लेना वरना कहोगे की मैडम जानते हुए भी लेट आयी कि हम साथ में खाना खाते है”
रूबी की बात सुनकर दोनों ने एक-दूसरे को देखा और हँसते-मुस्कुराते हुए वहां से चले गए।
रूबी ने दरवाजा खोला और सभी घर के अंदर हो लिए। अंदर जाते ही सामने एक छोटा सा हॉल था जहाँ पर 2 सोफे और एक LCD लगा हुआ था, कुछ लकड़ी की मेजें थी। बाईं तरफ किचन था और हॉल से आगे सामने ही 2 कमरे थे जिनकी बड़ी-बड़ी कांच की खिड़कियां थी और अंदर ही बाथरूम भी था। दोनों ही कमरों में एक डबल बेड था, एक लकड़ी की काली अलमारी एक स्टूडि डेस्क और एक TV था जिसके पास ही PS10 रखा हुआ था।
रूबी ने अलका को सृजल को कमरे में ले जाएं एक इशारा किया और खुद भी अपने कमरे में आनंद को ले गयी। फिर दोनों बाहर आई
“दोनों अपने घर को लेकर काफी उदास है, आखिर काफी सारी यादें थी उस घर में हमारी” रूबी ने कुछ धीमी आवाज में कहा “किसी भी तरह तुम सृजल का ध्यान घर से निकालों ताकि वो दोनों खाना खा सके”
“हां, में बिल्कुल यहीं करने वाली हूँ” अलका ने एक गहरी सांस लेकर कहा
“मैं जाकर आनंद को संभालती हूँ और 30 मिनट में मिलते है”
इतना कह कर दोनों ही अपने कमरों में चली गयी। अलका ने धीरे से कमरे को लॉक किया और देखा की सृजल अब भी सर झुकाए बिस्तर पर बैठ हुआ था
“सृजल.....देखों मैं समझती हूँ की तुम जो हुआ उस से काफी दुखी हो...पर इस तरह उदास रहने से तो कुछ नहीं बदलेगा” अलका सृजल के बगल में बैठ गए और अपना एक हाथ सृजल के कंधे पर रख लिया “अगर तुम कोई भी बात अपने दिल से बाहर निकालना चाहते हो तो...मैं यहीं पर हूँ”
“हम्म......मुझे इस बात का दुख नहीं है कि मेरा घर जल गया पर वो ओबर उन बच्चों को उठा कर ले गया। भला उसकी उन से क्या दुश्मनी? गर बदला ही लेना था तो मुझसे लेता...पर बच्चों को किडनैप कर उसने अच्छा नहीं किया”
सृजल की बात में दुख तो था ही पर साथ ही में गुस्सा औऱ चिढ़ भी थी, जो अलका भलीभांति समझती थी
“अब हम तो सिर्फ पुलिस में ही कंप्लेन कर सकते है पर फिर सवाल हम पर ही उठेंगे की आखिर वो बच्चे थे कौन? और वगैरह-वगैरह........... शायद इस सब को लेकर रूबी कोई हल निकाल ले?” अलका ने सृजल को आश्वासन देते हुए कहा जिस पर अचानक ही सृजल के हाव भाव बदल गए जैसे किसी ने उसे समस्या का हल ही बता दिया हो...उसके चेहरे की उदासी एक पल में उड़ गई
“थैंक यू अलका, तुमसे बात करके मेरा मन हल्का हो गया’” सृजल ने मुस्कुराते हुए कहा
सृजल कि उदासी को छू होता हुआ देख कर अलका बहुत खुश हुई। वो दोनों कुछ देर वहीं पर बैठे हुए बातें करने लगे। कुछ ही देर में खाना आ गया, सभी हॉल में आये तो सृजल ने देखा कि अब अब आनंद भी सहमा हुआ नहीं था यानि दोनों लड़कियों ने अपना जादू बिखेर ही दिया था। खाना किसी भी होटल से कहीं ज्यादा बेहतर था क्योंकि न सिर्फ शहर के सबसे काबिल बावर्ची बल्कि पूरे देश से बहुत ही होनहार बावर्ची रूबी के इस बंगले में कार्यरत थे। शायद रूबी को इस बात का अहसास हो गया था कि खाना खाने के बाद सृजल आनंद को लेकर एक कमरे में सो जाएगा इसलिए अलका ने जल्दी से खाना खत्म किया और आनंद को लेकर सीधे अपने कमरे में चली गयी
“गुड नाईट!” कहते हुए रूबी ने दरवाजा लगा दिया
सृजल और अलका तो अभी भी खाना ही खा रहे थे इसलिए अचानक उन दोनों को जाता देख वे बस देखते ही रह गए। अब ये उम्मीद तो अलका ने भी नहीं कि थी कि रूबी ऐसा कुछ करेगी जिस से उसकी आज की रात सृजल के साथ बीतेगी! अलका मन ही मन खुश भी थी पर शर्म की लाली भी उसके चेहरे पर आ गयी थी उधर जब सृजल को इस बात का अहसास हुआ तो उसका तो पूरा का पूरा चेहरा ही सफेद हो गया जैसे उसका मन कह रहा हो ‘बेटा सृजल! अब तू खुद पर कंट्रोल(Control) करके बता तो मानू’
पर फिर दोनों ने ही सोचा कि जो होगा देखा जाएगा फिलहाल सामने रखे कढ़ाई पनीर पर फोकस(Focus) किया जाए। दोनों की खुराक थी ही बहुत तगड़ी इसलिए उन्हें खाना खाने में देर सी हो गयी........
