तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
"तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है, अँधेरे में भी मिल रही रोशनी है।" गाने की स्वर लहरियाँ गूँज रही थी। बाहर बारिश शुरू हो चुकी थी। बारिश का पूरा लुत्फ़ लेने के लिए मैथिली किचेन में अपने और अंकुर के लिए कॉफ़ी बनाने आयी थी और उसने fm ऑन कर दिया था। मैथिली का फेवरेट गाना बज रहा था, मैथिली भी साथ ही गुनगुनाने लगी थी। बारिश और फिर यह गाना, मैथिली का मन मयूर नाच उठा था।
"यार, फेंटकर कॉफ़ी क्यों बना रही हो ? इतनी मेहनत की क्या जरूरत है ? कुछ ही देर में डिलीवरी ब्वॉय पकौड़े डिलीवर कर देगा।" अंकुर कहते हुए किचेन में घुसा।
"तुम्हारा फेवरेट गाना, अब तो आराम से कॉफ़ी फेंटकर ही बनाओगी। वैसे एकदम सही शब्द हैं, तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है।" अंकुर ने पीछे से मैथिली की गले में बाँहें डालते हुए कहा।
"आज तो बहुत प्यार आ रहा है।" मैथिली ने कहा।
"वह तो हमेशा ही आता है। तुम हो ही इतनी अच्छी और समझदार। तुम्हारे कारण ही आज हम दोनों आज इतने खुश हैं, नहीं तो नौकरी जाने के बाद मैं तो बिल्कुल ही टूट गया था।" अंकुर ने कहा।
"मेरे कारण नहीं, हम दोनों की मिली -जुली कोशिश के कारण।" मैथिली ने पतीली में दूध गर्म करने के लिए चढ़ाते हुए कहा।
डिंगडोंग ......डिंगडोंग .....डिंगडोंग ......डिंगडोंग .........तब ही दरवाज़े की घंटी बजी।" शायद डिलीवरी ब्वॉय आ गया है।" यह कहते हुए अंकुर गेट की तरफ लपका।
अंकुर ने पैकेज ले लिया और पैकेज लेकर किचेन में आ गया। "लो पकौड़े भी आ गए।" प्लेट में पकौड़े निकालते हुए अंकुर ने कहा।
"मैं ही पकौड़े भी बना लेती।" मैथिली ने गर्म दूध मग में डालते हुए कहा।
"अरे, फिर बारिश का लुत्फ़ कैसे उठाते ? अब पकौड़े और कॉफ़ी के साथ, तुम्हारा साथ भी तो आसानी से मिल जाएगा। वैसे पकौड़े उतने बुरे भी नहीं है।" अंकुर ने प्याज का एक पकौड़ा मुँह में डालते हुए कहा।
"यह तो सही कहा। तो अब चलें।" मैथिली ने कॉफ़ी के दोनों मग हाथ में लेते हुए कहा।
अभी भी हल्की -हल्की बारिश हो रही थी। छोटी -छोटी बूंदें धरती के अंदर समाती जा रही थी। कभी यह बूँदें पत्तियों पर अठखेलियाँ करती दिख रही थी। बारिश की भी अपनी ही कहानी है, कभी आबाद कर देती है और कभी तबाह। हमारे फैसले भी तो ऐसे ही होते हैं।
मैथिली और अंकुर बरामदे में बैठकर बारिश का लुत्फ़ लेने लगे। हल्की -फुल्की बारिश, कॉफ़ी, पकौड़े और हल्की -फुल्की बातचीत किसी बहुत ही अपने के साथ, और ज़िन्दगी में इससे ज्यादा क्या चाहिए ? लेकिन कभी -कभी और ज्यादा की चाह में, हम इंसान जितना है उसका भी लुत्फ़ नहीं उठा पाते। इस कोरोना संकट ने तो वैसे ही हमें अच्छे से समझा दिया है कि ज़िन्दगी में जितना है, उसी का आनंद उठाना चाहिए। कोरोना संकट ने ही तो अंकुर और मैथिली की सरपट गति से दौड़ती ज़िन्दगी की गाड़ी में ब्रेक लगा दिए थे।
अभी दोनों बातचीत ही कर रहे थे कि तब ही अंकुर का फ़ोन बज गया। "अरे यार, एक क्लाइंट का कॉल है। अभी 5 मिनट में निपटाकर आता हूँ।" अंकुर ने फ़ोन की स्क्रीन पर देखते हुए कहा।
"हाँ -हाँ।" मैथिली ने रेडियो का वॉल्यूम थोड़ा सा बढ़ाते हुए कहा।
"अब आपके लिए 'जब कोई बात बिगड़ जाए ' गाना प्ले किया जाएगा।" उसी समय आर जे ने घोषणा की।
कुछ -कुछ गानों के शब्द ऐसे होते हैं, लगता है कि मानो हमारे मन का हाल बयां करने के लिए ही वह गाना लिखा गया हो। कोरोना संकट में दोनों ने एक दूसरे का साथ दिया और उससे अपने आपको उबारा। इस संकट ने उनके सामने भी तो मुसीबतों का पहाड़ से खड़ा कर दिया था।
