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Chandresh Kumar Chhatlani

Tragedy Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Tragedy Inspirational

तालियाँ

तालियाँ

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एक टीवी चैनल पर दो राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं में बहस हो रही थी। बातों की गर्माहट दर्शकों के दिमागों तक पहुँच रही थी। वहाँ बैठे दर्शक यूनिफॉर्म पहने हुए कुछ विद्यार्थी थे।

एक दल का वज़नी प्रवक्ता ‘अ’ विषय से हट कर बोला, "हम देशभक्त हैं, लेकिन ये जो सामने बैठे हैं वो देशद्रोही है।"

सुनकर दर्शकों ने तालियाँ बजाईं।

दूसरे दल का प्रवक्ता ‘ब’ भी नारा लगाने की शैली में बोला, "झूठे लोग हैं ये। ये सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम के बीच कबड्डी खिलवा कर देश को बांटने में लगे हुए हैं।"

दर्शकों की तालियों की ऊर्जा बढ़ गयी।

‘अ’ ने जोशीले स्वर में प्रत्युत्तर दिया, "इन मगरमच्छों ने पिछले कितने ही सालों से देश की जनता को मछली समझ कर निगला है, इनको तो देश से बाहर फेंक देना चाहिए।"

‘ब’ उत्तेजित होकर बोला "तुम लोग तो देश की सेना को भी राजनीति के पिंजरे का तोता समझते हो।"

दोनों की टकराहट से दर्शकों के मस्तिष्क की गर्मी और तालियों की ऊर्जा बढ़ती जा रही थी।

चैनल के ऐंकर के चेहरे पर ग़जब की गंभीरता थी। वह दोनों की बातों का विश्लेषण कर रहा था, उसका काम एन-वक्त पर टोकना था।

उसी समय वहाँ सेना की वर्दी पहने एक व्यक्ति और दो बच्चों ने प्रवेश किया। दोनों बच्चों ने तिरंगे के रंगों की टोपी और भारत-माँ का मुखौटा पहना हुआ था। वह व्यक्ति मंच पर चढ़ा और प्रवक्ताओं को घूरते हुए बोला, "जात-धर्म-राजनीति हमारी सेना के दरवाज़े के बाहर खड़े रहते हैं, हम ही मरने का जज़्बा रखते हुए जनता की रक्षा करते हैं। तुम दोनों ने जो कहा वो सच है तो खाओ हमारे इन भावी सैनिकों, भारत-माँ के बच्चों की कसम..."


दोनों प्रवक्ता खड़े हो गए और उन बच्चों के सिर पर हाथ रख कर कहने लगे, "क्यों नहीं, हम कसम खाते हैं..."

इतना ही कह पाए थे कि दोनों ने झटके से उन बच्चों के सिर से अपना हाथ हटा दिया। बच्चों ने अपना मुखौटा उतार दिया था, वे उन प्रवक्ताओं के ही बच्चे थे।

और दर्शक जाने क्यों ताली नहीं बजा पा रहे थे।


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