आखिर वो दोनों कमरे में गए और अलका ने सृजल के ही सामने अपने कपड़े उतार कर पाजामे में तैयार हो कर सीधे बिस्तर में एक जगह जाकर बैठ गयी। अब सृजल को समझ नहीं आया कि क्या किया जाए? जब अलका अपने कपड़े बदल रही थी तो उसे सिर्फ अंडर वेयर्स(Underwears) में देख कर सृजल के बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी ऊपर से नवंबर का महीना! दिन में तो छोड़ो कोई प्रॉब्लम नहीं होती पर रात की कंपकपाती ठंड में अलका के साथ एक बिस्तर बांटने में सृजल की फट रही थी ऊपर से जब उसने अलका का चेहरा देख तो इस लगा जैसे बस अब वो यहीं इंतज़ार कर रही थी कि जैसे ही सृजल ने कपड़े बदलने की कोशिश की और वो सृजल पर कूद पड़ेगी और उसे कच्चा ही खा जाएगी।
“जल्दी करो सृजल, मुझे नींद आ रही है” एक तो उसकी अंगड़ाई वाली ये आवाज इतनी मादक थी कि एक पल के लिए तो सृजल के रोंगटे ही खड़े हो गए। उसने अलका से नजरें बचाते हुए अलमारी में से एक केफरी निकाल कर पहन लिया और ऊपर से अपनी काली-लाल बनियान पहन ली। सृजल अब बिस्तर की ओर ऐसे बढ़ने लगा जैसे बिस्तर न होके कोई जंग का मैदान हो। अलका की बगल में जाकर उसने रजाई को अपने पैरों तक ढंक और बिस्तर के पीछे लगी दीवार से टिक गया
“खाना कैसा लगा था आज का? मेरा मतलब अभी रात में जो हमने खाया” सृजल ने विषय और ध्यान बदलने की कोशिश की
“क्या तुम मेरा ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हो?” सृजल की बॉडी-लैंग्वेज से अलका ने तुरंत ही उसे पकड़ लिया। अब सृजल को समझ नहीं आया कि क्या जवाब दिया जाए.....वो मुँह हिलाते हुए कुछ सोचने लगा कि तभी अलका ने उसे अपने पास खींच लिया और जोर से उस से ऐसे चिपक गई जैसे बंदर का बच्चा अपनी माँ से चिपका रहता है। सृजल की तो घिघ्घी बांध गयी, पहले तो उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था पर अब तो डर भी लग रहा था कि कहीं आज रात कुछ हो न जाये। उधर अलका के अलग ही मजे चल रहे थे। सृजल का बदन काफी गठीला था जिस पर उसकी बनावट को अलका अपने हाथों से कहीं पीठ पर तो कहीं उसके हांथों पर अपने हाथ फिरा रही थी........पर सृजल को इतना चुप से देख उसे रहा नहीं गया
“यार अब इतना भी क्या शर्मा रहा है?.....मुझे अपनी दोस्त मानता है कि नहीं?” अलका ने पूरे जोश के साथ कहा
“ह...न....हाँ! ई....इसमें पूछने व.. वाली बात....थो....थोड़े ही है?” सृजल के बदन पर जो झुरझुरी इस वक्त चढ़ रही थी उसने उनकी जुबान हिला कर रख दी थी
“तो फिर इतनी चिंता किसी बात की? अरे मैं तुझे खा थोड़े ही जाऊंगी! बस मुझे ऐसे ही सोने की आदत है...घर पर तो तकिए से काम चल लेती थी पर अब जब तू यहाँ पर है तो तकिए की जरूरत ही नहीं है” आखिरी की बात सुनते और बोलते ही एक दूसरे को देख कर दोनों हंस पड़े
“मुझे तो लगा था कि आज की रात के बाद में किसी को मुँह नहीं दिख पाऊंगा, थैंक्स(Thanks)” सृजल ने राम से बिस्तर पर लेटते हुए कहा
“अगर तेरी गर्लफ्रैंड और तू एक दूसरे से बेहद प्यार नहीं करते तो आज की रात पक्का तेरी आखिरी रात ही होती” अलका की बात पर एक बार फिर दोनों खिलखिला के हंस पड़े। कुछ देर तक ओर वो दोनों बातें करते रहे, फिर नींद के आगोश में समा गए। दोस्ती और प्यार को समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती, इन रिश्तों की डोर बहुत ही ढीली होती है और अक्सर उन्हें ढीला समझ कर हम जो उसे कसने की कोशिश करते है तो ये टूट भी जाती है...............इस वक्त जो सृजल और अलका हमें दिख रहे है वो एक ऐसी ही कड़ी का उदाहरण है। अक्सर ऐसा भी देखने को मिलता है कि ये समाज ही दोस्ती और प्यार के बंधनों को कसने की जद्दोजहत में उलझ रहता है जिसके चलते ना जाने कितने रिश्ते बर्बाद हो जाते है। खैर!