अंकुर और मैथिली एक मेट्रो सिटी में रह रहे वर्किंग कपल थे। सब कुछ सही चल रहा था। दोनों ने शहर के एक पॉश इलाके में एक अच्छा सा फ्लैट ले लिया था। मैथिली हमेशा स्टेटस को लेकर बहुत सचेत रहती थी। ऐसे पॉश एरिया में घर लेना भी एक स्टेटस की बात ही थी। दोनों की सैलरी से फ्लैट की emi और बाकी खर्चे आराम से निकल रहे थे।
लेकिन इस कोरोना संकट ने सब कुछ एकदम से बदल कर रख दिया। पहले तो अंकुर की सैलरी कम हुई और फिर नौकरी ही चली गयी। मैथिली का वर्क फ्रॉम होम जारी था, सैलरी जरूर कुछ कम हो गयी थी। मैथिली की सैलरी से अब सारे खर्चे निकलने मुश्किल हो रहे थे। अंकुर फ्रीलांसर के रूप में काम करने की कोशिश कर रहा था। काम बहुत कम मिल रहा था और काम के बदले भुगतान कब मिलेगा, कुछ फिक्स नहीं था।
लॉक डाउन के कारण वैसे घर पर रहते -रहते मानसिक तनाव बढ़ गया था और ऊपर से आर्थिक परेशानी। अंकुर का तनाव बढ़ता जा रहा था। उसका असर अब मैथिली और अंकुर के रिश्ते पर भी पड़ने लगा था। दोनों में झगड़े होने लगे थे।
अगर मैथिली अंकुर को किसी काम में मदद के लिए कह देती तो अंकुर कहता कि, "मेरी नौकरी चली गयी, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुम्हारी गुलामी करूँ। "
तब कभी मैथिली भी कह देती कि, "अगर मैं काम न करूँ तो तुम इस गुलामी के लायक भी नहीं बचोगे। "दोनों के अलग होने तक की नौबत आ गयी थी। तब मैथिली की किसी सहेली ने सलाह दी कि, "पैसे बचाने के लिए तुम लोग अपन फ्लैट किराए पर दे दो और कहीं दूर सस्ता घर रेंट पर ले लो। जब सब चीज़ें सही होने लगे, तब वापस अपने फ्लैट में आ जाना। "
मैथिली को अपनी सहेली की बात जँच गयी। वैसे भी अब स्टेटस का कोई मतलब उसके लिए नहीं रह गया था। कोरोना ने उसे रिश्तों का महत्व अच्छे से समझा दिया था। वैसे भी कोरोना से पहले दोनों ने एक -दूसरे के साथ बहुत अच्छा समय गुजारा था। मैथिली अपने रिश्ते को एक मौका और देना चाहती थी।
फिर मैथिली ने अंकुर से एक दिन इस विषय पर बात की। "अंकुर, मेरे बॉस एक अच्छा सा फ्लैट रेंट पर लेना चाहते हैं। हम अपना फ्लैट उन्हें रेंट पर दे देते हैं और खुद बाहरी क्षेत्र में कोई घर रेंट पर ले लेते हैं। अभी तो न जाने कितने दिन तक वर्क फ्रॉम होम चलता रहेगा। जब ऑफिस जाना होगा, तब की तब देखेंगे।" मैथिली ने कहा।
"मुझे तो अब कुछ सूझता ही नहीं। तुम तो हमेशा एक पॉश इलाके में, एलीट क्लास लोगों के बीच ही रहना चाहती थी।" अंकुर ने कहा।
"अब परिस्थितियाँ बदल गयी हैं। मुझे वहाँ रहने में अब कोई समस्या नहीं। मैं अपने रिश्ते को पहले जैसा ही करना चाहती हूँ।" मैथिली ने कहा।
"ठीक है। मैं भी इस रिश्ते को एक मौका और देना चाहता हूँ। कम से कम शहर से दूर शान्ति और सुकून से तो रह सकेंगे।" अंकुर ने कहा। एक महीने के अंदर अंकुर और मैथिली शिफ्ट हो गए थे। फ्लैट के रेंट से फ्लैट की emi और उनके नए आशियाने का रेंट निकल जाता था। यह नया घर छोटा सा था, जिसके सामने थोड़ी खाली जगह भी थी। अंकुर और मैथिली ने वहाँ कुछ पौधे और छोटे पेड़ लगाए, धीरे -धीरे वह एक अच्छा सा, छोटा सा गार्डन बन गया था। जगह बदली, माहौल बदला तो हालात भी बदले। अंकुर का फ्रीलांसिंग का काम भी ठीक ठाक होने लगा, वैसे भी अब उनके खर्चे पहले से कम हो ही गए थे। उन्हें शहर की भागदौड़ से दूर, यहाँ का माहौल अच्छा लगने लगा था।
रेडियो पर 'तुम साथ हो जो अपने' गाना बजना शुरू हो गया था। "आज तो fm वाले भी तुम्हारी पसंद के गाने एक के बाद एक बजाये जा रहे हैं।" अपनी फ़ोन कॉल ख़त्म करके वापस बरामदे में आये अंकुर ने कहा।
"आज तो तुम्हारा दिन बन गया, बारिश, पकौड़े और गाने।" अंकुर ने फिर से कहा।
"और तुम्हारा साथ।" मैथिली ने अंकुर का हाथ थामते हुए कहा।
"तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है।" अंकुर ने मैथिली का हाथ हौले से दबाते हुए कहा।

