स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं श्याम जी कृष्ण वर्मा
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं श्याम जी कृष्ण वर्मा
जन्म : 04 अक्टूबर 1857
जन्म भूमि : मांडवी, गुजरात
माता-पिता : करशन भानुशाली , गोमती बाई
पत्नी: भानुमति कृष्ण वर्मा
प्रसिद्धि: स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, वकील, पत्रकार
शिक्षा: बी ए, एम ए , बार एट लॉ
मृत्यु : 31 मार्च 1930
मृत्यु स्थान : जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड
भारतीय स्वतंत्रता का संग्राम यद्यपि 1757 ईस्वी में प्लासी युद्धकाल से आरम्भ हो गया था। अंग्रेजों की व्यापारिक कंपनी और उसके शासन के बोझ तले दबे किसानों व वनवासियों के संघर्षों से भरी गाथा 90 वर्षों तक चलती रही। यह भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की भूमिका थी। स्वतंत्रता का विजयनाद एक दिन में नहीं मिलता, वर्षों वर्षों लग जाते है।
1947 में मिली भारतीय स्वतंत्रता के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी थे, तो इतिहास का तथ्य यह पुष्ट करता हैं की इस अनवरत 1905 से चलाये गए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पितामह पं श्याम जी कृष्ण वर्मा थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन में अंग्रेजों की धरती लंदन में भारत भवन की स्थापना कर भारतीयों के लिए भारत में भारत सरकार की स्थापना का शंखनाद किया था।
जीवन परिचय
महान क्रांतिकारी राष्ट्र रत्न और गुजरात के गौरव पुत्र पं श्याम जी कृष्ण वर्मा की जीवन यात्रा दिनांक 04 अक्टूबर 1857 को मांडवी , कच्छ , गुजरात से आरम्भ हुई।
श्याम जी कृष्ण वर्मा क्रांतिकारी गतिविधियों के माध्यम से भारत की आज़ादी के संकल्प को गतिशील करने वाले अध्यवसायी एवं कई क्रांतिकारियों के प्रेरणास्त्रोत थे। वे पहले भारतीय थे, जिन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड से एम ए और बार-एट-लॉ की उपाधियाँ मिलीं थी।
उन्होंने सन् 1888 में अजमेर में वकालत के दौरान स्वराज के लिए काम करना शुरू कर दिया थ। मध्य प्रदेश के रतलाम और गुजरात के जूनागढ़ में दीवान दीवान रहकर जनहित के काम किया। मात्र 20 वर्ष की आयु से ही वे क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे थे।
अंग्रेजी राज्य को हटाने के लिए विदेशों में भारतीय नवयुवकों को प्रेरणा देने वाले, क्रांतिकारियों का संगठन करने वाले पहले हिंदुस्तानी थे।
श्याम जी कृष्णा वर्मा भी अन्य सभी क्रांतिकारियों की तरह आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती और आर्य समाज से अत्यधिक प्रभावित थे। काले पानी की सजा पाने वाले क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर भी वर्मा जी से प्रेरित होकर क्रांतिकारी कार्यों में सम्मलित हुए।
इंडिया हाउस की अनुकृति
इंग्लैंड में स्वाधीनता आंदोलन के प्रयासों को सबल बनाने की दृष्टि से श्याम जी कृष्ण वर्मा जी ने अंग्रेजी में , जनवरी 1905 ईस्वी से ' इंडियन सोसियोलॉजिस्ट' नामक मासिक पत्र निकाला। फरवरी 1905 ईस्वी को उन्होंने इंग्लैंड में ही ' इंडियन होमरूल सोसाइटी ' की स्थापना की । उस समय ये संस्था क्रांतिकारी छात्रों के जमावड़े के लिए प्रेरणास्त्रोत सिद्ध हुई और घोषणा की कि हमारा उद्देश्य " भारतीयों के द्वारा भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा, भारतीयों की सरकार स्थापित करना है।" घोषणा को क्रियात्मक रूप देने के लिए लंदन में ' इंडिया हाउस ' की स्थापना की, जो कि इंग्लैंड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों तथा कार्यकलापों का सबसे बड़ा केंद्र रहा। 1918 के बर्लिन व इंग्लैंड में हुए विद्या सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
इन्होंने अपनी मासिक पत्रिका इंडियन सोसियोलॉजिस्ट के प्रथम अंक में ही लिखा था कि अत्याचारी शासक का प्रतिरोध करना न केवल न्यायोचित है अपितु आवश्यक भी है और अंत में इस बात पर भी बल दिया कि अत्याचारी , दमनकारी शासन का तख्ता पलटने के लिए पराधीन जाति को सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाना चाहिए।
क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा उनके शिष्यों में से थे। वीर सावरकर ने उनके मार्गदर्शन में लेखन कार्य किया था।
अंतिम इच्छा
सात समंदर पार से अंग्रेजो की धरती से ही भारत मुक्ति की बात करना सामान्य नहीं था , उनकी देश भक्ति की तीव्रता , स्वतंत्रता के प्रति आस्था इतनी दृढ़ थी पं श्याम जी कृष्ण वर्मा ने अपनी मृत्यु से पहले ही यह इच्छा व्यक्त की थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी अस्थियाँ स्वतंत्र भारत की धरती पर लायी जाए।
अस्थियों का भारत में संरक्षण
भारतीय स्वतंत्रता के 17 वर्ष पहले दिनांक 31 मार्च 1930 को उनकी मृत्यु जिनेवा में हुई, उनका शव अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के कारण भारत नहीं लाया जा सका और वही उनकी अंत्येष्टि कर दी गय। उनकी मृत्यु के 73 वर्ष बाद , 2003 में भारत माता के सपूत श्याम जी और उनकी पत्नी की अस्थियों को जिनेवा के सेट जॉर्ज सेमेट्री से भारत के गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जी के पहल पर देश की धरती पर लाने की सफलता मिली ।
फिर अस्थियों को उनके जन्म स्थान मांडवी ले जाया गया। उनके सम्मान में 2010 में मांडवी के पास ' क्रांति तीर्थ ' नामक स्मारक बनाया गया , उनके परिसर में स्थित ' श्याम जी कृष्णा वर्मा स्मृतिकक्ष ' में उनकी व उनकी पत्नी की अस्थियों को संरक्षण प्रदान किया गया। भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था और कच्छ विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया। दीनदयाल पोर्ट स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स का नाम भी पं श्याम जी कृष्ण वर्मा जी के नाम पर हैं।
आज जिस राष्ट्रवादी दर्शन की बात होती है , श्याम जी कृष्ण वर्मा जी ने इस दर्शन को कभी उस प्रेरणा के तौर पर आगे बढ़ाया था , जिसमें न देश के भीतर बल्कि दुनिया में कहीं भी रहने वाले भारतीय , अपने देश और संस्कृति को लेकर गर्व (फख्र ) महसूस करें।