रात में वैसे भी काफी देर हो गयी थी, ठंडी हवाओं ने बाहर के वातावरण को बर्फीला से कर दिया था पर थोड़ी सी आग के किनारे बैठ कर इस बर्फीले माहौल का भी मजा लिया जा सकता था। अलका की तो बहुत ही गहरी नींद लगी हुई थी पर सृजल की आंखों में नींद का एक भी कतरा नहीं दिख रहा था.............कमरे में एक धीमी रोशनी का नाईट बल्ब जल रहा था जिसने कमरे को हल्की नीली रोशनी से घेर रखा था। सृजल का मन अब भी आहत था जैसे कोई तो बात थी जो सृजल के मन में समा नहीं रही थी। अपने ऊपर से धीरे से अलका का हाथ हटाते हुए सृजल बिस्तर से उठ गया। सीधे जाकर अलमारी खोली और अपनी पेंट की जेब में से वो नोट(कागज का टुकड़ा) निकाला सामने लगी बड़ी बड़ी कांच की खिड़कियों के पास जाकर चांद की रोशनी में देखने लगा
“हाsssहाsssss जब तेरा ये घर राख हो रहा होगा तब ही तू इसे पढ़ रहा होगा। क्योंकि जब मैं आया तब तू यहां था नहीं और उन बच्चों को तो बोलने का मौका ही नहीं दिया। वैसे तो हम दोनों का पुराना हिसाब बाकी है पर अभी मुझे जिसकी जरूरत थी मैं उन्हें ले जा रहा हूँ.....तेरा घर जलन तो मेरा छोटा सा बदला था पर जब मैं इन बच्चों की खाल खींच लूंगा और तू कुछ नहीं कर पायेगा...तब असली मजा आएगा.............................
ओबर के मैसेज के ये शब्द सृजल को कहीं से तो बहुत ही अजीब लग रहे थे...उसने फिर से उसे पढा.. फिर पढ़ा... दो-तीन बार पढ़ने पर अचानक ही उसकी नजर एक लाइन पर रुक गयी।
‘पर अभी मुझे जिसकी जरूरत थी मैं उन्हें ले जा रहा हूँ’ सृजल की आंखें बड़ी हो गयी और उसका अंतर्मन उससे कहने लगा-
ओबर मुझ से बदला लेने नहीं आया था...बल्कि वो उन बच्चों की तलाश में आया था! पर ईव और जैन ने कहा था कि कोई पीली-गोल सी शकल वाला उनके पीछे पड़ा हुआ था, तो फिर ये ओबर उन बच्चों को क्यों ले गया? हम्म.........शायद हो सकता है कि ओबर जिस के लिए काम करता हो वहीं पीली-गोल शक्ल वाला इंसान हो जिसकी बात बच्चों ने की थी! और शायद वो दोनों कोई अलग ही व्यक्ति हो? आखिर उन बच्चों के पीछे ये लोग क्यों पड़े हुए है? क्या उनके पास कोई कीमती चीज़ है?
सृजल अभी उन्हीं खयाली सवालों की उधेड़बन में फंसा हुआ था की उसे किसी की याद आ गयी जो शायद उसकी मदद कर सकता था। उन कागज के टुकड़े को वापस अपनी पेंट में डाल कर उसने अलमारी लगा दी.......अपना फ़ोन उठाया और कांटेक्ट लिस्ट में से एक नंबर निकाला और कॉल किया....जिस पर एक नाम लिखा आ रहा था ‘मास्टर संग वोंग(Master Sung-Wong)! कुछ ही देर में कॉल उठा ली गयी, थोड़े हालचाल पूछने के बाद सृजल ने कहा
[मुझे एक क्रिमिनल के बारे में जानकारी चाहिए, क्या आप मुझे वो दे पाएंगे?] फिर सृजल के माथे की परेशानी गायब हो गई
[उसका नाम ‘ओबर’ है दिखने में अफ्रीकन है और शायद असासिंस के तौर पर काम करता है] एक बार फिर से सृजल के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी
[मेरी चिंता मत करिए, मैं अपना ध्यान रखूंगा और कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाऊंगा जिससे कोई बड़ी परेशानी हो जाये....गुड नाईट]
सृजल ने एक बड़ी सी मुस्कान के साथ ही फ़ोन रख दिया, वो अब भी खिड़की के पास ही खड़ा हुआ था। उसके होंठ चौड़े हो गए थे और चांद की हल्की रोशनी में सिर्फ उसके आधे चेहरे पर रोशनी पड़ रही थी जिसमें उसी आंखें पीली सी दिख रही थी...........और एक बार फिर उसके शरीर से भाप निकल रही थी जैसे उसके अंदर एक आग जल रही थी जो सब कुछ खाक कर दे.......कोई भी नहीं जानता कि आखिर होने क्या वाला है? पर जो भी होगा, बड़ा ही होगा..........